युवावस्था एक स्वर्णिम अवसर है जीवन को ऊँचाई देने का। यही वह समय है जो हमारे जीवन की दिशा तय करता है। एक जवान व्यक्ति या तो अपनी चेतना को आसमान की ऊँचाई दे सकता है या फ़िर कामवासना और सांसारिकता के जाल में फँसकर पतित हो सकता है।
यूँ तो एक जवान व्यक्ति के सामने चुनौतियों की कमी नहीं होती पर सोशल मीडिया के भोंडापन और बेहुदगियों ने इस समस्या को और विकराल बना दिया है। आज का एक भारतीय युवक जिस स्थिति में है वह अत्यंत गम्भीर और खतरनाक है।
ऐसे समय में एक उचित मार्गदर्शन और सशक्त पथप्रदर्शन की आवश्यकता और बढ़ जाती है। आचार्य प्रशांत की पुस्तक 'आह जवानी! आग है नसों में या है पानी' एक युवक के मानसिक और शरीरिक क्षमताओं को सही दिशा देने का एक प्रयास है।
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1. ठरकियों को 'बोल्ड' बोलते हो? (कामुकता निडरता नहीं)2. बचपन का प्यार मेरा भूल नहीं जाना3. डॉक्टर हो या व्यापारी, इंस्टाग्राम क्वीन सब पर भारी4. ये किन गानों पर नचा रहे बच्चों को?5. मेरी मर्ज़ी मैं कुछ भी करूँ6. बेटा, किस क्लास में हो? गूगल करना नहीं आता?