ये गलती सब करते हैं! बच सको तो बचो || आचार्य प्रशांत

Acharya Prashant

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आचार्य प्रशांत: ज़िंदगी में पहले कुछ बन जाओ, कोई आंतरिक मुकाम हासिल कर लो, फिर तुम्हें समझ में आएगा न रिश्ता किससे बनाना है।

अब रिश्ता बना लिये छब्बीस की उम्र में ही। तुम्हारा लक्ष्य हो सकता है ज़िंदगी में ऊँचे उठना। जिससे तुमने रिश्ता बना लिया, उसे न उठने से कोई मतलब है, न बढ़ने से कोई मतलब है; उसे बस फैलने से मतलब है। तुम ऊपर उठना चाहते हो; वो फैलना चाहता है।

प्रकृति के इरादे तुम समझते नहीं, अपनी चेतना की बेचैनी तुम समझते नहीं, आत्मज्ञान तुमको है नहीं, आत्म-जिज्ञासा तुमने कभी करी नहीं। शास्त्रों के पास तुम कभी गए नहीं, शिक्षा तुमको कभी मिली नहीं स्वयं को जानने की—नतीज़ा? ग़लत रिश्ते, ग़लत वर्तमान, ग़लत भविष्य और चौपट जीवन।

तुम्हें कुछ बात समझ में आ रही है?

जिन्हें जीवन में ऊपर उठना हो, जिनके जीवन का ग्राफ (लेखाचित्र), कर्व (वक्र) यूँ (ऊपर की तरफ़) जाना हो, उन्हें जल्दी रिश्ता बनाना चाहिए या ठहर के, देर में?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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