प्रश्नकर्ता: सर , मैं आपके साथ एकदम खुलकर बात करना चाहता हूँ। मैं आपको सुनने के साथ-साथ कई ऐसे व्यक्तियों को भी यूट्यूब पर बहुत सुनता हूँ जिनकी आप आलोचना करते हैं। मैं उनसे बहुत प्रभावित हूँ और वो मुझे बहुत इंस्पायर्ड फील करवाते हैं। हाल-फ़िलहाल में ही एक वीडियो मैने देखा जिसको देखने के बाद अब दोनों ही व्यक्तियों को; आपको और उनको सुनना मेरे लिए थोड़ा सा कठिन हो गया है। क्योंकि ये आपके द्वारा कही गयी एक बात जिसको मैं जीवन में उतार चुका था उसके एकदम विरुद्ध जा रही है। फॉर मी, ‘लाइफ इज़ नॉट अबाउट ह्वट यू डू, इट इज़ अबाउट हाउ यू डू इट’ (मेरे लिए जीवन इस बारे में नहीं है कि आप क्या करते हैं। यह सब इस पर निर्भर करता है कि आप इसे कैसे करते हैं।) तो ये जो मैंने बात उन व्यक्ति की सुनी है इसको सुनने के बाद अब जो बात आपसे सीखी थी कि आप क्या कर रहे हो उस पर ध्यान दो, किस केन्द्र से कर रहे हो उस बात पर ध्यान दो।
आचार्य प्रशांत: ठीक, ठीक, ठीक! ये तो, इसमें कोई बहुत जटिल बात भी नहीं है। जो भी लोग कर्म को, कर्ता को, कर्मयोग को थोड़ा भी समझते हैं उनके लिए तो ये मामला स्पष्ट ही होगा। कहा जा रहा है, ‘इट इज़ नॉट अबाउट ह्वट यू डू, इट इज़ अबाउट हाउ यू डू इट।’
नहीं, ये बात बिलकुल झूठी है, भ्रामक है, खतरनाक है। जो व्यक्ति ये बात बोल रहा है वो निश्चित रूप से अभी बहुत अज्ञानी है। अगर ये, ये कह रहे हैं कि महत्वपूर्ण ये नहीं है कि तुम क्या कर रहे हो, महत्वपूर्ण ये है कि तुम उसे कैसे कर रहे हो?
ठीक है! तो जब आप ये बात बोल रहें हों, ठीक उसी वक्त कोई बहुत सफ़ाई से, बहुत उत्कृष्ट बड़े एक्सीलेंट तरीके से आपकी गर्दन काट दे तो उसने फिर ठीक ही किया न? क्योंकि इट इज़ नॉट अबाउट ह्वट यू डू, इट इज़ अबाउट हाउ यू डू इट।
तो उसने बहुत साफ़, क्लीन और एक्सीलेंट और शायद इको फ्रेंडली तरीके से आपकी गर्दन काटी। तो हाउ यू डू इट पर तो उसको सौ बट्टा सौ मिल गया न। और आपने खुद ही कहा कि आप क्या कर रहे हो, इस बात का बहुत महत्व नहीं है।
नहीं, बात एकदम उल्टी है, इसके विपरीत है। सारा महत्व बस इसी बात का है कि आप क्या कर रहे हो। और अच्छे से समझ लीजिएगा कि ‘आप क्या कर रहे हो’ अगर ये ठीक है तो ‘उसे कैसे करना है’ इसकी तमीज़ अपनेआप आ जाती है। ‘हाउ यू डू इट’ अपनेआप आ जाएगा अगर ‘ह्वट यू आर डूइंग’ सही है। और अगर ‘ह्वट यू आर डूइंग’ गलत है तो ‘हाउ यू आर डूइंग’ परफेक्ट भी हो तो कोई फ़र्क नहीं पड़ता बल्कि और खतरनाक हो जाती है बात! तो ये मुद्दा तो कहीं से भी पेचीदा नहीं है, बात एकदम साफ़ है। इसमें मेरे बोलने को ज़्यादा नहीं है।
किसी को इसमें संदेह लग रहा हो, तो बताइए?
प्र २: प्रणाम आचार्य जी, मैं इसी बारे में पूछना चाहती हूँ, “योग: कर्मसु कौशलम्” होता है तो उसमें भी हमें यही ध्यान रखना होगा?
