आप किसी भी चीज़ को लेकर निश्चित हो पाते हैं? कभी भी पूरी नींद आ ही नहीं सकती, हमेशा खटका बना रहेगा, 'कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए'! जिन चीज़ों को बहुत क़ीमती, बहुत महत्वपूर्ण समझते हैं, उनको लेकर भी धुकधुकी मची रहेगी, छिन न जाए, धोखा न दे दे, टूट न जाए, नकली न निकल जाए कहीं!
तर्क में तो आप भी कह देंगे, 'कुछ नहीं होता ये सब, बेकार के टोने-टोटके हैं'। तर्क में आप भी कह देंगे लेकिन व्यावहार में आप कहेंगे, 'अगर एक प्रतिशत भी संभावना है कि इससे कुछ होता है तो मैं ही क्यों ज़िंदगी दाव पर लगाऊँ'?
तो आदमी कहता है, 'रिस्क (जोखिम) कौन ले'!
इस तरीक़े से अंधविश्वास आगे बढ़ता है। वो आपके भीतर के आत्मसंदेह का फ़ायदा उठाता है। हमारे भीतर जो स्पष्टता और पूर्णता की कमी है, उसका फ़ायदा उठाकर अंधविश्वास आगे बढ़ता है।
कुछ बात बन पा रही है? पूर्ण विश्वास होना थोड़ा मुश्किल है लेकिन सीखने का जोख़िम लिया जा सकता है। जो सीखना चाहते हैं यह कोर्स उनके लिए है।
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