वो ब्रेकअप के बाद भी मुझे याद करता होगा? || आचार्य प्रशांत (2020)

Acharya Prashant

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वो ब्रेकअप के बाद भी मुझे याद करता होगा? || आचार्य प्रशांत (2020)

आचार्य प्रशांत: रीना जी आयी हैं, टिकटॉक से, कह रही हैं कि सर, मुझे पूछना है कि मेरा एक साल का रिलेसन था, फिर मेरे बॉयफ्रेंड ने मुझे छोड़ दिया। मैं अपने एक्स को भूल नहीं पा रही हूँ। क्या वो भी मुझे उतना ही याद करता होगा जितना मैं उसे करती हूँ?

बेटा रीना, कहाँ से शुरू करूँ? (मुस्कुराते हुए) तुम्हारी उम्र के लड़के-लड़कियों में चलता है कि अगर आप किसी को याद कर रहे हैं तो यही इस बात का सुबूत है कि वो भी आपको याद कर रहा होगा। और भी चलता है कि अगर आपको हिचकी आ रही है तो माने वो याद कर रहा है। और भी चीज़ें आती हैं शरीर में, वो आती होंगी तो वो और कुछ कर होगा आपकी याद में। हिचकी तो बड़ी सभ्य सुसंस्कृत चीज़ हो गयी।

अब पता नहीं उम्र कितनी है तुम्हारी, इसमें तुमने कुछ लिखकर भेजा नहीं है। पर जो बात लिखी है उससे लगता है कि छात्रा हो या अधिक-से-अधिक हालिया स्नातक वग़ैरा हो। बीस के आसपास होगी, बीस की उम्र होगी तो पढ़ ही रही होगी। बेटा पढ़ लो!

वो कितनी उम्र का है जो छोड़ गया तुमको? वो भी ऐसे ही होगा। लिख रही हो, मेरा एक साल के रिलेशन था, चलो यहीं से शुरू कर लेता हूँ। बड़ी देर में समझ में आया शुरू कहाँ से करूँ। गूढ़ सवालों के तो जवाब बड़े आसान होते हैं, उनसे तो मैं वैसे निकल जाता हूँ जैसे मक्खन से गरम छूरी पर ऐसे सवालों में फँस जाता हूँ। लेकिन साथ-ही-साथ मैं तुम्हारे सवाल को हल्के में नहीं ले रहा, ये मुझे चुन कर दिया गया है तो कोई वजह होगी।

देखो, यह वो सवाल है जिसको न तुम किसी बुद्धिजीवी से पूछ सकती हो और न किसी धर्मजीवी से। अच्छा है, ठीक है मेरे ही पास ले आओ। यह सवाल वो है जिसका जवाब कोई प्रोफेसर भी नहीं देगा, प्रोफेसर कहेगा कि ये कोई इंटेलेक्चुअल प्रश्न तो है नहीं तो इसका जवाब क्यों दूँ! इसका जवाब प्रीस्ट (पंडित) भी नहीं देगा, कहेगा कि यह कोई धार्मिक सवाल तो है नहीं तो इसका मैं क्या जवाब दूँ।

तो जब इस तरह के सवाल और इस तरह के सवाल ही होते हैं अधिकांश जवान लोगों के पास। जब इस तरह के हज़ारों सवालों को प्रोफेसर और प्रीस्ट दोनों ठुकरा देते हैं, तो फिर ताज्जुब क्या है कि जवान लोग ऐसे सवालों के जवाब खोजने बहुत ही व्यर्थ जगहों पर पहुँच जाते हैं। अब रीना के पास ये सवाल है, इस सवाल का जवाब उसे कॉलेज की किताबों में नहीं मिलेगा। न मनोविज्ञान की किताबों में, न समाजशास्त्र की किताबों में, कहीं मिलेगा नहीं।

