वर्तमान समय का क्षण नहीं || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

Acharya Prashant

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वर्तमान समय का क्षण नहीं || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

वक्ता: वर्तमान का अर्थ है, वो जो है, प्रेज़ेंस, मौजूदगी, वर्तमान। वर्तना माने होना। वर्तना जिससे वर्तमान आया है, वर्तना माने होना। जो सचमुच है उसको कहा जाता है वर्तमान (प्रेज़ेंट)।

जो सचमुच है उसका अर्थ ये नहीं है कि ये सब जो दिख रहा है। वो वर्तमान (प्रेज़ेंट) नहीं है, क्योंकि ये सब जो दिख रहा है, ये तुम तक तो इन्हीं आँखों और कानों से आ रहा है, और थोड़ी देर में आँखें बंद कर लो तो दिखना बंद हो जाएगा। तो फिर ये वर्तमान (प्रेज़ेंट) कैसे हुआ? फिर तो तुम अगर सपने में हो, तो सपने में जो दिख रहा है वो भी वर्तमान (प्रेज़ेंट) होना चाहिए, क्योंकि वो भी दिख तो रहा ही है ना। और जब वो दिख रहा होता है तो सच्चा ही लगता है कि नहीं? जब सपने में होते हो, तो सपना सच्चा लगता है कि नहीं? तो वर्तमान (प्रेज़ेंट) पहली बात ये सब नहीं है कि ये वर्तमान(प्रेज़ेंट) है इसमें डूबो, ना ये नहीं है। वर्तमान (प्रेज़ेंट) ये नहीं है। वर्तमान (प्रेज़ेंट) कुछ दूसरी ही चीज़ है ।

वर्तमान (प्रेज़ेंट) का मतलब वो जिसके माध्यम से तुम्हें बाकि सब दिखाई देता है। ‘ये सब है’, ये कहने वाला कौन है?

(मौन )

जल्दी से बोलो।

‘ये सब है’। ये कौन दावा कर रहा है कि ये सब है?

सभी श्रोतागण (एक स्वर में): हम कर रहे हैं।

वक्ता: और ‘ये सब नहीं है’, ये दावा भी कौन कर रहा है?

सभी श्रोतागण (एक स्वर में): हम ही कर रहे हैं।

वक्ता: ‘ये सब जो था, वो बदल गया’। ये दावा भी कौन कर रहा है?

सभी श्रोतागण (एक स्वर में): हम।

वक्ता: तो सब बदलता रहे, एक चीज़ है जो सदा उपस्थित है। वो कौन?

सभी श्रोतागण (एक स्वर में): हम।

वक्ता: वो जो दावा करने वाली समझ है, बोध, उसको कहते हैं वर्तमान (प्रेज़ेंट)। वर्तमान(प्रेज़ेंट) वो है ।

बात समझ रहे हो?

वर्तमान (प्रेज़ेंट) वो जो बदलाव के बीच भी बदलता नहीं। इसलिए वर्तमान क्षण (प्रेज़ेंट मोमेंट) जैसा कुछ नहीं होता क्योंकि हर क्षण बदल जाता है। वर्तमान (प्रेज़ेंट) तो होता है पर वर्तमान क्षण(प्रेज़ेंट मोमेंट) नहीं होता। अब समय है जो बह रहा है। और समय को देखने वाला कौन है? तुम हो।

समय की जो धार बह रही है वो कुछ ऐसी है कि उसमें से एक बिंदु तुम्हारे सामने है, एक पीछे छूट गया है और एक आगे है। जो बिंदु तुम्हारे सामने हो, उसको तुम क्या बोलते हो?

सभी श्रोतागण (एक स्वर में): वर्तमान (प्रेज़ेंट)।

वक्ता: नहीं उसको वर्तमान (प्रेज़ेंट) नहीं बोल सकते। क्योंकि वर्तमान (प्रेज़ेंट) तो कौन है?

तुम नदी किनारे खड़े हो, नदी बह रही है, नदी में एक बिंदु तुम्हारे ठीक सामने है, एक अभी पीछे है और एक आगे को बह गया। वर्तमान (प्रेज़ेंट) कौन है?

