विस्मृति ही दूरी है || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)

Acharya Prashant

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विस्मृति ही दूरी है || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)

वक्ता: जानो कि तुम जो भी कुछ कह रहो, ‘उसी’ का कह रहे हो, ‘उसी’ को कह रहे हो और ‘उसी’ में कह रहे हो। तुम जब गाय की बात कर रहे हो तो वास्तव में तुम गाय की नहीं ‘उसकी’ बात कर रहे हो| तुम जब यहाँ से इस वस्तु को उठाकर फेंक रहे हो तो तुम इसको नहीं, ‘उसी’ को फेंक रहे हो और ये लगातार होता रहे। ये नहीं कि जब बैठे हो ध्यान में तब तो याद आया कि पेड़ है, कि जानवर है तो ‘वो’ है। ये बात लगातार याद रहे कि जो भी कुछ हो रहा है, कहा जा रहा है, विचार है या कर्म है, कि वस्तु है, सो ‘वही’ है |

‘आखि आखि रहे लिव लाइ’

तुम ‘वही’ हो, ‘उसी’ में डूबे हो, यह याद, यह बोध लगातार बना रहे।

समझ रहे हो? दूरी और कुछ नहीं होती, कभी कोई दूरी नहीं हो जाती है| अब इस बात को जो कह रहा हूँ पकड़ लो:

‘विस्मृति ही दूरी है’।

कोई वास्तविक दूरी नहीं है। हमने तीन चार दिन तक दूरी की खूब बात की। अच्छा ही है कि नानक ने आखिरी दिन हमें याद दिलाया कि दूरी है कहाँ।विस्मृति के अलावा और कोई दूरी नहीं है।

श्रोता १: विस्मृति मतलब?

श्रोता २: फॉरगेटफुलनेस।

वक्ता: भूल जाना। वही दूरी है और कोई दूरी नहीं है।

श्रोता ३: तो सर जैसे आपने बोला था, जब बुल्ले शाह की बात हो रही थी कि वो परदे के पार हो गये तो उसका मतलब है कि जो हम भूले बैठे हैं, उनको असल में पता चल चुका है।

वक्ता: हाँ।

श्रोता ४: हम ये भूल गये हैं कि हम अमर हैं।

वक्ता: जब जब भूले, तब तब।

श्रोता ५: तो याद रखना है।

वक्ता: कोई वास्तविक दूरी नहीं है।

‘आखि आखि रहे लिव लाइ’

लगातार याद रखो, ये नहीं कहा जा रहा है कि बस उसी का नाम लेते रहो। ये नहीं कहा जा रहा है कि दिन रात बस उसी का नाम लो। याद रखो कि जो भी नाम लोगे, वो ‘उसी’ का नाम होगा। तुम्हें जो नाम लेने हों, लो। जो उचित हो, सो करो पर याद रखो जो भी किया ‘उसने’ किया। जिसका भी नाम लिया, ‘उसी’ का नाम लिया। विचार जब उठे, तो विचार विनीत रहें, विचार उसी में पगे हुए रहें। रसगुल्ले की मिठास कहाँ से आती है?

श्रोता ३: चाश्नी।

वक्ता: चाश्नी से। तो विचार उसमें डूबे हुए रहें। तो पात्र है और उसमें रसगुल्ले हैं| जो उसकी चाश्नी में डूबे हुए हैं और इस कारण खूब…?

श्रोता ४: फूले हुए हैं।

वक्ता: मीठे हैं, फूले हुए हैं और आकर्षक हैं। जो करना है करो, जो खाना है खाओ, पर उसकी चाश्नी में डूबा रहे।

श्रोता ५: हाँ ये बात भी है कि चाश्नी से दूर रहता है, तो रसगुल्ला सूखने लगता है।

वक्ता: कुछ नहीं रहेगा उसमें।

श्रोता ४: रस है ही नहीं, तो गुल्ल हो जाएगा।

वक्ता: और कुछ दिखता ही नहीं। आज सुबह सुबह क्या बात हुई थी ?

