पाकिस्तान के पागलपन की वजह: दो राष्ट्र सिद्धान्त (Two Nation Theory)

Acharya Prashant

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पाकिस्तान के पागलपन की वजह: दो राष्ट्र सिद्धान्त (Two Nation Theory)
भारत का विभाजन हुआ था राजनीतिक तौर पर। मोहम्मद अली जिन्ना का यही तर्क था। वो कहते थे कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग कौमें नहीं हैं, ये दो अलग-अलग राष्ट्र हैं। कहते थे कि ये लोग बिल्कुल अलग-अलग हैं। और चूँकि ये अलग-अलग राष्ट्र हैं, इसलिए इन्हें अलग-अलग राज्य भी बना देना चाहिए।" तो राष्ट्र किस आधार पर? चुन लिया कि धर्म के आधार पर हम चुनेंगे। और जो आप कह रहे हैं कि जड़ उसकी — यही लड़ाई है — आज तक। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

अंकित त्यागी: नमस्कार, एनडीटीवी की विशेष पेशकश में एक बार फिर से आपका स्वागत है। मेरे साथ एक बार फिर लेखक, दार्शनिक, आईआईटी-आईआईएम के पासआउट, आचार्य प्रशांत जी हैं। आज ज्वलन्त मुद्दों पर बात करने के साथ-साथ उनकी कुछ जो किताबें हैं और उनमें इस वक्त में, जो किताब अपने हाथ में पकड़ा हुआ हूँ — “भारत आध्यात्म, दर्शन और राष्ट्र” — उससे कैसे तार्किक, अभी जो स्थितियाँ बन रही हैं देश में, या जिस तरीके की घटनाएँ हो रही हैं, उसे जोड़ के कुछ चीज़ें, क्योंकि बड़ी इंटरेस्टिंग हैं। मैंने किताब पढ़ी और उसमें कुछ जो सवाल निकल कर आते हैं, मैं कोशिश करुँगा उसका जवाब आचार्य प्रशांत जी से आज लिए जाए।

आचार्य प्रशांत: जरूर।

अंकित त्यागी: मैं सबसे पहले, क्योंकि हम जब इस पर बात कर रहे हैं, तो भारत-पाकिस्तान के बीच में काफी तनाव रहा है, और स्थिति अब धीरे-धीरे शायद दोबारा थोड़ी शांति की तरफ बढ़ रही है। लेकिन तीन-चार दिन काफी तनाव भरे रहे। उसको लेकर मैं शुरू करना चाहता हूँ, आपके नजरिए से समझना चाहता हूँ कि ये जो दोनों देशों के बीच में तनाव हुआ, या जिस तरीके से बिल्कुल युद्ध जैसी एक स्थिति बन गई — आप उसे किस तरीके से देखते हैं? क्या ये एक कन्टिन्युअस प्रोसेस, एक साइकिल का हिस्सा है, या किस तरीके से आप उसको देखते हैं?

आचार्य प्रशांत: देखिए, युद्ध हमको दिखाई अभी दे रहा है कि 2025 में हो गया है, या '99 में हमें कारगिल दिखाई दिया था। युद्ध लगातार चलता रहा है। और युद्ध के पीछे जो कारण हैं — हम कह सकते हैं कि कश्मीर कारण है, या सिंधु नदी का पानी कारण है, इंडस वॉटर ट्रीटी, या कच्छ में कुछ है वो कारण है, या जो और व्यापक जियोपॉलिटिक्स है, वो कारण है — नहीं, वो कारण नहीं हैं।

आपने कहा दो देश — ये दो देश नहीं हैं, दो राष्ट्र हैं। और ये दो राष्ट्र बिल्कुल अलग-अलग बुनियादों पर बने हैं। इनके आधार अलग हैं, और ये आधार एक दूसरे के साथ कोई मेल, कोई सामंजस्य, कोई एडजस्टमेंट कर नहीं सकते। तो इस कारण मैंने कहा कि युद्ध तो लगातार चलता ही रहा है। और युद्ध 1947 के बाद से ही नहीं, लगातार चलता रहा। युद्ध उसी दिन शुरू हो गया था, जिस दिन टू नेशन थ्योरी दी गई थी।

दी गई थी या कि स्वीकार कर ली गई थी — युद्ध उसी दिन शुरू हो गया था। तो जब तक ये जो दो राष्ट्रों का सिद्धांत है, इसको पूरे तरीके से नकार नहीं दिया जाता, इसकी व्यर्थता, इसका झूठ सामने ला नहीं दिया जाता, और दोनों ही जो अभी देश हैं, उनकी आम जनता द्वारा ये स्वीकार नहीं कर लिया जाता कि ये टू नेशन थ्योरी झूठी है — तब तक युद्ध चलता रहेगा।

