क्या कर्ज़ लेना बुरा है?

Acharya Prashant

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क्या कर्ज़ लेना बुरा है?
आपको पता हो कि कोई चीज़ अभी सुख देगी लेकिन चार दिन बाद दुख देगी, फिर भी आप उसे ठुकराने के बजाय स्वीकार करोगे। क्रेडिट कार्ड स्वाइप करते समय सोचते हो, 'अभी मौज कर लो, आगे की देखी जाएगी।' ये जानवरों की हरकत है। कर्ज़ लेना हो तो सौ बार पूछो, 'क्या यह जरूरी है?' सौ बार जवाब 'हाँ' हो, तभी लो। कोई चीज़ ललचाए तो उसे टालो, और अगर आवश्यक हो, तो पहले पैसा जोड़ो, बाज़ार के शिकार मत बनो। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी। मैं इकोनॉमिक्स और बिजनेस स्टूडेंट (अर्थव्यवस्था और व्यवसाय का छात्र) हूँ। तो मेरा प्रश्न ये है कि इण्डिया (भारत) में कुछ सालों पहले यूपीआई (एकीकृत भुगतान इंटरफेस) आयी और यूपीआई ने पेमेन्टगेटवे (भुगतान का माध्यम) का एक इन्फास्ट्रक्चर (अवसंरचना) बनाया। और जैसे हमको पता है कि कैश (नकद) देनें में थोड़ा फ्रिक्शन (टकराव) आता है। आप अपने कार्ड से ट्रांज़ैक्शन (लेनदेन) करते हैं तो फ्रिक्शन कम हो जाता है लेकिन यूपीआइ में न के बराबर। सेम गोज़ विद क्रेडिट कार्ड (ऐसा ही क्रेडिट कार्ड के साथ होता है) आप क्रेडिट कार्ड में ज़्यादा खर्चे करते है एज़ कम्पेयर टू डेबिट कार्ड ( डेबिट कार्ड की तुलना में )।

तो मेरा प्रश्न ये है कि आजकल जो स्टार्ट-अपस् (व्यवसाय) आ गयी हैं, जो बीएनपीएल बाय नाओ पे लेटर (अभी पाओ, बाद में चुकाओ) है, जो छोटे धनराशि जैसे, दो हज़ार से लेकर पचास हज़ार तक के अमाउन्ट को लोन पर देती हैं विदाउट एनी क्रेडिट स्कोर ( बिना किसी क्रेडिट स्कोर के) और कुछ भी और लोगों को प्रोत्साहित कर रही कि और खर्च करें तो और लोग, और ऐसा अमेरिका में भी देखा गया था कि जब बहुत ज़्यादा पैसे देने लग गये थे तो डेड ट्रैप (मृत जाल) बढ़ गया था और बहुत सारे सुसाइड केस (आत्महत्या के मामले) भी आ गये थे और इण्डिया में भी वो आना चालू हो गया है तो ये जो बीएनपीएल कम्पनीज़ हैं, ये हम लोगों को उत्साहित कर रही हैं खर्च करने के लिए और गवर्मेन्ट भी उसका साथ दे रही है जैसे गवर्मेन्ट ने होम लोन (गृहऋण), कार लोन उनके इन्टेरेस्ट रेट (ब्याज़ दर) बहुत कम कर दिये हैं तो लोग और लोन और लोन।

तो पहले आता है कि हमारी वृत्तियाँ, जो हम कोई भी एडवर्टाइज़मेन्ट (विज्ञापन) देखकर चीज़ खरीदने का मन करता है फिर वो हमें हमारा बैंक बैलेन्स एलाओ नहीं करता खरीदने के लिए बट अब ये बीएनपीएल कम्पनीज़ हमको बोल रही हैं, 'बेटा तुम टेन्शन मत लो, तुम अपनी वृत्तियों के साथ चलो।' तो इस पर आप क्या कहना चाहेगें और हमें इस पर कैसे कन्ट्रोल करना चाहिए?

