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आत्मा, अनात्मा का अस्तित्व नहीं है

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आचार्य नागार्जुन के शून्यवाद पर आधारित (छंद-2)
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3 घंटे 52 मिनट
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परिचय
लाभ
संरचना

आपके लिए कुछ प्रश्न:

क्या जीवन में ऐसा लगता है कि खालीपन है? क्या जीवन में सब कुछ होते हुए भी सब अधूरा सा लगता है?

और इस अधूरापन को भरने के लिए हम क्या करते हैं?

कभी हम मॉल में खरीददारी करने चले जाते हैं, कभी महँगे होटल में दिल बहलाने चले जाते हैं, कभी पहाड़ों पर गाड़ी लेकर चले जाते हैं और कभी नदियों पर नौकविहार करने चले जाते हैं।

वजह बस एक है: कहीं से बस थोड़ा चैन मिल जाए।

हमारा भोगने का चुनाव हमेँ चैन नहीं देता उल्टा और बेचैन बना देता है। आचार्य नागार्जुन यही समझा रहे हैं कि मनुष्य बेचैनी का इलाज बाहर ढूंढता है। और ढूँढे भी क्यों न? अगर आप बाहर इलाज ढूँढने निकलेंगे तो जगत में लाखों करोड़ों ऐसे विषयों के नाम है जो आपको चैन देने का वादा करते हैं।

आचार्य नागार्जुन का रहे हैं यही भ्रम है। आपने जिसे सौ नाम दे दिए हैं। वह एक है। बस आपकी बेचैनी उसे सौ अलग अलग नाम से बुला रही है। यही अविद्या है।

अविद्या को समझा जाता है उससे लिप्त नहीं होते। यही समझाने का प्रयास आचार्य नागार्जुन ने अपने इस छंद में किया है। बेचैनी से लेकर निर्वाण तक का सफर कैसे तय करें इसका रहस्य जानें स्वयं आचार्य नागार्जुन से।

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