उलझे सम्बन्धों को कैसे सुलझाएँ? || आचार्य प्रशांत (2014)

Acharya Prashant

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उलझे सम्बन्धों को कैसे सुलझाएँ? || आचार्य प्रशांत (2014)

प्रश्न: क्या सम्बन्ध इनके अलावा भी होते हैं – शरीर, विचार, गुरु?

वक्ता: अभी मैं अगर बताऊँगा भी, तो वो वैचारिक ही हो जाएगा ना। सोचिये, उसके बारे में आपको जानकारी मिल गयी, वो जानकारी क्या है? विचार है। तो ये पता भी चल गया कि, हाँ इसके अलावा भी कोई सम्बन्ध होता है, तो बात वैचारिक रूप से यहाँ बैठ जाएगी, इतना ही होगा। सम्बन्ध ऐसी चीज़ नहीं होते हैं जिसमें आप वही रहे आएँ, जो आप हैं, और सम्बन्ध कुछ ख़ास हो जाए।

आप का होना और सम्बन्ध का होना, एक ही बात है। आपके मन की जो गुणवत्ता है, ठीक वही गुणवत्ता आपके सम्बन्धों की होगी। मन और सम्बन्ध में कोई अंतर है ही नहीं। सम्बन्धों का ही नाम ‘मन’ है। सम्बन्धों का ही नाम ‘मन’ है। मन की गुणवत्ता ही, सम्बन्धों की गुणवत्ता है। अगर आप ये पाते हों कि दुनिया भर से सम्बन्ध नकली हैं, सतही हैं, द्वेष बहुत है उनमें, तो बस समझ लीजियेगा कि मन ऐसा ही है – सतही। गहराई नहीं है उसमें।

श्रोता १: मतलब इसका किसी दूसरे से कोई सम्बन्ध ही नहीं है।

वक्ता: नहीं, बिल्कुल नहीं।

श्रोता १: मतलब हमारे मन की जो दशा है, जैसा हम सोचते हैं, जो हमारी…।

वक्ता: ‘आपके’ सम्बन्ध होते हैं। सम्बन्ध दो व्यक्तियों के मध्य उतने नहीं होते, जितने आप के होते हैं। ‘सम्बन्ध’ का ये अर्थ नहीं है कि मेरे और उसके बीच में क्या सम्बन्ध है। आपको क्या पता कि उसके मन में क्या चल रहा है। ‘सम्बन्ध’ का अर्थ है – “मेरे मन में क्या चल रहा है।”

दूसरी बात, सम्बन्ध तो हमारे पत्थरों से और पर्वतों से भी होते हैं। उनके मन में तो कुछ चलता ही नहीं है आपके लिए। और सम्बन्ध तो वहाँ भी होते हैं। और यदि जीवन रुखा-सूखा है, तो पर्वत और पहाड़ से भी सम्बन्ध रुखा-सूखा ही रहेगा। और इसमें उस बेचारे पर्वत, या पहाड़, या रेत ने, या नदी ने कुछ नहीं कर दिया है।

श्रोता २: यानि अगर किसी भी सम्बन्ध में कोई भी खींच-तान आए, तो उसके लिए वो व्यक्ति खुद ही ज़िम्मेदार है। दूसरा कोई व्यक्ति उसके लिए ज़िम्मेदार नहीं है।

वक्ता: ये भी कहना कि वो ‘व्यक्ति’ ज़िम्मेदार है, बड़ी अधूरी-सी बात होगी। क्योंकि जैसे ही मैं आपसे कहूँ कि इसके लिए ‘व्यक्ति’ ज़िम्मेदार है, आप के मन में तुरंत ये उठेगा कि, वो व्यक्ति फिर ठीक भी कर सकता है। ज़िम्मेदारी में तो ये भाव भी आता है कि – “मुझमें ताकत भी है।” जब भी आप कहते हैं, “आई ऍम रेस्पोंसीबल (मैं ज़िम्मेदार हूँ),” तो इसका अर्थ ये भी है कि – “यदि मैं खराब करने के लिए उत्तरदायी हो सकता था, तो मैं…?”

श्रोतागण: सही भी कर सकता हूँ।

वक्ता: “ठीक करने के लिए भी उत्तरदायी हो सकता हूँ।” ना, आप जो हैं, ये होते हुए आपका ये सम्बन्ध ऐसा होना ही था। इसमें ये भी नहीं है कि रेस्पोंसिबिलिटी (ज़िम्मेदारी) है कि, आपकी वजह से हुआ। ना-ना ना, आप ही हैं, आपकी वजह नहीं है। और आप जो हैं, वो रहते हुए आपका वो सम्बन्ध वैसा ही रहेगा। आप लाख कोशिश कर लो, आप बदल नहीं सकते। और अगर कोई आपको ये कहता है कि, “‘यू’ कैन चेनज यॉर रिलेशनशिपस (‘तुम’ अपने सम्बन्ध बदल सकते हो),” तो वो पागल है। खुद कुछ नहीं समझता, और आपको भी भ्रमित कर रहा है।