कभी वो युद्ध दिखाई देगा, जैसे अभी है — वो प्रकट हो गया, गोलियाँ चल गईं, लोग मर गए, न्यूक्लियर थ्रेशोल्ड आने की स्थिति बन रही थी — तो कभी तो वो युद्ध दिखाई देगा, और कभी ऐसा हो जाएगा कि युद्ध दिखाई नहीं दे रहा है। लेकिन एक भीतरी तनाव है, वो लगातार बना ही रहेगा। तो मैं इसको इसी तरीके से देखता हूँ। और इसीलिए जब कोई पूछता है कि इस युद्ध का समाधान क्या है, तो वो समाधान भी फिर बिल्कुल जड़ पर, बुनियाद पर जाकर ही होगा। हमें टू नेशन थ्योरी को ही एड्रेस करना पड़ेगा।

कुछ लोगों को ये बात थोड़ी अव्यवहारिक लग सकती है। वो कहेंगे, "आप बहुत दूर जा रहे हो।" नहीं, बहुत दूर नहीं जा रहे हो। जब तक ये भाव बना रहेगा कि मुसलमान उधर हैं, वो एक अलग राष्ट्र हैं — यही टू नेशन थ्योरी थी जिन्ना की, कि मुसलमान उधर हैं और वो अलग राष्ट्र हैं, और हिंदू इधर हैं और वो अलग राष्ट्र हैं, और ये दोनों म्यूचूअली इनकॉम्पैटिबल हैं — तब तक लड़ाई के अलावा विकल्प क्या है?

फिर तो आप कह रहे हो कि दो राष्ट्रों के बनने में ही, बुनियाद में ही लड़ाई बैठी हुई है। तो वो लड़ेंगे ही। आप ऊपर-ऊपर से उनमें सुलह-शांति करवा दो, मीडिएशन करवा दो, कुछ करवा दो। ट्रू सीज़फायर — ये सब ऊपर-ऊपर चलता रहेगा। नॉर्मल सी — ये ऊपर चलती रहेगी। नीचे-नीचे जो है, वो राख से दबे अंगारे भड़कते ही रहेंगे और वो जब मौका चाहेंगे, वो बिल्कुल आग बन जाएँगे। और अब जब हम जानते हैं कि दोनों देश बिल्कुल न्यूक्लियर पावर हो चुके हैं, डेढ़-डेढ़ सौ उनके पास वॉरहेड्स हैं और लंबी दूरी की मिसाइलें हैं — सारे शहरों को ध्वस्त कर सकते हैं — तो वो टू नेशन थ्योरी और ज़्यादा खतरनाक हो जाती है।

हमने देखा, तीन दिन के भीतर ही कितना जबरदस्त, मैसिव एस्केलेशन हो गया था।

अंकित त्यागी: बिल्कुल

आचार्य प्रशांत: इतना पहले देखने को नहीं मिलता था। कारगिल की लड़ाई इतनी लंबी चली थी।

अंकित त्यागी: इकहत्तर के बाद ये सबसे बड़ा एस्केलेशन।

आचार्य प्रशांत: सबसे बड़ा, सबसे रैपिड — सबसे रैपिड। तीन दिन के अंदर इतना एस्केलेशन हो गया। आपको कारगिल याद होगा — होता रहा, लेकिन एस्केलेशन नहीं हुआ था। सीमा उधर से भी नहीं पार की गई थी, इधर से भी नहीं पार की गई थी, वहाँ पर कुछ रुका हुआ था। अभी ऐसा नहीं है।

तो अब तो और ज़्यादा ज़रूरी है — कि ख़तरा इतना बढ़ गया है कि हमें जो समस्या है, उसकी जड़ को ही संबोधित करना पड़ेगा। जड़ से ही उखाड़ फेंकना पड़ेगा। जड़ में तो ये भावना बैठी हुई है कि साहब, जो मुसलमान है, उसका हिसाब-किताब अलग है। जो हिंदू है, उसका हिसाब-किताब अलग है और ये दोनों कभी एक साथ नहीं रह सकते। हम न तो एक देश में एक साथ रह सकते हैं, और न ही ये फिर पड़ोसियों की तरह भी एक साथ रह सकते हैं। क्योंकि हमारी-तुम्हारी जब बननी ही नहीं है, तो हमारी-तुम्हारी पड़ोसियों की तरह ही कैसे बन जाएगी? कैसे बन सकती हैं?

