तुम्हारी बेवफ़ाई ही तुम्हारी समस्या है

Acharya Prashant

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तुम्हारी बेवफ़ाई ही तुम्हारी समस्या है

श्रोता १: सर, मेरी लाइफ में बहुत सारे चिंता के विषय होते हैं जैसे मेरे परिवार में मेरे पेरेंट्स के बीच कुछ हो गया, झगड़ लिए हैं दोनों तो फिर उन दोनों को समझाना है पर वो समझ नहीं रहे । जैसे एक दोस्त है कि जा रहा है खाए जा रहा है उसका मन ही नहीं भरता और बढ़ता जा रहा है कैसे उनकी प्रॉब्लम को दूर करें?

वक्ता: सवाल ये है कि समस्या उनकी है या तुम्हारी है?

श्रोता १: सर, समस्या उनकी है पर परेशानी मेरी।

वक्ता: तो एक बात मूल भूत रूप से समझ लो जो खुद समस्या ग्रस्त है वो किसी कि समस्या हल नहीं कर सकता।

श्रोता १: सर, मुख्य बात ये है कि उनकी समस्या हल करने का समय नही है।

वक्ता: उनको भूल जाओ तुम्हारे पास अभी अपनी ही काफी हैं। उनको भूल जाओ। अपने आप को सुलझा लो तब तुम इस काबिल हो कि दुनिया को सुलझा सको। हम ये भूल जाते हैं कि हम खुद कितने बीमार हैं हम ये भूल जाते हैं कि हम खुद कितने अंधे हैं। हम दूसरों को सड़क पार कराने लगते हैं । अब क्या होगा?

श्रोता २: दूसरों को लेकर मरेंगे ।

वक्ता: कबीर कहते है अँधा अंधे ठेलिया दोनों कूप पडंत। कूप माने कुआँ। अँधा अंधे को रास्ता दिखा रहा था दोनों कहाँ जा के पड़े?

सभी साथ में: कुँए में।

वक्ता: तो यही हालत है अपना अंधापन दूर करो न पहले फिर किसी को राह दिखाना। वो बोलता है ऐसा नहीं है सर। दो बातें है पहली हम अंधे हैं नहीं। दूसरी अगर हम अंधे हों भी तो दूसरे को सलाह देने में जो मज़ा है,

(सभी श्रोता हँसते हैं)

वो अपना अंधापन दूर करने में थोड़े ही है। छोटे बच्चे डॉक्टर-डॉक्टर खेलते हैं। खेलती थी? लडकियाँ उसमे खासकर के ज्यादा रहती हैं वो कान में कुछ लगाएँगी, गुड्डा-गुड़िया लेके या पड़ोस का ही बच्चा हो तो उसको पकड़ के हाँ ठीक है तुम्हारी ये बीमारी है, ये लो प्रिस्क्रिप्शन और जैसी वो डॉक्टर की हैण्ड राइटिंग देखती हैं जिसमे उन्हें कुछ समझ नहीं आता वैसे ही, लो जाओ खरीद लेना। तुमने किसी छोटे बच्चे को भी कभी देखा है कि वो अपने आप को पुर्जा दे दवाई का? अपने आप को ही प्रिस्क्रिप्शन दे? हमें बचपन से ही ये आदत लगी होती है क्या किसी दूसरे को दवाई बताने की। छोटा बच्चा भी यही कर रहा है दुसरे को पुर्जा थमा रहा है जब, तब वो ये नहीं पूछ रहा कि मेरी बिमारी क्या है । वो कह रहा है एक दोस्त है जो बादाम खा रहा है और दूसरा दोस्त है जो शरबत पी रहा है, ठंडाई पता नहीं क्या । कुछ हो गया है ये नहीं बताता कि मैं खुद भूखा हूँ। मूल बात ये है कि तुम भूखे हो किसी और की चर्चा ही क्यूँ करते हो।

श्रोता १: सर, सेंटिमेंट भी तो होते हैं कुछ लोगों से। ये क्या है जो पता लग रहा है?

