सुनो, झुन्नूलाल! || आचार्य प्रशांत, बातचीत (2024)

Acharya Prashant

48 min
129 reads
सुनो, झुन्नूलाल! || आचार्य प्रशांत, बातचीत (2024)

प्रश्नकर्ता: सर, आपने झुन्नूलाल को बहुत फेमस (प्रसिद्ध) कर दिया है। अब हममें से कुछ लोग तो जानते हैं झुन्नूलाल कौन है, पर काफ़ी सारे लोग हैं जो बार-बार पूछते हैं कि ये झुन्नूलाल है कौन।

आचार्य प्रशांत: इतनी बार वीडियोज़ में झुन्नूलाल का ज़िक्र आता है तो अगर लोग ध्यान से देख रहे हैं या पढ़ रहे हैं तो समझ ही गये होंगे कि

कौन है। अगर नहीं समझ में आ रहा तो याद करो दस साल पहले तुम जब कॉलेज में थे। तुम्हें एक किताब दी थी मैंने, अगर याद हो, विलहेम राइक की ‘‘लिसन लिटल मैन।’’

प्र: जी।

आचार्य: ‘‘लिसन लिटल मैन’’। लिटल मैन छोटा आदमी, आम आदमी। झुन्नूलाल आम आदमी है। तो झुन्नूलाल कोई कोई दूर की बात नहीं है। लोग क्यों परेशान हो रहे हैं कि ये झुन्नुलाल कौन है, जिसकी इतनी ज़्यादा बात होती है। आम आदमी ही झुन्नुलाल है। आम आदमी और उसका आम अहंकार ‘द इगो ऑफ़ द कॉमन मैन’, द कॉमन मैन हिमसेल्फ , वही झुन्नूलाल है।

प्र: लेकिन आम आदमी तो सुनने से ऐसा लगता है न आम आदमी साधारण चीज़ लेकिन आपने उसको इतना फेमस कर दिया है बार-बार उसके उदाहरण लेकर के तो या तो वो ख़ास बन गया है वो आम कहाँ बचा।

आचार्य: वो ख़ास इसलिए है क्योंकि उसका सीधा-सीधा नाता हमसे है न। हम ही वो आम आदमी हैं, हम सब। झुन्नूलाल ईगो है ‘मैं’ ‘अहम्’ ‘द कॉमन ईगो।’ हम सब का अहम् और उसकी बात बार-बार इसलिए करनी पड़ती है क्योंकि और कोई महत्वपूर्ण हो न हो अपनी ज़िन्दगी में हम तो महत्वपूर्ण हैं न। अगर मैं ही अपने लिए अर्थ नहीं रखता, तो मेरी तकलीफें वगैरह दूर क्यों हों? ठीक है?

बाक़ी अगर तुम समझना चाहते हो कि ये झुन्नूलाल क्या चीज़ है और उसका इतना महत्व क्यों है, उसे समझना इतना ज़रूरी क्यों है तो वही मैं जिस किताब की बात कर रहा हूँ — “लिसन लिटल मैन” उसी से कुछ हिस्से लेकर के एक्सर्प्स (अंश) लेकर मैंने एक एक्टिविटी तैयार करी थी ठीक है क्योंकि पूरी किताब तो तुम लोग पढ़ने से रहे बीटेक वाले। तो वो एक्टिविटी अगर ले आओगे तो ये बातचीत उसके आधार पर और अच्छे तरीक़े से आगे बढ़ेगी “लिसन लिटल मैन” लेकर के आओ।

प्र: वो एक्टिविटी नहीं वो बम है। वो मेरे पास आज भी सुरक्षित रखा हुआ है और जब भी मेरे बैच के दोस्तों से बात होती है तो उस एक्टिविटी का ज़िक्र कहीं-न-कहीं ज़रूर आता है। मैं लेकर के आता हूँ।

आचार्य: तो वो जो बम है वो आज सारी ऑडियंस (श्रोता) पर फटने दो, उसको लेकर के आओ। झुन्नूलाल हम ही लोगों तक क्यों सीमित रह जाएँ, विस्फोट ज़रा दूर तक पहुँचे, लेकर के आओ।

(कुछ देर बाद किताब आने पर)

आचार्य (किताब को देखते हुए) तो ये है वो एक्टिविटी जो तुम लोगों को मैंने करायी थी दस-एक साल पहले और आज हम लाखों और लोगों को कराने जा रहे हैं। तो वो जो एक्सर्प्स हैं, उनको ही मैं पढ़े देता हूँ। उन्हीं के आधार पर बातचीत कर लेंगे, उसमें तुम्हें जो चीज़ जोड़नी हो बीच में जोड़ते रहना या पूछते रहना। तो जो पहला एक्सर्प्ट (वाक्यांश) है ये रहा-

“दे कॉल यू द ‘लिटल मैन’ ‘कॉमन मैन।’ आइ अंडरस्टैंड यू।”

ऑथर, कॉमन मैन से बात कर रहा है, झुन्नूलाल से बात कर रहा है और कह रहा है- “दे कॉल यू द ‘लिटल मैन’ ‘कॉमन मैन।’ आइ अंडरस्टैंड यू।” आइ एम गोइंग टू टेल यू हाऊ यू आर लिटल मैन। फर्स्ट ऑफ़ आल, हैव अ लुक एट योरसेल्फ़ सी योरसेल्फ़ एज़ यू रियली आर।”

तो अब झुन्नूलाल से कह रहा है झुन्नूलाल भागो मत, देखो कि तुम हो कैसे आज तुम्हारी बात छिड़ने वाली है, आज पूरी तुम्हारी फाइल खुल जाएगी।

“डोन्ट रन हैव द करेज़ टू लुक एट योरसेल्फ़!

तो जब झुन्नूलाल से ये कहा जा रहा है तो झुन्नूलाल एक बहुत डरे हुए चेहरे के साथ लेखक की ओर देखता है। ऑस्ट्रियन लेखक है, बहुत प्रसिद्ध लेखक हैं। साइको एनालिसिस में इनका बड़ा नाम है। फ्रॉयड के बाद की जनरेशन में विलहिम राइक। तो झुन्नूलाल क्या बोलता है?

“व्हाट राइट डू यू हैव टू टेल मी थिंग्स?”

