वो धर्म के नाम पर पाखंड करते हैं, और मुझे परेशान करते हैं || आचार्य प्रशांत (2023)

Acharya Prashant

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वो धर्म के नाम पर पाखंड करते हैं, और मुझे परेशान करते हैं || आचार्य प्रशांत (2023)

प्रश्नकर्ता: मरने के बजाय अभी इसी क्षण जीवन में ही मुक्ति मिल सकेगी।

आचार्य प्रशांत: सिर्फ़ जीवन में। तुलना भी नहीं है। तुलना दो इकाइयों के बीच में की जाती है न, दूसरी इकाई है ही नहीं। तो मुक्ति है तो इसी जीवन में है, और इस जीवन में कल का तो भरोसा कुछ है नहीं। तो या तो मुक्ति ठीक अभी है, नहीं तो भविष्य की कोई बात नहीं।

प्र: आपको सुनने के बाद बहुत सारी बातें स्पष्ट हो गयी हैं और बहुत शान्ति मिली है। पूजा-पाठ को लेकर मुझे जो अपराध भाव रहता था वो भी निकल गया है। पर जो साथ के लोग हैं उनके लिये धर्म वही है — मन्दिर में शृंगार किया कि नहीं किया और श्रीकृष्ण के मुकुट की और उनके मनुष्य रूप की बातें। वो आपको भी सुनते हैं और मानते हैं कि आप सबसे अलग हैं और आपसे कुछ समझना है।

मैं कहती हूँ कि तुमने सर को सुनकर भी खो दिया! इतनी वीडियो सुनकर एक भी चीज़ अपने में नहीं उतार पाये। वास्तव में अभी तक एक को भी समझा नहीं पायी हूँ, तो उसमें मेरी फेलियर (असफलता) है या मेरा समझाने का तरीक़ा ठीक नहीं है, ये क्या है?

आचार्य: अच्छा आपको कहा जाए, जैसे आप वहाँ से यहाँ आयीं हैं (आचार्य जी जगह बदलने के सन्दर्भ में कहते हैं), आपको कहा जाए कि एक सात मंज़िली इमारत है, चढ़ जाइए सीढ़ी से। आप न चढ़ पाएँ तो इसको आप अपनी फेलियर मानेंगी क्या?

प्र: नहीं।

आचार्य: क्यों नहीं मानेंगी? कहेंगी, ‘तुम इतना ऊँचा काम दे रहे हो अगर मैं नहीं कर पा रही हूँ तो इसमें मेरी क्या विफलता’, यही तो कहेंगी। हाँ, आप सपाट सतह पर दस क़दम न चल पा रही हों, तो उसको आप कह सकती हैं कि मैं असफल हो गयी। पर अगर आपको कह दिया गया है कि पन्द्रह मंज़िल चढ़ो वो भी पैदल, और आप नहीं चढ़ीं, तो क्या ये आपकी असफलता है?

प्र: नहीं।

आचार्य: नहीं है न। ये जो काम है, ये बहुत-बहुत, बहुत-बहुत मुश्किल काम है। आप एक आदमी को नहीं समझा रहे हो। शताब्दियों से जो अन्धी परम्परा चल रही है, आप उसको रोकने की कोशिश कर रहे हो। आपके सामने शताब्दियों का एक विशाल जनसमूह खड़ा हुआ है, और उनका संयुक्त-सम्मिलित बल आपके ख़िलाफ़ है, आपको उनको समझाना है।

वो एक इंसान नहीं है, वो जो आपके सामने खड़ा है न — आप कह रहे हो न आप नहीं समझा पाते हो — वो एक इंसान नहीं है, वो एक बहुत भारी भीड़ का, और वो भीड़ अभी की नहीं है, वो भीड़ आज की है, आज से एक हज़ार साल पहले की है, वो एक बहुत भारी भीड़ का उत्पाद है। वो एक आदमी आपको दिख रहा है, वो एक आदमी नहीं है लेकिन, वो बहुत बड़ी चीज़ है। तो इस काम में अपनेआप को असफल नहीं मानना है, ये काम बहुत-बहुत मुश्किल है। बहुत मुश्किल है।

समझ रही हैं बात को?

