कृष्ण कह रहे हैं, ‘मैं पूरी दुनिया को चला रहा हूँ, उसमें मुझे कुछ नहीं मिलना; मैं तो पूर्ण हूँ, मुझे क्या मिलेगा? और तुझे तो पूरी दुनिया को भी नहीं चलाना अर्जुन, तुझे तो धर्म का पालन करना है, तू उससे ही भागेगा? क्यों छोड़ता है अपना काम? मेरी ओर ही देख ले, मैंने छोड़ा क्या?’
अर्जुन के लिए कितनी मेहनत कर रहे हैं कृष्ण, मगर क्यों इतनी मेहनत कर रहे हैं?
क्योंकि अर्जुन के पास प्रश्न हैं और कृष्ण के पास प्रेम।
गीता कितनी रोचक है न! कृष्ण को भी कितना श्रम, कितनी मशक़्क़त करनी पड़ रही है। जैसे अर्जुन के सामने बार-बार आवेदन कर रहे हों, ‘कृपया सुन लीजिए!’ और अर्जुन कह रहे हों, ‘न, ख़ारिज; अगला योग बताइए।’ सत्य भी एक तरह से बस प्रयास कर सकता है, निश्चित नहीं कर सकता। तो कृष्ण भी अर्जुन के साथ प्रयास करे ही जा रहे हैं। कभी इस तरीके से, कभी उस तरीके से; कभी अपकीर्ति का डर दिखाते हैं, कभी क्षत्रिय धर्म याद दिलाते हैं, कभी सांख्ययोग बताते हैं, अभी निष्कामता का पाठ पढ़ा रहे हैं।
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