वो ये सवाल लेकर अपने प्रोफेसर के पास भी नहीं जा सकती, क्योंकि हमारी शिक्षा व्यवस्था ऐसी है कि वो हमें स्वयं के बारे में और सम्बन्धों के बारे में कुछ बताती ही नहीं है, तो प्रोफेसर के पास भी नहीं जा सकती। और उनके पास भी नहीं जा सकती जो लोग गहरे तौर पर आध्यात्मिक हैं। उनके पास जाओ तो वो कहेंगे हाँ बताओ ‘समाधि’ के बारे में कुछ पूछना है। क्या, किस बारे में पूछना चाहती हो? यम, नियम, आसन, प्राणायाम इनके बारे में कुछ पूछो तो कुछ बताए तुम्हें। तुम कहोगी कि मेरा बॉयफ्रेंड छोड़ गया, मेरा एक्स मुझे याद करता होगा। वो कहेंगे कि नहीं, यह कोई सवाल ही नहीं है। जबकि यही असली सवाल है, अच्छा किया तुमने पूछ लिया।

यही असली सवाल हैं जिनका जवाब न तो हमारी औपचारिक, फॉर्मल शिक्षा व्यवस्था दे रही है और न ही इनका जवाब अध्यात्म दे रहा है। यही जीवन के हमारे सवाल हैं, ज़्यादातर लोगों के। तो फिर जो ज़्यादातर लोग हैं वो न तो अध्यात्म की तरफ़ जाते हैं और न ही वो औपचारिक शिक्षा व्यावस्था से कोई गहरा जुड़ाव अनुभव कर पाते हैं। कॉलेज जाते हैं बस डिग्री लेने के लिए कि रोज़गार मिल जाए, है न?

चलो, तो तुमने कहा कि तुम्हारा एक साल का रिलेशन था। रिलेशन माने क्या था, कैसे बना वो? सम्बन्ध माने क्या? बीस साल की हो तुम, किस नाते तुमने किसी से सम्बन्ध जोड़ लिया? देखो हम किसी से भी कोई रिश्ता जोड़ते हैं तो उसकी कोई वजह होती है न। बिलकुल हम शून्य से शुरुआत करके बात को समझना चाहते हैं।

मैं अगर इसको (चाय के मग) उठाऊँगा, देखो मैंने इसको छूआ, इससे अपना एक नाता बनाया। है न? तो मैंने इसको उठाया, तो कोई वजह होगी न। क्या वजह है? भाई, बोलते-बोलते गला सूख गया तो बीच-बीच में ये पदार्थ मैं अपने गले से डालता रहता हूँ, सींचता रहता हूँ। तो लो भाई (चाय पीते हुए), और जब मेरा काम पूरा हो गया तो मैंने इसको यहाँ (मेज़ पर) रख दिया। और अभी कुछ देर तक मेरा काम चलेगा तो मैं इसे अपने पास रखूँगा, क्योंकि बीच-बीच में उठाकर के मैं इससे चुस्कियाँ लेता रहूँगा। ये हमारा रिश्ता है।

अच्छा बताओ, तुमने रिश्ता क्यों बनाया और उसने तुमसे रिश्ता क्यों बनाया? कोई वजह होगी न? ये मत कह देना कि ये तो सर देखिए दिलों की बातें होती हैं, तुम नहीं समझोगे! कुछ-कुछ होता है। वो तुम्हें जो कुछ भी होता है भाई, उस उम्र से कभी हम भी गुज़रे थे। तो ऐसा नहीं है कि नहीं समझेंगे।

वो तुम्हें जो कुछ भी होता है, इंसानी तौर पर ही होता है न। इंसान ही हो, बीस के हो, अठारह के हो या ऐसा होता है कि जवानी के दिनों में कोई और प्रजाति बन जाते हो? या होमोसेपिएंस ही रहते हो, कितनी भी उम्र है तुम्हारी? तो हो तो इंसान ही न, और इंसान के साथ जो कुछ भी होता है वो हम जानते हैं। हम जानते हैं माने मैं नहीं, इंसान ही जानता है। बहुत अध्ययन हुआ है, बहुत ध्यान हुआ है, बहुत प्रयोग, शोध हुए हैं, खूब समझा गया है कि इंसान किस तरीक़े से काम करता है। हमारे मन की गतिविधियाँ कैसे होती हैं, ये तन कैसे काम करता है, किस उम्र में किस तरह की वृत्तियाँ सक्रीय हो जाती हैं इन सब बातों को समझने वालों ने ख़ूब समझा है।

