पूछो किसी से, “विवाह क्यों कर रहे हो?” तो सीधे थोड़े ही बता देगा कि, “इसलिए कर रहे हैं...” क्योंकि नर खरगोश मादा खरगोश के पास क्यों जाता है? प्रकृति चाहती है कि नन्हे-मुन्ने खरगोश आएँ, बस इतनी सी बात, इसलिए जाता है।
यही विवाह के वक़्त स्त्री और पुरुष को बता दिया जाए कि तुम दोनों को एक-दूसरे में जितनी बातें अच्छी लगती हैं वह सब क़ायम रहेंगी, बस एक दूसरे को कभी छूने को नहीं पाओगे। फिर बताओ विवाह होगा? पर तुम किसी को कैसे बताओगे कि उस स्त्री की ओर इसलिए जा रहे हो क्योंकि तुम्हें बच्चा पैदा करना है? बात सुनने में ही बड़ी असभ्य लगती है।
फिर तुम शायरी करते हो, फिर तुम बताते हो, ‘इनकी ये जो घटा जैसी ज़ुल्फें हैं, हमें ये पसंद आयीं हैं।‘ उसकी ज़ुल्फें वैसी-की-वैसी रहें, वह चाय उतनी ही मीठी बनाए, उसका दुपट्टा उतना ही पीला रहे, उसकी खुशबू उतनी ही प्यारी रहे, हँसे तो फूल झड़ें, बस यह तय कर दिया जाए कि इसको छूने को कभी नहीं पाओगे, फिर देखना तुम्हारा आकर्षण शेष रहता है या नहीं।