अर्जुन को और प्रेरित करने के लिए, जो जगत का एक व्यावहारिक तथ्य है वो सामने रखते हैं। कहते हैं, ‘देखो, श्रेष्ठ व्यक्ति जैसा कर्म करता है, साधारण मनुष्य भी फिर उसके पीछे-पीछे वैसा ही करते हैं। तो श्रेष्ठ के प्रमाण का अनुसरण सभी करते हैं। तो अर्जुन, इससे समझो फिर कि तुम्हें क्या करना है।
और अगर कभी व्यक्तिगत रूप से स्पष्ट न हो कि युद्ध करें या नहीं तब क्या करना चाहिए?
इसमें भी ये विचार करना पड़ेगा कि इसका समग्र जनसमुदाय पर क्या असर होने वाला है। अगर जनसमुदाय पर सही असर हो रहा हो तो कई बार वो निर्णय भी करने पड़ते हैं जो व्यक्तिगत रूप से स्पष्टत: पता न चलते हों कि सही हैं कि ग़लत हैं, धर्म है कि अधर्म है। तब निर्णय ऐसे ही कर लिया जाता है कि मेरे लिए पता नहीं सही है कि ग़लत है, धर्म है कि अधर्म है, लेकिन संसार पर इसका अनुकूल प्रभाव पड़ना है, इसी बात से ये धर्म हो गया। मेरे लिए हो सकता है न हो ठीक, पर सबके लिए अगर ठीक है तो करूँगा।
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