तुम बताओ ये तुमने रिश्ता क्यों बनाया और तुम्हारे उस बॉयफ्रेंड ने तुमसे रिश्ता क्यों बनाया? दोनों को एक-दूसरे से कुछ चाहिए था। लो भाई चुसकी लेते हैं (चाय की चुस्की लेते हुए), आहा, गर्म है, हॉट। तो अभी ये गर्म है, ये भरा हुआ है। हॉट भी है, डिलिसिअस भी है और फुल भी है। तो ये मेरा रिश्ता है, रिश्ता कैसा है? बीच-बीच में इसे बिलकुल अपने पास ले आता हूँ जैसे बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड वीकेंड्स पर बिलकुल ऐसे ही हो जाते हैं, एक-दूसरे के मुँह से मुँह लगा देते हैं। जब मुँह से मुँह नहीं लगाया तो भी बस थोड़ी सी दूरी पर रखते हैं कि कोई और न उठाकर ले जाए। मुझे अच्छा थोड़ी लगेगा कि चचा यहाँ बैठे हैं, ये उठाकर पीना शुरू का दें। तो मैं इसे इतना पास रखूँगा कि बस हाथ बढ़ाऊँ और ये मेरी हाथ की पहुँच में रहे, कि जब चाहा उठाकर के सुड़क लिया, आहा! ठीक हैं न, हॉट है अभी हॉट।

जब तक हॉट है, तब तक बढ़िया है। हॉट भी है, थोड़ी स्पाइसी (मसालेदार) भी है। क्या डलवाया है इसमें? (स्वयंसेवक से पूछते हैं) मसाले डलवाये, अदरख डलवा दिया। अरे, चाय है, और कुछ नहीं है! कई लोग यही पूछते रहते हैं, लोगों की बड़ी उत्सुकता इसी में है, 'ये पीते क्या हैं!' अरे पीकर थोड़ी जवाब देता हूँ। तुम जो सोच रहे हो, वैसा मामला नहीं है, हमें नशे के लिए चाय नहीं चाहिए होती है। हमारा दूसरा है। अरे! दूसरा माने भांग-गांजा नहीं, तुम्हारा भरोसा नहीं तुम कहाँ ले जाओ! वो एक और चीज़ होती है, जब थोड़ा आगे बढ़ जाओगे तो समझोगे। तो क्या है ये? हॉट, स्पाइसी, डिलीशियस। इसका (कप का) ये जो मर्तबान है, क्या सफ़ेद-सफ़ेद है, गोरा-गोरा है, एकदम चिकना भी है और नया-नया है। है कि नहीं है? तो अभी तो मैं इसको बिलकुल ऐसे सुड़कूँगा, चुसूँगा। क्या बात है! क्या बात है!

ये कितनी देर चलेगा? कितनी देर चलेगा? भाई ज़रूरत है एक, शारीरिक। चलेगा कितनी देर ये? जो अभी हॉट है, थोड़ी देर में कोल्ड हो ही जाएगा। पहले ल्युकवार्म (गुनगुना) होगा, फिर कोल्ड हो जाएगा। फिर क्या होगा?

अभी तो ऐसा होता था कि सुबह होते ही, “जानू उठ गयी? जानू टट्टी कर ली? ब्रश कर लिया? नाश्ते में क्या खा रही हो, क्यों खा रही हो? खा ही क्यों रही हो, पी क्यों नहीं रही हो? जानू पैरों से चल रही हो? सिर के बल क्यों नहीं चल रही?” अभी हॉट है मामला भाई, नया-नया है, ताज़ा-ताज़ा है।

और फिर धीरे-धीरे ये होने लगता है कि तुमने कॉल भी करी है तो उसका दो घंटे बाद जवाब आएगा। मेसेज किया तो उसमें वो ब्लू टिक लग गया और जवाब नहीं आया तो तुम यहाँ बैठे देखते हो कि ब्लू टिक लग गया फिर भी! बीच-बीच में तो वहाँ पर वो अपना नेट ही बंद करके बैठ जाएगा कि इसका मेसेज मुझ तक पहुँचे ही नहीं। डिलीवरी ही नहीं हुई तो फिर हम बरी हो गए न। डिलीवरी तो हुई ही नहीं तुम्हारे मेसेज की तो हम जवाब कैसे दें। ठीक है? अरे, हमारे ज़माने में व्हाट्सएप नहीं था लेकिन फिर भी पता है सब। तो ये सब चलने लग जाता है। ये ब्लोकिंग से पहले के लक्षण हैं। ये बातें बता रही हैं कि अब जो अगला क़दम होगा वो ये होगा कि तुम ब्लॉक किये जाओगे।

