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सागर जैसे हो जाओ

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 2 श्लोक 70 पर आधारित
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2 घंटे 42 मिनट
हिन्दी
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पठन सामग्री
आजीवन वैधता
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परिचय
लाभ
संरचना

गीता का संदेश डर का नहीं है, सुरक्षा का नहीं है कि अहम् को बचाना है। गीता का संदेश बल का है, दहाड़ का है, खुलेपन का है। गीता का संदेश है कि तुम इतने बड़े हो जाओ कि संसार या माया तुम्हारे मानस पटल पर छा न पाए। तुम उससे अनछुए रहो। ठीक उसी तरह से जैसे सागर में कितनी नदियांँ मिलती हैं लेकिन उसे किसी नदी की प्यास नहीं है। सागर अपने आप में पूर्ण है। सागर नदी का भूखा नहीं है। यहांँ तक कि नदी में मनुष्य द्वारा फेंका गया कचरा भी सागर स्वीकार कर लेता है।

पर क्यों?

क्योंकि सागर की मौज है। वह अपने आप में पूर्ण है। वह चंद बूंदों के लिए भूखा नहीं है। या यूंँ कह लीजिए सागर कि कोई क्षुद्र कामनाएंँ नहीं हैं कि नदी के बिना वह अधूरा है। सागर विशाल ही इसलिए है क्योंकि उसका क्षुद्र कामनाओं से कोई नाता ही नहीं है।

श्रीकृष्ण कह रहे हैं अर्जुन सागर हो जाओ। माया से भागो मत, यह तो मेरी है। मगर डरो भी मत। तुम नदी नहीं हो, तुम सागर बनने के लिए जन्म लिए हो। इतने विशाल हो जाओ और अपनी सारी क्षुद्रताएंँ त्याग दो।

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