भक्ति मार्ग का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ वैदिक काल के उन ऋषि से आता है जिनको 'ऋषिराज' यानी 'ऋषियों के राजा' के नाम से भी जाना जाता है। जिनकी स्मृति को धर्मशास्त्रों का सबसे महत्वपूर्ण न्यायिक ग्रंथ माना जाता है। साथ ही, उन पर आधारित एक पुराण भी है।
जिस ग्रंथ की हम यहाँ बात कर रहे हैं वह है:
"नारद भक्ति सूत्र"
नारदमुनि के बारे में आपने शायद ही यह सब सुना होगा, उनसे हमारा परिचय जब टी.वी. धारावाहिकों के माध्यम से होता है तो वहाँ उनको 'क्रिएटिव फ्रीडम' के नाम पर किसी हिंदी फ़िल्म के विदूषक की तरह चित्रित किया जाता है। यह बात बिल्कुल ठीक है कि पुराणों व इतिहास ग्रंथों में अनेकों बार किसी सूचना या कहानी के साथ ही प्रकरण में उनका आगमन होता है, लेकिन किसी भी जगह पर आने से पहले उनका 'नारायण नारायण' कहना उनके भक्तिभाव का उद्गार है न कि किसी विदूषक का तकिया कलाम है।
नारदस्मृति को ईसा से छः शताब्दी से भी पूर्व का माना जाता है, परन्तु नारद भक्ति सूत्र किस काल में लिखे गए, इस विषय में अभी तक कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। ऐसी लोकमान्यता है कि भक्ति सूत्र की रचना गोवर्धन परिक्रमा मार्ग पर स्थिति 'नारद कुंड' के पास नारदमुनि द्वारा एक कुटिया में की गई थी लेकिन उसी के आसपास भक्ति के सबसे लोकप्रिय प्रतीक राधा-कृष्ण जी से जुड़ी कथाओं के सामने भक्ति के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ का रचनास्थल लोगों द्वारा अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है।
इस कोर्स में आपको नारद भक्ति सूत्र के मुख्य सूत्रों की आचार्य प्रशांत द्वारा सरल व्याख्या देखने को मिलेगी।
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