प्रश्नकर्ता: जय जिनेंद्र आचार्य जी। मैं नकारात्मक अदृश्य शक्तियों के बारे में जानना चाहती हूँ। दूसरों के द्वारा किए गए टोने-टोटके हमें क्यों प्रभावित करते हैं? और हम इससे निकल कैसे सकते हैं? और जो हमारे साथ ये सब कर रहा है उसे नुक़सान पहुँचाए बिना कैसे इस समस्या से निजात पा सकते हैं? हम टोने-टोटके से होने वाले डर को ख़त्म कैसे करें? इस समस्या पर प्रकाश डालें।
आचार्य प्रशांत: तुम मानकर ही आयी हो कि टोना-टोटका होता है, और हो चुका है। तुम यह नहीं पूछ रही हो कि टोना-टोटका कुछ होता भी है या नहीं। पूर्ववर्ती धारणा है कि होता तो है ही। और ये भी मानती हो कि फँस तो चुकी ही हो।
अब तुमने आचार्य जी का काम बस इतना छोड़ा है कि वह तुमको बता दें कि इससे निकलना कैसे है। इससे ज़्यादा तो तुमने मुझे कोई आज्ञा दी ही नहीं। तुमने मेरे बोलने के लिए कुछ छोड़ा ही नहीं। तुमने सीधे ही बोल दिया कि टोना हो चुका है, परेशान बहुत हूँ, बता दीजिए बाहर कैसे आना है?
यही टोना है कि तुम अपनी ही धारणा में फँस गई हो कि टोना होता है और हो चुका है। यही असली टोना है। और ये किसी और ने नहीं, तुमने ही अपने ऊपर किया है। जिसको शास्त्रों में कहते हैं कि मकड़ी अपने ही बनाए जाल में फँस जाती है। तुमने ख़ुद ही प्रक्षेपित किया है कि टोना है। और जब टोना है तो उससे डरोगे भी।
बौद्ध आचार्य थे नागार्जुन, उन्होंने एक बहुत सुंदर उपमा बताई थी। बोलें, आदमी ऐसा होता है कि पहले तो ख़ुद ही बहुत मेहनत करके दीवार पर एक भयानक भूत-प्रेत-राक्षसों के चित्र बनाए और फिर उसे देखकर दहशत से गिर जाए। और ख़ूब ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाए कि मेरे कमरे मे भूत-पिशाच घुस आए हैं, मुझे बचाओ।
यही टोना है कि तुमने अपनेआप को सम्मोहित कर लिया है। ये ऑटो हिप्नोसिस है, कि टोना होता है, किसी ने मार दिया है और मैं परेशान हो गई हूँ।
बताने वाले इतना तो बता गए कि या तो सत्य है या मन के भ्रम हैं। और तो तीसरा कुछ होता नहीं। तो टोना, यह तीसरी चीज़ कहाँ से आयी?
या तो सत्य है जिसको परमात्मा बोलते हो, शान्ति बोलते हो, तृप्ति बोलते हो। और बाक़ी जो कुछ है वो सब क्या है? वो है ही नहीं, उसका कोई वजूद नहीं, वो भ्रम है। तुमने ये तीसरी चीज़ ईजाद कर दी — टोना। सारे शास्त्र दोबारा रचने पड़ेंगे। उन सबमें एक नया अध्याय डालना पड़ेगा — टोना।
कौन-से ग्रंथ में, कौन-से बोध साहित्य में तुम्हें टोटका मिला? बताओ। हमने तो कहीं टोटका पढ़ा नहीं। कौन-से ग्रंथ में यह मिल गया? कहाँ से ये सारी बातें मन में आ रही हैं?
