माँ– इस वीडियो सीरीज़ में आपका अभिनंदन है। ऐसा कहते हैं -अध्यात्म वह रास्ता है कि आप कहीं पर भी खड़े हों वो आपको मंज़िल तक पहुँचा ही देता है और मंज़िल आपको तब मिलती है जब आप स्वयं को जन्म देते हैं–आत्मज्ञान से।
समझिए: "मां" एक ओर वह होती है जो शारीरिक रूप से संतान को जन्म देती है, और दूसरी ओर वह होती है जो आत्मिक रूप से किसी को नया जन्म देती है — समझ का, बोध का।
बोध आए इसके लिए ज़्यादा कुछ नहीं करना है बस अपने आप से कुछ सवाल पूछने हैं, जैसे:
मातृत्व माने क्या?
आसक्ति से समझदारी तक एक माँ किस तरह से स्वयं को तैयार करे?
कौन से ऐसी सामाजिक भ्रम हैं, मान्यताएं हैं जिन्हें भूलवश मैंने मातृत्व से जोड़ रखा है?
सवाल आपकी मूल परिभाषाओं को ठीक करते हैं और आपको गहराई से सोचने पर मजबूर करते हैं। देखिए, माँ बनना गलत नहीं है, अस्तित्व आपको अपने को कुछ भी मानने की स्वतंत्रता देता है, लेकिन उसके परिणामों से बचने की स्वतंत्रता नहीं देता। जो पहचान आप चुनते हैं, वही आपके जीवन की दिशा तय करती है।
यह दिशा जीवनदायक हो पाए इसलिए आचार्य प्रशांत ने माँ का वेदांतिक अर्थ आप सबको समझाने के लिए बताने के लिए इस मुद्दे पर खुलकर बात की है। आशा करते हैं आप समझेंगे और दूसरों तक यह वीडियो साझा करेंगे।
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