कश्मीर समस्या के मूल में तो यही बैठा हुआ है ना। और किसी भी प्रांत पर तो पाकिस्तान दावा नहीं ठोकता। ले-दे कर के बाकी सब बातों के पीछे असली बात ये है कि कश्मीर मुसलमान बहुल है — तो इसलिए कश्मीर हमारा है। आप जाइए, वो कहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने कहा है कि वहाँ पर आप प्लेबिसाइट, जनमत-संग्रह कराइए, ये सब कराइए। कश्मीर में ही क्यों कराइए? क्योंकि उनको दिखाई देता है, कश्मीर में मुसलमान ज़्यादा हैं। और टू नेशन थ्योरी बोलती है कि मुसलमान सारे इकट्ठे रहेंगे — वो एक नेशन हैं — और हिंदू अलग रहेंगे — वो एक नेशन हैं। इन दोनों में कभी पट नहीं सकती।

तो कश्मीर भी जो समस्या बना हुआ है, वो टू नेशन थ्योरी के कारण ही बना हुआ है। बाकी बातें सब हम कह सकते हैं, वो बाकी बातें बहाने हैं, अपोलॉजीज हैं। असली बात तो यही है कि — नहीं-नहीं, धर्म अलग-अलग होते हैं। एक वो धर्म है, एक ये धर्म है, और इन दोनों धर्मों का आपस में कभी मेल नहीं हो सकता। जैसे कि पचास धर्म होते हों और जैसे धर्मों की पचास मंज़िलें होती हों।

अंकित त्यागी: जी, क्योंकि हम नेशन की अब बात कर रहे हैं। पिछली बार हमने इसी को — नेशनलिज़्म और पैट्रियोटिज़्म की हमने उस तरह बात की थी — तो आपकी किताब में, ये जो “भारत आध्यात्म, दर्शन और राष्ट्र” उसमें 56वें पेज पर जो एक मैं उसे कोट कर रहा हूँ :

"एक केंद्र तो ये हो सकता है कि साहब, हमारी ज़ुबान एक है या हमारा मज़हब एक है।"

क्योंकि आप टू नेशन थ्योरी की बात कर रहे थे और मज़हब की हम बात कर रहे थे,

“इसलिए — हम एक राष्ट्र हैं। भारत का विभाजन हुआ था राजनीतिक तौर पर। मोहम्मद अली जिन्ना का यही तर्क था। वो कहते थे कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग कौमें नहीं हैं, ये दो अलग-अलग राष्ट्र हैं। कहते थे कि ये लोग बिल्कुल अलग-अलग हैं। और चूँकि ये अलग-अलग राष्ट्र हैं, इसलिए इन्हें अलग-अलग राज्य भी बना देना चाहिए।"

तो राष्ट्र किस आधार पर? उन्होंने अपना आधार बड़ा क्लियरली चुन लिया कि धर्म के आधार पर हम चुनेंगे। और जो आप कह रहे हैं कि जड़ उसकी — यही लड़ाई है — आज तक। कुछ दिन पहले, इस जंग से भी कुछ दिन पहले, उनके जो आर्मी चीफ हैं, आसिफ मुनीर — उन्होंने भी यही बात दोहराई थी कि "हम बिल्कुल अलग हैं। वो क़ौम अलग है। हम बिल्कुल अलग हैं।"

तो इसका समाधान? मतलब — उनकी आइडेंटिफिकेशन बिल्कुल है। हमारी आइडेंटिफिकेशन क्या भी इसी आधार पर होनी चाहिए?

आचार्य प्रशांत: नहीं, देखिए — उनकी जो आइडेंटिफिकेशन है, वो बिल्कुल गलत है, सतही है। उन्हें धर्म समझ में ही नहीं आया है। टू नेशन थ्योरी फ्लॉड है क्योंकि उसके मूल में इग्नोरेंस है, अज्ञान है। आप जानते ही नहीं हो धर्म क्या है। आप ये कह रहे हो कि — एक इंसान है, उसके ऊपर आपने मुसलमान का लेबल लगा दिया, तो उसकी ज़िन्दगी का मक़सद कुछ और हो जाता है। और एक इंसान है, उसके ऊपर हिंदू, ईसाई, यहूदी, सिख — कोई और लेबल लगा हुआ है — तो उसकी ज़िन्दगी का मक़सद कुछ और हो जाता है। जैसे कि इंसान और इंसान अलग-अलग पैदा होते हों। जैसे कि हमारी सेल्स, हमारा डीएनए अलग-अलग होता हो। जैसे हमारे दुख अलग-अलग होते हों। जैसे हमारी चाहतें अलग होती हों।

हर इंसान चाहता यही है ना कि दुखी ना रहे। हर इंसान यही चाहता है कि वो क़ैद में ना रहे। कोई भी इंसान मरना नहीं चाहता, तो कह रहे हैं — इंसान, हर इंसान में मूलभूत समानता होती है। उस समानता को दरकिनार करके, टू नेशन थ्योरी कहती है कि इंसान और इंसान में मूलभूत अंतर होते हैं। वो अंतर इंसान के बनाए हुए हैं। समानता प्राकृतिक है, नैसर्गिक है, ओरिजिनल है, नेचुरल है। नेचुरल जो है, ओरिजिनल है — हम उसकी बात नहीं करना चाहते। जो मैनमेड डिफरेंसेस हैं, हम उनकी बात करना चाहते हैं। और हम कह रहे हैं कि मैनमेड डिफरेंसेस इतने ज़रूरी, इतने इंपॉर्टेंट हो गए कि — "आप एक अलग नेशन हो गए, मैं एक अलग नेशन हो गया। क्योंकि आपने जो पहन रखा है, उसका जो रंग है — वो हरा है, और मैंने जो पहन रखा है, इसका रंग जो है — वो कत्थई है या गेरुआ है।"

