सम्पूर्ण कर्मों को मुझमें अर्पण करके आशारहित, ममतारहित और सन्तापरहित होकर युद्ध कर। 3.30
जगत जिन-जिन तरीक़ों से आपको पकड़ता है, उनको आज श्रीकृष्ण नकार रहे हैं। बहुत साफ़ समझिएगा! बहुत कम हुआ है कि श्रीकृष्ण ने इतने स्पष्ट निर्देश दिये हों।
समझिए विगतज्वर् युध्यस्व से क्या आशय है कि ताप रहित बस युद्ध हो।
ठंडी लड़ाई, ऐसी लड़ाई जिसमें लड़ाके ने लड़ाई को ‘लड़ाई’ बोलना बन्द कर दिया हो, ‘ज़िन्दगी’ बोलना शुरू कर दिया हो। कोई पूछे, ‘लड़ रहे हो?’ बोलो, ‘नहीं, लड़ नहीं रहा, जी रहा हूँ, ये तो ज़िन्दगी है।’
ये जो भीतर वाला ‘मैं’ है इसका निर्माण किसने करा है? बाहर के ही सब प्रभावों ने। और ये जो बाहर का संसार है उसका निर्माण किसने करा है? ‘मैं’ के प्रक्षेपण ने। तो अद्वैत बोलता है, ‘कुल मिलाकर ये दोनों ही नकली हैं। एक-दूसरे को सहारा देते रहते हैं, हक़ीक़त किसी की नहीं है।‘
कृष्ण आपको निर्मम और निराश होकर युद्ध करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। युद्ध से पलायन तो संभव नहीं है, हाँ पर सीखा जरूर जा सकता है। सीखें आचार्य प्रशांत संग अपने विरुद्ध युद्ध करना।
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