चलिए एक प्रयोग करके देखते हैं। अगर आपके विचारों में, विचार छोड़िए अगर आपकी भाषा में शुद्धि आ जाए तो आपके लिए सबसे मुश्किल होगा अपने दोस्तों के सामने जाना। आप थोड़े गंभीर हो जाइए, देखिए आपके यार क्या करते हैं? 'कैसे सीरियस (गम्भीर) सा हो रहा है! चल पार्टी करते हैं।
' अभी आप उनको बोलिएगा, 'आज सर्वसार उपनिषद् पढ़ा।' कहेंगे, 'छड यार, बोतल खोल। अब सिर्फ़ शराब की ही बात नहीं है, नशे सौ तरह के होते हैं न। कोई आपसे व्यर्थ की बातें ही कर रहा है दो-दो घंटे, कोई आपको ऐसी ख़बरें दे रहा है जो आपको दी नहीं जानी चाहिए तो वह कैसे आपका हितैषी हो गया?
तो साहब क्या इन सब से कोई नुकसान है?
तो सुनिए अब नुक़सान — इन्हीं के कारण आपके जीवन में कोई अच्छा व्यक्ति कभी प्रवेश नहीं कर पाता। ये जो हम कलपते रहते हैं न कि सही संगति नहीं मिलती, सही साथी नहीं मिलता, उसकी वजह है आपके ये जो वर्तमान साथी हैं।
'क्या करना पड़ेगा? कोर्स पूरा होते ही ऐसों को छोड़ना पड़ेगा?' सही, सार्थक, अच्छा जीवन आपके चुनाव पर मिलता है। करके देखिए, पहले से बेहतर ही होंगे।
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