महिलाओं को तो लंबे बाल रखने चाहिए।
पति की सेवा में ही पत्नी का कल्याण है।
शादी के बाद सबको खुश रखना महिलाओं का काम होता है।
बड़ों के सामने तो घूँघट करना ही चाहिए।
क्या ऐसे तर्क आपने भी सुने हैं?
और क्या यह तर्क समाज आपको धार्मिकता के चोले में लपेटकर दे देता है?
बिल्कुल सावधान हो जाएँ।
अध्यात्म और संस्कृति में भेद करना बहुत-बहुत ज़रूरी है। धर्म का काम किसी तरह की संस्कृति को बढ़ाना या प्रोत्साहित करना नहीं होता; धर्म का काम होता है सत्य को प्रोत्साहित करना। आप सत्य की ओर बढ़ें, इसलिए आपको प्रोत्साहित किया जाए। धर्म का काम आपको किसी विशिष्ट संस्कृति में दीक्षित करना नहीं होता।
महिला और पुरुष दोनों बस शरीर से अलग हैं, भीतर चेतना तो एक ही है न। वो चेतना जो दोनों में ही एक समान कराहती है और एक समान माँग करती है 'मुक्ति’। ये भारतीय दर्शन है।
उपनिषदों के पास जाएँगी तो वहाँ आपको न स्त्री मिलेगी, न पुरुष मिलेंगे। उपनिषदों के दृष्टि में आप जीव मात्र हैं। जीव मात्र है, और एक सत्य है जो सब जीवों का रूप लेकर के प्रकट होता है। ये वेदान्त के मूल सूत्र हैं जिनको समझना ज़रूरी है ताकि आप जान पायें कि जिसको आप वैदिक धर्म कहते हैं, वो क्या है।
इसलिए देवी जी मूल्य अपनाने से पहले यह जानें कि आप कौन हैं।
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