ऐसे नहीं होता है, भाई। एक मुसलमान है — आप उसको ले जाकर क़ैद में डाल देंगे, वो भी तड़पेगा। एक मुसलमान है — उसकी भी चाहतें होती हैं, उसके भी अरमान होते हैं। और हिंदू है — वो भी किसी दैवीयता की इच्छा रखता है। वो भी मुक्ति की कामना रखता है। आपको अंतर ही अंतर दिखाई दे रहे हैं — आपको समानताएँ नहीं दिखाई दे रही हैं, तो घर होते हैं, बीवी होती है, बच्चे होते हैं। मुसलमान की बीवी मर जाए — वो भी रोएगा, हिंदू की मर जाए, वो भी रोएगा।

बच्चे से ममता एक मुसलमान स्त्री को भी होती है, एक हिंदू स्त्री को भी होती है। मोह में, भ्रम में, काम में, क्रोध में, माया में मुसलमान भी फंसता है, हिंदू भी फंसता है। तो मुझे आप ये बताइए कि आपको अंतर ही अंतर दिखाई दे रहे हैं। मुझे तो समानता दिखाई दे रही है और जो अंतर है, वो मैनमेड है, कृत्रिम है। इंसान का बनाया हुआ है। हम आप बात समझ रहे हैं?

अंकित त्यागी: बिल्कुल।

आचार्य प्रशांत: आपके सामने एक मुसलमान आ जाए और उसका गेटअप मुस्लिम जैसा ना हो, तो आप बता भी ना पाएँ कि ये मुस्लिम है। आपके सामने एक हिंदू आ जाए, वो हिंदू होने के लक्षण प्रकट ना करे, तो आप बता भी ना पाएँ कि वो हिंदू है। तो हम लक्षणों के आधार पर थोड़े ही भेद कर लेंगे या बंटवारा कर लेंगे? हम लक्षणों के नीचे जो सच्चाई है, हम उसकी बात करेंगे ना।

हर इंसान पैदा हुआ है लिबरेशन के लिए। कोई भी व्यक्ति अगर पैदा हुआ है, तो उसके जीवन का एक ही उद्देश्य है कि अज्ञान में पैदा हुआ हूँ, मैं नहीं जानता मैं कौन हूँ। एनिमल इंसटिंक्ट हैं जो मुझ पर राज करती हैं, और ज़िन्दगी मुझे इसलिए मिली है ताकि इन एनिमल इंसटिंक्ट से और सोशल प्रेशर्स और सोशल कंडीशनिंग से लिबरेट होकर, मुक्त होकर, आज़ाद हो के, मैं एक आनंदित जीवन जी सकूँ — वेदांत में इसको जीवनमुक्त की अवस्था कहते हैं। ये हर इंसान के जीवन का उद्देश्य है, चाहे वो आस्तिक हो, चाहे वो नास्तिक हो, चाहे वो इस पंथ पर चलता हो, कि उस धारा पर चलता हो।

तो हमें तो समानता दिख रही है, और टू नेशन थ्योरी कहती है, नहीं, इंसान और इंसान बिल्कुल अलग हैं और ये कहकर आपने उन्हें अलग कर भी दिया। और जब उनको आपने ये जता ही दिया, आपने उनसे ये मनवा ही दिया कि वो अलग-अलग हैं, तो जब वो अलग-अलग हैं, तो लड़ेंगे भी ना। ऐज़ लॉन्ग ऐज़ देयर इज़ अ टू-नेशन थ्योरी, दीज़ कॉन्फ्लिक्ट्स, स्ट्राइफ़ विल रीमेन इनइविटेबल, इनएक्सॉरेबल। आप लड़ाई नहीं रोक पाओगे, आप स्वत ही शांति ला पाओगे अधिक से अधिक।

अंकित त्यागी: इसमें अगर आपसे ये पूछूँ कि आध्यात्म के हिसाब से और एक थ्योरी के हिसाब से आप जो कह रहे हैं, वो सुनने में बिल्कुल ठीक लगता है, लेकिन व्यावहारिक तौर पर, ख़ासतौर से तब जब हम अभी हमने देखा कि कितना, जैसे आपने खुद कहा, तीन दिन में इतना तगड़ा एस्केलेशन शायद कभी नहीं हुआ। लोग कहेंगे, व्यावहारिक तौर इसको जीवंत कैसे किया जाए? कैसे जिया जाएगा? जब एक तरफ मान के बैठा ही हुआ है कि हमारी आइडेंटिटी एज़ अ नेशन ही आपसे अलग है। और हम तब तक, अनंत काल तक लड़ाई करते रहेंगे।