आचार्य प्रशांत: ये समझ जाओ कि चल क्या रहा है और क्या? और बहुत लम्बा तो चलता नहीं। दो हज़ार आठ में अमेरिका में क्या हुआ था? फिर वो चीज़ अमेरिका से फिर पूरी दुनिया में फैली। यही तो था ‘क्रेडिट बबल’ ही था वो सीधे-सीधे।

आप ऐसों को भी कर्ज़ दे रहे थे जो उस कर्ज़ को कभी भी लौटा ही नहीं सकते थे। और फिर जब आपके ऊपर डैट बढ़ जाता है तो अपना वो डैट आप किसी और को दे देते हो। चुकाना आपको ही है पर, तो ये तो सीधी-सीधी बहुत पुरानी माया है, इसमें कुछ नया भी नहीं है। हम तात्कालिक सुख को अपने दीर्घकालीन हित से बढ़कर वरीयता देते हैं।

आपको कोई चीज़ पता हो कि अभी सुख देगी लेकिन चार दिन बाद दुख देगी, ज़्यादा सम्भावना है कि आप उस चीज़ को ठुकराओगे नहीं, स्वीकार करोगे। स्वीकार क्या करोगे, हो सकता है उसके पीछे पड़कर उसको हासिल करो। और ये पशुता की निशानी है। ये बात प्रकृति में खूब पायी जाती है, इसीलिए तो ज़ानवरों का शिकार वगैरह भी मनुष्य कर पाता है।

पशु की जो निशानियाँ होती है उनमें से ये एक है। पशु को आगे का कभी दिखाई-सुझाई नहीं देता, पशु के लिए भविष्य जैसी कोई चीज़ नहीं होती, उसको अभी जो मिल गया, मिल गया और अभी अगर उसको सामने खाना दिख गया तो वो खायेगा, वो ये नहीं सोचेगा कि इसका कल क्या अंजाम होगा। इसके कुछ अपवाद हैं, लेकिन उन अपवादों में भी बहुत बोध नहीं है जैसे आप कहेगें कि, 'चिड़िया आगे के लिए घोंसला बनाती है।' कुछ अपवाद है, लेकिन अगर आपने आसपास का जो प्राकृतिक जीवन है, पशुओं का, पक्षियों का इनको देखेगें तो आपको दिखायी देगा, आगे की नहीं सोच पाते वो।

और आज की जो संस्कृति है, उसमें एक बड़ा घातक पश्चिमी जुमला घुस गया है,'लिविंग इन द मोमेंट' (इस पल में जी लो), वो आपको बिलकुल वही सिखा रहा है जो जानवर करते हैं, आगे की नहीं देखते वो। जब आप क्रेडिट कार्ड स्वाइप करते हो तो आप यही तो कर रहे हो, 'लिविंग इन द मोमेंट।' अभी मौज कर लो, आगे की देखी जाएगी। सोचना क्या, जो भी होगा देखा जाएगा। गाना ही बना है न पूरा? वो यही है। ये काम ज़ानवर करते हैं। अभी मौज ले लो, आगे की मत सोचो क्योंकि आगे की सोचने से अभी की मौज बाधित होती है।

और आगे की नहीं सोचनी है तो अपनेआप को सही साबित करने के लिए कहो, 'कि साहब हम तो आस्तिक हैं, आगे की फ़िक्र भगवान करेगा।' या कि जो कमज़ोर होते हैं, वो सोचते हैं भविष्य की, जो ताक़तवर होते हैं वो कहते हैं, 'जो भी होगा, देख लेगें।' अभी मौज करो जो भी होगा, देख लेगें। बलात्कारी का तर्क़ और क्या होता है? ऐसा तो कोई बलात्कारी नहीं, जो जानता नहीं कि बलात्कार करेगा तो मुसीबत में फँसेगा नहीं, उसे पता है अच्छे से कि बलात्कार की सज़ा है।

हर तरीक़े से सज़ा मिलती है भली-भाँति जानता है फिर भी वो बलात्कार करता है, क्यों करता है? अभी मज़े ले लो, आगे की आगे देखेंगे, लिविंग इन द मोमेंट। आप कुछ भी कह दें कि देखिए, 'लिविंग इन द मोमेंट वास्तव में दूसरी चीज़ है, आप उसका ग़लत अर्थ कर रहे हैं।‘ मैं कहूँगा, मैं उसका प्रचलित अर्थ कर रहा हूँ। आम आदमी के लिए और क्या मतलब है लिविंग इन द मोमेंट का, बताइए?

