आपके भीतर एक गहरी अपूर्णता बैठी हुई है जो पूर्णता की खोज संसार में करने निकलती है। अब यह तो हम भली भांति जानते है कि संसार में आज तक तृप्ति किसी को मिली नहीं है फिर पूर्णता को संसार में खोजना मन का एक तरह का पागलपन है। श्रीकृष्ण इसी पागलपन को आपको और अर्जुन को बता रहे हैं कि ठीक से देख लो कहांँ कहांँ कामना छुपी हुई है और आपको लगातार भ्रम में रखे हुए है।
कामना को कृष्ण की तरफ मोड़ लेना ही प्रेम है। सौ चीज़ की कामना में मन खंड में जीता है। प्रेम और कृष्ण की कामना हो तो मन कृष्ण में जीता है।
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