आचार्य प्रशांत: अनंत काल तक लड़ाई करते, घास-फूस खाएँगे लेकिन सर नहीं झुकाएँगे, एंड वी विल ब्लीड यू थ्रू अ थाउज़ैंड कट्स, भुट्टो टॉक्ड ऑफ अ थाउज़ैंड ईयर वॉर। ये सब बातें करते हैं।

देखिए, इसका समाधान ये है कि धर्म जो होता है ना, इधर हम 'धर्म' कहते हैं, उधर 'मज़हब' कहते हैं, उसके बाहरी छिलकों को अगर हटा दिया जाए, तो भीतर जो बात है, वो एक ही निकलती है। जो बाहरी छिलके हैं, वो अलग-अलग तरह के होते हैं। कहीं कठोर होता है, कहीं मुलायम होता है, कहीं एक रंग का होता है, कहीं दूसरे रंग का होता है। कहीं बात नारियल जैसी होती है, कहीं बात संतरे जैसी होती है। वो अलग हैं, क्योंकि सब धर्मों का जो इतिहास होता है, वो एक अलग-अलग दिशा से बहकर के आया होता है। कहीं कोई अरब में पैदा हो रहा है, कोई चीन में उठ रहा है, कोई वेस्ट एशिया में पैदा हो रहा है, कोई हिंदुस्तान की धरती से जो इंटेलिजेंस निकले हैं, वो तो बिल्कुल ही अलग हैं, अद्भुत।

तो वो जो बाहरी बातें होती हैं, जो टाइम-डिपेंडेंट होती हैं, जो काल-सापेक्ष होती हैं, सब धर्मों में वो अलग-अलग होती हैं। और जो लोग धर्म में अंदर तक नहीं जाते, वो छिलके-छिलके देखते हैं और कहते हैं कि मेरा छिलका तेरे छिलके से अलग है, इसीलिए मैं और तू कट्टर दुश्मन हो गए। क्योंकि साहब, आपका रंग और मेरा रंग तो देखिए अलग-अलग तो है ही, तो हमारा आप कट्टर दुश्मन हो गए।

इन रंगों के भीतर एक ही दिल धड़क रहा है। वो हमें तब ना दिखाई दे, जब हम दिल तक जाने की हिम्मत दिखाएँ।

हम में वो हिम्मत नहीं होती है। हम सतहों पर जीने वाले जीव हैं। चाहे उधर पाकिस्तानी हो, चाहे हिंदुस्तानी हो, ज़्यादातर लोग ज़िंदगी की सतह पर, सरफेस पर जीते हैं, सूपरफ़िशियली तो इसीलिए हमें बस अंतर दिखाई देते हैं।

जो इंसान धर्म के केंद्र में प्रवेश करेगा साहस के साथ, साधना के साथ और प्रेम के साथ, वो बिल्कुल उसी जगह पहुँच जाएगा जहाँ कोई भी दूसरा व्यक्ति, जो अपने धर्म के केंद्र में प्रवेश करता है, और फिर वहाँ पर समानता है। मैं इसीलिए वेदांत को द ग्रेट यूनिफायर बोला करता हूँ, क्योंकि उसने हमें एक ऐसा शब्द दिया है, एक ऐसी जगह दी है — सुविधा के लिए मैं बोल दूँगा — ऐसा सिद्धांत दिया है। हालाँकि वो सिद्धांत नहीं है — द सेल्फ, आत्मा, द सेल्फ — जहाँ कोई भेद नहीं है।

सारे जो भेद हैं, वो ऊपर-ऊपर होते हैं। सारे भेद जो हैं, वो — वो जो प्रकृति का क्षेत्र है — द डोमेन ऑफ मैटेरियल नेचर — सारे भेद वहाँ पर होते हैं। जो सेल्फ है, आत्मा, वहाँ कोई भेद नहीं होता। तो उधर चाहे सेल्फ हो, कि इधर की सेल्फ हो, कि कहीं का सेल्फ हो — सेल्फ एक है। तो एकत्व हो गया, यूनिटी आ गई, यूनिफायर हो गया वेदांत।

तो जब तक हम धर्म की बिल्कुल उस जड़ तक नहीं पहुँच जाते कि जहाँ पर आत्म हो और वो प्योर सेल्फ होता है। प्योर सेल्फ मतलब, जिस पर समाज की कंडीशनिंग नहीं हुई है, जिस पर किसी किताब की कंडीशनिंग नहीं चढ़ी हुई है, जिस पर — "मैं किसी जगह पर रहता हूँ, उस क्षेत्र की, उस रीजन की रस्मों और रिवाज़" — ये सब नहीं चढ़े हुए हैं — द प्योर सेल्फ, द रियल मी। वो जो रियल मी है, वो सबका एक जैसा होता है। फिर वहाँ पे यूनिटी आ जाती है।

