सफल व्यक्ति तो वह है जो पूर्ण है। जिसकी आंखों में दरिद्रता नहीं है। हम जैसे होते हैं क्या हमारी कोई भी सफलता आखिरी सफलता होती है? हमें तो और चाहिए। हम इतने अपूर्ण हैं कि हमारा किया हुआ कर्म भी फिर उस अपूर्णता से निकलता है।
हम अपूर्ण क्यों होते हैं? क्योंकि हम अज्ञानी होते हैं। हमें विद्या का कुछ भी पता नहीं होता है। जब ब्रह्मविद्या का पता नहीं तो सुख दुख में समानता कैसी?
विचार ही हैं जो हमें परेशान करते हैं। बाहर की कोई घटना नहीं बल्कि हमारा घटना से जुड़ जाना हमारे दुख का कारण बनता है। और घटना से हम बिना सोचे समझे जुड़ाव कर बैठे थे। कुल समस्या है झूठा ज्ञान।
इस श्लोक में श्रीकृष्ण यही समझा रहे हैं कि झूठा ज्ञान आपको कहीं का नहीं छोड़ेगा इसलिए ब्रह्मविद्या लेना ही एक मात्र उपाय है।
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