तुम्हारा सबसे अंतरंग सम्बन्ध || आचार्य प्रशांत (2014)

Acharya Prashant

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तुम्हारा सबसे अंतरंग सम्बन्ध || आचार्य प्रशांत (2014)

होर की मँगना दित्ता सब कुछ, सजदा करां मैं तेरा, वाहे गुरु

कैन्दी नि अंखिया, कैन्दे ने आंसू, शुक्राना तेरा, वाहे गुरु।

लफ़्ज़ों में कैसे कोई बताये, चर्चा जो तेरी हो, दिन बीत जाए

बातों में जैसे सागर समाये, न कुछ बोल पाएँ, वाहे गुरु।

ठंडी हवा का झोंका भी तू है, मेरे मन दा मालिक, दाता भी तू है

दामन बिछाके मंगदे दुआवां, सानु छड्के न जाना, वाहे गुरु।

वक्ता: स्त्रोत से एक गहरा रिश्ता होना बहुत महत्वपूर्ण है। यह एक कॉन्सेप्ट भर नहीं हो सकता है। आप जो चाहें- वाहे गुरु, अल्लाह- हमने अभी माँ बोला, कभी स्रोत बोला, कभी परम बोला या सत्य, जो भी बोलिये उसके साथ एक रिश्ता होना बहुत ज़रूरी है। अगर आपका उसके साथ कोई रिश्ता नहीं है तो आपकी अनाथ जैसी हालत रहेगी। अनाथ समझते हो, ‘अनाथ’ मतलब वही जिसका नाथ से कोई रिश्ता नहीं। मैं सबसे एक सवाल पूछ रहा हूँ क्या आपका कोई रिश्ता है, व्यक्तिगत रिश्ता, परम की साथ? कोई दोस्ती यारी? कैसा भी रिश्ता, माँ जैसा, बाप जैसा, भाई जैसा, प्रेमी जैसा, कोई रिश्ता है? रिश्ता नहीं है तो बड़ी दिक्कत हो जाएगी।

श्रोता: कभी- कभी है, कभी- कभी नहीं है।

वक्ता: जब होगा तब बड़ा अच्छा, बड़ा भरा-भरा लगेगा, मन एकदम भरा सा रहेगा। सबसे गहरा वही रिश्ता होता है। अगर वह रिश्ता नहीं है, तो कोई और रिश्ता किसी काम का नहीं है। संतो का वो रिश्ता ऐसा हो जाता है कि वह बात ही करते हैं। तो आपका कोई है ऐसा रिश्ता? वो मौन का भी हो सकता है। वह कैसा भी हो सकता है, वो आपकी मन की संरचना के ऊपर है कि आप कैसा रिश्ता बनाते हैं। आप उसे प्रेमी भी बोल सकते हैं, प्रेमिका भी बोल सकते हैं, आप उसे निर्गुण ब्रह्म बोल सकते हैं, आप उसे निराकार रूप में देख सकते हैं, आप उसे मूर्त में देख सकते हैं। उसको आप ‘मैं’ बोल सकते हैं, उसको आप ‘तू’ बोल सकते हैं। पर एक रिश्ता होना बहुत ज़रूरी है। बड़ी गन्दी हालत होगी अगर आपके पास ऐसा कोई रिश्ता ही नहीं है।

जानते हैं नास्तिक कौन होता है? वही होता है नास्तिक जिसके पास ये वाला रिश्ता नहीं है। नास्तिक वही नहीं है जो बोल दे कि ‘ईश्वर नहीं है’. ‘No God’ बोलने से आप नास्तिक नहीं हो जाते। नास्तिक आप तब है जब आपका कोई रिश्ता नहीं है परम के साथ। जब कहा जा रहा है, ‘तेरा राम जी करेंगे बेड़ा पार’, तो ‘रामजी’ कोई वस्तु नहीं हो सकते कि ‘रामजी’ कोई कल्पना हैं। ‘रामजी’ साक्षात् होने चाहिए। अब वो ‘रामजी’ कोई भी हो सकते हैं, फिर वो धनुष वाले राम जी भी हो सकते हैं और चाहो तो निराकार रामजी भी हो सकते हैं। वो आपके मन कि चंचलता के ऊपर है कि आप उसे कौन सा रूप देते हो। ‘मौला’ बोलते ही ‘मौ’ और ‘ला’ नहीं रह जाना चाहिए, मौला फिर साक्षात होना चाहिए। यह नहीं कि गा तो दिया मौला, पर मौला क्या? एक शब्द है मौला? मौला क्या? और क्या रिश्ता है तुम्हारा मौला से? जो प्रत्यक्ष हो, जो आप कहें कि और सब तो झूठ हो सकता है, पर वह नहीं जो इतना प्रत्यक्ष हो और सिर्फ प्रत्यक्ष नहीं, प्रत्यक्ष में तो अनजाने का भाव भी आ सकता है, प्रत्यक्ष भी है और मेरा भी है, सामने भी है और मेरा भी है, तो रिश्ता होना बहुत ज़रूरी है।