फिर आप जब कहने लग जाते हो — नहीं-नहीं, बाकी बातें बाहरी हैं, मेरा उनसे आइडेंटिफिकेशन नहीं है। मेरा जिस चीज़ से आइडेंटिफिकेशन है, वो है द प्योर सेल्फ। तो फिर उसमें डिफ़रेंसेस कैसे रहेंगे? क्योंकि डिफ़रेंसेस से अब मैं आइडेंटिफ़ाई कर ही नहीं रहा।

अंकित त्यागी: वापस आपकी किताब पे आपको ले चलता हूँ। और राष्ट्र की, क्योंकि हम बात कर रहे हैं। राष्ट्रवाद की भी हमने पिछली बार बात की थी। मैं इसमें से ही कोट करके आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूँ। राष्ट्रवाद के दूसरे पक्ष पर थोड़ी सी और चर्चा करते हैं। इसमें आपने जो लिखा हुआ है कि — “दूसरा पक्ष समझना बहुत ज़रूरी है। एक अलग तरह का राष्ट्रवाद भी हो सकता है, जब एक जन-समुदाय बोले कि — हम एक से इसलिए हैं क्योंकि हमें सच्चाई पर चलना है।” हम तक धर्म की आइडेंटिफिकेशन की बात कर रहे थे, अब हम ट्रुथ के आइडेंटिफिकेशन की बात कर रहे हैं।

तो क्या सच और मुक्ति जैसे मूल्यों पर आधारित भी राष्ट्रवाद हो सकता है?

आचार्य प्रशांत: होना चाहिए। और अगर आप भारत का संविधान देखेंगे तो हमने ऐसा ही राष्ट्र बनाना चाहा है — जो कि बँटे हुए सामुदायिक मूल्यों पर या जो एफेमेरल हमारी इम्पल्सेस होती हैं, काल-सापेक्ष बातें — हम उन पर आधारित कोई राष्ट्र बनाना नहीं चाहते। हम ऐसा राष्ट्र बनाना चाहते हैं जो इटरनल वैल्यूज़ पर आधारित हो। और वैसा ही राष्ट्र चल सकता है।

नहीं तो जो राष्ट्र बनेंगे, वो फिर वैसे जैसे नाज़ी जर्मनी जैसे होंगे। एक नेशन उन्होंने भी बनाया था। वो नेशन किस बात पे आधारित था? द आर्यन सुप्रीमेसी। वो बोलते थे — हम आर्यन्स हैं, ब्लॉन्ड हेयर, नीली आँखें — वी आर अ सुपीरियर रेस। एंड ऑल ऑफ अस आर हेंस टुगेदर बिकॉज़ वी आर सुपीरियर कम्पेयर टू द अदर्स।

इसी तरीक़े से — पाकिस्तान और बांग्लादेश — हम इकट्ठे हैं क्योंकि हम सब मुस्लिम हैं। वो चला नहीं ना? इकहत्तर में बँट गया ना बांग्लादेश। तो जो भी नेशनहुड के ऐसे छिछले, फ्लिमज़ी आधार होते हैं, वो दूर तक जाते नहीं। और वो जब तक बने रहते हैं, तब तक भी उनसे भारी हिंसा होती है।

असली नेशन तो वही होता है — नेशन माने: मैं हूँ, आप हों, ये हैं, ये हैं — और हम सब किसी बेसिस पर जुड़े हुए हैं। देन वी टुगेदर कॉल अवरसेल्व्स अ नेशन। हम सब किस बेसिस पर जुड़े हुए हैं?

एक ये हो सकता है कि — साहब, हम सब अमीर हैं, तो हमारा अमीरों का राष्ट्र है। तो जितने ग़रीब हैं, वो सब एक्सक्लूडेड हैं। "तुम बाहर निकलो। हम और हम।" हमें उनसे नफ़रत भी है, और हम उनका शोषण भी कर सकते हैं। एक ये नेशन हो सकता है। एक ये हो सकता है कि — साहब, हम सब एक ऊँचे वर्ण के हैं, या हम सब एक ख़ास डीएनए के हैं, हमारा एक ख़ास रक्त है, ये हमारी एक बोली है। ये तक हो सकता है कि हमारी ऐसी फ़ूड हैबिट्स हैं — हेंस वी आर, यू नो, वन — देयर इज़ समथिंग दैट बाइंड्स अस टुगेदर।

