योजना बनाकर जिएँ या सहज भाव से? || आचार्य प्रशांत, आई.आई.टी दिल्ली में (2020)

Acharya Prashant

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योजना बनाकर जिएँ या सहज भाव से? || आचार्य प्रशांत, आई.आई.टी दिल्ली में (2020)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी नमस्कार। आपकी शिक्षाओं की वजह से मेरी निजी ज़िन्दगी में काफ़ी परिवर्तन आया है और एक चीज़ जो मैंने सीखी है वह है वर्तमान क्षण में जीना, जो आपने बहुत दिन पहले शुरुआती दिमाग वाली बात बतायी थी, वह निजी ज़िन्दगी में बहुत अच्छी तरह से काम करती है, चूँकि मेरे भी कुछ संगठन थे, इसलिए जैसा कि आप जानते हैं, वहाँ बहुत सारी योजनाओं की ज़रूरत होती है।

कभी-कभी एक संगठन अपने तरीके से बढ़ रहा है, यहाँ एक अलग मुद्दा है, जब आप कोई एक चीज़ असाधारण रूप से अच्छा करते हैं, तब दूसरी तरह का अवसर आता है, तब आप इस तरह आगे बढ़ते हैं। जो आपने कहा था न, कि “जो सहज मिले वो दूध है, परन्तु कॉरपोरेट की दुनिया एक अलग तरीके से काम करती है। वो पाँच साल का वित्तीय अनुमान तैयार करेंगे।

तो उसके साथ कई बार तारतम्य बैठा पाने में थोड़ा-सा मुश्किल होता है, और कई बार ये लगता है कि जो योजना है वो भी एक तरह का खाली डर है। क्योंकि अगर आपने कॉरपोरेट योजना कर भी ली पाँच-साल की, तो मालूम चला उसके बीच में वाइस-प्रेसिडेंट हट गया, या कहीं ये हो गया, जैसा कि आप जानते हैं काफ़ी तरह के वहाँ परिवर्तन रहते हैं। फिर भी हम वहाँ जोखिम प्रबंधन और दूसरी चीज़ों पर बहुत काम करते हैं।

तो ये मैं जानना चाहता था कि प्लानिंग में कितना फ़ोकस हो और उसकी कितनी यूज़फुलनेस है, और जो सहज भाव से जीना, इन दोनों के विषय में अगर थोड़ा-सा बताएँ। थैंक यू!

आचार्य प्रशांत: सहज भाव से प्लानिंग करिए (मुस्कुराते हुए)। उसका मतलब ये है कि प्लानिंग बुरी नहीं है। प्लानिंग के असफल होने पर जो हमें धक्का लग जाता है, वहाँ दुःख निहित है। ये जो दिमाग है ये जो कुछ भी कर रहा है वो एक तरह की प्लानिंग ही है, ये योजनाएँ ही बनाता है। मन माने अतीत, मन माने भविष्य। भविष्य की ओर ये जब भी देखेगा — अगर आप गौर करेंगे — तो किसी-न-किसी तरह की योजना ही बन रही है। ठीक है?

प्लानिंग करिए, खूब करिए, लेकिन ये पता रहे कि अपना ही बनाया हुआ तो प्लान है, हम ही ने तो बनाया है और हम कितने होशियार हैं? तो वो प्लान अगर विफल हो भी गया, तो हम इतनी तकलीफ़ और इतना दुख किस बात का मना रहे हैं भई! देखिए ये बहुत तलवार की धार वाली बात है। एक तरफ़ तो जो आप करें, जो योजना बनाएँ, जो भी सोचें, उसे पूरी जान लगाकर के सोचना है, हल्के मन से, लापरवाही में अपनी योजना नहीं बना देनी है।

आप करिए, आप पाँच-साल की कॉरपोरेट प्लानिंग कर लीजिए। सारी समस्या तब खड़ी होती है जब वो प्लान चलता नहीं। और कोई प्लान ऐसा नहीं होता जो फूलप्रूफ हो, और कोई प्लान ऐसा नहीं होता जो आपने जैसा बनाया है वैसा ही चल देगा। ठीक है?

