चलिए आपसे एक प्रश्न पूछते हैं इमानदारी से उत्तर दीजिएगा–
कौन कौन हैं जो इस कथन से सहमत हैं?
"मैं जीवन के अंत से इसलिए डरता हूँ क्योंकि मेरा जीवन तो पुष्प वाटिका जैसा है, मैं भँवरा, फूल-ही-फूल हैं मेरे जीवन में।
तो अगर हम मृत्यु से घबरा रहे हैं तो इसलिए नहीं कि हमारे जीवन में सौंदर्य और आनंद बहुत है। हम मृत्यु से इसलिए घबरा रहे हैं क्योंकि बहुत बड़ा एक काम है जो लंबित पड़ा हुआ है, पेंडिंग पड़ा हुआ है। जीवन आपसे पल पल हिसाब माँगता है। मुझे कहाँ खर्च करा आए? किसको दे आए अपना सीमित समय।
जो सही जीवन जी रहा है उससे तुम कभी भी बोलो मौत आ रही है, क्या बोलेगा वह? "स्वागत है।" वह कहेगा, "हमारे पास करने के लिए कुछ बचा ही नहीं है तो हम और समय माँगे क्यों? और समय तो वह माँगते हैं जिनके कुछ काम अधूरे पड़े होते हैं। हम जीवन पूरा जी रहे हैं, कुछ अधूरा है नहीं। बोलो अभी प्रस्थान करना है, अभी करते हैं। कहाँ चलना है? बोलिए, अभी चलते हैं।
हम जैसे हैं हमारी मौज भी सस्ती होती है, सीमित होती है, डराती है कि अब वह खत्म हो जाएगी। ऋषि तो वह है जिसकी अब पूरी मौज हो चुकी है, वह मौत को याद रखता है और मौज को साथ रखता है।
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