सभी श्रोतागण (एक स्वर में): जो आगे है।

वक्ता: वर्तमान (प्रेज़ेंट) कौन है? तुम।

तुम वर्तमान हो। नदी का कोई बिंदु वर्तमान बिंदु नहीं कहलाता। वर्तमान समय की नदी का कोई बिंदु नहीं है, तुम हो वर्तमान। ठीक तुम्हारे सामने जो बिंदु है वो क्या कहलाएगा? क्या उसको नाव बोलेंगे? कि वो नाव है। जो बह गया है, जो बीत गया, उसको क्या बोलेंगे? भूत। और जो अभी आना शेष है उसको क्या बोलेंगे?

सभी श्रोतागण (एक स्वर में): भविष्य।

वक्ता: भविष्य। तो समय एक नदी है, तुम उस नदी के साक्षी हो, देखने वाले। नदी बहती रहेगी और नदी लगातार बदल रही है। कौन नहीं बदल रहा?

सभी श्रोतागण (एक स्वर में): हम।

वक्ता: नदी का पानी लगातार बदल रहा है। कौन नहीं बदल रहा? तुम नहीं बदल रहे ना? तो वर्तमान कौन है?

सभी श्रोतागण (एक स्वर में): हम।

वक्ता: तुम वर्तमान हो। तो वर्तमान क्षण (प्रेज़ेट मोमेंट) कुछ नहीं हुआ क्योंकि क्षण तो उस नदी के भीतर है, और तुम उस नदी से बाहर हो। बात आ रही है समझ में? अब जब वो पूरी नदी बह ही रही है, तो हम तुमसे कैसे कहेंगे कि वर्तमान सब कुछ है और नदी कुछ नहीं है। तुमने अभी कहा कि एच.आई.डी.पी. ने बोला हमसे कि वर्तमान (प्रेज़ेंट) सब है, भूत और भविष्य कुछ नहीं होते। नहीं ऐसा कैसे कह सकते हैं? समझने की भूल है या शायद बताने की भूल होगी। नहीं, ये नहीं कहा जा रहा।

कहा ये जा रहा है कि ये सब जो हो रहा है, तुम ज़रा उससे अप्रभावित होकर भी रहो, बाहर रहो। देखो कि नदी में डूबते उतरते तो तुम हमेशा रहते हो, ये तो हमेशा सोचते रहते हो कि आगे क्या है और पीछे क्या है, ज़रा नदी से अनछुए रह कर भी देखो कि समय की धार बह रही है और हम उसके दृष्टामात्र हैं-ये हुआ वर्तमान (प्रेज़ेंट)। समझ रहे हो? और जो समय की धार बह रही है उसमें नाव तो सिर्फ एक बिंदु है। आगे जितना भी है वो क्या कहलाएगा? अतीत। पीछे जितना भी है वो पूरा क्या कहलाएगा?

सभी श्रोतागण (एक स्वर में): भविष्य।

वक्ता: भविष्य। तो असल में जो पूरी धार है वो अतीत और भविष्य ही है, नाव तो सिर्फ एक बिंदु है छोटा-सा, बीचोबीच का।जैसे किसी भी धुरी समन्वय(कोआर्डिनेट एक्सिस) में स्त्रोत(ओरिजन) सिर्फ एक बिंदु होता है, बाकि तो सकारात्मक धुरी (प्लस एक्सिस) और नकारात्मक धुरी (माइनस एक्सिस) होता है। तो तुमने सकारात्मक धुरी(प्लस एक्सिस) को बोल दिया भूत और नकारात्मक धुरी(माइनस एक्सिस) को बोल दिया भविष्य। नाव तो वो ज़रा सा स्त्रोत है, जो बीच में है। और तुम कौन हो? जो ऊपर से इस पूरी चीज़ को देख रहे हो, उसको कहते हैं वर्तमान (प्रेज़ेंट) ।

तो जब ये कहा जाता है, ‘वर्तमान में जियो’ तो कहा जाता है बोध में जियो(लिव इन इन्टैलीजेनस), जागरूकता में जियो (लिव इन वॅाचफुलनेस), होश में जियो (लिव इन अवेयरनेस), बस इतना ही अर्थ है ।