ब्लोकिंग तत्काल नहीं होती है, ये (चाय) जल्दी से तत्काल ही ठंडी हो जाती है क्या? ये धीरे-धीरे ठंडी होती है न? पहले हॉट है, फिर लेस हॉट , फिर ल्युकवार्म है। पहले वही चीज़ जो आहाहा लगता था कितनी डिलीशियस है, कितनी स्पाइसी है फिर धीरे-धीरे लगता है, क्या है! कुछ और चाहिए अब तो। एक तो इसकी जो हॉटनेस है वो कम हो गयी, क्योंकि हम उसके अभ्यस्त हो गए। और दूसरे, हमारी जो माँग थी वो भी तो कम हो गयी। यही-यही थोड़े ही पिये जाएँगे, और भी तो स्वाद हैं ज़माने में चखने के लिए।

तो फिर ऐसा ही करते-करते थोड़ी देर में ये (चाय) फुल (भरा हुआ) भी नहीं रह जाता है, सूख जाता है, जो कुछ भी था इसका निचुड़ गया। हॉट भी नहीं रह जाता, स्पाइसी भी नहीं रह जाता, डिलीशियस भी नहीं रह जाता है। उसके बाद अब मैं इसको (कप को) अपने पास रखूँगा क्या? मैं इसको कहूँगा हट जा भाई। तो ऐसे चलते हैं हमारे रिश्ते।

अब तुम्हें क्या ताज्जुब हो रहा है कि मेरे बॉयफ्रेंड ने मुझे छोड़ दिया? ताज्जुब की बात ही नहीं। हाँ, बात बहुत सीधी है, अभी अगर बीस ही साल की हो तो इस तरह के बहुत आएँगे-जाएँगे। अभी भी सवाल तुम इसलिए नहीं पूछ रही हो कि उसने तुम्हें छोड़ दिया, सवाल तुम इसलिए पूछ रही हो क्योंकि तुम्हें दूसरा नहीं मिल गया अभी। दूसरा मिल गया होता, तो अभी पूछती नहीं। ये मेरा जो मग है, खाली हो जाए, तो मैं क्यों कलपूँगा अगर साथ में दूसरा मिल जाए? ये तो कोई प्रॉब्लम नहीं न? ये है कुल खेल।

अब जब मैं ये कह रहा हूँ तो दिल टूट रहा होगा कि हमारे रूहानी इश्क़ का मज़ाक बना दिया! उसको चाय का मग क़रार दिया! मैं तो ऐसा ही हूँ, जो बात जैसी है वैसा बोल देता हूँ। तुम्हारी नज़र में होगा तुम्हारा इश्क़ रूहानी या जो भी है, वो असलियत में तो यही है न।

तुमने कौनसे किसी के गुण देखकर के उससे रिश्ता बनाया था? और बताना मुझे अगर तुमने रिश्ता किसी के गुण देखकर के बनाया होता तो गुण तत्काल ही अवगुण कैसे हो गये। बोलो! गुणों पर तो तुमने ध्यान ही नहीं दिया, शक्ल पर ध्यान दिया। एक आकर्षण उठा था देह के प्रति, तुममें भी, उसमें भी। ये बात स्वीकारते हुए हमें बड़ा क्रोध आता है, हम स्वीकारना ही नहीं चाहते। हम कह देते हैं, 'नहीं, ऐसा तो बिलकुल भी नहीं है। ये तो आत्मा से आत्मा का रिश्ता है।' अरे, ये आत्मा से आत्मा का तो छोड़ दो, ये तो विचार से विचार का भी रिश्ता नहीं था।