आचार्य: बिलकुल! और सिर्फ़ तीन शब्द किसी श्लोक के मत उठा लिया करिए। देखिए ये बहुत खतरनाक बात है; “योग: कर्मसु कौशलम्।” पूरा श्लोक? उसको लेकर के आइए और उसे समझने की कोशिश करिए। ये तो बहुत खतरनाक बात हो गयी न कि योग का अर्थ है कर्म में कुशलता।
कौन से कर्म में भाई! जिन कृष्ण से आप ये सुन रहे हैं, “योग: कर्मसु कौशलम्” वो ये भी तो बताते हैं न कि कौन सा कर्म करना है या कोई भी कर्म आप उठाकर उसमें कुशलता दिखाना शुरू कर दोगे; पॉकेटमारी में। तो जो नंबर एक का पॉकेटमार है वो तो नंबर एक का योगी भी हो गया। वो बोलेगा मुझे अपने कर्म में पूरी कुशलता मिली हुई है तो मैं तो योगी हो गया। और यही आपको सिखाया जा रहा है। आपको ही नहीं सिखाया जा रहा, न जाने कितने संस्थान हैं, यूनिवर्सिटीज हैं, बस इतना ही लिख देते हैं, योग..
ये, ये, ये अशिक्षा की बात है, अज्ञान की बात है। न आप आध्यात्म को समझते हैं, न आप योग को समझते हैं, न गीता को समझते हैं। बस दो-तीन शब्द उठाए और डाल दिए कि बस खत्म। जैसे कि ये भी, “अहिंसा परमो धर्म:” आगे की बात कौन बताएगा, पूरा श्लोक बताओ न। उसमें तो आगे भी कुछ बोला गया है। लेकिन नहीं, जो तीन शब्द अपने लिए सुविधाजनक हैं, अपने सिद्धान्तों से मेल हो रहे हों, उन्हें खट से उठा लो। गीता का भी दुरुपयोग कर लो अपनी सुविधा के लिए और उसको तुरन्त लगा दो कहीं पर। और दिखा दो कि देखो बिलकुल ठीक बात है।
कर्म वो जो आपको मुक्ति दिला दे। (दोहराते हुए) कर्म वो जो आपको मुक्ति दिला दे। सिर्फ़ वही कर्म करना है बाकी सारे कर्म अपकर्म हैं, विकर्म हैं वो करने लायक ही नहीं हैं। उनमें कौन सी कुशलता हासिल कर रहे हो तुम, एक-से-एक कुशल कसाई हैं तो योगी हो गए? और जितना घटिया काम होता है उसमें कुशल लोगों की संख्या उतनी ज़्यादा होती है तो योगी हो गए सब?
ये बिलकुल प्रकट बात नहीं है क्या कि कर्म में कुशलता हासिल करने से पहले ये तो पूछोगे न कि कर्म किस श्रेणी का है। कर्ता के काम का भी है वो कर्म?
एक कर्म होता है जो कर्ता को बन्धनमुक्त करता है। और एक कर्म होता है जो कर्ता को और मूर्खताओं में और डूबो देता है, उससे और ज़्यादा मूर्खतापूर्ण कर्म करवाता है। किस श्रेणी का कर्म कर रहे हो और अगर कर्म और कर्म में कोई अंतर नहीं है तो कृष्ण, अर्जुन को क्यों निष्काम कर्म सिखा रहे हैं? कह देते, जैसा कर्म करना है कर। पूरी गीता ही अर्जुन को सही कर्म सिखाने के लिए है कि इस मौके पर तेरा सही कर्म क्या है अर्जुन; जान, भाग नहीं सकता तू!
अगर किसी भी कर्म में कुशलता योग है तो अर्जुन मैदान छोड़कर भाग रहा है और बड़ी सफ़ाई से भाग रहा है और बड़ी तेज़ी से भाग रहा है तो वो योगी हो गया। क्यों? क्योंकि बहुत तेज़ी से भागा है न, कुशलता के साथ भागा है, दन-दना के भागा है बिलकुल; तो योगी हो गया, किसी भी कर्म में कुशलता योग है तो।
नहीं, सही कर्म में कुशलता अर्जित करनी है। और कर्म अगर सही है तो कुशलता पीछे-पीछे स्वयं ही आ जाती है। कर्म अगर सही नहीं है तो कुशलता के लिए कोशिश करते रह जाओगे और अगर कुशलता मिली तो ये खतरनाक बात होगी। क्योंकि गलत कर्म में कुशलता हासिल करना माने गलत कर्म में और गहरे डूब जाना। समझ रहे हैं?
