तुझे याद न मेरी आयी || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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तुझे याद न मेरी आयी || नीम लड्डू

किसी ने आपसे पूछा, “अरे! तुमने मुझे पाँच दिन से फ़ोन नहीं किया, तुम्हें मेरी याद नहीं आयी?” आप कहते हैं, “अगर मैं इसको सच बता दूँ तो इस बेचारे के दिल को चोट लगेगी, ये दुख जाएगा।“ तो आप कहते हैं, “नहीं याद तो बहुत आयी, वो नेटवर्क नहीं था”, “नहीं, याद तो बहुत आयी, फ़ोन ख़राब था, रिचार्ज नहीं था, गला बैठा हुआ था।“

अब ये आपने क्या करा है? जो सामने व्यक्ति है, वह एक झूठे संसार में रह रहा है, और आपने यह सब बोल कर के अपनी ओर से तो यह करा है कि, ‘मैं उसकी भावनाएँ आहत ना करूँ’, पर आपने अभी ये इंतज़ाम कर दिया है कि वह अपने झूठे संसार से कभी बाहर ना आए।

साफ़-साफ़ क्यों नहीं बता देते कि, “जो काम कर रहा था वह बहुत ज़रूरी था और उस वक़्त यह उचित ही नहीं है कि मैं तुम्हारी याद करूँ। मैं तुम्हारी भलाई चाहता हूँ, तुमसे प्रेम करता हूँ, तुम्हें इज़्ज़त भी देता हूँ, पर तुम परमात्मा थोड़े ही हो गए कि तुमको लगातार याद करता रहूँ!”

अगर वास्तव में प्रेम करते हो तो दूसरे तक सच्चाई लेकर आओ न। हम अपनी सुरक्षा की खातिर दूसरे को सत्य से वंचित कर देते हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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