आत्मिक तल पर तो छोड़ दो, ये तो मानसिक तल पर भी नहीं था। इस तरह के ज़्यादातर रिश्ते सिर्फ़ शारीरिक तल पर होते हैं। हाँ, शारीरिक तुम्हारा मिलन हो न हो, वो अलग बात है। वो तो इस पर भी निर्भर करता है कि सामाजिक स्थितिययाँ कैसी हैं, तुम्हारी जगह पर और कमरा मिला कि नहीं मिला। तो आवश्यक नहीं है कि शारीरिक आकर्षण निश्चित रूप से शारीरिक मिलन में परिणीत हो जाए। लेकिन शुरुआत तो शारीरिक आकर्षण से ही होती है और वही केंद्र होता है, वही आधार होता है इस तरह के सब रिश्तों का।

मन तो तुम कभी देखते नहीं। और मन की पहचान क्या? "मन के बहुतक रंग हैं, छिन-छिन बदले सोय।"

मन के बहुतक रंग हैं, छिन-छिन बदले सोय। एक रंग में जो रंगे, ऐसा विरला कोय।।

~ कबीर साहब

तन से रिश्ता बनाया, और मन? मन उसका बदल गया अब वो क्यों तुमसे रिश्ता बनाए, अब तुम हॉट नहीं रहे भाई। हर हॉट चीज़ थोड़ी देर में कोल्ड हो जाती है, इसका मतलब ये नहीं है कि तुम्हारा शरीर बदल गया है। ये हॉटनेस-कोल्डनेस बहुत हद तक आदत की बात होती हैं। शोले भी तुम चालीस बार देख लो तो इकतालीसवीं बार नहीं देखना चाहोगे। तुम्हारा जो भी पसंदीदा व्यंजन हो, तुम्हें रोज़ खिलाया जाए तो नहीं खा पाओगे। तुम्हें खेलना बहुत अच्छा लगता है, तुमसे कह दिया जाए कि रोज़ छः घंटे खेलना है यही खेल तुमको, नहीं खेल पाओगे। मन तो होता ही है चंचल, उसको तो भाँति-भाँति की चीज़ें चाहिए। एक तरह की चाय से मन उब गया, अब दूसरे तरह की चाय चाहिए। बात समझ में आ रही है?

या तो इसी चक्र में फँसी रह जाओ और फिर से ऐसा ही कोई रिश्ता बना लो, वो भी तुम्हें थोड़ी देर की धूप दे जाएगा और फिर अंधेरी रात। या आगे से जब किसी को देखना, खिंचाव अनुभव करना तो पूछना अपनेआप से, “इसमें क्या है जो मुझे खींच रहा है?” और झूठ मत बोल देना, कि खिंच तो रहे हो तुम उसकी ज़ुल्फ़ों को देखकर, वो भी ज़ुल्फ़ों पर उसने कुछ कारीगरी कर रखी है, गिलहरी जैसा दिख रहा है। खिंचाव तो सारा उसकी ज़ुल्फ़ देख कर हो रहा है, और कहो, 'नहीं-नहीं-नहीं, इसके भीतर जो कर्तव्यशीलता है, जो सहिष्णुता है और जो विनम्रता है हम तो उसके कायल हैं।'

यहाँ रिश्ते इस बात पर टूट जाते हैं कि तुम बिना मेकअप (साज-सजावट) के किसी के सामने आ गये। इतनी सी बात पर रिश्ते टूट जाते हैं। बढ़िया चल रहा था, बढ़िया चल रहा था, चार-पाँच बार डेटिंग हो चुकी थी, मामला सही चल रहा था कि एक दिन वो न जाने कैसे उसी यूनिसेक्स ब्यूटी पार्लर में आ गया जहाँ मैं अपना काम (मेकअप) करवा रही थी। और उसने मुझे बिलकुल देख लिया बिना मेकअप के। बाल-वाल नुचवा रहे थे अपना और उसने देख लिया कि ये चलता है। तब से वो हमारी ओर देख नहीं रहा।

