तुम्हें तो मृत्यु पूरा ही मिटा देगी || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

Acharya Prashant

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तुम्हें तो मृत्यु पूरा ही मिटा देगी || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

प्रश्न: आपने ने कहा है, ‘जन्म लेने पर तुम नहीं जन्म लेते हो, विचार जन्म लेते हैं’। क्या इसका यह मतलब है कि मैं जन्म से पहले भी था?

वक्ता: हाँ, और ना। आप हैं, निश्चित रूप से हैं, पर वो होना, वो नहीं है जो आप अपने आपको समझती हैं। जन्म से पूर्व, मृत्यु के पश्चात, आप हैं, पर आप वो नहीं हैं, जो आप अपने आपको समझती हैं। जो आप अपने आपको समझती हैं, वो पूरा ही मर जाना है, उसमें से कुछ नहीं शेष रहेगा। सूक्ष्म शरीर नहीं शेष रहेगा। कोई सूक्ष्म शरीर नहीं बचता, कुछ नहीं बचता, मौत पूरी होती है, और मौत की पूर्णता को अच्छे से उतर जाने दीजिये, कि मैं जो कुछ अपने आपको समझता हूँ, जो कुछ मैंने कमाया है, मेरा एक-एक विचार, मेरी एक-एक वृत्ति, मेरी एक-एक पहचान, सब ख़त्म हो जाना है। मौत इतनी पूरी होती है।

जो लोग यहाँ पर उम्मीद बांध कर बैठे हैं कि कुछ बच जाएगा मौत से भी, वो अपने आपको बड़ा धोखा दे रहे हैं। मौत से कुछ नहीं बचेगा, पूरा नष्ट कर देगी। हम इसी आस की डोरी से तो टंगे हुए हैं, हम इसी डोरी से टंगे हुए हैं कि कुछ तो बच ही जाएगा, कि जैसे किसी के बीस-तीस बैंक अकाउंट हों, और उसको पता चले कि बाकी सारे तो जायेंगे और बंद हो जायेंगे, पर एक बच जाएगा। तो फिर वो क्या करेगा?

श्रोतागण: सब उसी में रख देगा।

वक्ता: वो सब उसी में रख देगा। वैसे ही ये सूक्ष्म शरीर वाली बात है, कि सब नष्ट हो जायेगा, पर वो एक बच जाएगा। तो आप अपनी सारी आशाएँ उठा कर वहाँ रख देते हैं, और उस आशा के साथ आपका अहंकार भी बचा रह जाता है। इसीलिए मैं हर बार बोलता हूँ कि कुछ नहीं बचेगा। तुम अपने अहंकार को बचाने की खातिर बार-बार बोलोगे कि ‘कुछ बचेगा’, पर कुछ नहीं बचेगा, एक पैसे का कुछ नहीं बचेगा।

एक बार नानक के पास एक आदमी आया और उसने कुछ इस तरह से अर्ज़ किया, ‘साहब, यूँ तो मैं बहुत अमीर हूँ, पर कुछ कठिनाई है, कुछ बताएँ’। नानक ने उसे वहीं रोक दिया, बोले, ‘रुक’। तो वो बोला, ‘बात तो सुनिये, कठिनाई तो मैंने बतायी ही नहीं अभी, आपने पहले ही रोक दिया’। नानक बोले, ‘आगे बढूँगा नहीं, तेरे पहले ही वचन में खोट है। तू कह रहा है कि बहुत अमीर हूँ, तेरी अमीरी कहीं दिखती ही नहीं’। तो वो बोला, ‘साहब, सब रुपया, पैसा ले कर थोड़े ही मैं फिरूँगा, कि यहाँ पर आऊँ तो दिखाऊँ आपको कि कितना अमीर हूँ। अरे मैं बहुत अमीर हूँ। इस पूरे प्रान्त में मेरा जलवा बोलता है’।