वक्ता: तो तुम्हारी समस्या क्या है कि तुम्हें बुरा लग रहा है ना । ये समस्या है। अगर वही सब घटनाएँ बाहर घट रही हों पर तुम्हें बुरा न लग रहा हो तो क्या ये सब समस्याएँ बचेगी? बाहर कुछ हो रहा है और तुम्हें बुरा लग रहा है तो समस्या क्या है? तुम्हें बुरा लग रहा है ये समस्या है ना। समस्या ये थोड़ी है कि बाहर कोई घटना घट रही है। उसकी बात करो ना कि मुझे क्यूँ बुरा लग जाता है। मैं आहत क्यूँ हो जाता हूँ उसकी बात करो। जब तक ये नहीं देखोगे कि तुम आहत क्यूँ हो जाते हो, तब तक हर्षित तुम किसी की कोई मदद नहीं कर सकते । डॉक्टर मरीज़ को ठीक कर सके इसके लिए बहुत ज़रूरी है कि डॉक्टर स्वयं मरीज़ न बन गया हो। हमें डॉक्टर बनने में बहुत रुचि है ये नहीं देखते हैं कि अभी तो हम खुद ही बहुत बीमार हैं। तुम्हें जो बुरा लग रहा है देखो ना क्यों बुरा लग रहा है। तुम्हारी जो बिमारी है ठीक वही उनकी बीमारी है। तुम मारे हुए हो संबंधों के, इच्छाओं के, उम्मीदों के ,वो भी मारे हुए हैं संबंधों के, इच्छाओं के, उम्मीदों के, लालच के। तुम अपने मन को समझ जाओ कि ये किस तरह से लालच के, डर के और उम्मीद के भरोसे चलता है और फिर कष्ट पाए तो तुम बिलकुल समझ जाओगे कि मेरे परिवारजनों के साथ भी तो यही हो रहा है।

तुम एक बार ये देख लो कि जो भी मन सामाजिक व्यवस्थाओं के ढर्रे पर चलेगा, जो भी मन चेतना की जगह रूढ़ियों पर चलेगा, उसको कष्ट मिलना ही मिलना है तो उसके बाद तुम्हें कष्ट नहीं होगा। करुणा होगी। समझो बात को। जो आदमी खुद बीमार होता है जब वो दुसरे का कष्ट देखता है, तो उसे कष्ट होता है। और जो आदमी खुद स्वस्थ होता है जब वो दूसरे बीमार को देखता है तो उसे करुणा उठती है। करुणा में इलाज की ताकत होती है तुम्हारा कष्ट किसी और का कष्ट ठीक नहीं कर सकता। मैं रो रहा हूँ और तुम मुझे देखने आओ कि रो रहे हैं और मैं जितनी आवाज़ में रो रहा हूँ तुम उससे दुगुनी आवाज़ में दहाड़-दहाड़ के रोने लगो तो क्या उम्मीद करते हो कि मेरा रोना बंद हो जाएगा? और होता है किसी घर में मौत हो गई हो ,और अब उस घर के लोग भले ही रोना बंद कर चुके हों पर इधर-उधर के लोग मिलने आएँगे और वो ऐसा हक्का फाड़ के रोएंगे। ये करुणा नहीं है ये तो तुम और कष्ट पैदा कर रहे हो।

करुणा वो होती है जो किसी का कष्ट मिटाए अपने आप को कष्ट में डाल के तुम किसी का कष्ट नहीं मिटा पा पाओगे।

