चलिए आपसे कुछ प्रश्न पूछते हैं -
कौन तय करेगा कि महिलाएँ क्या पहनेंगी?
क्या पति और सास ससुर तय करेंगे कि आप नौकरी और बच्चे कब करें?
क्या महिलाएँ मासिक धर्म में अपवित्र हो जाती हैं?
क्या दहेज लेना और देना गलत है?
चलिए प्रश्नों को थोड़ा गहराई दे देते हैं
कौन तय करेगा कि कोई भी क्या पहनें?
क्या शोषण करने वाला ही ग़लत है और शोषित होने के भी फायदे होते हैं?
अगर अपवित्र हैं तो पवित्र होने की भी एक सूची होगी, वह वेदांत से कैसे संबंधित है?
अगर स्वतंत्रता प्यारी ही तो विद्रोह क्यों नहीं, किसने रोक रखा है आपको?
हमें तो उपनिषदों में ऐसा कहीं पढ़ने को नहीं मिलता कि गुरू शिष्य को बोल रहा हो, 'ऐ! लँगोटी ठीक कर पहले, फिर बताऊँगा। तू अंग-प्रदर्शन कर रहा है, तेरी लँगोटी में तेरी जंघा प्रदर्शित हो रही है।' ऐसा कहीं मिलता है क्या? गुरु को क्या मतलब है कि शिष्य की जंघा दिख रही है कि नहीं दिख रही है कि क्या हो रहा है।
अगर आप माँ-बाप हैं या शिक्षक हैं या हितैषी हैं उस लड़की के, तो आपका धर्म है उसको सही शिक्षा देना। वो समझ पाये कि मैं कौन हूँ, जीवन क्या है, देह क्या है, जीवन का उद्देश्य क्या है, और जीवन के उद्देश्य में देह का किस सीमा तक महत्व है। जब वो ये बातें समझने लग जाती है, तो वो स्वयं तय कर लेती है कि क्या पहनना है, क्या खाना है, किधर जाना है, किससे सम्बन्ध बनाना है, कौनसी नौकरी करनी है, किस दिशा में ज़िन्दगी जीनी है, ये सारे फ़ैसले फिर वो ख़ुद कर लेती है।
भेदभाव, हिंसा और अपराध इन सब के पीछे का मनोविज्ञान जानेंगे इस कोर्स में।
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