वर्तमान में जीना (लिव इन प्रेज़ेंट) का मतलब ये नहीं है कि भविष्य का कोई ख्याल आना ही नहीं चाहिए मन में। कि ये जितनी पीछे की स्मृतियाँ हैं उन्हें मिटा दो। तुम चाह के भी ऐसा नहीं कर सकते।कर के दिखाओ। कौन है जो पीछे की सारी स्मृतियाँ मिटा सकता है? और अगर मिटा दीं, तो तुम्हारा होगा क्या? मैं ही अगर पीछे का सब भुला दूँ तो ये शब्द कहाँ से आएंगे? शब्द तो शब्दकोश से आ रहें हैं ना? और वो शब्दकोश मैने अतीत में पढ़ा था। और जब तक अतीत है, तब तक भविष्य भी है, तो नदी तो बहती रहेगी। नदी को बहने दो, तुम नदी से ज़रा हट कर खड़ा होना सीखो। इसको कहते हैं वर्तमान में जीना (लिविंग इन दा प्रेज़ेंट)। बात आ रही है समझ में? नदी बह रही है, समय की सारी हरकतें चल रहीं हैं, मन इधर भी जा रहा है, मन उधर भी जा रहा है पर हम मन के साथ भागे नहीं चले जा रहे। ठीक है मन को ज़रूरत है भविष्य में जा कर कुछ सोचने की, मन ने सोच लिया कोई दिक्कत नहीं है, पर हम भविष्य से आसक्त नहीं हो गए, हम भविष्य से बद्ध नहीं हो गए कि हम जाकर भविष्य में ही बैठ गए हैं।

तुम्हें स्मृति से कोई बात निकाल कर लानी है, कोई पासवर्ड याद करना है, और वो स्मृति से ही आता है, तुमने जा कर ले लिया। पर तुम वहीं बैठ नहीं गए। तुम्हें जब ज़रूरत थी गए, और फिर अपने घर में वापिस आ गए। तुम्हारा घर तुम्हारी समझ है, उसको वर्तमान (प्रेज़ेंट) कहते हैं कि जब ज़रूरत हुई थोड़ा बहुत चले गए भविष्य में, जब लगा कि घूमना है तो अतीत में भी चले गए। ‘अतीत भी उपलब्ध है, भविष्य भी उपलब्ध है। हमें उनसे कोई दुश्मनी नहीं है, ना अतीत से कोई दुश्मनी है, ना भविष्य से कोई दुश्मनी है। पर रहना हमें अपने साथ है’। और इसी को कहते हैं, ‘लिविंग इन दा’?

सभी श्रोतागण(एक स्वर में): प्रेज़ेंट (वर्तमान)।

वक्ता: हमें ये अच्छे से पता है कि सबसे महत्वपूर्ण हम हैं, भविष्य हमसे ज़्यादा महत्वपूर्ण नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण हम हैं, केन्द्रीय हम हैं। अतीत हमसे ज़्यादा महत्वपूर्ण नहीं है। अब ऐसे आदमी को भविष्य की चिंता सताती ही नहीं है क्योंकि ये जान गया है कि असली चीज़ हम हैं। तो इसलिए ये बहुत भविष्य के सपने लेता ही नहीं, इसको अतीत की स्मृतियाँ दुख देती ही नहीं हैं। क्योंकि ये क्या समझ गया है कि अतीत से ज़्यादा महत्वपूर्ण कौन है?

सभी श्रोतागण(एक स्वर में): हम।

वक्ता: हम। तो इसकी अतीत से आसक्ति खत्म हो गई है। ये तो अपने में डूबा है, मौज में है। मन कभी-कभी सपनों में भी भागता है, ये सपनों को भी मौज में देखता है और हंस कर कहता है, ‘मन अभी पता है क्या कर रहा है? मन भविष्य के सपने ले रहा है। कितनी मज़ेदार बात है, आओ हंसें। अरे! पता है क्या हुआ? मन अतीत में घूमने फिरने चला गया था। दो घंटे तक घूमा-फिरा, पागल है। मन घूम रहा था, हमदेख रहे थे, हम बैठे हुए थे। एक हल्का सा अहसास था कि मन तो घूम रहा है, चल घूम ले, कोई बात नहीं, तेरी आदत है टहलने की, टहल ले’।

ये होता है वर्तमान (प्रेज़ेंस)। हम मौजूद हैं, मन भटक रहा है सो भटक रहा है, हम मौजूद हैं। मन नदी की धार में कहीं भी जा सकता है, हम मौजूद हैं । ये बात स्पष्ट हो पा रही है?

-‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं ।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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