मैं तुमसे कह रहा हूँ कि तुम ये देखो कि तुम्हें कष्ट क्यूँ होता है समझना इस बात को। जैसे तुम कष्ट के चक्कर में फँसे हो न ठीक उसी तरह से दुसरे लोग भी फँसे हैं। जब तुम ये समझ जाओगे कि तुम कैसे फँसे तो तुम दूसरों के चक्कर भी समझ जाओगे। जब तुम ये समझ जाते हो कि कोई कैसे फँसा तो तुम्हें कष्ट से मुक्ति का रास्ता भी मिल जाता है। फिलहाल तो तुम असंभव की बात कर रहे हो। तुम कह रहे हो कि जैसे लोग हैं, जैसे ढर्रों पे वो चल रहे हैं, वो ढर्रे चलते रहे उन ढर्रों से कोई मुक्ति ना मिले लेकिन कष्ट भी साफ़ हो जाए। ऐसा हो नहीं सकता न। ख़ास तौर पर बेटा बात जब घर वालों की होती है ना हमें कुछ दिखाई नहीं देता हमें कुछ समझ नहीं आता। हम उनसे क्या बोलते हैं? हम उनसे कहते हैं भगवान करे तुम्हारी सारी इच्छाएँ पूरी हो जाएँ। हम मोटी-मोटी ये बात भी नहीं समझते कि वो जैसा है उसकी इच्छाएँ पूरी हो ही नहीं सकती। और हम ये भी नहीं समझते कि वो जैसा है अगर उसकी इच्छाएँ पूरी हो गयीं तो उसका सर्वनाश हो जाएगा। क्यूँकी उसकी इच्छाएँ वैसी ही हैं जैसा वो है। तो स्वजनों के साथ बहक जाना बहुत आसान होता है लेकिन उन लोगों के साथ बहक कर के तुम इतना ही कर रहे हो कि उनकी तकलीफ़ और बढ़ा रहे हो। मैं तुमसे ये कह रहा हूँ और ये बात सुनने में शुरू में थोड़ी अजीब लग सकती है कि अगर किसी का दुःख कम करना चाहते हो तो उसके दुःख में दुखी मत हो जाना आम तौर पर तुमसे यही कहा गया है ना कि इंसान वही जो दूसरों के दुःख में दुखी होना जाने। ये सब सुना होगा। सुना है कि नहीं सुना है? कि इंसान वही जो दुसरे के दुःख में दुखी होना जाने ।मैं कह रहा हूँ बिलकुल नहीं अगर किसी का दुःख दूर करना चाहते हो तो तुम दुखी मत हो जाना। जब तक अभी तुम ही दुखी हो, दुःख संक्रामक होता है जानते हो दुःख फैलता है। जब तक अभी तुम ही दुखी हो तो तुम्हारे माध्यम से दुःख फैलेगा ही फैलेगा। तुम्हें किसी से दुःख लगा और अब तुम दुःख आगे और फैलाओगे ही फैलाओगे। दुखी आदमी खतरनाक होता है वो दुःख फैलाता है। दुखी आदमी को किसी भी तरह से सहानुभूति का पात्र मत बना लेना। कि बेचारा बड़ा दुखी है अच्छा आदमी होगा। इस तरह की बातें मत सोच लेना। सही बात तो ये है कि दुःख उठता ही उनको है जिन्होंने दुःख पाने लायक कुछ करा हो।

दुनिया में तुम बहुत दुखी देखोगे लेकिन इन में से एक भी ऐसा आदमी नहीं देखोगे जो खुद दुःख का कारण न हो। तो तुम जिन भी लोगों की बात कर रहे हो कि दुखी हैं, परेशान हैं, कष्ट में हैं, सबसे पहले तो हर्षित तुम ये समझो कि ये दुःख उन्होंने खुद ही कमाया है। ये दुःख उन्हें किसी ने यूँ ही ला कर के नहीं दे दिया है, ज़बरदस्ती नहीं ओढ़ा दिया है। उन्होंने जीवन ऐसा जिया है कि उन्हें दुःख मिलना ही था। और इस दुःख से मुक्ति पाने का एक ही तरीका है कि जीवन जिन तरीकों से चला वो ढर्रे बदले जाएँ। उन ढर्रों से मुक्ति मिले। ये कोशिश बिलकुल मत कर बैठना कि उनके ढर्रे वैसे ही चलते रहे पर हम उन्हें दुःख से मुक्ति दिला दें। हम चाहते यही है ना? जब तुमसे कोई कहता है कि मैं बहुत दुखी हूँ तो तुम उससे ये थोड़े ही कहते हो? कि अगर तुम दुःख से मुक्ति चाहते हो तो तुम्हें पूरा ही बदलना पड़ेगा। ये कहते हो कि अगर तुम्हें दुःख से मुक्ति चाहिए तो तुम्हें पूरा बदलना पड़ेगा। ये तो नहीं कहते ना? तुम तो कुछ ऊपर-ऊपर का इलाज कर देना चाहते हो कि दुःख से मुक्ति भी मिल जाए और तुम्हारा काम-धंधा चलता भी रहे। ये हो नहीं सकता। आ रही है बात समझ में?

श्रोता २: सर ये मैंने अपने एक दोस्त को बोला था कुछ समय पहले कि अपनी आदतों को पहले छोड़ दो तो सही हो जाओगे उस लड़के ने दो दिन मेरे से फिर बात नहीं करी।

वक्ता: तो ये सही हुआ ना। तुम्हें क्यूँ लग रहा है कि ये सही नहीं है?

