मुझे तो अपनों ने लूटा गैरों में कहाँ दम था, मेरी कश्ती वहाँ डूबी जहाँ पानी कम था।
शायरी सुन के लगता है कि शायर बड़े दर्द में है। उसे किसी अपने ने चोट पहुंचाई है।
मगर किसने उसे चोट पहुँचाई है?
क्या घरवालों से धोख़ा मिला है? क्या दोस्तों ने उसे लूट लिया? या फिर प्यार में बेफाई मिली है?
समझना पड़ेगा कि इंसान है क्या और वास्तव में उसे कौनसा मुकाम चाहिए। नहीं तो वो अंधे तरीक़ों से अपनी कामनाओं को पूरी करने के लिए कुछ भी करता है। बात दूसरों की नहीं है, उन दूसरों को चुना किसने? किसने कहा कि वो सब लोग आपके हितैषी हैं? ये कहने वाला कौन था? हम थे न! बात अपनी है। हमारा चुनाव अभी-अभी असफल साबित हुआ है। हमारे चुनने के तरीक़ों में कुछ खोट है। और उन्हीं तरीक़ों से अगर हमने आगे और भी चुनाव कर लिये तो वो चुनाव भी ग़लत ही रहेंगे न। रहेंगे कि नहीं रहेंगे? रुक जाइए, अपनेआप को देखिए।
यह कोर्स आपको सिखाएगा स्वयं पर संदेह करना। अपने ऊपर शक़ करना सीखिए। बहुत बुरा लगेगा पर कोई बात नहीं। यही साधना है। साधना का अर्थ ही यही होता है — परम् तत्व पर अटूट श्रद्धा और अहम् पर निरंतर संदेह।
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