लिविंग इन द प्रज़ेन्ट का वास्तविक अर्थ जो भी होता होगा वो अलग चीज़ है, उस पर मैंने भी बोला है कि 'प्रज़ेन्ट' वास्तव में क्या होता है? वो बिलकुल दूसरी चीज़ है। मैं जो आज के कल्चर में, आज की संस्कृति में चीज़ चल रही है कि आज जी लो, खुलकर जी लो, मैं उसकी बात कर रहा हूँ।

लिविंग इन द प्रज़ेन्ट का अगर कोई आध्यात्मिक अर्थ है तो वो अलग होगा और वो जो भी है उसकी बात हम अलग कर चुके हैं। लेकिन जब आप किसी विज्ञापन में देखते हो, ओ येस! अभी, तो इसका क्या मतलब होता है? बोलिए, क्या मतलब होता है? इन्सटेन्ट ग्रेटिफिकेशन (तत्काल सन्तुष्टि), इन्सटेन्ट ग्रेटिफिकेशन। अभी जल्दी-जल्दी करो न, जल्दी करो न, ये लोभी आदमी का, ये सेक्चुअली इस्टिम्यूलेटेड (यौन उत्तेजित) आदमी का वक्तव्य है। ओ येस अभी और यही काम आपसे ये सब कम्पनियाँ करवा रही हैं, वो कोई नयी चाल नहीं चल रही हैं। काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ आज केपिटिलिज़्म (पूँजीवाद) ने नहीं आविष्कृत कर दी हैं। ये बहुत पुराने हैं।

पूँजीवाद और भोगवाद बस आपकी पुरानी वृत्तियों का फ़ायदा उठा रहे हैं। ये बाय नाओ पे लेटर हो या कि क्रेडिट कार्ड डैट हो। अमेरिका की सिर्फ़ क्रेडिट कार्ड डैट इतनी है कि उसको जब प्रदर्शित किया जाता है तो एज़ परसन्टेज ऑफ़ यूएस जीडीपी (अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में) बताया जाता है। वो ये नहीं बताया जाता कि इतने बिलियन डॉलर हैं या इतने ट्रिलियन डॉलर हैं। वो बताया जाता है कि अमेरिका की जो क्रेडिट कार्ड डैट है वो एक्स परसेन्ट ऑफ़ यूएस जीडीपी है। इतनी बड़ी है। क्यों? क्योंकि अमेरिका से ही ये मूर्खतापूर्ण और खतरनाक जुमला निकला है, ‘लिव इन द मोमेंट।'

कोई बोधवान आदमी जब बोलता है न कि, 'आगे की आगे देखेंगे तो उसका आशय होता है 'निष्काम कर्म' कि सही काम करो, फ़ल की चिन्ता मत करो। आगे का आगे देखेंगे, जो भी फ़ल आएगा कोई बात नहीं।' ये बोधवान व्यक्ति का वक्तव्य है, लेकिन जब एक कामी आदमी, लोभी आदमी बोलता है,'आगे की आगे देखेगें।' तो वो ये कह रहा है कि, 'मुझ पर इस वक्त इच्छा ने, कामना ने, वासना ने ऐसा ज़ादू डाला हुआ है कि मैं परवाह नहीं करना चाहता कि मेरा अंजाम क्या होगा। मुझे तो बस इस पल भोग लेने दो, आगे जो भी होगा, मैं इस पल बस किसी तरीक़े से ये चीज़ पाना चाहता हूँ।'

कोई फ़लाना फर्नीचर दिख गया, अब वो लग रहा है आह! आह! क्या है, क्या है, क्या है? दिख रहा है कि बहुत महँगा है, ये भी दिख रहा है कि ज़बरदस्ती का महँगा है,लेकिन उस पर वो स्कीम लगी हुई है कि अभी ले लीजिए पे इन ऐट ईज़ी ईएमआई तो एकदम मन मचल-मचल गया और मन मचल जाएगा ये कोई नयी चीज़ नहीं हुई है, मन का ये मचलना उतना पुराना है, जितने पुराने डायनासोर हैं और गोरिल्ला हैं। उन सबका भी मन ऐसे ही बिलकुल मचला करता था। आप बन्दर को अमरूद दिखाइए, देखिए, वो बिलकुल मचल जाता है या नहीं?