सोचो कि कितने अफ़सोस की सी बात है कि उन लोगों कि ज़िंदगियाँ बीतती कैसे होंगी, जिनके पास वह रिश्ता नही है? वही जिसको फरीद ने गाया है ‘मैं तो बस एक रात पिया के साथ नहीं थी तो मुझे बड़ी तकलीफ हुई और वो अभागिने कैसी होती होंगी जिनको पिया का साथ ही नहीं मिला’। तो वैसे ही क्या हालत होती होगी जो हम स्थायी अनाथ बन बैठे हैं। पिया कह लो, या माँ कह लो, एक की ही ओर इशारे हैं सारे। साक़ी बोल लो, या स्रोत बोल लो, वो इशारा एक ही और है। बड़ी बेसहारा सी हालत। अनाथ बच्चे देखें हैं? उनकी बड़ी क्राइसिस रहती है। यही नहीं कि बाहर की देखभाल कौन करे, उनकी अंदर की बड़ी क्राइसिस रहती है। मन को सहारा देने वाला कोई नहीं होता। ये भाव नहीं होता कि बुरे से बुरा भी हो जाए, तो भी कोई बचा लेगा। उनको फिर अपनी चालाकियों पर निर्भर रहना रहता है। वह या तो बड़े डरे हुए निकलेंगे, या बड़े कुटिल निकलेंगे।

तो जब आपका उस परम के साथ गहरा सच्चा रिश्ता नहीं होता है, तो यही दोनों आपके हश्र होते हैं। आप डरे- डरे भी रहोगे, आप में चालाकियां भी आजाऐंगी, ईर्ष्या आएगी, दुनिया भर कि बीमारियां आ जायेंगी जैसे माँ से बिछड़ा हुआ कोई बच्चा। फिर वो ड्रग एडिक्ट हो जाता है, फिर वो क्रिमिनल भी निकलता है, फिर एक भावनात्मक गड्ढा सा बना रहता है। यह मत होने दीजिये। ये सबसे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण बात है जो किसी के साथ भी हो सकती है। बेसहारा होने की, अनाथ होने की भावना, आप कितना अनाथ अनुभव करते हैं, यह इससे पता चलता है कि आप अपने लिए कितनी कोशिशों में लगे हुए हैं। बात समझ रहे हैं? जो सबसे ज्यादा कोशिश में लगा है कि कुछ पा लूँ, वो सबसे ज्यादा अनाथ अनुभव करता है। मै बेसहारा हूँ, मुझे जो करना है अपने लिए खुद ही करना है। यह मत होने दीजिये अपने साथ। आपकी इनोसेंस जाती रहेगी, स्वास्थ आपका ख़त्म हो जाएगा।

बाहर हमारे बाग़ीचे में गुलाब हैं, उनमे कुछ नयी चमकती हुई पत्ती आयी हैं। देखिये कुछ नयी पत्तियां ऐसी चमक रही हैं कि पूछिए मत क्योंकि वो जुडी हुई हैं अभी स्रोत से, और कुछ झड़ी हुई पत्तियां हैं, वो झड़ गयीं हैं, उनका स्रोत से कोई संपर्क नहीं रहा। तो झड़ी हुई पत्तियों जैसी हालत हो गयी है हमारी। जब तक आप स्रोत से जुड़े रहेंगे तो चमकेंगे। आपका स्रोत से एक रिश्ता है, वह रिश्ता आप कैसा भी बनाइये। आपको पूरा हक़ है कि आप मज़ाक का ही रिश्ता बना लीजिये, उसमें भी कोई हर्ज नहीं है। ज़रूरी नहीं है कि आप उसे मालिक ही बोलें, स्वामी ही बोलें। आप उसे कुछ भी बोलिये, कोई पहले से ही तए नहीं कर रखा गया है कि आपको एक खास नाम ही देना है या ख़ास आकार ही देना है, या निराकार ही रखना है, या निर्गुण ही रखना है। आप कुछ भी कह लीजिये आपका मन है, ‘यू आर माई टेडी बेयर’ चलेगा पर रिश्ता तो हो। परम आपसे आकर शिकायत नहीं करेगा कि आपने टेडी बियर ही क्यों बोला। आपको पूरा हक़ है आप बोलिये।

किसी ने कहा है कि जब भी मैं ये देखता हूँ कि ये बड़े-बड़े राजनेताओं को, ये व्यापारियों को, जो खूब लगे हुए हैं अपना विस्तार करने में। तो बोलते हैं कि मुझे एक बिलखता हुआ बच्चा दिखायी देता है जिसको माँ की गोद नसीब नहीं हो रही है। मैं देखता हूँ, तो मुझे ५० वर्ष का बिजनेसमैन नहीं दिखायी देता, ५ साल का बच्चा दिखायी देता है, जो माँ से बिछड़ गया है और बिल्कुल रो रहा है, बुरी तरह बिलख रहा है। वैसी हालत अपनी मत होने दीजिये कि जीवन ही बिलख रहा है और उसी बिलखने के कारण ही आपने बड़ी चीज़ें इकट्ठे कर ली हैं।

– क्लैरिटी सेशन पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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