उस समय पर फिर परीक्षा होती है कि आदमी में दम कितना है। सब चीज़ें वैसी ही चलती रहें जैसी आपने योजना बनाई थी, तो फिर तो सब बादशाह हैं। ठीक है न? सभी लोग दमदार दिखाई देंगे, “ये देखो, जैसा प्लान था वैसा ही चल रहा है;” पर ऐसा होगा नहीं। आप लाख चाह लो, आप लाख कोशिश कर लो, ज़िंदगी आपको बहुत अप्रत्याशित चेहरे दिखाती रहेगी।

जिन चीज़ों की आपने कल्पना भी नहीं करी, वैसी चीज़ें होती रहेंगी। ठीक है? जो आपकी सबसे गहरी और विस्तृत, डीटेल्ड योजना होगी, उसको भी आप कई बार पाएँगे कि बिलकुल नाकामयाब हो गयी।

उस समय पर जाँचा जाता है कि आप कितने गहरे आदमी हो। अगर अहम् भाव बहुत ज़्यादा है, तो आपकी योजना के टूटने के साथ आप भी टूट जाओगे। और अगर अहम् भाव नहीं है तो आपमें ये लचीलापन रहेगा कि योजना ही तो टूटी है, हम थोड़े ही बिखर गये।

आप दूसरा रास्ता निकाल लोगे। आप जो का कर रहे हो, अगर वो वाकई करने लायक है, तो योजना विफल हुई नहीं कि आप दूसरा रास्ता निकाल लोगे, आप तीसरा निकाल लोगे, आप चौथा निकाल लोगे। आपके पास प्लान ए नहीं, एक्स, वाई, जे़ड, ए, बी, सी, डी — जितना कुछ हो सकता है सब रहेगा। ठीक है?

आप कहोगे कि भई, तकदीर को, विधि को अपना काम करने दो, मैं अपना काम करूँगा। दुनिया को और दुनिया में जो कुछ भी अप्रत्याशित है, अनप्रिडिक्टेबल है, उसको हक है होने का, मैं उसे रोक तो नहीं सकता न? नहीं रोक सकता न? लेकिन दुनिया को ये हक नहीं है कि वो मुझे रोक ले। न मैं दुनिया को रोक सकता हूँ, न दुनिया मुझे रोक सकती है, दोनों अपना-अपना काम करेंगे।

और अपना काम करने के लिए मेरे पास जो एक औज़ार, मेथड (तरीका) उपलब्ध है, वो है प्लानिंग। तो मैं प्लानिंग भी करूँगा, ये जानते-बूझते प्लानिंग करूँगा कि कोई भी प्लान मुझे नहीं पता कितना सफल होगा। ठीक है?

ये नहीं कर लेना है लिविंग इन द प्रेज़ेंट मोमेंट के नाम पर, कि प्लानिंग ही नहीं कर रहे। अध्यात्म ये नहीं कहता है कि लिव इन द मोमेंट और आगे की सोचो ही मत! अगर आप ये कर रहे हैं तो फिर लिविंग इन द मोमेंट , वर्तमान में जीना सिर्फ़ भोगवाद बन जाएगा।

फिर आप मालूम है क्या करेंगे? आप कर्म करेंगे और कर्मफल के बारे में जान-बूझकर विचार नहीं करेंगे; क्योंकि कर्मफल कहाँ होता है? भविष्य में होता है न, और आपने तो अपनेआप को बता दिया है कि आई लिव इन द प्रेज़ेंट मोमेंट। मैं तो साहब वर्तमान में जीता हूँ। तो अब आप वर्तमान में कर तो डालोगे जो आपको करना है, भविष्य में उसका जो फल आने वाला है उसका आप विचार करोगे नहीं।

और याद रखिए, ये निष्काम कर्म नहीं है, आप अभी निष्काम कर्मयोगी नहीं हो गये, आप बस भोगी हो गये हो। आप कह रहे हो, “अभी मज़े ले लो, बिल आगे आएगा तब देखा जाएगा;“ और ये चीज़ हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी।

कर्मफल से आप आगे निकल सकें, कर्मफल का आप त्याग ही कर सकें, उससे पहले ये ज़रूरी है कि आप कर्मफल के बारे में पूर्णतया विचार करें, ताकि आपको कर्मफल की निस्सारता दिखाई तो दे। जब तक कर्मफल की निस्सारता दिखाई ही नहीं देगी, आप कर्मफल त्याग कैसे दोगे? लेकिन ये बड़ा आजकल चलन है, फ़ैशन सा हो गया है, कि आई लिव इन द प्रेज़ेंट मोमेंट, आगे की मैं सोचता नहीं!

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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