ये ज़ानवरों की हरक़त है। ऐसी चीज़ें मत खरीदो जो कर्ज़े पर ख़रीदनी पड़ें और अगर कर्ज़ लेना है तो सौ बार अपनेआप से पूछो कि, 'क्या मेरे पास कोई समुचित कारण है?' सौ बार लगातार जबाव आये, हाँ है, हाँ है, हाँ है तो ले लो फिर कर्ज़। नहीं तो कर्ज़ मत उठाओ। कुछ अगर इतना ही आवश्यक लग रहा है कि होना ही चाहिए अपने पास तो उसके लिए पहले पैसा जोड़ो, बाज़ार के शिकार मत बनो।

गलत जगह पैसा लुटाने का बड़ा दुष्परिणाम ये होगा कि जहाँ तुम्हें वास्तव में खर्च करना चाहिए, वहाँ के लिए तुम्हारे पास कुछ बचेगा नहीं। जो बात तुमनें उठाई वो वृत्ति हम सिर्फ़ बाज़ार में नहीं दिखाते, अपने रिश्तों में भी दिखाते हैं, अपनी शिक्षा में भी दिखाते हैं, अपने जीवन के हर निर्णय में दिखाते हैं, क्योंकि हर जगह पर निर्णय करने वाले तो हम ही हैं न? और हमारा निर्णय झुका होता है, किस दिशा में? इन्सटेन्ट ग्रेटिफिकेशन की दिशा में।

सुख का शिकार न बनना, सुख की आकाँक्षा को आगे धकेल देना, ये मनुष्य की निशानी है, ऊँचे मनुष्य की। पशु कौन? सुख ही जिसका पाश है, वो पशु। जिसको सुख दिखाकर फँसाया जा सकता हो, वो पशु। हाथी कैसे पकड़ लेता है आदमी? आदमी छोटा सा, हाथी इतना बड़ा, हाथी पकड़ में कैसे आ जाता है? गन्ने का जाल बिछाया जाता है।

हाथी जानते हो न कैसे फँसता है? (सत्र प्रतिभागियों से पूछते हुए) गन्ने का पूरा एक जाल बिछा दिया जाता है, उस जाल के नीचे क्या होता है? गड्ढा। फँस गया, सुख का जाल बिछाया, ज़ानवर फँस गया। और शॉपिंग मॉल में भी सुख का जाल बिछाया, ज़ानवर फँस गया, बड़ा ज़ानवर हो, छोटा ज़ानवर हो। चिड़िया भी कैसे फँसती है? चिड़िया कैसे फँसी? दाना डाला, चिड़िया फँसी अब जीवनभर पिंजड़े में रहेगी, वैसे ही थोड़ी सी माया दिखाई, महिला फँसी। अब ज़ीवनभर पिंजड़े में रहेगी, लेकिन वो क्षण नहीं टाला गया जब माया पूरे आकर्षण के साथ आप पर आक्रमण कर रही थी, वो क्षण नहीं टाला गया।

एक पल ही तो टालना होता है, मुझे मालूम है वो पल बड़ा सशक्त होता है। वो पल बड़ा भारी पड़ता है, ऐसे पलों को टालना सीखो, यही साधना है। जब कोई चीज़ बहुत ललचा रही हो, लुभा रही हो, चित्त पर छा रही हो, उस पल को टालना सीखो। उस पल को टालने में थोड़ा कष्ट होगा लेकिन अगर उस पल के शिकार बन गये तो बहुत लम्बा कष्ट होगा। सही कष्ट चुनो। लालच का आवेग थोड़ी देर रहता है, उसका अंजाम बहुत लम्बा रहता है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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