सुरक्षा नहीं मकान में, लड़की रहो उड़ान में || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

Acharya Prashant

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सुरक्षा नहीं मकान में, लड़की रहो उड़ान में || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

प्रश्नकर्ता: सर, आज-कल जो परिवारों के मन में डर सा बना हुआ है, हर परिवार में, उस डर को दूर करने के लिए…

आचार्य प्रशांत: क्या डर है परिवार में?

प्र: सामूहिक बलात्कार वगैरह हो रहे हैं इस वजह से। लड़कियाँ बाहर पढ़तीं हैं, नौकरी करती हैं, तो कोई नाईट ड्यूटी करनी चाहिए या नहीं करनी चाहिए? क्या करना चाहिए?

आचार्य: ठीक है। एक तथ्य है कि समाज में एक तरीके की हिंसा है, तथ्य है। इसको तुम गुब्बारे की तरह फुला नहीं सकते न। और जब आदमी तथ्यों को देखे, तो तथ्यों को उनकी पूर्णता में देखना पड़ेगा। ये सच है कि आदमी के मन में विकृतियाँ बढ़ रही हैं, पर ऐसा भी नहीं है कि समाज कभी भी बड़ा साफ़ सुथरा रहा हो।

आज तुमको अगर चारों तरफ सुनने को मिलता है और पढ़ने को मिलता है कि ऐसी घटना और वैसी घटना, तो ऐसा भी नहीं है कि ये घटनाएँ पहले नहीं घटती थीं। सच तो ये है कि आज की औरत के हाथ में थोड़ी ज़्यादा सामर्थ्य है तो इसलिए वो चिल्ला कर बता देती है कि मेरे साथ इस तरह का दुराचार हुआ। पहले तो और ज़्यादा होता था, बता पाने की आवाज़ भी नहीं थी उसके पास। पुलिस में जाकर के एक रिपोर्ट भी नहीं लिखा सकती थी।

ये हुआ एक तथ्य कि जब कहा जाता है कि घटनाएँ बढ़ रही हैं, तो घटनाएँ बढ़ी तो हैं पर ऐसी कोई बाढ़ नहीं आ गई है क्योंकि ये धारा हमेशा से बह रही है, ये पहली बात है।

दूसरी बात — जब तुम कहते हो कि घटनाएँ बढ़ी हैं तो तुम बात ये करते हो कि सड़क पर और गली में और मोहल्ले में ये सब घटनाएँ हो रही हैं। तुम इस तथ्य को बिलकुल ही भूल जाते हो कि ऐसी घटनाएँ सबसे ज़्यादा तो घरों के अंदर होती हैं। एक बहुत बड़ा अनुपात है उन लड़कियों का, महिलाओं का जो घर के भीतर ही तमाम तरीके के शोषण और हिंसा का शिकार होती हैं। सम्बन्धी, पिता, भाई, पति उनकी क्या गिनती है।

तो अगर तुमसे कोई कहे कि घर के बाहर मत निकलो खतरा है, तो उनसे पूछो कि घर के भीतर क्या सुरक्षा है? और घर के भीतर सबसे ज़्यादा असुरक्षित जानते हो कौन सी लड़कियाँ होती हैं? जो जीवन भर घर के भीतर ही रह गईं।

जिस लड़की के कदम खुले आकाश में नहीं निकले, जिसने दुनिया नहीं नापी, जिसने अपने हाथ मजबूत नहीं किए, जो शिक्षित नहीं है, जो कमाती नहीं है, जिसके पास ज्ञान नहीं है, जिसका मन खुला हुआ नहीं है, सबसे ज़्यादा संभावना उसी लड़की के शोषण की है। तो अगर शोषण से बचना चाहती हो तो तब तो और भी ज़रूरी है कि घर से बाहर निकलो। घर के बाहर खतरा है, निःसंदेह खतरा है, पर घर के भीतर मैं तुमसे कह रहा हूँ और बड़ा खतरा है। क्योंकि जो जगा हुआ नहीं है, जो बलहीन है, वो तो कभी भी शिकार हो जाएगा। तुम बात-बात पर यदि निर्भर रहीं, हाथ फैलाती रहीं, "पैसे दे दो, कपड़े दे दो, खाना दे दो, घर दे दो, सुरक्षा दे दो", तुम्हें क्या लगता है जो कोई तुम्हें ये सबकुछ देगा, तुमसे इनकी कीमत नहीं वसूलेगा? या मुफ्त में ही मिल जाएगा? मुफ्त में नहीं मिलेगा, कीमत दोगी।

प्र२: सर, जो परिवार को डर है, उसको कैसे दूर करें?

आचार्य: परिवार को ही बताओ ये सब कि आप एक तथ्य तो देखते हो, जो टी.वी में, अखबारों में आ जाता है, पर दूसरे तथ्य की ओर भी तो देखो न। मुझे तो पूरा जीवन जीना है।

सुरक्षा तुम्हें सबसे ज़्यादा पिंजड़ों में मिलती है। पर फिर पिंजड़ों में तुम उड़ भी नहीं सकते।

भूलना नहीं इस बात को। पिंजड़े खूब सुरक्षा देते हैं तुमको, पर वो तुम्हारे पर भी कतर देते हैं। पिंजड़ों में खाना भी मिल जाता है। पिंजड़े की चिड़िया को सुबह-शाम खाना दे दिया जाता है। तो सुरक्षित रहना चाहती हो खूब, तो किसी पिंजड़े में जाकर बैठ जाओ। चाहती हो ऐसा जीवन?

बाहर खतरा तो है। चिड़िया बाहर उड़ेगी तो बाहर चील है और बाज़ हैं, चिड़िया का शिकार हो सकता है। पर तुम चुन लो कि क्या तुम्हें शिकार होने की डर की वजह से पिंजड़ा ज़्यादा पसंद है?

प्र२: नहीं, सर।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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