श्रोता २: नहीं सर मुझे सही लगा तभी मैंने उसको बोला।

वक्ता: तो बस ठीक है। ये अच्छा हुआ है।

वक्ता: बहुत अच्छा है बेटा। सच से जो चीज़ टूटती हो वो निश्चित रूप से क्या होगी?

श्रोता ३: झूठ।

वक्ता: झूठ। सच से जो चीज़ नष्ट हो जाती हो वो चीज़ क्या होगी। तो नष्ट हो जाने दो। डर क्यूँ रहे हो? झूठ है तो उसका नष्ट हो जाना उचित ही है ना। तुम किसी से सच बोलो और वो बिदबिदाने लगे बिलकुल, इधर-उधर छुपे, बेचैन हो जाए तो इसका क्या अर्थ है? कि उसकी ज़िन्दगी में झूठ बहुत है। इसीलिए जब उसके सामने सच लाते हो तो उसकी हालत खराब हो जाती है और यही तरीका है जांचने का कि किस आदमी कि ज़िन्दगी कैसी चल रही है। उससे सच्ची बात करो। जो झूठा आदमी होगा वो सच सामने आते ही बिलकुल बिदबिदाएगा, छुपेगा, भागेगा कहेगा चेंज द टॉपिक। मिले हैं ऐसे लोग? कि नहीं हमें इस बारे में बात नहीं करनी। जैसे ही वो कहे कि हमें इस बारे में बात नहीं करनी तुम मुस्कुरा देना। कि हम समझ गए पता चल गया यही तो टेस्ट था। लिटमस टेस्ट ऐसे ही करते हो ना? दो बूँद डाली लिटमस पे और देख लिया क्या हो रहा है तो ऐसे ही तुम भी अपना ये प्रयोग किया करो दो बूँद सच की । और फिर देखो कैसा लाल हो जाता है। तो मामला क्या है फिर? बड़ा *एसिडिक*। कौन सा टेस्ट? दो बूँद सच की। और सब खुल के आ जाएगा। लेकिन एक बात समझ लेना कि एक बार दिख जाए कि कोई झूठा है तो फिर उसके साथ मत रहना। क्यूँकी सच और झूठ का कोई साथ नहीं होता तो ये टेस्ट खतरनाक है। क्यूँकी जहाँ ही करोगे संभावना यही है कि दिखाई पड़ेगा कि मामला तो झूठा। तो दिल कड़ा कर के ही करना दो बूँद सच की।

श्रोता ३: शुरुआत में अपने आप पे भी कर लें।

वक्ता: असल में ना बेटा अपने आप पे किये बिना तुम दूसरों पे कर पाओगे भी नहीं । ये प्रयोग करने के लिए बड़ी हिम्मत चाहिए। तुम यहाँ से जितनी भी चीज़े सीख के चले जाओ, मैं बता रहा हूँ, तुम यहाँ से जितनी भी प्रयोग सीख के चले जाओ तुम उनमे से एक का भी इस्तेमाल कर नहीं पाओगे जब तक कि तुमने उनका सबसे पहले अपने ऊपर नहीं इस्तेमाल किया। लेकिन मन हमेशा क्या करेगा दूसरों पे प्रयोग करो। इसकी पोल खोलूँगा, उसकी कलई खोलूँगा। अब उनकी पोल तो खोल दोगे, जान गए कि ये आदमी झूठ में जी रहा है फिर छोड़ तो तुम उसे तब भी नहीं पाओगे क्यूँकी झूठ को छोड़ने की ताकत सिर्फ?

सभी साथ में: सच के पास होती है।

वक्ता: और तुम खुद ही झूठे हो, तो झूठ झूठ को कैसे छोड़ देगा? तुम तो कहोगे झूठ झूठ भाई भाई (हँसते हुए)। दो बूँद सच की और हम दोनों भाई-भाई ।

