क्या अध्यात्म माने संन्यासी बनना है?

Acharya Prashant

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क्या अध्यात्म माने संन्यासी बनना है?
यह बिल्कुल भी मत सोच लेना कि जिसको होश आ गया, वह कहीं हिमालय पहुँच जाता है और दुनिया से कट जाता है। अध्यात्म दुनिया को डटकर जीने के लिए है। संत योद्धा होता है। जो बोध साहित्य पढ़ेगा, वह इसी दुनिया में जिएगा और अपनी शर्तों पर जिएगा, अपने हिसाब से जिएगा। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

आचार्य प्रशांत: ये जो सूरमा है, कबीर का, ये ज़िन्दगी से भागने वाला आदमी नहीं है। एक बात को बहुत साफ़ तरीके से समझ लो। ये जितना भी तुम विजडम लिटरेचर (ज्ञान साहित्य) पढ़ रहे हो, ये ज़िन्दगी से भागने के लिए नहीं है। बिल्कुल भी ये मत सोच लेना कि जो लोग दुनिया को समझ जाते हैं, वे दुनिया से कट जाते हैं। ये बिल्कुल भी मत सोच लेना कि जिसको होश आ गया, वो कहीं हिमालय वगैरह पहुँच जाता है।

कबीर की एक-एक बात तुमको और गहराई से जीने के लिए कह रही है। उनके शब्दों को देखो न — जो पूरी इमेज (छवि) उठ रही है, उसको देखो — प्रेम प्याला भरी पिया। वो ये कह रहे हैं क्या — प्रेम प्याला छाँड़ि दिया? कबीर तो नहीं कह रहे कि प्रेम प्याला छाँड़ि दिया। त्याग की, रिनन्सिएशन (त्याग) की बात तो नहीं कर रहे। क्या कह रहे हैं? कह रहे हैं, पी बेटा, छक के पी। और ज़िन्दगी को खुल के जी।

अपने मन से ये बात पूरी तरह निकाल देना, जो हमारे मन में इमेज (छवि) बनी रहती है न साधुओं की, संतों की, कि भाई कबीर हैं तो इन्हें दुनियादारी से क्या मतलब है। ये तो राम-राम भज रहे हैं। न-न ऐसा कुछ नहीं है। अरे, इन्हें लड़ाई-झगड़े से क्या मतलब है? ये सब तो साधु लोग हैं, ये अपना कहीं कोने में पड़े रहते हैं। ये पीसफ़ुल (शांतिप्रिय) लोग हैं। बिल्कुल उल्टा सोच रहे हो। संत से बड़ा लड़ाका कोई नहीं होता। कबीर इसीलिए बार-बार ‘सूरमा’ कह रहे हैं, क्योंकि वो लड़ता है और जीतता है। उसने जान लिया और जीत लिया है।

किसको जीत लिया है? सारी कंडीशनिंग (संसार द्वारा संस्कारित किया जाना) को जीत लिया है। वो उसका ग़ुलाम नहीं है। "लाल खड़े मैदान।" "लाल खड़े मैदान।" पर ये सब जीतने में चूँकि ज्ञान की बड़ी ज़रूरत है — हमने कहा न एक कंडीशन्ड (संस्कारित) आदमी प्यार नहीं कर सकता, और कंडीशनिंग को हटाने में चूँकि ज्ञान की बड़ी ज़रूरत है, इसीलिए कबीर ‘गुरु’ का नाम भी ले रहे हैं। "राचि रखा गुरु ज्ञान।" ठीक है?

दिया नगाड़ा शब्द का — ये कौन-सा शब्द है? ये किसी ख़ास मंत्र की बात नहीं कर रहे हैं कि शब्द बजा रहा है, कोई शब्द है जो दोहरा रहा है। कबीर का जो शब्द है, कबीर उसको ‘अनहद’ के नाम से जानते हैं।

कबीर का जो शब्द है, वो असल में निशब्द है। साइलेंस (मौन/शांति)। कबीर कह रहे हैं कि बिल्कुल साइलेंस का नगाड़ा बज रहा है और इसलिए मैं मैदान में खड़ा हूँ, लड़ने के लिए तैयार। और ये लड़ाई वैसी नहीं है, हिंसा वाली। ये खेल रहे हैं कबीर। कबीर का जो सूरमा है, वो मैदान में डरा हुआ नहीं है, वाइलेंट (हिंसक) नहीं है। एक बार डर गए तो वाइलेंट (हिंसक) हो जाओगे न।

कबीर का सूरमा जब मैदान में भी खड़ा है, तो खेल ही रहा है। खेल ही रहा है। समझे? क्योंकि वो साइलेंट (शांत) है अंदर से। दिया नगाड़ा शब्द का। उसको तुम ऐसे भी समझ सकते हो कि बिल्कुल साइलेंट होकर खड़ा हूँ। और ये सब बातें प्रेम हैं। यही प्रेम है।

शांत होगे, तभी किसी भी बात के मज़े हैं। पूरा जीवन मज़े लेने के लिए ही है। स्पिरिचुऐलिटी (आध्यात्मिकता), विजडम (बुद्धिमानी/प्रज्ञता) इसलिए नहीं है कि दुनिया से भाग गए। वो दुनिया को छककर जीने के लिए ही है। एक-एक बित्ता ‘मज़ा’ पी जाने के लिए ही है। पर हिलता-डुलता आदमी वो नहीं कर सकता न। डरा हुआ आदमी वो नहीं कर सकता न। डरा हुआ आदमी क्या घंटा प्यार करेगा। उसको दिख ही नहीं रहा कुछ वो प्यार किससे करेगा? समझ रहे हो बात को?

ये सब जो भी पढ़ना; कबीर की जो मन में छवि रही होगी, बदली है? कबीर को अभी तक क्या समझते थे?