तो लेखक कहते हैं,

“आई हियर दिस क्वेशन फ्रॉम योर इम्पर्टीनेन्ट माउथ, लिटल मैन। यू आर अफ़्रेड टू लुक एट योरसेल्फ़ यू आर अफ़्रेड ऑफ़ क्रिटिसिज़्म लिटल मैन।”

तो इसीलिए मैं झुन्नूलाल को लेकर आता हूँ क्योंकि हममें से भी ज़्यादातर लोग न ख़ुद को देखने से बहुत डरते हैं। तो हम झुन्नूलाल हैं।

“यू आर अफ़्रेड टू लुक एट योरसेल्फ़ यू आर अफ़्रेड ऑफ़ क्रिटिसिज़्म।”

क्रिटिसिज़्म से मतलब निन्दा नहीं है। क्रिटिसिज़्म से मतलब स्वयं को देखना, आलोचना। लोचन माने आँखें, आँखों से क्या करा जाता है? देखा जाता है, तो स्वयं को देखना ही क्रिटिसिज़्म है, उस अर्थ में क्रिटिसिज़्म का उपयोग है।

“लिटल मैन, यू से हू एम आइ टू हैव एन ओपीनियन ऑफ़ माइ ऑन।”

ये झुन्नूलाल की निशानी है। उसके पास अपना न कोई विचार होता, न मत होता, ओपिनियन कुछ उसके पास अपना नहीं होता है। उसका सब कुछ उधार का होता है, दूसरों से उसने सोख लिया होता है। अब ये जो लिटल मैन है इसको हम पूरी तरह समझ सकें और इस लिटल मैन के माध्यम से अपनेआप को समझ सकें इसके लिए लेखक ने आगे क्या करा है कि वो ग्रेट मैन को ले आया है। कह रहा लिटल मैन को बेहतर समझा जा सकता है ग्रेट मैन की पृष्ठ भूमि में, ग्रेट मैन से उसकी तुलना करके। तो अब लिटल मैन से कह रहा है, झुन्नूलाल से,

“यू आर डिफरेन्ट फ्रॉम द ग्रेट मैन इन ऑनली वन थिंग: द ग्रेट मैन, एट वन टाइम ऑलसो वाज़ अ वेरी लिटल मैन बट ही डवलप्ड वन इम्पॉर्टेन्ट एबिलिटी: ही लर्नड टू सी वेयर ही वाज़ स्मॉल इन थिंकिंग एंड एक्शंस. .”

हर महान आदमी जिसको आज आप महान बड़ा बोल सकते हो, सुविकसित बोल सकते हो। पैदा तो वो भी छोटा ही होता है। लेकिन अन्तर झुन्नूलाल में और महान आदमी में ये होता है कि महान आदमी ने स्वयं को देखना शुरू करा और बिना डरे ये स्वीकारना शुरू करा कि वो छोटा है और जो ये देखने लग जाता है और निडर होकर के स्वीकारने लग जाता है कि वो बहुत चीज़ों में बहुत छोटा है, संकुचित है, हीन है, अविकसित है, वो अपने छुटपन से आगे बढ़कर फिर बड़ा होने लग जाता है। “अंडर द प्रेशर ऑफ़ समथिंग”

ये सुनना बहुत क़ीमती बात है और बड़े प्यार की बात है।

“अंडर द प्रेशर ऑफ़ समथिंग, विच वाज़ डियर टू हिम, ही लर्नड बेटर एंड बेटर टू सेंस द थ्रेट देट केम फ्रॉम हिज़ स्मालनेस एंड पिटीनेस।”

ये किसके लिए बोला जा रहा है? ग्रेट मैन के लिए, महान आदमी के लिए।

महान आदमी प्रेम जानता है। उसे कुछ ऐसा मिल गया है जीवन में, उसने कुछ ऐसा ढूँढ निकाला है जीवन में, जो प्यार के लायक था और उसने कहा कि अगर वो छोटा रह गया तो वो जो चीज़ है, जिससे वो बहुत प्यार करता है, वो चीज़ उसे कभी मिलेगी नहीं। फिर से सुनना

“अंडर द प्रेशर ऑफ़ समथिंग, विच वाज़ डियर टू हिम, ही लर्नड बेटर एंड बेटर टू सेंस द थ्रेट देट केम फ्रॉम हिज़ स्मालनेस एंड पिटीनेस।”

उसको समझ में गया है कि उसका ये जो छुटपन है, उसकी स्मॉलनेस , उसकी क्षुद्रता, उसके प्यार को तबाह कर देगी। तो लव कम्स फर्स्ट सबसे पहले प्रेम आता है। बड़े आदमी की निशानी ये होती है उसके दिल में प्यार होता है चूँकि उसके दिल में प्यार होता है इसीलिए वो अपने छुटपन को, अपनी सीमाओं को, अपनी क्षुद्रता को वो फिर छोड़ता चलता है। चाहे उसमें जो क़ीमत देनी पडे या दुख हो, दर्द हो। वो कहता है, ‘नहीं, अपनी पिटीनेस को तो मैं छोड़ता चलूँगा क्योंकि मुझे प्यार है। पिटीनेस को नहीं छोड़ूँगा तो प्यार छूट जाएगा।’

“द ग्रेट मैन, नोज़ वेन एंड इन व्हाट ही इज़ अ लिटल मैन’’

ग्रेट मैन की पहचान ये है कि वो निडर होकर के ये स्वीकार लेता है कि वो किन-किन जगहों पर और किस-किस तरीक़े से छोटा है। इसी को बोलते हैं स्वयं को देखना सेल्फ नॉलेज या सेल्फ ऑब्जर्वेशन और ख़ुद को देखो तो यही पता चलता है कि कहाँ-कहाँ पर तुम्हारे विकार हैं, कमज़ोरियाँ हैं। कहाँ-कहाँ पर तुम हारे हुए हो, कहाँ-कहाँ पर तुम अपनी वृत्तियों के, टेंडेंसीज के ग़ुलाम हो। और जैसे-जैसे ये पता चलता-चलता है, वैसे-वैसे तुम इन टेंडेंसीज और कमज़ोरियों से आज़ाद होते चलते हो।

“द लिटल मैन डज़ नॉट नो देट ही इज़ लिटल”

झुन्नूलाल को पता ही नहीं है कि वो झुन्नू है। ये कितनी अजीब बात है। जो बड़ा आदमी है, जो महान है, वो जानता है कि उसके भीतर एक झुन्नू बैठा हुआ है, इसीलिए वो सतर्क रहता है। पर झुनुआ जानता ही नहीं कि वो झुनुआ है। झुनुआ सोचता है कि वो फन्ने खाँ है। झुन्नू की नज़र में वो झुन्नू नहीं है, झुन्नू की नज़र में वो पता नहीं क्या है, स्पाइडर मैन है, शक्तिमान है, कुछ होगा अपनी नज़र में।

“द लिटल मैन डज़ नॉट नो देट ही इज़ लिटल, एंड ही इज़ अफ्रैड ऑफ़ नोइंग इट।”

जाना तो जा ही सकता है क्योंकि अपनी ज़िन्दगी को देखो, अपनी हरकतों को देखो, अपने विचारों को देखो तो पता चल जाएगा कि तुम कितने छोटे आदमी हो, लेकिन उसे डर इतना लगता है अपनी असलियत जानने से कि वो सच्चाई देखने से ही इनकार कर देता है। वो कहता है, ‘मुझे ख़ुद को देखना ही नहीं।’

“ही कवर्सअप हिज़ स्मॉलनेस एंड नैरोनेस विथ इल्यूजन्स ऑफ़ स्ट्रेंथ एंड ग्रेटनेस, एंड इल्यूजन्स ऑफ़ अदर स्ट्रेंथ एंड ग्रेटनेस।”

उदाहरण के लिए वो ये कह देगा कि मेरे पुरखे और मेरे पितामह कितने महान थे उनकी स्ट्रेंग्थ और ग्रेटनेस देखो या मेरा राष्ट्र कितना महान है, मेरी जाति कितनी महान है, मेरा इतिहास कितना महान है। आसपास के और जो विषय उपलब्ध हैं, वो उनकी महानता जता-जताकर के अपनी क्षुद्रता छुपाने की कोशिश करता है।

वो ये नहीं देखता कि वो ख़ुद कितना गिरा हुआ है, कितना सीमित है, संकुचित है, मूर्ख है, झून्नू ये सब नहीं देखता बल्कि अपनी सब कमज़ोरियों को छुपाने के लिए वो दूसरों की बड़ाईयों का और दूसरों की ताक़त का गुणगान किया करता है। ये छोटे आदमी की निशानी है।

तो इस झुन्नूलाल का अब सब समझने लग गये होओगे। मैं बार-बार उल्लेख इसीलिए करता हूँ ताकि — हम सब में जो झुन्नूलाल बैठा हुआ है — हम उससे परिचित हो जाएँ, उससे थोड़ा सतर्क रहें। ये झुन्नूलाल ज़िन्दगी को नर्क बना देता है, बर्बाद कर देता है।

समझ में आ रही है बात?

