बचपन में आपने कहानियों के मज़े खूब लिए होंगे। उन कहानियों में कहीं देव और असुर का संग्राम चल रहा होता था; कहीं राजा अपनी रानी को बचा रहा होता था और कहीं पुलिस किसी चोर को सबक सिखा रहा होता था। हर कहानी के अंत में कोई न कोई सीख छुपी होती थी, जो हमें हमारे बड़े-बूढ़े हमें समझा दिया करते थे।
मन को कुछ समझा पाने में कहानी बहुत सटीक माध्यम होती है। कहानी के किरदार सांकेतिक रूप से आपको इतना कुछ समझा पाने की ताकत रखते हैं कि कहानी चाहे तो आपकी चेतना को नई ऊँचाई दे दे या उसे बिल्कुल ही नीचे गिरा दे।
पर इतनी बात कथा-कहानी को लेकर क्यों?
क्योंकि नवरात्रि आ रही है और हम जानते हैं कि आपने देवी और असुर संग्राम की कथा न जाने कितनी बार सुनी होगी। आपको बता दें कि वह प्रचलित कथाएँ दुर्गासप्तशती ग्रंथ से हैं।
लेकिन कहानी सुनते-सुनते क्या आपके मन में यह सवाल आते हैं जो आपको थोड़ा सोचने पर मजबूर करें कि कहानी ठीक-ठीक हमें क्या सिखाना चाहती है? क्या आपने यह सवाल स्वयं से कभी पूछे हैं:
असुर किस चीज़ के प्रतीक हैं?
देवी किस अर्थ में देवी हैं और इनके रूप इतने सारे कहाँ से आ गए?
जब भी देवता संकट में होते हैं तो देवी ही क्यों मदद के लिए आती हैं?
और अगर आती भी हैं तो ये एकदम से कैसे प्रकट हो जाती हैं?
देखिए, कथा को सुन लेने से सिर्फ़ बात नहीं बनेगी, आपको इसे वेदांत की रोशनी में समझना होगा। अगर इन कहानियों को उपनिषदों की छाँव में नहीं पढ़ा गया तो हम गहरे और स्पष्ट अर्थों से बिल्कुल वंचित रह जाएंगे।
अगर आप इन जैसे प्रश्नों के ठोस तार्किक उत्तर चाहते हैं, तो ये वीडियो सीरीज़ आपके लिए है। हम ये नहीं कहेंगे कि उत्तर को बस मान लीजिए, बल्कि आचार्य प्रशांत की सीख आपको प्रेरित करेगी किसी मनोवैज्ञानिक की तरह खोज करने में कि – मानिए मत, जानिए और सीखिए।
और जब बात समझ आ गई, तो इसे अपने प्रियजनों के बीच भी साझा कर दें।
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