‘जीवो ब्रह्मैव न परः’

‘उस’ से पराया, ब्रह्म से पराया कुछ दिखता ही नहीं| यही है सुरति, इसी को साधना कहते हैं। ‘उससे’ पराया कुछ दिखता ही नहीं- सुख, दुःख, समस्त द्वैत, वस्तु, व्यक्ति, भूत, भविष्य सब उसी में पगे हुए हैं। हो गया, बस यही है। अब आगे जितनी ‘आखि’ वाली बातें हैं, समझ ही गये होंगे।

जिन्होंने जो भी कुछ कहा है, उस एक का ही कहा है; जो निरंजन है, जो एक ओंकार है।

अलग-अलग कहा है। शब्द अलग-अलग रहें हैं, भाव अलग-अलग रहें हैं, समय अलग-अलग रहे हैं, सन्दर्भ अलग-अलग रहे हैं। किसी ने प्रेम की भाषा बोली है, किसी ने ज्ञान की भाषा बोली है, लेकिन कही सब ने एक ही बात है और एक में ही स्थापित होकर कही है ।

श्रोता ५: आगे आता है कि इतने सारे थे जिन्होंने कहा भी है, इतने और भी आ जाएं…

वक्ता: इतने और भी आ जाएं तो भी पूरी बात नहीं कह पाएंगे| बिल्कुल ठीक। क्योंकि, तुम मुझसे हो …

सभी श्रोता(एक स्वर में): मैं तुमसे नहीं।

वक्ता: मैं तुमसे नहीं, तुम मेरी अभिव्यक्ति हो। मैं तुम्हारी अभिव्यक्ति में नहीं समाऊंगा। तुम मुझसे जुड़ सकते हो, मुझसे एक हो सकते हो, मुझे पूरी तरह पा सकते हो, मुझसे अनन्य हो सकते हो लेकिन जब भी मेरा बखान करने बैठोगे..

श्रोता ६: तुमसे न होगा।

वक्ता(हँसते हुए): तुमसे न होगा।

तो शब्द कभी पूर्ण नहीं हो सकता, पर ये जानना हो सकता है इस शब्द-शब्द में बैठा ‘वही’ है। तुम उसे निर्गुण कहोगे, तो कहाँ पूरा हुआ शब्द, वो सगुण भी तो है। तुम पिता कहोगे, माता कहोगे, कहाँ पूरी हुई बात क्योंकि वो प्रेमी, पत्नी, बच्चा भी तो है।तुम उसे प्यारा कहोगे तो कहाँ पूरी हुई बात, वो अति-भयानक भी तो है, भय भी उसी से ही आता है। तुम उसे अरूप कहोगे, तो ये सारे रूप किसके हैं?

बोध हो सकता है पर शब्द अपूर्ण ही रहेगा। शब्द को अपूर्ण रहने दो, कोई दिक्कत नहीं है। तुम याद रखो, तुम बोध में स्थित रहो। मैं जिस याद की बात कर रहा हूँ वो बोध है। तुम उसमें स्थित रहो, इतना काफी है। इस चक्कर में मत पड़ो कि सही, सटीक शब्द मिल जाए। नहीं मिलेगा। तुमको तो जो भी शब्द मिलता है, उससे ही काम चलाओ।

श्रोता ५: सर, इसमें लिखा भी है, ‘जो उसका वर्णन करने की चेष्टा करे, वो सबसे बड़ा मूर्ख है।

वक्ता: तो ये कोशिश ही मत करो। जो मिलता है उसी में काम चलाओ। बात तुम्हारे शब्द की नहीं है, बात तुम्हारे बोध की है।

जानो कि हर शब्द में मौजूद ‘वही’ है। होगा शब्द अधूरा, पर इसमें समाया है..

सभी श्रोता(एक स्वर में): पूर्ण।

वक्ता: पूर्ण। फिर ठीक है।

-‘संवाद’ पर आधारित।स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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