अपनी सफलता आप इसमें मत मानिए कि आपने उनको समझा दिया। मैं कह रहा हूँ, ‘आप सफल हैं अगर उन्होंने आपको नहीं समझा दिया।’ (श्रोतागण हँसते हैं) क्योंकि बहुत भारी सम्भावना है, उनका इतना बड़ा बहुमत है कि वो आपको समझा ले जाएँगे।

प्र: नहीं समझा पाएँगे अब।

आचार्य: देखते हैं, देखते हैं। वक़्त बहुत चीज़ें देखता है। अगर मैं उनको सही पढ़ रहा हूँ तो एक दिन ऐसा आएगा जब वो इसी दरवाज़े से, इसी जगह पर घुसकर आपको यहाँ से उठा ले जाएँगे। आप उनकी ताक़त नहीं समझ रही हैं। वो बहुत ज़्यादा हैं। वो बहुत-बहुत ताक़तवर हैं। सारी ताक़त ही उन्हीं की है। सिर्फ़ इसलिए कि यहाँ पर आप एक व्यवस्था से एक काम होते देख रहे हैं, इस काम को आसान मत समझ लीजिए।

प्र: नहीं, मुश्किल है।

आचार्य: हाँ। इसको हम करे ले रहे हैं, ठीक है। हम करे ले रहे हैं, आसान नहीं है ये। ये दुनिया का सबसे आवश्यक काम है, ये बात मैंने बहुत बार बोली है न?

प्र: हाँ जी।

आचार्य: ये दुनिया का सबसे मुश्किल काम है। आवश्यक तो ठीक है, ये दुनिया का लगभग सबसे असम्भव काम है। और हमारे ख़िलाफ़ जो हैं, उनके लिए हम ज़हर जैसे हैं। और अगर कोई आपके लिए ज़हर जैसा होता है, तो आप उसको छोड़ना तो नहीं चाहते न? जो आपके लिये मृत्यु तुल्य होता है, आप उसको मृत्यु क्यों नहीं दे दोगे? जिसके होने से आपके अस्तित्व पर ख़तरा आ रहा हो, आप उसका अस्तित्व क्यों नहीं मिटा दोगे?

आप लोग, अभी हम जो बातें कर रहे हैं पिछले कई घंटो से उसको समझते हैं, तो आपके लिए वो बातें सहज हैं, साधारण हैं। आपमें से ज़्यादातर लोग बहुत समय से हैं, कई महीनों से, कई सालों से हैं, तो आप इन बातों से परिचित हो चुके हैं। आपको लगता है, ठीक है।

जिन लोगों ने ये बातें नहीं सुनी हैं, वो इन बातों को जब सुनते हैं तो उनको एग्ज़िस्टेंशियल शॉक (अस्तित्वगत सदमा) लगता है; छोटा-मोटा नहीं। उनके लिए ये बातें मौत के समान होती हैं, और फिर उनकी ओर से अति उग्र प्रतिक्रिया आती है।

तो मैं कह रहा हूँ कि इतना ही पर्याप्त है कि वो आपको न समझा ले जाएँ। उनकी प्रतिक्रिया में ये सबसे पहले होगा कि जो लोग इन बातों को समझते हैं उनको उठा लो, उनको चुप करो, उनका मुँह बन्द करो या जो भी।

प्र: आते हैं आचार्य जी, राखी बाँधने आते हैं, और भी कई चीज़ों से आते हैं। तो उन सब में तो कभी इंट्रेस्ट हुआ नहीं। पैंतीस साल में तो नहीं समझा पायी। चुप रहती हूँ। पर कुछ और है, जैसे वहाँ गिल्ट था कि मन्दिर में माँ दुर्गा को कपड़े पहनाने चाहिए, पर वो गिल्ट हट गया, ढर्रा टूट गया। कुछ बचे हुए हैं, अगली बार पूछूँगी।

और देखिए, मैं आ पाऊँ हर बार, उन्होंने (स्वयंसेवक) मेरी बहुत सहायता की है कि आप बैठ पाओगे। पिछले दो-हज़ार-बीस में आपसे मिली थी। उसके बाद से पाँच साल में बहुत ऑपरेशन्स हुए हैं, स्ट्रोक (मस्तिष्काघात) से लेकर नी रिप्लेसमेंट (घुटना प्रत्यर्पण) और शोल्डर रिप्लेसमेंट (कन्धा प्रत्यर्पण) तक। अब मैं बहुत ठीक हूँ। अब स्ट्रोक्स से थोड़ी सी हाल की याददाश्त जा रही है। पर अन्दर काफ़ी अपनेआप को तैयार किया है कि जाएगी तो जाएगी, रहेगी तो रहेगी। उससे बाहर आ गयी हूँ।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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