अरे! दुनिया तो डर पर ही चलती है।
ये दुनिया है ही डर का घर। यह तो बीमार है।
बात आपने बिलकुल ठीक कही कि दुनिया बीमार है। हम आपसे पूछते हैं, “क्या आपको भी बीमार होना है या स्वास्थ्य में जीना है?” देखिए कैसे आपने अपनी साँस-साँस में डर बैठा लिया है। एक सवाल आपसे कर रहे हैं, “आप सब को वही डरी हुई कहानी दोहरानी है या एक नई कहानी लिखनी है?”
डर की ज़रुरत उसी को है, डर काम भी सिर्फ़ उस पर करेगा जिसके पास अपनी समझ की आंतरिक व्यवस्था नहीं है। जिसके पास अपनी समझ है, अपनी रोशनी है, उसको न डर की ज़रुरत है, और उसको डराओगे भी तो डर उसके ऊपर काम करेगा नहीं। डर हमारे ऊपर काम कर जाता है क्योंकि हमारा अपना कुछ है ही नहीं। समझ रहे हैं न बात को? डर उपयोगी हो गया है, क्योंकि हम ऐसे हैं, हम ऐसे न रहे तो डर की उपयोगिता भी न रहे।
और याद रखिए, जिस दिन आप बदल जाएंगे, जिस दिन आपका मन मुक्त रहेगा, उस दिन दुनिया का कोई डर आप पर प्रभावी हो ही नहीं पाएगा।
लोग डराते रहेंगे, आप हँसते रहोगे, डरेंगे नहीं। डर से आँखे चार करना सीखिए इस कोर्स के संग।
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