जब भी हमारे जीवन में कोई जटिल स्थिति आती है तो हमारा पहला प्रश्न होता है, "क्या करें?" अर्थात "सही कर्म क्या हो?" हर व्यक्ति कहीं-न-कहीं इसी प्रश्न में उलझा हुआ है, "करूँ क्या?"
क्या ऐसी कोई नियमों की सूची बनाई जा सकती है कि ऐसी स्थिति आए तो ये करो और वैसी स्थिति आए तो ऐसा करो? बड़ा मुश्किल होगा! आपका कर्म तो इस पर आधारित होता है कि आप हैं कौन। तो आपके लिए सही कर्म क्या है, ये जानना है तो जानना पड़ेगा कि आप कौन हैं। 'करना क्या है', ये महत्वपूर्ण सवाल नहीं है। 'कौन कर रहा है', यही असली सवाल है।
तो बताइए, आप कौन हैं? क्या आपका 'कर्ता' समाज द्वारा संस्कारित और दूसरों द्वारा प्रभावित मन है या एक सुलझा हुआ मन है? आपके कर्म शारीरिक वृत्तियों से उठते हैं या आत्मिक बोध से? आपके कर्म सच्चाई को समर्पित होते हैं या अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को?
उचित कर्म क्या है? यह जानने के लिए आपको स्वयं पर थोड़ी मेहनत और साधना करनी पड़ेगी। जीवन के प्रति एक स्पष्टता लानी पड़ेगी। यदि आप उस कर्ता को समझना चाहते हैं जो आपके भीतर बैठा हुआ है, और आप चाहते हैं कि आपका जीवन ठोस रूप से बदले, आपके दुःख-दर्द कम हों, और आपको जीवन के प्रति एक साफ़ दृष्टि मिले, तो आचार्य प्रशांत की यह पुस्तक आपके लिए ही है।
Index
1. किसी भी काम में डूबे रहना कर्मयोग नहीं कहलाता2. जो सही है वो करते क्यों नहीं?3. क्या सफलता पाने के लिए कठिन परिश्रम ज़रूरी है?4. काबिलियत मुताबिक़ प्रदर्शन क्यों नहीं होता?5. पुरुषार्थ या प्रारब्ध?6. सहायता की प्रतीक्षा व्यर्थ है