नानक ने कहा, ‘ये बात मुझे जंच ही नहीं रही है। मुझे तू अमीर लग ही नहीं रहा है’। उसने कहा, ‘ये पगला है’। नानक ने एक सुईं निकालते हुए कहा, ‘एक काम करना, तेरी जितनी अमीरी है, वो सब इस्तेमाल कर लेना, और मरने के बाद मुझे ये सुईं वापस कर देना, अपनी पूरी अमीरी का इस्तेमाल करके’। वो भी ताव में उठ गया, बोला, ‘ठीक है’।

वो आदमी जितने लोगों को भी जानता था, उन सबसे मदद मांगने लगा, सारी खुराफ़ात कर डाली। वो लोगों से कहने लगा, ‘वो आया है एक, पता नहीं कौन है, और मुझसे बोलता है कि मैं अमीर नहीं हूँ, और मुझे चुनौती दी है कि अमीर हो तो, ज़रा इस सुईं को रख लो, और मौत के बाद लौटा देना’। लोगों ने कहा, ‘बहुत पहुँचा हुआ आदमी है, पंगा मत लो। भाग कर जाओ और उसको ये सुईं अभी लौटा कर आओ क्योंकि अगर मरने से पहले ये सुईं नहीं लौटा पाये, तो ये जो एक मौका मिला है, ये मौका भी हाथ से जाएगा’।

वो भाग कर गया, सुईं रखी और बोला, ‘सब समझ गया। कुछ अमीरी नहीं है, मैं महा-गरीब हूँ। कुछ नहीं है मेरे पास’। तुम्हारे पास वही है असली में, जो मौत के पार जा सके। जब तुम मौत के पार एक सुईं भी नहीं ले जा सकते तो, काहे की अमीरी? और यहाँ लोग कहने में लगे हुए हैं, ‘नहीं, सूक्ष्म शरीर तो जाएगा’।

श्रोता १: पर अगर मेरे मन पर कुछ निशान रह जाते हैं, तो क्या वो आगे नहीं जाते हैं?

वक्ता: नहीं। क्योंकि हर निशान मात्र विचार है, और उसका संचयन भौतिक रूप में होता है, और वो भूत जल जाता है। जिसको आप निशान बोल रहे हो, वो ख़ुद एक ऐसी चीज़ है, जो है ही नहीं, वो ख़ुद एक छलावा है। आप ऐसी-सी बात पूछ रहे हो कि शरीर नहीं रहता, पर क्या छाया रहती है?

श्रोता २: गुरु गोबिंद सिंह जी ने भी ‘बच्चितर’ नाम का नाटक लिखा था, उसमें उन्होंने पुनर्जन्म की बात की है।

वक्ता: ‘पुनर्जन्म’ का अर्थ समझ लीजिये।

आप मर गए, आप राख हो गए, शरीर राख हो गया। उसी राख से एक सुन्दर फूल निकला- ये अस्तित्व पुनर्जन्म ले रहा है। पर उस फूल में ‘आप’ जैसा कुछ नहीं है। उसका न तो आपसे दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध है, न आपके निशान उस फूल में हैं। ये अस्तित्व है, जो पुनर्जन्म ले रहा है। बात आ रही है समझ में?

श्रोतागण: हाँ, बिल्कुल आ रही है।

वक्ता: समुद्र है? उसमें लहर उठी? लहर उठ कर वापस समुद्र में गयी, और फिर दूर कोई और लहर उठी जिसमें वही अणु हैं जो पहली में थे- ये पुनर्जन्म हुआ है। पर इस दूसरी लहर का, पहली से, कोई लेना-देना नहीं है। हाँ, दोनों लहरों का समुद्र से लेना-देना है। तो समुद्र का पुनर्जन्म होता है, लहर का नहीं। आप लोग लगे रहते हैं इसमें, ‘लहर का पुनर्जन्म होता है, मेरा पुनर्जन्म होगा, मेरे निशान का पुनर्जन्म होगा’।

‘आपका’ कुछ भी शेष नहीं रहेगा। समुद्र बार-बार लहराता है, आप कुछ नहीं होते; आप तो ख़त्म हो जाओगे।

-‘संवाद- सत्र ‘ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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