नाउ, द थिंग — वो जो चीज़ है, वो जो सूत्र है जो हमें एक में पिरोता है (दैट बाइंड्स अस टुगेदर) — वो बहुत ऊँचा होना चाहिए। वही मैंने वहाँ किताब में कहा है — कि वो होना चाहिए: "आपको भी सच्चाई से प्यार है, मुझे भी सच्चाई से प्यार है। आप भी बर्दाश्त नहीं कर सकते हो कोई आपको गुलाम बनाए, मैं भी बर्दाश्त नहीं कर सकता कि मुझे कोई गुलाम बनाए। तो इसलिए — हम और हम — भाई-भाई हो गए। अब हम कह सकते हैं — वी हैव अ कॉमन नेशनलिटी, वी आर वन नेशन। तो ये जो फिर नेशनहूड का आधार होता है — ऊँचा, प्यारा।

ये जो नेशन बनता है, ये अपने लिए भी अच्छा होता है, पूरी दुनिया के लिए भी शुभ होता है। लेकिन जब आप किसी फ्रैगमेंटेड आधार पर, डिवाइडेड आइडेंटिटी पर नेशन बनाते हो — जैसे कि पाकिस्तान बना, कि साहब हम सब मुस्लिम-मुस्लिम हैं, हम इकट्ठे रहेंगे — इकट्ठे रह भी नहीं पाए, बांग्लादेश अलग हो गया। तो वो कोई बहुत अच्छी बात नहीं होती है।

आप दुनिया भर से लड़ते रहते हो। आप देखिए, पाकिस्तान के जितने बॉर्डर्स हैं, पहलगाम से पहले उसमें सबसे जो शांत बॉर्डर था ना, वो इंडियन बॉर्डर था बिल्कुल।

पाकिस्तान की सबसे लड़ाई है। अभी तो भारत ने पाकिस्तान में घुस के मारा है उससे पहले, इसी साल ईरान ने घुस के मारा था। और अफगानिस्तान से तो उनका लगातार अब चल ही रहा है लफड़ा-झगड़ा। जब से अमेरिका ने छोड़ा है तब से, उसके बाद से ये कहते हैं कि टीटीपी का जिम्मेदार अफगानिस्तान है।

अंकित त्यागी: और वहाँ तो मुस्लिमहुड काम नहीं आती।

आचार्य प्रशांत: ईरान में भी मुस्लिम हैं, अफगानिस्तान में भी मुस्लिम हैं। तुम्हारी वहाँ क्यों लड़ाई चल रही है उनसे?

तो ये जो आधार ही है ना — कि हम मुसलमान-मुसलमान हैं, तो ‘वी आर टुगेदर एंड वी आर वन नेशन’ — ये दूर तक नहीं जाता। और ये भी इसीलिए फिर दूर तक नहीं जाएगा कि “हम सब हिंदू हैं तो हम सब एक हैं, हमारा हिंदू राष्ट्र बनेगा।” वो भी दूर तक नहीं जाएगा। जो राष्ट्र की सही अवधारणा, सही आधार है, वो तो यही हो सकता है: “यू आर कमिटेड टू फ्रीडम एंड ट्रुथ, एंड आय टू एम कमिटेड टू द फ्रीडम एंड ट्रुथ।”

आप जो डिग्निटी ऑफ इंडिविजुअल है, आप भी उसके प्रति समर्पित हैं, डिवोटेड हैं, मैं भी हूँ। आप भी मानते हो कि लिंग के आधार पर, कास्ट, क्रीड, रेस, कलर, एथनिसिटी — इन आधारों पर भेदभाव नहीं होना चाहिए, और मैं भी मानता हूँ कि रंगभेद, लिंगभेद नहीं होना चाहिए।

तो हम और आप एक राष्ट्र हैं। हम में कुछ साझा हो गया। और यही फिर जो राष्ट्र बनता है, ये मैंने कहा सबके लिए अच्छा होता है।

अंकित त्यागी: मैं, क्योंकि इस एपिसोड में समय कम होगा। अलग कैसे है भारत फिर? मैं ये समझना आपसे चाहता हूँ — तो भारत की जो महानता है, वह सिर्फ़ इस वजह से है कि हम भारत में पैदा हुए हैं? या भारत के लोगों से है? किस बात से भारत अलग है?