यू बींग व्हाट यू आर, यू कैन नैवर चेंज यॉर रिलेशनशिप्स, बिकॉज़ यू आर यॉर रिलेशनशिप्स (तुम जो हो, वही रहते हुए तुम अपने सम्बन्ध नहीं बदल सकते, क्योंकि तुम्हारे सम्बन्ध ही तुम हो)। लेकिन ये बातें सेल्फ-हेल्प में, और इधर-उधर से बहुत सुनी जाती हैं। देयर इज़ अ मैजिक वैंड टू चेंज यॉर रिलेशनशिप्स (कोई जादू की छड़ी है, जिससे तुम अपने सम्बन्ध बदल सकते हो) और अहंकार को ये बातें बहुत अच्छी लगेंगी – “मैं, मैं रहूँ। मेरा, मेरे दोस्तों से सम्बन्ध बदल जाए, मेरा मेरे परिवारजनों से सम्बन्ध बदल जाए।” कैसे बदल जाएगा? कैसे बदल जाएगा? अब ये बात सुनने में बड़ी कष्टप्रद कि, “यहाँ तो कुछ भी कहो कि कैसे बदलें, तो कहा जाता है कि खुद को बदलो पूरा, तो बदलेगा।” खुद को बदले बिना कुछ नहीं बदल सकता – ये सुनने में अच्छा नहीं लगता।

कोई छात्र आए और कहे, “परीक्षा चल रही है आजकल, एकाग्र नहीं हो पाता,” आजकल परीक्षाओं का मौसम है, “एकाग्रता नहीं बनती,” और आप उसे कुछ ऐसा बता दें जिससे उसको लगे कि, हाँ ये करके एकाग्रता बन जाएगी, बड़ा खुश होकर नाचता हुआ चला जाएगा। “धन्यवाद-धन्यवाद, महान हैं आप।” पर ज्योंही आप उसको बताएँगे कि तुम जो हो, और जैसा तुम जीवन जी रहे हो, और जैसे तुम्हारे मूल्य हैं, इनके रहते हुए तुम्हारा मन उधर को ही भागेगा, जिधर भागने की तुमने उसे शिक्षा दे रखी है, उसे बुरा लगेगा। वो कहेगा, “मैं तो एक छोटी-सी बात पूछने आया था कि पढ़ाई में कैसे एकाग्रचित्त हो जाऊँ, और आप तो कह रहे हो कि पूरा जीवन ही बदल लो, ये तो बहुत बड़ी कीमत है। ये हम अदा करने के लिए तैयार नहीं हैं।”

श्रोता १: वो शॉर्टकट ढूँढ रहे हैं।

वक्ता: हर कोई ढूँढ रहा है। और हर शॉर्टकट का अर्थ एक ही होता है – “मैं कायम रहूँ, अहंकार ना हिले। मैं कायम रहूँ।” आपके कायम रहते हुए कुछ नहीं बदल सकता। कोशिश आपकी लगातार यही है – “मेरी वृत्तियाँ ना बदलें। मेरे चित्त का जो पूरा ढाँचा है, वो वैसा का वैसा ही रहे, और मेरा पढ़ाई में मन भी लगने लगे। और मेरे अपने माता-पिता से सम्बन्ध भी अच्छे हो जाएँ।” कैसे हो जाएँगे? वो सम्बन्ध कहीं आसमान से थोड़ी टपके हैं। वो सम्बन्ध तुम हो।

पूर्ण परिवर्तन के बिना पत्ता भी नहीं हिलेगा। जिन्हें अपने सम्बन्धों में कुछ खटास नज़र आती हो, वो आत्म-शोधन करें। और कोई तरीका नहीं है। अक्सर आपको बताया जाता है, “किसी से आपके सम्बन्ध खराब हैं, आप जाकर उससे बात करिये, और चीज़ों को स्पष्ट करिये,” इससे ज़्यादा मूर्खतापूर्ण बात नहीं हो सकती। ध्यान से समझ लीजियेगा इस बात को। ये शेयरिंग वाली जो बात होती है, इससे ज़्यादा मूर्खतापूर्ण बात नहीं हो सकती।

जिसके सम्बन्ध खराब हों, उसे स्पष्ट समझना चाहिए – “मेरे मन में कुछ है, जो सड़ा हुआ है”। उसे आत्म-शोधन करना होगा, उसे अकेले होना होगा। उसे किसी के साथ नहीं बैठना है शेयरिंग के लिए, उसे एकांत चाहिए। क्योंकि जो कुछ भी ख़राब है, वो मन में ख़राब है। मन का परिष्कार करना होगा। पर अकेले होने कि जगह आप बार-बार कोशिश ये करोगे कि मैं उस व्यक्ति के साथ हो जाऊँ, बातचीत करूँ। उस बातचीत से निकलेगा क्या? तुम-तुम हो, वो-वो है, तो बातचीत नई कैसे हो जाएगी? तुम सौ बार कर लो बातचीत।