श्रोता ४: सर, एक अनुभव बताना चाहता हूँ मैं। कल मैं एक प्रेजेंटेशन देने गया था कॉलेज की तरफ से, डेमो प्रेजेंटेशन था। तो जैसे ही हमारी बारी आई तो जो कोऑर्डिनेटर था उसने तुरंत झपड़ के बोल दिया कि तुम लोग यहाँ से जाओ और बाहर निकाल दिया। उसके पीछे कारण ये था कि हम लोग बीच में थोड़ी सी आपस में बात कर रहे थे तो बीच में डिस्टर्ब हो रहा था तो उस समय मैं स्पीकर था तो उस समय मेरा कॉन्फिडेंस जो है वो गिर गया। फिर उसके बाद मैंने सोचा कि यू डू नॉट गेट कॉन्फिडेंस फ्रॉम अदर्स । कि ठीक है श्रद्धा रखना है जो भी होगा अच्छा ही होगा फिर मैंने प्रेजेंटेशन देना शुरु किया पर मैं फिर थोडा नर्वस हो गया और प्रेजेंटेशन गन्दा गया फिर उन्होंने बोला कि क्या दिक्कत चल रही है जाओ बाहर साँस लेके आओ तो उसके बाद फिर प्रेजेंटेशन अच्छा गया तो मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि पहली बार मतलब इतना कुछ सीख के और मैं अप्लाई करने कि कोशिश कर रहा हूँ पर मैं नर्वस क्यूँ हो गया और सर उसका ये अनुभव हुआ कि मैंने पहले भी कई बार स्पीकिंग कि है यहाँ पर भी जब मैं करता हूँ तो मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं होती पर कल के प्रेजेंटेशन में मेरा पूरा मुँह ऐसा लग रहा था कि सलाइवा बचा ही नहीं है पूरा मुँह मेरा सूखा हुआ है और मैं कुछ बोल भी नहीं पा रहा मेरे टंग में कि बिलकुल जीरो सलाइवा था मेरा मुँह बिलकुल चिपक गया है। बल्कि प्रेजेंटेशन ख़त्म होने पर उसने ये भी बोल दिया कि मुझे लगता है कि तुम्हें साँस कि समस्या है।

वक्ता: कुछ भी नहीं बेटा ये तो जब मन में कोई लालच या डर होता है ना तो वो चीज़ें जिनकी कोई कीमत नहीं, कोई हैसियत नहीं, वो भी तुमपे हावी हो जाती हैं। एक आम दूकान हो छोटी-मोटी चीज़ें बेचने वाली तुम उसके दुकानदार को कभी बहुत महत्त्व नहीं दोगे लेकिन यही तुम्हें कुछ खरीदना है और तुम्हारे पास तीन रुपे कम हैं तो देखो वो दुकानदार तुम्हारे लिए कितनी बड़ी चीज़ हो जाता है। क्यूँकी तुम्हें अब कुछ चाहिए और तुम उससे प्रार्थना करने वाले हो कि साहब तीन रुपे कम में दे दो। तो वो बिना हैसियत का आदमी भी अब तुम्हारे लिए देवता हो जाएगा। मन में जब लालच होता है न तो दुनिया तुम्हारे सर पर चढ़ कर बैठ जाती है।

अब जैसे आयूष पे थर्ड इयर वाले चढ़ के बैठे हुए हैं। वो कौन हैं? वो कौन हैं? जिन्हें तुम कहते हो कि हमारे *सीनियर्स*। वो कौन हैं? अग्गु मल-पिच्छु मल। वो कुछ हैं लोग सोसाइटी है हमारे 5-6 सीनियर हैं वो ये कर देते हैं, वो वो कर देते हैं। देवी-देवता, दादा रे। ऐसा लगे यहीं न गिर जाए। कोई भी तुम पे चढ़ के बैठ जाता है बेटा कोई भी। कल हम लोग लौट रहे थे बड़ी गाडी हम चार लोग बैठे हुए हैं सब बढ़िया। रोक ली गई एक जगह। सामान्य सा पुलिस का कांस्टेबल रहा होगा पर हमारी गाड़ी में आर.सी नहीं थी वही बादशाह हो गया। आधे घंटे कम से कम उसने गाडी रोक के रखी। उसके बाद विनती, गुहार तब उसने छोड़ी। कांस्टेबल बादशाह क्यूँ? हममे कोई कमी है ना? हममे कोई कमी थी। जब तुममे कोई कमी होती है तो कोई भी तुम्हारे लिए बादशाह हो जाता है। नहीं तो उसकी क्या हैसीयत? वो कैसे हावी हो जाता तुम्हारे ऊपर? तुम्हारे ऊपर भी जो कोई हावी होता हो तो बस ये देख लेना कि तुममे कहाँ खोट है। ये सूत्र दे रहा हूँ। तुमने कहीं कोई खोट दिखाई है तभी तुमपे कोई हावी हो रहा है नहीं तो तुमपे कोई हावी हो ही नहीं सकता। और खोट माने दो ही चीज़ें या तो लालच होगा या तो डर । या तो कुछ पाने की हसरत होगी या खो जाने की चिंता। या तो ये लग रहा होगा कि कुछ पा लें, या ये चिंता होगी कि कुछ?