और याद आ रहा ये सब मैंने पहले भी पढ़ाया हुआ है। ये सब बातें तुम लोगों से कब से बोल रहा हूँ, समझते तब भी नहीं हो। अब ये सब जब बातें बोली गयी हैं झुन्नू से तो झुन्नू का जवाब क्या आता है, सुनो। झुन्नू टोन्ट मारता है, ताना कसता है। झुन्नू बोलता है,

“लिसन टू द विज़नरी!

हमें बेवकूफ़ बता रहा है ख़ुद बहुत बड़ा विज़नरी है। झुन्नू का जवाब आया है ये रिटॉर्ट (करारा जवाब) है

“लिसन टू द विज़नरी! ही कैन टेल मी व्हाट आइ एम नॉट गोइंग टू डू इज़ ही अ डिक्टेटर”

‘तुम होते कौन हो मुझे झुन्नू कहने वाले, तुम होते कौन हो ये बताने वाले कि मैं क्या करूँ, क्या न करूँ। तुमने नाम मेरा झुन्नू रख कैसे दिया, तुम होते कौन हो?’ तो झुन्नू को जब आप कोई सलाह दो उसकी भलाई के लिए, तो आप ही पर चढ़ बैठता है, आप ही की गर्दन पकड़ लेता है। झुन्नू दुनियाभर से डरता है लेकिन जो उसका हितैषी हो उसकी गर्दन पकड़ता है।

प्र: और बोलता है ये तो आपका मत है न।

आचार्य: और बोलता है कि ‘आप अपनी ओर से कुछ कह सकते हो, तो हम भी तो अपनी ओर से कुछ कह सकते हैं, सबकी अपनी-अपनी सोच।’ तो इस तरह करके झुन्नू बार-बार अपनेआप को बचाता रहता है और झुन्नु ही रहा आता है।

प्र: सर, मुझे इसमें एक चीज़ अभी और याद आ रही थी कि जैसे यहाँ पर लिखा था न कि जो ग्रेट मैन है, जो बड़ा आदमी है, उसको अपना छोटापन कहीं-न-कहीं पता होता है। तो एकदम मेरे दिमाग़ में एक उक्ति आयी जो सोक्रेटीज की है शायद कि “आल आइ नो इज़ दैट आइ नो नथिंग (मैं ये जानता हूँ कि मैं कुछ नहीं जानता)।”

आचार्य: ब्यूटीफुल! तो सॉक्रेटीज ने कहा था कि भई, सब जानने के बाद यही समझ में आया मैं तो कुछ नहीं जानता हूँ और जब तुम सॉक्रेटीज का, सुकरात का नाम ले रहे हो तो भूलना मत कि कितने सारे स्मॉल मैन इकट्ठा हो गये थे सॉक्रेटीज को मारने के लिए।

सुकरात की कोई प्राकृतिक मृत्यु तो नहीं हुई थी, न सॉक्रेटीज को किसी एक तानाशाह ने मौत के घाट उतार दिया था। एथेन्स की आम जनता, सैकड़ों लोग इकट्ठा हुए थे। उन्होंने अपनी जूरी बनायी थी और उन्होंने कहा था, ‘इस सॉक्रेटीज को मार डालो। सुकरात को आम आदमी ने मारा है।

ये जो ग्रेट मैन है न जिसकी अभी यहाँ बात हुई कि वो ग्रेट मैन जिसको प्यार हो गया और प्यार के नाते उसने कहा मुझे छोटा रहना नहीं है, ये जो झुन्नूलाल है ग्रेट मैन से ये बे-इंतिहा नफ़रत करता है।

तो सुकरात चाह रहे थे कि एथेन्स का आम आदमी भी उठ खड़ा हो, अपने लिए कुछ नहीं चाह रहे थे। उन्होंने न अपना नाम आगे बढ़ाया, न अपने हाथों से उन्होंने कभी कुछ लिखा, जीवनभर वो गरीब ही रहे। जवान लोगों से जाते थे, बात करते थे, खुली बात करते थे।

चौराहों पर खड़े हो जाते थे, वहाँ कैफे होते थे, जहाँ पर लोग बैठकर कुछ खाते-पीते थे। वहाँ कोई मिल गया उससे बात करनी शुरू कर देते थे और वो एथेन्स की आम जनता को ही, ग्रीस की जनता को ही समझाने की कोशिश कर रहे थे कोई बहुत महत्वपूर्ण बात।

वो उनको बता रहे थे कि तुम्हारा छुटपन कहाँ पर है और तुम्हें उससे मुक्ति कैसे मिलेगी।

पहले ये माना जाता था — सुकरात से पहले — कि जो ज्ञान पीछे से आ रहा है, उस ज्ञान का बड़ा महत्व है और वो सब बातें जो हमें ठीक लगती हैं वो ठीक होंगी अगर वो हमें ठीक लगती हैं।

वो कहते थे, सोफिस्ट्स (मिथ्या हेतुवादी) होते थे, वो कहते थे “मैन इज़ द मीज़र ऑफ़ एवरीथिंग।” सुकरात ने कहा, ‘नहीं ये तो बताओ कि तुम्हारे भीतर कौन है जो मेंज़रमेन्ट ले रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं तुम्हारे भीतर झुन्नूलाल बैठा हुआ है।’ अब ये बात ग्रीस को हजम नहीं हुई।

सुकरात ने कहा, कि ‘जो लोग पीछे से बहुत इज्ज़त पाकर के आ रहे हैं, माने अतीत से ज़रूरी नहीं है वो इज्ज़तदार हों।’ तो जवान लोगों से सुकरात ज़्यादा बात करते थे। सुकरात ने कहा, ‘किसी के भी नाम, पद या उम्र के आगे सिर मत झुकाना, उसका ज्ञान परखना।’

सुकरात ने सबसे बड़ा मूल्य ज्ञान को दिया।

बोले, ‘न परम्परा बहुत महत्व रखती है, न उम्र, न अनुभव, न पद। तो होगा किसी सरकारी पद का बड़ा आदमी, जाओ उससे बात करो और बात करने के बाद तुम्हें लगे — द डायलेक्टिकल मेथड , ठीक है। संवाद करेंगे, हम बात करेंगे और बात करने के बाद अगर लगे कि वो सम्मान का अधिकारी है तो उसे नमस्कार करना, नहीं तो नमस्कार मत करना।’