तो रिश्ता कौनसा मन देखकर बनता है, आत्मा तो बहुत दूर की बात है। आत्मा को तुम क्या ही देखोगे, मन भी कहाँ देखते हो किसी का! हम इतना देह केंद्रित जीवन जीते हैं कि बस सीधे-सीधे जिस्म देखा और टूट पड़े। और जब सामाजिक वर्जनाएँ ज़्यादा होती हैं, हम स्वीकार नहीं कर पाते खुलेआम कि हम तो जिस्म के ही दीवाने हैं, तो हम दर्शाते यूँ हैं जैसे कि किसी की बातचीत हमें पसंद है, किसी की सादगी हमें पसंद है। पर अंदर-ही-अंदर की बात ये होती है कि हमें उसके शरीर के उतार-चढ़ाव, गोलाइयाँ, लम्बाइयाँ ही पसंद होते हैं। वो अंदर की बात होती है।

जीवन सही जियो, रीना, तो रिश्ते भी फिर तुम सही बनाओगी, सही लोगों को ही अपनी ज़िंदगी में प्रवेश दोगी। ग़लत ज़िंदगी जीने के कई दुष्परिणाम होते हैं और उनमें से एक ये होता है कि तुम्हें सब ग़लत ही लोग मिलेंगे। बात समझ में आ रही है?

ये तुम्हारी, ज़िंदगी को समझने की उम्र है, कहाँ तुम ये रिश्तेबाज़ी में फँस रही हो? उसके लिए बहुत समय पड़ा है। पहले थोड़ा मन को जान लो, जीवन को जान लो। समझ तो लो कि तुम्हारे भीतर वो कौनसी वृत्ति बैठी है जो खिंची जा रही है लड़कों की ओर और लड़के भी तुम्हें किस नज़र से देखते हैं और खिंचे चले आते हैं। अपनी छोटी-छोटी हरकतों पर और विचारों पर ध्यान दो। तो ये पूरा जो लड़का-लड़की का खेल होता है इसकी असलियत ज़ाहिर हो जाएगी। फिर कम-से-कम तुम इसे बहुत गंभीरता से नहीं ले पाओगी, इसे बहुत सम्मान नहीं दे पाओगी।

एक चुटकुले की तरह इसे ले लो तो फिर कोई बात नहीं। लेकिन अगर एक चुटकुले की तरह इसे लोगी तो फिर जब ब्रेकअप होगा उस रात फूट-फूट कर रो भी नहीं पाओगी। फिर तो एक चुटकुला था वो लड़का। ठीक है, ज़िंदगी में था, तुम्हें भी पता था वो क्यों है, उसे भी पता था वो क्यों है, निकल गया तो निकल गया। रात गयी, बात गयी।

अभी दिक्क़त ये होती है कि खेल तो होता है सारा जिस्मानी लेकिन तुमने अपनेआप को ये समझा रखा है कि बात भावनाओं की है। फिर जब रिश्ता टूटता है जिस्मानी तो तुमको ऐसा लगता है जैसे तुम्हारी भावनाओं पर चोट हुई है। अरे बात भावनाओं की कभी थी ही नहीं, क्यों व्यर्थ में भावनाओं को इसमें बीच में ला रहे हो? बात समझ में आ रही है?

पर सही रास्ते पर हो, इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि सवाल पूछने के लिए भी यहाँ आयी हो, सामने। और कुछ सरलता, भोलापन भी होगा तुममें क्योंकि बात बहुत ज़ाहिर है कि जब मेरे सामने कोई इस तरह की चीज़ें लेकर के आता है तो मैं उसकी पूरी बात को ध्वस्त कर देता हूँ। ये जानते हुए भी तुम ये सवाल मेरे सामने लेकर के आयी, मैं इसको तुम्हारी सरलता और बहादुरी दोनों मानता हूँ। एक आध्यात्मिक आदमी के सामने अपनेआप को ज़ाहिर करना आसान नहीं होता है, बड़े-बड़े लोग नहीं कर पाते हैं। वो मन में कुछ और रखे होते हैं, मुझसे पूछते कुछ और हैं। फिर मुझे दस मिनट लगता है उनका सवाल उधेड़-उधेड़कर के उनकी असली समस्या तक पहुँचने में। तुमने सीधे ही एकदम सहजता से अपनी बात सामने रख दी, ये अच्छा लक्षण है। तो उम्मीद करता हूँ कि जिससे तुम ये सवाल पूछ रही हो, उसी की और बातों को सुनोगी-समझोगी। मैंने तुमसे कहा पढ़ो, जीवन शिक्षा हासिल करो, उसके बहुत तरीक़े हैं। और अब मेरे सामने ही आ गयी हो तो जो तरीक़ा मैं सुझा सकता हूँ, सुझाता हूँ। इस मुद्दे पर, इस विषय पर मेरे जितने ज़्यादा-से-ज़्यादा वीडियोज देख सकती हो देखो। और ज़िंदगी के जितने मुद्दे होते हैं, उन पर जितने ज़्यादा-से-ज़्यादा मेरे वीडियोज तुम देख सकती हो, वो देखो।