निश्चित रूप से, आप (प्रश्नकर्ता) बोध साहित्य से ज़्यादा वास्ता नहीं रख रही हो। ज़रा गड़बड़ किस्म के साहित्य पढ़ रही हो, या टीवी ज़्यादा देख रही हो।
उपनिषदों को पढ़ो, अष्टावक्र को पढ़ो, नानक को पढ़ो, कबीर को पढ़ो, वहाँ न टोने के लिए जगह है न टोटके के लिए जगह है। किसी समझदार आदमी ने आज तक टोने-टोटके की बात नहीं की।
सूफ़ियों की कहानियाँ पढ़ोगे तो वहाँ जादूई बातें होती हैं परंतु उन जादूई बातों के पीछे भी समझ और बोध होता है, कोई अदृश्य नकारात्मक शक्ति नहीं होती है।
पीरों-फ़किरों की कहानियों में ख़ूब तिलिस्म की, ताबीज़ की, जादू की बातें होती हैं, परंतु जब उसे ध्यान से पढ़ो तब पता चलता है कि वहाँ कोई संदेश है, जादू इत्यादि मात्र संकेत हैं।
किसी समझने वाले ने आज तक नहीं कहा कि कोई दूर बैठकर तुम पर टोना मार देगा, जादू मार देगा। और अगर जादू-टोना-टोटका है भी तो उसे तुम अदृश्य क्यों बोल रही हो? वो तो पूरी तरह से दृश्य है। जो कुछ भी दृष्टिगत है, दृष्टव्य है वो सब फिर झूठ ही तो है, टोना-टोटका ही तो है। पहला टोटका तो यही है कि तुम्हें लगता है कि दुनिया है। फिर तो सबसे बड़ा झूठ तो यही है।
फिर तो दूसरा जो तुम पर जादू होता है, सम्मोहन होता है वो बाज़ार द्वारा होता है जब तुम्हारे ऊपर जादू करके वो सब चीज़ें ख़रीदवा दी जाती हैं जो तुम्हें ख़रीदनी नहीं चाहिए। फिर तो जगत, संसार, समाज, शिक्षा, परिवार ये सब तुले हुए हैं तुम पर जादू करने को। उस जादू से बचो ना। अदृश्य जादू की क्या बात करते हो? यहाँ तो दृश्य दृश्य में जादू है।
देखो ना, उन्होंने तुमको सम्मोहित करके तुमसे क्या-क्या नहीं करा लिया। तुम्हारे मन में क्या-क्या भर दिया, तुम्हारी ज़िंदगी को कैसा बना दिया, तुमसे कैसे-कैसे निर्णय करा दिए — वो है टोना-टोटका।
अगर टोना-टोटका किसी चीज़ को कहना भी है तो उसको कहो जो समक्ष ही है, जो सामने ही है। उसको अदृश्य मत कहो।
प्र२: आध्यात्मिक मार्ग पर जब भी आगे बढ़ता हूँ तो देखता हूँ मायावी शक्तियाँ और नकारात्मक ऊर्जा अड़ंगे डालना शुरू कर देती हैं। ये मायावी शक्तियाँ परिवार के सदस्य हैं और मेरे स्वप्न हैं। विचलित अनुभव करता हूँ। मार्गदर्शन करें।
आचार्य: मार्गदर्शन क्या करें? अब जान ही गए हो कि माया कौन है तो लगाओ पिटाई। माया के अपने हाथ-पाँव थोड़े ही होते हैं। वह किसी-न-किसी पर चढ़कर आती है। जिस पर चढ़ कर आयी है—देखा नहीं है कि गाँव वगैरह में क्या होता था? जिस पर भूतनी चढ़ी होती थी उसी को पीटते थे। भूतनी को थोड़े ही पीटते थे, जिस पर भूतनी चढ़ी होती थी उसको पीटते थे। कहें, ग़लती तेरी है तन्ने चढ़ने काहे दी?
तो जिस पर माया चढ़ी हो, पीटो उसको। बात ख़त्म। और तुम पर चढ़ी है तो अपनेआप को सज़ा दो। साधना यही तो होती है — आत्म-परिष्कार।
हमें पता है कि हम उधर जाएँगे तो फिसल जाएँगे इसलिए हम ख़ुद को यह अनुमति ही नहीं देते कि उधर जाएँ। यह है अपने ऊपर चढ़े भूत को उतारना।
कोई और रास्ता नहीं है। किसी जादूई सलाह की उम्मीद मत करो। बात सीधी है और सीधे-सीधे उसका पालन करो।
दो ही हैं—दोहरा कर कह रहा हूँ—सत्य है या भ्रम है। अब इसमें जटिलता कहाँ पर है? जहाँ भ्रम देखो उससे बचो और भ्रम आपको पकड़े तो हाथ छुड़ाकर भागो। और जिधर सत्य दिखे वहाँ सिर झुका दो, उधर प्रेम बरसा दो, उस दिशा में आगे बढ़ो। इससे सीधी सलाह और क्या दूँगा?
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