ये जो दो-तीन शब्द श्लोकों से उठाने वाला कार्यक्रम है इसको बिलकुल बन्द करें, एकदम बन्द करें।
भई, पूरी किताब नहीं ला सकते, पूरी शास्त्र या पूरी गीता नहीं ला सकते तो कम-से-कम पूरा श्लोक तो ले आ दो या वहाँ भी कटौती चल रही है; (हर चीज़ को को काटने का इशारा करते हुए)शॉर्ट्स।
प्र: सर , ऐसा ही होता है घर पर भी, बड़ी-बड़ी चीज़ों पर भी कभी ध्यान नहीं दिया जाता है जैसे लड़कियों के लिए। क्या चीज़ों पर ध्यान दिया जाता है कि जैसे; कपड़े कैसे सुखाने हैं। और इस पर डाँट मारी जाती है कि कपड़े तूने सही से नहीं सुखाए। प्रोसेस पर ध्यान देंगे, प्रोडक्ट पर नहीं। और इसी के लिए डाटेंगे कि तुझे कुछ भीं नहीं आता, तुझे कपड़े भी सुखाने नहीं आते। मैंने कहा, अगर मैं सीख भी गयी तो क्या हो जाएगा? कपड़े तो हवा से और धूप से ही सूखेंगे। और ये “योग: कर्मसु कौशलम्” कि मतलब छोटे-छोटे वर्क को अच्छे से करो और बिगर (बड़ा) को छोड़ दो।
आचार्य: ये दुनिया सबसे ज़्यादा उन लोगों परेशान है, उन लोगों के कारण डूबी हुई है जिन्होंने बड़ी प्रवीणता हासिल कर ली है ‘टुच्चे कामों में’। और उनको बड़ा गुरूर हो गया है कि साहब हम तो कुछ हैं। क्योंकि फ़लाना काम हम बहुत सफ़ाई के साथ करते हैं। हाँ, वो जो काम करते हैं उसके उनको पैसे मिलने लग गए हैं, उससे प्रतिष्ठा मिलने लग गयी है तो उनका गुरूर और बढ़ गया है। ले-देकर वो जो काम कर रहें हैं वो बिलकुल ‘टुच्चा’ है।
उनसे कोई पूछे, ले-देकर करते क्या हो? वो बताएँगे; ये करते हैं, वो करते हैं, ऐसे करते हैं, वैसे करते हैं। और काम कुल क्या होगा कि जूता बेचते हैं। और वो भी कैसे? लोगों को मूरख बना-बनाकर लेकिन गुरूर उनको पूरा होगा, वो बताएँगे एमएनसी में काम करते हैं। यही बात गृहणियों पर भी लागू होती है; उनको बड़ा गुरूर रहता है, देखो मैं ये बहुत अच्छा करती हूँ, हम बिलकुल गोल बनाते हैं, ऐसे करते हैं, वैसे करते हैं।
जब लॉकडाउन और उसके बाद का समय चल रहा था, यहाँ पर हम लोग खाना खुद ही बनाते थे। अब हम जैसे हैं हमारा खाना भी वैसा ही। तो वो बने, उसमें षटकोण पराठा निकला एक दिन। ढाई किलो का। वो दिन मुझे याद है ऊपर आधी रात को टीवी पर हमारा ही ब्रॉडकास्ट आ रहा था, कार्यक्रम चल रहा था और नीचे में पराठे बना रहा था। और वो ढ़ाई किलो का बना पराठा। बड़ा मज़ा आया तो उसकी फ़ोटो डाल दी कहीं पर, सोशल मीडिया पर। तो उसमें जितनी मम्मियाँ , आंटियाँ हैं सब;
‘हॉ! ये मत खाओ, हॉ! ये क्या बना दिया, कैसे हो, बड़े अनाड़ी हो।’ यही बहुत बड़ी बात है कि पराठा या तो गोल होना चाहिए नहीं तिकोना होना चाहिए। और जिनको आता है ये करना उनको लग रहा है हमें पता नहीं कितना बड़ा शऊर आता है, हम बड़े कलाकार हो गए। क्या कलाकार हो गये?
जो चीज़ें सीखने लायक थीं वो सीखी नहीं। इधर-उधर की फ़ालतू की चीज़ों में तुमने निपुणता हासिल कर ली है और उसके दम पर तुममें इतना गुरूर। और गुरूर चलो तुम्हारी अपनी बात है, उसका लेकिन जो दुष्परिणाम है; ये कि असली चीज़ को पाने की तरफ़ या सीखने की तरफ़ तुम्हारा रुझान शून्य हो गया है। क्योंकि तुम कह रहे हो असली चीज़ तो हमने पहले ही सीख ली। क्या सीख ली? हमारी रोटी बिलकुल गोल बनती है। अरे रोटी गोल नहीं बनेगी, ऐसी-वैसी भी बन जाएगी तो क्या फ़र्क पड़ जाएगा? कपड़े अगर नहीं ठीक से तह हैं, नहीं ठीक से प्रेस हैं तो कुछ बहुत नहीं बिगड़ जाना।
बाल अगर बिलकुल सीधे नहीं हुए, थोड़े तिरछे रह गए, गोल रह गए, उलझे रह गए तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा? लेकिन जो चीज़ें जीवन में मूलभूत हैं तुम उनको नहीं सीख रहे, तुम उनको नहीं जान रहे, उनको नहीं कार्यान्वित कर रहे तो सही में पहाड़ टूटा हुआ है।