पुराने रास्तों पर चल के नया परिणाम आ जाएगा क्या? नई जगह पहुँच जाओगे क्या? तुम वही जो सदा से हो, वो वही जो सदा से है, तो बातचीत में कुछ नया कहाँ से आ जाना है? एक ही चक्र में घूमते रहोगे। तुम्हें उसके साथ नहीं होना है, तुम्हें तो इस वक़्त मौन की आवश्यकता है। तुम्हें तो अकेले हो जाने की आवश्यकता है। अकेले हो जाओ, बदल जाओ।

एक संवाद में एक ने मुझसे पूछा, छात्र था, “मेरी गर्लफ्रेंड भाग गयी है, दोबारा कैसे पाऊँ? ब्रेकआप हो गया है।” मैंने कहा, “तुम्हें मरना होगा। नया जन्म ही लेना होगा। क्योंकि अगर तुम वही हो, जो तुम थे, और अगर वो लड़की भी वही है, जो वो थी, तो फिर से वही होगा जो पहले हुआ।” पहले क्या हुआ?

श्रोतागण: ब्रेकअप।

वक्ता: ब्रेकअप। वो दोबारा होगा। जब तुम वही हो, जो थे, जब लड़की भी वही है, जो वो थी, तो तुम्हारे बीच जो कलह थी, वो भी दोबारा हो कर के ही रहेगी। तुम कोशिश भी मत करना कि लड़की के पास दोबारा जाओ। तुम्हें तो नया जन्म लेना पड़ेगा। नये जन्म का अर्थ समझ रहे हैं? तुम्हें अपने मन को पूरी तरह बदल डालना होगा। तुम्हें नया ही होकर जाना पड़ेगा उसके पास। और जब नए हो जाओ, तो फिर आवश्यक भी नहीं है कि वो लड़की आकर्षक लगे।

तुम्हें वो अभी आकर्षक भी इसीलिए लगती है, क्योंकि तुम आज भी वही हो, जो आज से दो साल पहले थे। तुम जब नए हो जाओगे, तो हो सकता है कि कहो, “इसमें मुझे क्या आकर्षक लगता था, जो बदल गया?” तो ख़तरा है, बड़ा ख़तरा है। निकलोगे तो आप इसलिए कि आपको एक सम्बन्ध ठीक करना है, पर पुनर्जीवित हो कर के आओगे, नया जन्म ले कर के आओगे। और उस नए जन्म में कोई गारंटी नहीं है कि अब आपकी पुरानी इच्छाएँ वैसी कि वैसी ही रहेंगी।

पसंद-नापसंद सब बदल जाती है। “मैं जो कभी हुआ करता था, उसे तुम पसंद थे। जिसे तुम पसंद थीं, वो मर गया।” अब ये बात उस लड़की से बोल दो कि जिसे तुम पसंद थीं, वो मर गया, वो कहेगी, “नहीं-नहीं, ख़तरनाक है। अभी भले तुम मेरे साथ नहीं हो, पर मेरे पीछे-पीछे तो लगे हो ना। देखो संवाद में खड़े होकर भी मेरा ही नारा लगा रहे हो।” बड़ा अच्छा लगता है।

इसीलिए आप जिन लोगो से जुड़े होते हैं, अगर उनको एक चीज़ बड़ी खौफ़नाक लगती है, वो ये है कि आपको आत्म-बोध हो जाए। वो इससे ज़्यादा किसी बात से नहीं डरते। पत्नियों का गहरे से गहरा डर होता है कि, पति जग जाएगा। पिछले हफ्ते मैंने कहा था कि माँओं को गुरुओं से बड़ा डर लगता है। बात सिर्फ माँओं कि नहीं है, जितने लोग आपसे जुड़े हुए हैं, जितने आपके ये नकली रिश्ते हैं, इन सब को बड़ा डर, सबसे ज़्यादा डर इसी बात से लगता है कि, कहीं आपको कोई गुरु ना मिल जाए। कहीं आप उठ ना बैठो। क्योंकि वो नया जन्म ही होता है। और उसके बाद फिर क्या होगा, उसकी कोई गारंटी नहीं। गारंटी है, गहराई में आपको भी पता है कि रिश्ता नकली है, तो पक्की गारंटी है कि ये बचेगा नहीं। तो इसीलिए आपका ख़ौफ़ जायज़ है।

आप जाईये यहाँ से, और उसके बाद आप पक्का करना चाहते हों कि आपके रिश्तों की गुणवत्ता क्या है, तो यही करिये, जो भी आपके सामने आए, जो आपसे जुड़े हुए लोग हैं – दोस्त, यार, माँ-बाप, भाई-बहन, बीवी, पति – उनको बताईये कि ऐसी जगह होकर आए हैं, वहाँ ये हो रहा था। अगर वो सुनते ही बिदक जाएँ, “अरे क्या बेवकूफ़ी की बातें कर रहे हो। क्यों गए थे? दोबारा मत चले जाना,” तो समझ लीजियेगा कि क्या है। और अगर कहें, “अच्छा, अगली बार ज़रुर जाना, और मुझे भी लेकर चलना, मुझे भी चलना है,” तो समझ लीजियेगा कि बात कुछ और है।

बस यहीं से सारा फैसला हो जाना है।

~ ‘शब्द-योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

YouTube Link: https://youtu.be/D6H2ZnaOcFQ

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