प्रश्नकर्ता: संत।

आचार्य प्रशांत: और संत को क्या समझते थे?

(ऐसा जैसे कोई वृद्ध व्यक्ति हो और कह रहा हो) 'बेटा, सौभाग्यवती भव!' और ये कौन-सा संत है, जो तलवार लेकर खड़ा हुआ है और डंडा मार रहा है? और संत हमेशा यही हुए हैं। संत योद्धा होता है।

प्रश्नकर्ता: संत के मायने हैं कि वे जो बाबाजी बने फिरते हैं।

आचार्य प्रशांत: बाबाजी, बिल्कुल। और ये नहीं पता कि बाबाजी फिर तोप लेकर चलते हैं साथ में। वो बाबा ही नहीं है जो तोप लेकर न चलता हो। ये बाबा थोड़ी हैं कि...। ज़ेन (महायान बौद्ध धर्म) में एक इमेज (चित्र/तस्वीर) होती है, जिसमें एक आदमी खड़ा है जिसके एक हाथ में किताब होती है और दूसरे में तलवार। संत ये होता है। संत कौन होता है? एक हाथ में किताब और दूसरे हाथ में तलवार।

तुमने अभी-अभी जो पढ़ा, देखो, उसमें पहली लाइन (पंक्ति) क्या बोलती है? "राचि रखा गुरु ज्ञान।" ज्ञान क्या है? एक हाथ में किताब है, एक हाथ में तलवार है। पहली लाइन कहती है— "राचि रखा गुरु ज्ञान।" जो गुरु-ज्ञान है, वो क्या है? किताब। और दूसरी लाइन कहती है— "लाल खड़े मैदान।" वो क्या है? तलवार। ये दोनों चीज़ें एक साथ होती हैं।

प्रश्नकर्ता: तलवार का मतलब यही है न कि अपने आप से फाइट (लड़ाई) करना?

आचार्य प्रशांत: जितना यहाँ पर (सिर की तरफ इशारा करते हुए) घुसा हुआ है, वो आकर्षक तो बहुत लगता है पर उससे लड़ूंगा, उसको समझूंगा। मोह है, पर लड़ूंगा। इनर्शिया (जड़ता) है, पर लड़ूंगा। भागना नहीं है, डटे रहना है। दुनिया भर के तमाम इन्फ्लुएंसेस (प्रभाव) आएंगे प्रभावित करने के लिए, तमाम आवाज़ें आएंगी जो कहेंगी अब ऐसे कर लो, अब ऐसे कर लो। हम क्या करेंगे? ये रही तलवार (हाथ उठाकर तलवार दिखाते हुए)। और तलवार जब बंदर चलाता है तो क्या होता है? जब बंदर के हाथ में तलवार दे दी जाती है तो क्या होता है?

प्रश्नकर्ता: डिस्ट्रक्शन (विनाश/तबाही)।

आचार्य प्रशांत: और जब ज्ञानी के हाथ में तलवार दी जाती है तो क्या होता है? सेलिब्रेशन (उत्सव)। तलवार बड़ी अच्छी चीज़ है। अगर किसके हाथ में रहे?

प्रश्नकर्ता: ज्ञानी के।

आचार्य प्रशांत: इसीलिए जितने अवतार वगैरह हैं, देखना, उनके हाथों में क्या होता है?

प्रश्नकर्ता: हथियार/अस्त्र-शस्त्र।

आचार्य प्रशांत: कृष्ण की उंगली पर क्या है?

प्रश्नकर्ता: सुदर्शन चक्र।

आचार्य प्रशांत: राम के हाथ में क्या है?

प्रश्नकर्ता: धनुष।

आचार्य प्रशांत: और कई आठ-दस हाथ वाले होते हैं अवतार। उनमें एक हाथ में वेद होगा, एक हाथ में कुछ और होगा। पर पक्का है कि कहीं-न-कहीं एक-आध भाला, गदा; कुछ-न-कुछ होगा ज़रूर। और ये एकसाथ चलते हैं। वाइज़ (बुद्धिमान) आदमी को दादा जी मत समझ लेना। वाइज़ (बुद्धिमान) आदमी को भगौड़ा मत समझ लेना। वाइज़ (बुद्धिमान) आदमी को वैसा मत समझ लेना, जैसे वो शोले (चलचित्र का नाम) में था। नहीं, वो अंधा (एक किरदार का ज़िक्र करते हुए)। हमारे मन में वही छवि आती है, जब भी कोई विजडम (बुद्धिमानी/प्रज्ञता) की बात करे, कोई दोहा-वोहा लेकर आए। कहेंगे, 'क्या? अरे, संन्यास लेना है क्या?'

अभी घर जाओ और किसी को बताओ क्या करके आ रहे हो कॉलेज में। 'जी, दो घंटे कबीर के दोहे।' कहेंगे, 'हरिद्वार जाना है।' ये बिल्कुल मन से निकाल दो। ये बिल्कुल उल्टी बात है। जो ये पढ़ेगा न, वो हरिद्वार नहीं जाएगा। वो इसी दुनिया में डटकर जिएगा। और अपनी शर्तों पर जिएगा, अपने हिसाब से जिएगा। सच तो ये है कि जो ये नहीं जानते, उनको हरिद्वार भागना पड़ता है। और दुनिया भरी हुई है न हरिद्वार में, सभी जाते हैं। वे इसीलिए जाते हैं क्योंकि वे जानते नहीं।

हम सब एस्केपिस्ट्स (भगौड़े) हैं। तुम शॉपिंग मॉल जाओ, चाहे तुम हरिद्वार जाओ, काम एक ही कर रहे हो। क्या काम कर रहे हो? एस्केप (भागना/बच निकलना) कर रहे हो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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