प्रकृति को भ्रष्ट क्या करता है? पुरुष का कुसंग। 'मैं' भाव जिन क्रियाओं के साथ जुड़ जाता है उनको विकृत कर देता है। श्रीकृष्ण के दर्शन में वस्तुओं की भर्त्सना नहीं है। कर्म के सिद्धांत नहीं है। श्रीकृष्ण कहते हैं वस्तुओं के साथ तुम जो कामना, जो अज्ञान लाए हो वह पराई है। और परायपन में जीना ही पाप है।
तुमने अपना हाथ चीजों में नहीं डाल रखा है तुमने अपना हाथ अज्ञान में डाल रखा है। अज्ञान से हाथ पीछे खींचो, चीज़ तो एक समान ही है।
आदमी अज्ञान नहीं त्यागता, वह मैं भाव नहीं त्यागता। दुख प्रकृति में नहीं है, दुख प्रकृति से गलत संबंध बनाने में है।
अंदर भी प्रकृति और बाहर भी प्रकृति तो संबंध सही रखें कैसे? कैसे खुद को योग की दिशा में ले जाएंँ?
ऐसे बहुत से प्रश्नों का हल जानेंगे इस सरल से कोर्स में।
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