और अगर जीवन में, जीवन की गहराई में और अधिक पैठना चाहती हो तो फिर ऊँची किताबों के पास जाओ। डरो मत, वो तुम्हें ऊबा नहीं देंगी। हम तुरंत कहने लग जाते हैं न कि नहीं-नहीं, मैं तो बोर हो जाऊँगी, बोर हो जाऊँगी, नहीं होओगी। मेरे साथ अगर हो तो इतना तो पक्का है, मैं तुम्हें बोर नहीं होने दूँगा। कभी हँसाऊँगा और कभी इतनी ज़ोर से डाँटूँगा कि डर तुम्हें भले लग जाए पर बोरियत तो नहीं लगेगी, ये मेरा वादा है। मेरे साथ जो लोग रहते हैं वो इस बात की गवाही दे देंगे। मेरे साथ उन्हें तरह-तरह के अनुभव होते हैं, तरह-तरह की मुझे लेकर उनमें भावनाएँ उठती हैं। कभी प्यार उठता है, कभी नफ़रत उठती है, कभी सम्मान उठता है, कभी भय उठता है, बोरियत तो कभी नहीं उठती होगी। कभी मैं कॉमेडी में हूँ, वो भी तुम्हें कभी बोर तो नहीं करती। तो कभी हॉरर मूवी हूँ, वहाँ भी कभी बोर तो नहीं होने पाते, ज़बरदस्त किस्म का भूत हूँ। तो बोरियत तो नहीं होगी बेटा।

शास्त्रों के पास जाओ, एक बार तुम्हें उनका रस लग गया तो फिर ये सब ज़ुल्फ़ वालों को तुम देखोगी ही नहीं उनकी तरफ़। वो नरपशु हैं, जानवर हैं। बस यही ज़ुल्फ़ें बना-बनाकर के और थोड़ा अपना शरीर ठीक-ठाक करके गाड़ियाँ, बाइकें लेकर के घूम रहे हैं। ये दो कौड़ी की हैसियत के नहीं हैं। और चूँकि ये जो दो लिंग होते हैं लड़का और लड़की, इनमें मैं ज़रा पक्षपाती हूँ। लड़कियों की थोड़ी ज़्यादा तरफ़दारी कर देता हूँ, इसलिए मुझे ज़्यादा अफ़सोस होता है जब मैं किसी लड़की को, ख़ासतौर पर तुम्हारी उम्र की, देखता हूँ किसी बहुत ही जानवर जैसे लड़के की तरफ़ जाते हुए। लड़का भी जा रहा हो किसी अयोग्य लड़की की ओर तो वो भी अफ़सोस की बात होती है, लेकिन लड़की जब जाती है तो वो बात ज़्यादा दुख की होती है, वजह सामने हैं न सप्रमाण।

देखो, वो तुम्हें छोड़ कर चला गया, पर रो तो तुम रही हो न? तो इसलिए मैं लड़कियों की तरफ़ थोड़ा पक्षपात कर देता हूँ। लड़कों के हाथ में खिलौना बन जाना है, वो तुम्हारा इस्तेमाल कर लेंगे, चाय की तरह तुम्हें सुड़क लेंगे और फिर अपना साल भर में छोड़कर के तुम्हें आगे बढ़ जाएँगे। ये थोड़े ही करना है अपनी ज़िंदगी के साथ!

ज़िंदगी में करने के लिए बहुत ऊँचे-ऊँचे काम हैं और उनमें जो आनंद निहित है, वो ये सब दो कौड़ी की आशिक़ी में नहीं है। आशिक़ी करनी है तो सच्ची वाली करना, वो चीज़ दूसरी होती है। क्या होती है सच्ची आशिक़ी? (उसके लिए) विडियो देखो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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