श्रोता ४: खो ना जाए।

वक्ता: खो न जाए। तभी कोई हावी हो रहा होगा तुमपे। समझ में आ रही है बात ? अब तुम मुझे बताओ कि वो प्रेजेंटेशन में क्या लालच था और?

श्रोता ३ : सर, डर था कि खराब चला गया तो ?

वक्ता: बस हो गयी बात ख़त्म। बस बात ख़त्म। बात ख़त्म। दुनिया में मार खाने का सबसे अच्छा तरीका जानते हो क्या है दुनिया को महत्वपूर्ण बना लो। तुम जिसे ही बहुत महत्वपूर्ण बनाओगे उसी के गुलाम बन जाओगे। दुनिया से पिटना है तो दुनिया को सर चढ़ा लो। सामने ऑडियंस बैठी है उसको बिलकुल बादशाह बना लो आज इनकी तालियाँ मिलनी चाहिए, इनका समर्थन मिलना चाहिए, इनकी वाह-वाही मिलनी चाहिए अब पक्का है कि तुम जो बोलने जा रहे हो वो खराब होकर रहेगा। तुमने उनको इतना महत्वपूर्ण, इतना बड़ा बना लिया अपने लिए कि तुम बहुत छोटे हो गए। अब डरोगे। तो जो असली आदमी होता है आयूष वो ज़रा ठसक में जीता है। कैसे? ठीक है तुम होगे बहुत बड़े पर जो सबसे बड़ा है वो हमारा यार है। हम तो सीधे उसी का संपर्क लगाते हैं।

श्रोता ४: पर सर एसा नहीं है कि सामने वाले को कभी छोटा नहीं समझना चाहिये ?

वक्ता: ना। हम बड़े नहीं है, तुम छोटे नहीं हो। जो सबसे बड़ा यार है, ‘एक’ वो हमारा यार है। हम ये नहीं कह रहे है कि हम बड़े हैं, हम क्या कह रहे हैं कि हम तो सोर्स लगा रहे हैं। हिन्दुस्तानी मन को ये भाषा ज्यादा आसानी से समझ में आती है। अगर ये कह दिया न कि तू छोटा मैं बड़ा तो अहंकार हो जाता है। तू छोटा मैं बड़ा नहीं एक ही बड़ा है। न तू बड़ा है न मैं बड़ा। बड़ा कौन? बड़ा तो एक ही है, पर जो एक है बड़ा उससे हमारी यारी है। हम ये नहीं कह रहे कि तेरी नहीं हो सकती वो इतना बड़ा है कि वो सबसे यारी कर सकता है तेरी भी हो सकती है हमें तेरा पता नहीं हमें हमारा पता है। हमारा तो उससे पक्का प्रेम है। अब देखो तुम्हें डर लगेगा ही नहीं। तुम होगे बड़े, तुम होगे बहुत बड़े, हम क्या हैं बड़े से बड़े के साथ। कैसा डर? वो इतनी दूर भी नहीं कि उसे फ़ोन करके बुलाना पड़े कि अरे! आना रे। लड़ाई हो रही है। वो साथ चलता है तुम्हारे। बहुत बड़ा है लेकिन तुम्हारे छोटे से दिल में बैठा होता है। अब क्या दिक्कत है? ये ऑडियंस जब ये तुम्हें डराएगी तुम क्या कहोगे? ये सब भूल जाते हो न।

श्रोता ५: सर आपकी ये सब बातें, जैसे आपने ये सब बिलकुल प्रॉब्लम बता दी जो प्रोब्लम्स थी मेरी।

वक्ता: एक ही समस्या होती है हम बेवफा होते हैं। यारी नहीं निभाते। तुमने दुनिया में इतने नकली-नकली यार जोड़ लिए हैं कि जो असली वाला है उसकी तरफ बेवफ़ाई करते हो इसके अलावा और कोई समस्या होती ही नहीं है।

शब्द-योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

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सम्पादकीय टिप्पणी :

आचार्य प्रशांत द्वारा दिए गये बहुमूल्य व्याख्यान इन पुस्तकों में मौजूद हैं:

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This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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