आम आदमी बुरी तरह चिढ़ गया। सुकरात से आम आदमी पूरी तरह चिढ़ गया। जब उनको मृत्युदंड दिया गया तो उन पर इल्ज़ाम ही यही लगा था कि ये हमारे जवान लोगों को गुमराह कर रहे हैं, बर्बाद कर रहे हैं, भ्रष्ट कर रहे हैं, ये हमारे घर तोड़ रहे हैं। ये हमारे जवान लड़के हैं ये हमारी सुनते नहीं, ये तो कहते हैं कि हम बस सत्य की सुनेंगे।

और सुकरात ने कहा था, ‘सत्य से बड़ा कुछ होता नहीं। सिर ज़रूर झुकाना, पर जब ये दिखने लगे कि सामने वाला तुम तक सच्चाई लेकर आ रहा है, तो उसके सामने सिर झुका देना, नहीं तो यूँही नहीं और बात करना, बात करना।

विनम्रता से बात करना, सच जानने के लिए बात करना, पर बात करना।’ तो उन्होंने संवाद का तरीक़ा दिया था और वो संवाद का तरीक़ा फिर बहुत आगे तक चला है पाश्चात्य दर्शन में।

आप उपनिषदों में जाते हो तो वहाँ तो है ही संवाद का तरीक़ा। उपनिषद का मतलब ही है गुरु और शिष्य आमने-सामने बैठकर बातचीत ही तो कर रहे हैं, वो डायलेक्टिकल मेथड ही तो है।

तो सुकरात को सब झुन्नूलाल लोग झेल नहीं पाये। सैकड़ों लोगों की जूरी बैठी, समझ लो बड़ी भारी एक पंचायत और उसमें भी जो पढ़े-लिखे लोग थे उन्होंने कहा, ‘नहीं सुकरात को छोड़ दो।’ जितने सब वहाँ झुन्नूलाल थे बिलकुल ही कॉमन मैन, आम आदमी, बहुत सारे तो उसमें से अनपढ़, अशिक्षित; उन्होंने कहा सुकरात को मरना होगा। कोई सर्वसम्मति से निर्णय नहीं आया था, बँटा हुआ निर्णय था, बस बहुमत उनका बैठ गया था जो मूर्ख थे और अक्सर मूर्ख ही बहुमत में होते हैं।

तो सुकरात को फिर मरना पड़ा। मरने से वो तब भी बच सकते थे। वो कह सकते थे कि भई ठीक है, ये जो जो शर्तें मुझ पर डालना चाहते हैं, मैं उसे मंजूर करे लेता हूँ। बड़ी भारी शर्तें नहीं थी। शर्तें यही थी कि कुछ बोलोगे नहीं और राज्य छोड़कर के चले जाओगे और सुकरात वृद्ध हो चुके थे आसानी से मान सकते थे कि मुझे तो जो करना था कर दिया अब मान लेता हूँ, चला जाता हूँ, जान बचाता हूँ।

कई लोगों ने सलाह भी दी। बोले, ‘नहीं कोई चीज़ है जो मुझे जान से ज़्यादा प्यारी है और वही चीज़ मैंने इन सब जवान लड़कों को सिखायी है।’ वो जो यहाँ था न:-

“ही हेज़ डिसकवर्ड समथिंग विच इज़ वेरी डिअर टू हिम एंड ही रियलाइजेज़ देट इफ ही नाउ केटर्स टू हिज़ पिटीनेस ही विल लूज व्हाट इज़ वेरी डिअर टू हिम”

ट्रुथ वाज़ वेरी डिअर सॉक्रेटीज़। सुकरात ने कहा, ‘अभी अगर मैंने मौत से बचने के लिए उनकी शर्तें मान लीं तो ज़िन्दगी तो बचा लूँगा पर सत्य को खो दूँगा और अपने लिए खो दूँ सत्य तो चलो कोई बात नहीं शायद, ये जो मैंने बहुत श्रम करके एथेन्स की आबादी तक, ख़ासकर युवा आबादी तक सच को पहुँचाया है, इनका विश्वास डोल जाएगा।’ तो उन्होंने कहा, ‘लाओ, ज़हर दो।’

तो हेमलॉक ज़हर था, उसका उन्होंने घोल बनाया और सुकरात को दे दिया। सुकरात ने सहर्ष स्वीकार कर लिया और जान दे दी। जान दे नहीं दी, सब झुन्नूलालों ने मिलकर सुकरात की जान ले ली।

इतिहास में जब भी किसी महान आदमी की हत्या हुई है, किसी झुन्नुलाल ने ही करी है। मैं इसलिए बार-बार झुन्नूलाल का ज़िक्र किया करता हूँ अपनी चर्चाओं में और वो झुन्नुलाल हमसे बाहर कोई नहीं है, हम हैं।

जब भी महानता की हत्या हुई है, आम आदमी ने करी है और वो आम आदमी हमारी ही छाती में बैठा हुआ है। हमें स्वयं के विरुद्ध बहुत सतर्क रहना पड़ेगा।

प्र: हम किसी एक व्यक्ति विशेष की बात नहीं कर रहे रादर हम सभी के अन्दर एक झुन्नूलाल बैठा हुआ है।

आचार्य: हम सब पैदा ही झुन्नूलाल होते हैं। जो महान व्यक्ति है — अभी हमने बात करी थी न — वो भी जब पैदा होता है तो क्या होता है, वो भी झुन्नूलाल होता है। क्योंकि जो पैदा होता है वो तो अज्ञान में ही पैदा होता है। छोटा बच्चा कैसा होता है, वो झुन्नू ही तो पैदा हुआ है, लेकिन कुछ छोटे पैदा होते हैं और छोटे ही रह जाते हैं और छोटे ही मर जाते हैं और कुछ फैसला करते हैं कि छोटे पैदा हुए थे, छोटे जियेंगे नहीं, छोटे मरेंगे नहीं। इसी को फिर अध्यात्म में मुक्ति कहते हैं। मुक्ति का यही अर्थ होता है छुटपन से मुक्ति, क्षुद्रता, स्मॉलनेस , सीमाओं से मुक्ति।

अब आगे, आगे बढूँ या आपको कुछ इसमें बोलना है, बढूँ आगे?

प्र: नहीं, जी आगे बढ़िए।

आचार्य: आ रहा है मज़ा सुनने में?

प्र: जी।

आचार्य: तो दस साल पहले वाले ही हो।

“समटाइम्स अ ट्रूली ग्रेट मैन, डज एकचुअली कम अलॉन्ग से जीसस, लिंकन, मार्क्स”

इन व्यक्तित्वों से तो आप परिचित हैं ही, जीसस को भी जानते हैं, अब्राह्म लिंकन को भी जानते हैं, मार्क्स को भी जानते हैं। तो

“सम अ टाइम्स ट्रूली ग्रेट मैन, डज एकचुअली कम अलॉन्ग, द ट्रूली ग्रेट मैन”

उसकी पहचान क्या है? महान आदमी की पहचान क्या है?

“द ट्रूली ग्रेट मैन टेक्स फ़्रीडम डेडली सीरियसली।”

वो कहता है उसके लिए एक ही चीज़ होती है जिसके लिए वो जान दे सकता है। नहीं सीरियसली नहीं बोला, क्या बोला?

प्र: डेडली सीरियस

आचार्य: डेडली सीरियस। तो टूली ग्रेट मैन वो होगा जो इस शब्द को लेकर के डेड ली सीरियसनेस दिखाता होगा। कौनसा एक शब्द?

प्र: फ़्रीडम

आचार्य: मुक्ति फ़्रीडम । ही इज़ नॉट जस्ट सीरीअस, ही इज़ डेडली सीरीअस अबाउट फ़्रीडम।

“द ट्रूली ग्रेट मैन टेक्स फ़्रीडम डेडली सीरियसली। इन ऑर्डर टू इस्टैब्लिश द फ़्रीडम इन अ प्रैक्टिकल वे,”

अब यहाँ पर ये जो महान आदमी और जो झुन्नूलाल है, अब इनका एंगेजमेंट शुरू होता है, अब इनका सम्बन्ध बनना शुरू होता है, ठीक है। अब महान आदमी और झुन्नुलाल का अब इंटरेक्शन अब आप यहाँ होता देखोगे विलहेम रीक हमें उस मुक़ाम पर ले आये हैं।

“इन ऑर्डर टू इस्टैब्लिश द फ़्रीडम इन अ प्रैक्टिकल वे,

क्योंकि महान आदमी को सबसे ज़्यादा क्या प्यारी है, फ़्रीडम, मुक्ति। वही मुक्ति जो उपनिषदों का प्रतिपाद्य विषय है। जो सारे अध्यात्म का लक्ष्य है मुक्ति, वो महान आदमी को सबसे ज़्यादा प्यारी होती है।

“इन ऑर्डर टू इस्टैब्लिश द फ़्रीडम इन अ प्रैक्टिकल वे”

माने समाज में भी सब तक वो मुक्ति और उसका सन्देश पहुँच सके

“द ग्रेट मैन हेज़ टू सराउन्ड हिमसेल्फ विथ मैनी लिटल मैन, हेल्पर्स एंड एरेन्ड बॉयज़, बिकॉज़ ही केन नॉट डू द जाइजेन्टिक जॉब हिमसेल्फ़।”

अब अगर अपने लिए मुक्ति चाहिए हो तो वो तो एक वैयक्तिक, इन्डिविजुअल पर्सनल प्रोजेक्ट हो सकता है कि मुझे अपने लिए मुक्ति चाहिए, मैंने अपने जीवन में संघर्ष किया और प्राप्त की मुक्ति। पर जब आपको वो मुक्ति का सन्देश समाज में दूर-दूर तक ले जाना होता है तो उसके लिए आपको बहुत सारे झुन्नूलालों की सहायता लेनी पड़ती है क्योंकि समाज में चारों तरफ़ हैं ही क्या झुन्नूलाल। तो आपको अगर कोई व्यवस्था, कोई प्रोजेक्ट , कोई मिशन भी आगे चलाना है तो उसमें आपको अपने साथ बहुत सारे क्या जोड़ने पड़ेंगे?

प्र: झुन्नूलाल।

आचार्य: झुन्नूलाल। तो

“बिकॉज़ ही केन नॉट डू द ग्रेट जॉब हिमसेल्फ़ देयरफ़ॉर ही हेज टू सराउंड हिमसेल्फ़ विथ मेनी लिटल मैन, एज़ हेल्पर्स एंड इरैन्ड बॉयज़”

कि आओ छोटे कामों में मेरी मदद कर दो। तो आओ बहुत सारे झुन्नूलाल आ जाओ, आ जाओ, आ जाओ, आ जाओ। वो कहता है, अच्छा कर रहा हूँ झुन्नूलालों को ला रहा हूँ, इनके माध्यम से मैं कोई बड़ा लक्ष्य हासिल करूँगा समाज में।

“फरदरमोर, यू वुड नॉट अंडरस्टैंड द ग्रेट मैन एंड यू लेट हिम फॉल बाय द वे साइड, इफ ही हेड नॉट सराउन्डेड हिमसेल्फ़ विथ द लिटल पर्सन्स।”

ये जो झुन्नूलाल है, क्योंकि ये जो महान आदमी है ये समाज के करोड़ों झुन्नूलालों से सीधा संवाद कर ही नहीं सकता क्योंकि उसका तल अलग है, उसकी भाषा अलग है, उसका मुहावरा, उसकी बोली अलग है। तो वो इन सब लोगों से सम्पर्क कर सके इसके लिए उसे उन्हीं में से लोगो को उठाकर के, उनको पुल या माध्यम बनाना पड़ता है।

अगर वो स्वयं बोलने जाएगा अपने ही तरीक़े से, अपनी ही शैली में, तो समाज उसे बहुत समझ नहीं पाएगा। तो समाज से ही लोगों को लाता है। सब झुन्नुओं को फिर वो इकट्ठा कर लेता है कि आओ तुम्हारे माध्यम से मैं दुनिया से बात करूँगा।

“नाउ सराउन्डेड बाय दीज़ झुन्नूलाल्स (दिस लिटल मैन) ही कोन्कर्स पॉवर फ़ॉर यू, ऑर अ पीस ऑफ़ ट्रुथ, ऑर अ न्यू बेटर बिलीफ़।”

वो आपके लिए या तो सत्य या कोई नया उच्चतर सिद्धान्त लेकर के आता है।

“एंड ही काउन्ट्स ऑन योर हेल्प एंड सीरियसनेस,”

और वो विश्वास करता है कि वो चूँकि आपके लिए कुछ अच्छा कर रहा है तो इसलिए आप भी उसके साथ सहयोग करोगे, गम्भीरता से उसकी सहायता करोगे।

“ही पुल्स यू आउट ऑफ़ योर सोशल मोरेस।”

आप जिस सामाजिक दलदल में, गन्दगी में धँसे, फँसे हुए हो, वो वहाँ से आपको बाहर खींचकर के निकालता है। आपको माने किसको?

प्र: झुन्नुलाल को

आचार्य: झुन्नुओं को ही, ये सब झुन्नू ही झुन्नू हैं, हम सब झुन्नू। झुन्नू कौन, हम सब झुन्नू।

“ही पुल्स यू आउट ऑफ़ योर सोशल मोरेस। इन ऑर्डर टू कीप टुगेदर द मेनी लिटल मैन, इन ऑर्डर नॉट टू लूज़ योर कॉन्फिडेन्स, द ट्रूली ग्रेट मैन हेज टू सेक्रीफ़ाइस पीस आफ्टर पीस ऑफ़ हिज़ ग्रेटनेस विच ही वाज़ एबल टू अटेन ऑनली इन द डीपेस्ट इन्टेलेक्चुअल लोनलीनेस, फार फ्रॉम यू एंड योर एवरीडे नोइस एंड यट इन क्लोज़ कॉन्टैक्ट विथ योर लाइफ़।”

उसने अपनी महानता हासिल करी थी अपने एकान्त में। लेकिन अब वही महानता वो बाँटना चाहता है सब झुन्नूलालों में। अब झुन्नूलालों में अगर महानता बाँटनी है तो अपनेआप को झुल्नूलालों से घिरवाना पड़ेगा। महानता हासिल कहाँ हुई थी, एकान्त में और अब तुम घिर किससे गये, झुन्नूलाल से।

तो तुमने जो महानता हासिल करी थी वो महानता भी धीरे-धीरे करके टुकड़ा-दर-टुकड़ा महान आदमी छोड़ता जाता है और ये करुणा है उसकी।

वो कहता है, ‘जिस चीज़ को सबसे महत्व देता हूँ दूसरों तक वही चीज़ पहुँच सके इसके लिए मैं स्वयं उस चीज़ की थोड़ी-थोड़ी कुरबानी देता चलूँगा’ और फिर वो धीरे-धीरे करके पाता है कि वो जो उसकी जो उसकी सबसे महत्वपूर्ण और प्यारी चीज़ थी उसकी निजता, उसकी स्वतन्त्रता, उसकी महानता वही झुन्नूलालों के सम्पर्क में आकर के छिन गयी है।

“इन ऑर्डर टू बी एबल टू लीड यू

तुम्हारा नेतृत्व कर सके वो

“ही हेज टू टोलरेट योर ट्रान्सफ़ॉर्मिंग हिम इनटू एन इनएक्सेसेबल गॉड”

वो चाहता है कि तुम इंसान बनो, उसकी जगह तुम महान आदमी को भगवान बना देते हो और उसको ये बर्दाश्त करना पड़ता है क्योंकि अगर वो तुम्हें बिलकुल बर्दाश्त नहीं करेगा तो फिर वो तुमसे किसी तरह का रिश्ता नहीं रख पाएगा।

“यू वुड हैव नो कॉन्फिडेंस इन हिम इफ़ ही हेड रीमेन्ड द सिम्पल मैन दैट ही वाज़,’’

अगर वो सीधे-सीधे आकर के कह दे कि भाई मैं एक साधारण आदमी ही हूँ जो तुम्हारी मदद करने आया हूँ। तो तुम्हें उसमें कॉन्फिडेंस ही नहीं आता। तुम चाहते हो कि वो आकर के घोषणा करे कि वो बहुत ऊँचा है, महान है, किसी दूसरे ग्रह से आया है, ईश्वर द्वारा भेजा गया है या एनलाइटेन्ड है।

वो इस तरह की घोषणा करे तब तो तुम उसकी सुनते हो, पर जब वो आकर सीधे ही बोल देता है, ‘मैं तुम्हारी तरह एक साधारण आदमी हूँ।‘ तो तुम्हें उसमें कोई कॉन्फिडेंस, कोई विश्वास नहीं रह जाता। अगर वो तुम्हें सीधे ही बता दे दैट ही इज़ वो जो महान आदमी है, वो सीधे ही तुमको बता दे कि

“दैट ही इज़ अ मैन हू से, केन लव वुमन ईवन दो ही हेज नो मैरिज सर्टिफिकेट।’’

अगर वो सीधे ही आकर के बता दे कि वो एक ऐसा आदमी है साधारण आदमी जो कि बिना किसी सामाजिक अनुमति की परवाह करे किसी महिला से प्रेम कर सकता है, तो सब झुन्नूलाल उसमें अपने विश्वास को खो देंगे। वो चाहते हैं कि वो उनके सामने नैतिकता का और अच्छाई का एक प्रतिमान बनकर खड़ा हो जाए। एक ऐसी आदर्श मूर्ति जिसमें वो सारे गुण समाये हुए हैं, जो झुन्नूलालों को ऊँचे लगते हैं।

अब महान आदमी अगर बता दे कि भाई मैं एक सीधा-साधा आदमी ही हूँ और जिन नियमों पर तुम चलते हो, उन नियमों पर मैं चलता भी नहीं हूँ, वो अगर बता दे आइ एम समबडी हू केन जैसे यहाँ कहा जा रहा है आइ केन, समबडी हू केन लव अ वुमन विदाउट हेविंग सोशल ऑर मैरिज सर्टिफिकेट। तो ये सब झुन्नूलाल जिनकी वो मदद करना चाहता है, वो उसके खून के प्यासे हो जाएँगे।

ये तो इधर से गया तो उनकी मदद करने और वो वहाँ से कूदकर आ जाएँगे कि हमें इसकी हत्या करनी है।

“इन दिस वे, यू

झुन्नूलाल को कहा जा रहा है

इन दिस वे, यू योरसेल्फ़ प्रोड्यूस योर न्यू मास्टर।”

वो आया था तुम्हारा दोस्त बनने और तुम बना लेते हो उसको अपना मास्टर बना लेते हो।

“प्रमोटेड टू द रोल ऑफ़ न्यू मास्टर द ग्रेट मैन लूज़ेज़ हिज़ ग्रेटनेस”

क्योंकि वो आपको किससे स्वतन्त्रता देने आया था, मास्टर्स से ही। झुन्नूलाल कौन है, जिसने कुत्ते की तरह अपने गले में पाँच पट्टे डाल रखे हैं। ये जो ‘लिसन लिटल मैन’ है, इसमें इलेस्ट्रेशंस हैं माने चित्र बने हुए हैं और वो चित्र बनाये थे विलियम स्टीग ने।

तो उसमें झुन्नूलाल के लिए जो एक प्रतीक चित्र बनाया गया, वो कुत्ते का है। ऐसा कुत्ता जिसके गले में एक नहीं पाँच पट्टे डले हुए हैं। कि न तो तुम, तुम ग़ुलाम तो हो ही, पर तुम एक इनडिस्क्रीट स्लेव हो। क्या बोला गया है? इनडिस्क्रीट स्लेव। तुम्हें ये भी नहीं पता कि तुम किस-किस के ग़ुलाम हो।

ये तो छोटी बात है कि तुम ग़ुलाम हो, ज़बरदस्त बात ये है कि तुमको पता भी नहीं है कि तुम सौ अलग-अलग लोगों के ग़ुलाम हो।

ग्रेट मैन आया था झुन्नूलाल को ग़ुलामी से मुक्ति दिलाने कि डोन्ट कीप एनी मास्टर्स। ग्रेट मैन झुन्नूलाल को क्या बताने आया था? डोन्ट कीप एनी मास्टर्स। झुन्नूलाल क्या बोलता है? यू आर माय हन्ड्रेड एंड फर्स्ट मास्टर।

झुन्नूलाल के पाँच मालिक पहले से थे। कुत्ते के गले में पाँच पट्टे पहले से थे। ये जो व्यक्ति है द ग्रेट मैन वो झुन्नूलाल से बोलने आया ‘डोन्ट हैव एनीबडी एज़ योर मास्टर’ , झुन्नूलाल ने बोला, ‘आइ हैव फाइव मास्टर्स, यू आर माय सिक्स्थ मास्टर।’

“प्रमोटेड टू द रोल ऑफ़ न्यू मास्टर द ग्रेट मैन लूज़ेज़ हिज़ ग्रेटनेस बिकॉज़ हिज़ ग्रेटनेस कन्सिस्टेड इन हिज़ स्ट्रेट फ़ॉर्वडनेस, सिम्प्लिसिटी, करेज़ एंड रियल कॉन्टैक्ट विथ लाइफ़।”

जो तुम्हारी मदद करने आता है न, तुम उसे बर्बाद कर देते हो, तुम उसे किसी लायक नहीं रखते झुन्नूलाल। तुम इतने ज़्यादा दृढ़ प्रतिज्ञ हो डिटरमिन्ड हो झुन्नू ही बने रहने के लिए कि कोई तुम्हारी मदद करने आये तो तुम उसको भी झुन्नू बना डालते हो।

तो अब जब ये सब झुन्नूलाल को बोल दिया, झुन्नूलाल को बिलकुल पसन्द नहीं है उसकी पोल खोली जाए। तो अब झुन्नूलाल का जवाब क्या आता है?

“ही डिराइड्स द सिविलाइज़ेशन, विच आइ, द कॉमन मैन इन द स्ट्रीट हैव बिल्ट अप। आइ एम आलरेडी अ फ़्री मैन इन अ फ़्री डेमोक्रेसी। हुर्रा !!’

झुन्नूलाल कह रहा है, ‘ये मैंने जो इतना ज़बरदस्त एक सिविलाइजेश न बनाया है, जो मैंने सभ्यता खड़ी करी है और मेरी पूरी संस्कृति, मेरा कल्चर ये आकर के मेरा उपहास करता है। ये कह रहा है कि मैं ग़लत तरीकों से जी रहा हूँ, मेरी सोच ग़लत है, मेरे संस्कार ग़लत हैं।

तुम होते कौन हो ये सब बोलने वाले और बोलना नहीं कुछ बिकॉज़ आइ एम अ फ़्री मैन इन फ़्री डेमोक्रेसी, हुर्रा! मैं ग़ुलाम नहीं हूँ। मैंने मास्टर्स नहीं बना रखे, कुत्ता कैसे बोल दिया मुझको। ‘आइ एम अ फ़्री मैन इन फ़्री डेमोक्रेसी।’

झुन्नूलाल को कुछ समझाओ तो वो काटने दौड़ता है, ये हैं हमारे झुन्नू लाल।

प्र: सर, यहाँ पर जैसे एक ज़िक्र हुआ था लिंकन साहब का। तो मुझे कहीं-न-कहीं दिख रहा कि उनके जीवन में भी एक मोड़ ऐसा ही आया था जहाँ पर उन्हें एक झुन्नूलाल ने ही मार दिया।

आचार्य: हाँ, बिलकुल-बिलकुल। देखो बोला तो हमने अभी इन्होंने बोला न तीन उदाहरण दे दिये इन्होंने ग्रेट मैन के जीसस, लिंकन, मार्क्स और भी तुम हज़ारों उदाहरण दे सकते हो बहुत सुन्दर-सुन्दर उदाहरण हैं। ये तो पश्चिम के उदाहरण हैं, भारत में भी महान लोगों के बड़े अच्छे-अच्छे अनुपम उदाहरण हैं।

आप अब्राहम लिंकन का उदाहरण लोगे, क्या हुआ था? एक ऊँचे आदर्श के लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी। उन्होंने क्या कहा, उन्होंने कहा, ‘ये जो तुमने काला-गोरा चला रखा है और दासता चला रखी है ये पाशविक बात है, ये अमानवीय है ये नहीं चलेगा।’ बड़ी लम्बी लड़ाई हुई है, बड़ी लम्बी लड़ाई और वो लड़ाई जब जीत गये लिंकन तो एक छोटा आदमी आता है और उनको थियेटर में गोली मार देता है।

महानता की जब भी हत्या हुई है वो झुन्नूलाल के ही हाथों में खून पाओगे तुम। वोल्ट विटमेन की कविता है ‘ओ कैप्टन! माय कैप्टन!’ मेरी बड़ी पसन्दीदा कविता है। तो वो अब्राहम लिंकन की हत्या पर ही लिखी गयी थी। तो अभी मुझे ठीक से याद नहीं आएगी बट जो उसमें बात है वो यही है कि जहाज़ अब विजयी होकर के आ रहा है बन्दरगाह की ओर, अपनी मंज़िल की ओर और लोग वहाँ खड़े हुए हैं ’एंड दे आर एग्जल्टिंग और वो जहाज़ के कैप्टन का, विजयी कैप्टन का स्वागत करने को इतने आतुर हो रहे हैं।

लेकिन मेरा कैप्टन कुछ बोल क्यों नहीं रहा है। हम जीत चुके हैं लड़ाई और लोग अब हमारा स्वागत करने को तैयार हैं, मेरा कैप्टन कुछ बोल नहीं रहा है। फिर उसमें अन्त में आता है कि मेरा कैप्टन कुछ नहीं बोलेगा बिकॉज़ ही हेज़ फॉलन कोल्ड एंड डेड।

तो वो बहुत दुखद घटना थी और एक बहुत बड़ी भेंट देकर के गये लिंकन, न सिर्फ़ अमेरिका को बल्कि पूरे विश्व को। लिंकन ने जो करा, वो न करा होता तो दक्षिण अफ़्रीका में अपार्थीड (रंगभेद की नीति) जैसे समाप्त हुआ नहीं होता अभी हाल में, भारत में जाति की कुरीति के विरुद्ध जितने जोश से हम आन्दोलन कर पाये और लेजिस्लेशन कर पाये, उसमें कठिनाई आती।

तो लिंकन साहब के संघर्ष का विश्वव्यापी प्रभाव रहा था और ऐसे महान आदमी को एक बहुत छोटा आदमी आकर के मार देता है, क्यों? वो बोलता है क्योंकि मुझे लगता है काले-लोगों से ग़ुलामी करने में बुराई क्या है।

छोटी सोच, छोटा आदमी लेकिन महानता की हत्या कर गया। ये चलता है।

प्र: मुझे कहीं-न-कहीं फिर ये भी दिख रहा है कि एक तरह से महानता की रक्षा करना फिर कितना ज़रुरी है क्योंकि वो महानता और वो छुटपन आ तो इस देह रूप में ही रहे हैं। उसको मारने में कुछ नहीं जाता, सिर्फ़ एक गोली।

आचार्य: कुछ भी नहीं जाता, कुछ नहीं होता और उनकी हत्या के पहले भी प्रयास हो चुके थे। लेकिन महानता के साथ एक बात और भी रही है चूँकि उसे किसी बहुत ऊँची चीज़ से बहुत प्यार होता है न इसीलिए उसे अपनी देह से और अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा से थोड़ा कम प्यार होता है।

झुन्नूलाल को सबसे ज़्यादा प्यार किससे होता है, अपनी व्यक्तिगत भलाई से, अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा से, अपनी देह से। ‘भाई मेरी बॉडिली सिक्योरिटी ठीक रहनी चाहिए’ ये झुन्नूलाल है।

लेकिन महान लोगों के साथ अक्सर ये पाओगे कि वो अपनी निजी सुरक्षा को कई बार कम महत्त्व देते हैं। इसलिए नहीं कि उन्हें आत्महत्या करनी है, इसलिए क्योंकि कुछ और है जो उन्हें ज़्यादा प्यारा है।

तो वो कई बार कहते हैं कि ठीक है उस दूसरी चीज़ के लिए अगर मुझे थोड़ा अपनी सुरक्षा में ढील देनी पड़ रही है तो कोई बात नहीं और इसी ढील के चलते कई बार उनकी हत्या होती है।

सुनो! झुन्नूलाल, आगे सुनो, क्या भाई मज़ा आ रहा है तुम लोगों (श्रोताओं से पूछते हैं) को कैसा लग रहा है सुनने में? जो लोग सुन रहे होंगे अभी तक बोर हो रहे होंगे या मज़ा आ रहा होगा उन्हें?