आचार्य प्रशांत: नहीं, नहीं। भारत अलग ऐसे है कि भारत कोई अलगाव मानता नहीं।

आप अगर पाकिस्तान में जाएँगे, तो वहाँ जो हिंदू है, वो सेकंड क्लास सिटिज़न है। वहाँ अलगाव माना गया है। आप पाकिस्तान में जाएँगे, तो आज भी वहाँ पर पुरुषों और स्त्रियों के लिए अलग-अलग कानून हैं। वहाँ अलगाव माना गया है। भारत ने अलगाव माना नहीं है।

ये 47 से पहले पाकिस्तान हमारा ही हिस्सा था, बांग्लादेश हमारा ही हिस्सा था। लेकिन आप देखिए कि वहाँ पर अभी जो व्यवस्था चल रही है, जो विधान चल रहा है, वो भारत के विधान से कितना ज्यादा अलग है। इसलिए भारत अद्भुत है। भारत अलग इसलिए है क्योंकि भारत अलगाव मानता नहीं।

अब देखिए, अभी पोप बने हैं — अब वो अमेरिकन बन गए — ये कितनी बड़ी बात मानी गई। क्योंकि बनते ही नहीं थे। अफ्रीकन अभी भी नहीं बने कोई। बिल्कुल, वहाँ बहुत अलगाव माना जाता है।

भारत में हम कहते हैं कि हमारे दर्शन के, हमारे अध्यात्म के जो ऊँचे से ऊँचे मूल्य रहे हैं, वो सब लाकर के हमने अपने संविधान में डाल दिए हैं। हमारे यहाँ चीफ जस्टिस अभी कौन बने हैं?

अंकित त्यागी: गवाई साहब।

आचार्य प्रशांत: और वो क्या हैं?

अंकित त्यागी: सेकेंड — एससी।

आचार्य प्रशांत: सेकेंड — दलित हैं वो। है ना? ये चीज़ अमेरिका में बहुत मुश्किल से होती है, होनी बाकी है। अमेरिका में आज तक कोई महिला रास्ट्रपति हुईं?

अंकित त्यागी: नहीं बन पाए, बिल्कुल।

आचार्य प्रशांत: ना वहाँ महिला ऊपर पहुँच पाती है, राष्ट्रपति बन पाती हैं। वहाँ से पोप भी अभी पहली बार बन रहे हैं। भारत में चीफ जस्टिस, भारत में राष्ट्रपति, हेड ऑफ स्टेट — आज से 50 साल पहले, 60 साल पहले, हमने महिला को वो दर्जा दे दिया था।

वहाँ पर अश्वेतों को वोट देने का भी अधिकार कम मिला है? वेरी रेसेंटली। भारत ने अलगाव नहीं माना। इसलिए भारत अलग है। भारत ने अलगाव क्यों नहीं माना? क्योंकि भारत आत्मा की एकता को जानता है।

भारत कहता है — जितने अंतर हैं ना — हैं अंतर, बिल्कुल अंतर है। आपकी हाइट मेरी हाइट से अलग है। आपका वज़न मेरे वज़न से अलग है। आपकी उम्र मेरी उम्र से अलग है। आपका बैंक अकाउंट मेरे बैंक अकाउंट से अलग है। आपका इतिहास मेरे इतिहास से अलग है। अंतर हैं। पर वो सारे अंतर ऊपर ही हैं। बहुत सारे हैं, पर बहुत कम महत्त्व के हैं।

बहुत सारे अंतर हैं, पर उन बहुत सारे अंतरों का महत्त्व बहुत कम है। महत्त्व उस चीज़ का है जो भीतरी है — और जहाँ कोई अंतर नहीं है। भारत ने उसको सम्मान दिया है।

उसी को कहा है — सत्य। उसी को कहा है — आत्मा। उसी को कहा है — “प्रज्ञानम् ब्रह्म।अयम् आत्मा ब्रह्म।”

तो इसलिए भारत अलग है। भारत ने अंतरों को महत्त्व नहीं दिया है। भारत ने एकत्व को महत्त्व दिया है। ये नहीं कि भारत को पता नहीं कि अंतर होते हैं — अंतर तो होते हैं, विविधता है, डायवर्सिटी है। हम जानते हैं अंतर हैं। हम कहते हैं — अंतर हैं, पड़े रहने दो अंतरों को। मैं ध्यान उस चीज़ पर दूँगा जो मुझ में और तुझ में साझी है। इसलिए भारत अलग है और जब तक भारत की ये बात पूरा विश्व नहीं अपना लेता — पूरे विश्व में युद्ध की आग लगी ही रहेगी।

अंकित त्यागी: ये कमाल की बात है और शायद यही — हमने जो राष्ट्र की बात की थी, जो अलग शुरुआत की थी — इसी से, कैसे टू नेशन थ्योरी और भारत में… इसी लाइन पर हम एंड करते हैं। क्योंकि ये कमाल की आपने एक लाइन बोली है —

कि भारत अलग इसलिए है क्योंकि वो "अलगाव" नहीं मानता। तो "अलग" और "अलगाव" के बीच का जो अंतर है वो शायद भारत समझ चुका है और इसी वजह से हम बाकी देशों से बहुत अलग हैं।

बहुत-बहुत शुक्रिया हमारे साथ जुड़ने के लिए। इस एपिसोड में बने रहिएगा। और भी इस तरह की बातें आगे के एपिसोड्स में होती रहेंगी।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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