तुम्हें स्वयं ही खोजना पड़ेगा || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

3 min
48 reads
तुम्हें स्वयं ही खोजना पड़ेगा || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

वक्ता : अगर हम दो चरों वेरिएबल्स की बात करें ‘अ’ और ‘ब’, जिनका हमें कुछ पता नहीं कि ये सम्मिश्र संख्या *(*काम्प्लेक्स नंबर) हैं, वास्तविक संख्या हैं या काल्पनिक संख्या, घनात्मक संख्या है, या ऋणात्मक संख्या हैं (कि काम्प्लेक्स है कि रियल है, कि पॉजिटिव है कि निगेटिव है)। समझ रहे हो बात? ‘अ’ और ‘ब’ (‘बी’) की बात हो रही है जिनका हमें कुछ पता ही नहीं। और यह मुझसे पूछ रहा है कि आपको ‘अ’ और ‘ब’ का कुछ पता है? अब मैं तुमसे पूछूँ कि ‘अ’ और ‘ब’ हैं क्या ये तो बताओ? क्या तुम्हें पता है? जब तुम्हें ही नहीं पता कि तुम पूछ क्या रहे हो, तो तुम ये कैसे जान पाओगे कि मुझे पता है या नहीं?

ऐसे समझो कि तुम्हें कहीं जाना है और तुम्हें पता ही नहीं है कि तुम्हें कहाँ जाना है, तो तुम किसी से पूछोगे भी तो क्या पूछोगे? तुम किसी राह चलते से सवाल पूछते हो, मान लो तुम्हें लखनऊ जाना है, तुम उससे कहते हो कि मुझे लखनऊ जाना है, तो तुम्हें पहले पता तो होना चाहिए ना कि लखनऊ जैसा कुछ है? तुम्हें लखनऊ की खबर होनी चाहिए ना? तभी तो वो दूसरा व्यक्ति तुम्हारी मदद कर सकता है। तुम आकर उससे पूछते हो मुझे तुटावोटोरों जाना है, अब वो तुमसे कह रहा है तुम्हें कुछ पता है तुटावोटोरों का? तो तुम उसको पलट के सवाल कर रहे हो। ‘क्या तुम गए हो तुटावोटोरों?’ और अगर वो गया भी है, तो उससे तुम्हारा क्या लाभ हो जायेगा?

शिक्षक दो तरीके के होते हैं, एक जो जानकारी देते हैं, जानकारी सदा बाहर से आयेगी, और दूसरे वो जो तुमसे कहते हैं कि खुद खोजो। जहाँ तक निम्नतर शिक्षा का सवाल है, शिक्षक तुम्हें जानकारी दे सकता है कि ए.सी. कैसे चलता है, कैमरा कैसे चलता है, वो सब जानकारी बाहर से आ जायेगी। पर जब जीवन शिक्षा की बात हो रही है, तो गुरु तुम से यही कह सकता है कि बेटा, खुद तलाशो।

तुम सब यहाँ पर बैठे हो, हम सब किस विषय पर बात कर रहे हैं? बात कर रहे हैं प्रेम पर, संबंधों पर, आनंद पर, मुक्ति पर। कितना भी कोई तुम्हें बता दे प्रेम के बारे में, क्या उससे तुम्हें प्रेम मिल जायेगा जीवन में? मैं हद से हद यह तय कर सकता हूँ कि तुम्हें ये बता दूँ कि तुम जिसको प्रेम माने बैठे हो, वो प्रेम नहीं है, पर वास्तविक स्वाद तुम्हें खुद ही पाना पड़ेगा। तो मैं तुमसे यही कह रहा हूँ कि तुम जिस को मोह-माया माने बैठे हो वो झूठा है। वास्तविक क्या है वो तो तुम्हें खुद ही चखना पढ़ेगा। मेरा जो योगदान है वो यहाँ तक जाता है कि मैं आइना दिखा दूँ कि देखो तुम जो मान रहे हो, तुम जो समझ रहे हो, उसमें सच्चाई कितनी है। लेकिन जो वास्तविक हो, उसका स्वाद तो तुम्हें खुद चखना पड़ेगा। ठीक वैसा ही है कि जैसे मैं बोलूं ‘पानी, पानी, पानी,’ तो क्या इससे तुम्हारी प्यास बुझ जाएगी? स्वाद तुम्हें खुद ही चखना पड़ेगा।

पहले जानो!

-‘संवाद’ पर आधारित| स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं|

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories