श्रीमद्भगवद्गीता भाष्य 2 (2022 में आयोजित सत्रों पर आधारित)
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Language
hindi
Description
अर्जुन किंकर्तव्यविमूढ़ हैं। नहीं जान पा रहे क्या करें, किधर को जाएँ। मोह है, भ्रम है, कदाचित् भय भी है।
श्रीकृष्ण मोह, भ्रम, भय, शोक, इन सबको अलग-अलग चुनौती नहीं देते, न अर्जुन का कुछ क्षणिक उत्साहवर्धन करके ऊर्जा का संचार करते। कितनी रोचक और उत्कृष्ट बात है कि अर्जुन की ग्लानिगत अवस्था को काटने के लिए अर्जुन को तत्त्वज्ञान देते हैं।
हम कौन हैं?
अहम्।
कहाँ से उपजा अहम्?
प्रकृति से।
यदि प्रकृति की ही तरफ़ खिंचा रहे अहम्, तो क्या कहेंगे उसे?
पुरुष।
नियति क्या है अहम् की?
आत्मा की ओर जाना और आत्मा हो जाना।
अर्जुन आसानी से समझने वाले नहीं हैं। कई स्थानों पर तो लगता है कि जैसे सुनने का भी विरोध कर रहे हों। पर कृष्ण ने शुरुआत ही की है उच्चतम ज्ञान से, और विशेषता ये कि उन्होंने ज्ञान को कर्म के साथ जोड़ दिया है – भीतर आत्मज्ञान तो बाहर निष्काम कर्म। कृष्ण की विशिष्टता है जो उन्होंने ज्ञान और कर्म को एक कर दिया है अर्जुन के सामने।
अपने अन्धेरे को जानना ही आलोक है, और स्वयं को जान लोगे यदि तो स्वयं के लिए जीना बन्द कर दोगे – ये निष्काम कर्म है।
दूसरे अध्याय से श्रीकृष्ण के अद्भुत गीत का प्रबल उद्घाटन होता है।
Index
1. कृष्ण से बड़ा पारखी कौन! (श्लोक 2.1-2.2)2. चुनाव: कृष्ण या पाशविकता? (श्लोक 2.3, 2.4)3. अर्जुन का शोक (श्लोक 2.5-2.11)4. मात्र तीन - कृष्ण, अर्जुन और संसार (श्लोक 2.12-2.13)5. अहम् के तादात्म्य6. पहले गहो, फिर सहो (श्लोक 2.14)
श्रीमद्भगवद्गीता भाष्य 2 (2022 में आयोजित सत्रों पर आधारित)
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अर्जुन किंकर्तव्यविमूढ़ हैं। नहीं जान पा रहे क्या करें, किधर को जाएँ। मोह है, भ्रम है, कदाचित् भय भी है।
श्रीकृष्ण मोह, भ्रम, भय, शोक, इन सबको अलग-अलग चुनौती नहीं देते, न अर्जुन का कुछ क्षणिक उत्साहवर्धन करके ऊर्जा का संचार करते। कितनी रोचक और उत्कृष्ट बात है कि अर्जुन की ग्लानिगत अवस्था को काटने के लिए अर्जुन को तत्त्वज्ञान देते हैं।
हम कौन हैं?
अहम्।
कहाँ से उपजा अहम्?
प्रकृति से।
यदि प्रकृति की ही तरफ़ खिंचा रहे अहम्, तो क्या कहेंगे उसे?
पुरुष।
नियति क्या है अहम् की?
आत्मा की ओर जाना और आत्मा हो जाना।
अर्जुन आसानी से समझने वाले नहीं हैं। कई स्थानों पर तो लगता है कि जैसे सुनने का भी विरोध कर रहे हों। पर कृष्ण ने शुरुआत ही की है उच्चतम ज्ञान से, और विशेषता ये कि उन्होंने ज्ञान को कर्म के साथ जोड़ दिया है – भीतर आत्मज्ञान तो बाहर निष्काम कर्म। कृष्ण की विशिष्टता है जो उन्होंने ज्ञान और कर्म को एक कर दिया है अर्जुन के सामने।
अपने अन्धेरे को जानना ही आलोक है, और स्वयं को जान लोगे यदि तो स्वयं के लिए जीना बन्द कर दोगे – ये निष्काम कर्म है।
दूसरे अध्याय से श्रीकृष्ण के अद्भुत गीत का प्रबल उद्घाटन होता है।
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1. कृष्ण से बड़ा पारखी कौन! (श्लोक 2.1-2.2)2. चुनाव: कृष्ण या पाशविकता? (श्लोक 2.3, 2.4)3. अर्जुन का शोक (श्लोक 2.5-2.11)4. मात्र तीन - कृष्ण, अर्जुन और संसार (श्लोक 2.12-2.13)5. अहम् के तादात्म्य6. पहले गहो, फिर सहो (श्लोक 2.14)