श्रोता: मज़ा ही आ रहा होगा।

आचार्य: मज़ा आ रहा होगा, चलो, तो सुनो झुन्नूलाल

“यू हैव नो सेंस फ़ॉर द ट्रूली ग्रेट मैन”

झुन्नूलाल जो सही में महान आदमी होता है न, तुम्हें न तो उसकी पहचान होती है, न सम्मान। ठीक है। पहचानते ही नहीं सम्मान कैसे करोगे, तुम सम्मान भी किसका करते रहते हो? वो कहते हैं तुम जो लिटल ग्रेट मैन होते हैं उनका सम्मान करते रहते हो। वो भी यहाँ कई बार आया है लिटल ग्रेट मैन कि जो है तो झुन्नूलाल ही पर बना बैठा है महान। कह रहे ऐसों का तो तुम फिर भी सम्मान कर लोगे, पर जो सचमुच महान है, उसका सम्मान करने में बिलकुल जान सूख जाती है तुम्हारी।

“यू हैव नो सेंस फ़ॉर द ट्रूली ग्रेट मैन।

आगे कारण

हिज़ वे ऑफ़ बीइंग उसकी हस्ती

हिज़ सफ़रिंग, हिज़ लॉन्गिंग, हिज़ रेजिंग, हिज़ फाइट फ़ॉर यू इज़ एलियन टू यू।”

चूँकि तुम ख़ुद कभी किसी के लिए कुछ निस्वार्थ कर नहीं सकते इसीलिए तुम्हारे खोपड़े में ये बात नहीं घुसती कि कोई दूसरा ऐसा हो सकता है जो तुम्हारे लिए सचमुच निस्वार्थ कुछ कर रहा है, चूँकि तुम्हारे दिल में किसी के लिए जज़्बा नहीं, प्रेम नहीं, वो रेजिंग , वो लॉन्गिंग तुम्हारे पास नहीं हैं, तो इसीलिए तुमको समझ में ही नहीं आता कि कोई ऐसा हो सकता है जिसके दिल में आग भी उबल रही है और समुन्दर भी लहरा रहा है।

आग जो प्रज्वलित है सब बन्धन जला देने के लिए और समुन्दर जो चाहता है कि सबको शीतल कर दे, सबकी प्यास बुझा दे। ये तुम्हें यक़ीन ही नहीं होता क्योंकि तुम्हारे पास न आग है, न सागर।

“हिज़ वे ऑफ़ बीइंग, हिज़ सफ़रिंग”

चूँकि तुम किसी के लिए दुख कभी झेल ही नहीं सकते। तुम दुख अगर झेलते भी हो तो बस अपने अज्ञान में और अपने स्वार्थ के लिए। दुख तुम्हें भी है, पर इन वज़हों से होता है अज्ञान और स्वार्थ। तुमने निस्वार्थ दुख कभी झेला नहीं है।

“हिज़ वे ऑफ़ बीइंग

ग्रेट आदमी के लिए कहा

हिज़ सफ़रिंग, हिज़ लॉन्गिंग, हिज़ रेजिंग, हिज़ फाइट फ़ॉर यू इज़ एलियन टू यू। यू केन नॉट अंडरस्टैंड दैट देयर आर मैन एंड एन विमन हू आर इनकेपेबल ऑफ़ सप्रेसिंग ऑर एक्सप्लोयटिंग यू एंड हू रिअली वान्ट यू टू बी फ़्री रियल एंड ओनेस्ट।”

तुम्हारा आज तक जिससे भी वास्ता पड़ा है बेटा झुन्नू, उन्होंने तुम्हारा दमन ही करा है, तुम्हारा शोषण ही करा है। तो जब कोई तुम्हारे पास तुम्हें आज़ाद कराने भी आता है, तुम्हें लगता है ये भी मेरे पास मेरा दमन करने ही आया होगा।

तुम्हें यक़ीन ही नहीं होता कि ऐसे भी लोग हो सकते हैं जो आये हैं तुम्हारे पास सच्चाई को लेकर के, झूठ को लेकर नहीं आये हैं। जो चाहते हैं कि तुम भी ईमानदार हो जाओ और सच्चे हो जाओ, तुम्हें यक़ीन ही नहीं आता।

तुम्हें ऐसे लोग एलियन लगते हैं क्योंकि तुममें और उनमें कुछ साझा नहीं है। तुम पूरे ही छोटे हो चुके हो और उन्होंने छुटपन को पूरा ही त्याग दिया है। तो क्या आ गया, एलियनेशन आ गया, तुम्हारे उनके बीच में कोई पुल नहीं बन पाता, कोई रिश्ता नहीं हो पाता।

“यू डू नॉट लाइक दीज़ मैन एंड वुमन फ़ॉर दे आर एलियन टू योर बीइंग। दे आर सिम्पल एंड स्ट्रेट; टू देम,

खूबसूरत तरीक़े से कहा है

टू देम, ट्रुथ इज़ व्हाट टैक्टिक्स इज़ टू यू।”

जैसे तुम्हारी पूरी ज़िन्दगी, तुम्हारा पूरा दिन, तुम्हारा पूरा मन भरा होता है टैक्टिक्स से, टैक्टिक्स माने ये छोटे-छोटे स्तर की चालाकियाँ। इस चीज़ में कन्नी काट ली, वहाँ दो पैसे चुरा लिये, वहाँ थोड़ा झूठ बोल दिया, वहाँ थोड़ी होशियारी दिखा दी। झुन्नूलाल और क्या करता है दिनभर यही तो करता रहता है। बोल रहे हैं,

“टू द ग्रेट मैन ट्रुथ इज़ व्हाट टैक्टिक्स आर टू द स्मॉल मैन”

इसीलिए दोनों में कोई

“तेरा मेरा मनवा कैसे एक होई रे।”

दोनों में कोई रिश्ता ही नहीं बन पाता।

“द ग्रेट मैन लुक्स थ्रू यू,”

उसको तुम्हारी पूरी माया समझ में आती है, वो आर-पार तुमको देख लेता है, तुम उससे कुछ छुपा नहीं पाते।

“लुक्स थ्रू यू, नॉट विथ डेरीज़न।”

तिरस्कार, उपेक्षा या घृणा के भाव से नहीं, वो तुम्हारी असलियत जान लेता है।

“बट पेन्ड एट द फेट ऑफ़ ह्यूमन्स

बल्कि दर्द के साथ, घृणा के साथ नहीं, दर्द के साथ। तुम्हें देखता है, तुम्हारी क्षुद्रता को देखता है, तुम्हारी हीनता को देखता है, तुम्हारे बन्धनों को देखता है, तुम्हारी मूर्खता को देखता है और ये सब देखकर के उसे तुमसे नफ़रत नहीं होती, तुम्हारे प्रति उसमें करुणा उठती है।

वो चाहे तो नफ़रत भी कर सकता है, तुम्हारी हालत को देखकर के तुमसे। पर वो कहता है, ‘नहीं, मैं नफ़रत नहीं करूँगा, मुझे दर्द हो रहा है कि ये इस हालत में क्यों है, क्या मैं इसकी मदद कर सकता हूँ।’

बट यू फील लुक्ड थ्रू एंड सेंस डेन्जर।”

लेकिन जैसे ही तुम्हें पता चलता है कि किसी ने तुम्हारी हकीक़त जान ली है, “समबडी हैज़ लुक्ड थ्रू यू” तुम एकदम डर जाते हो क्योंकि तुम्हारी पूरी ज़िन्दगी ही बीती है दूसरों को नक़ली मुखौटे दिखाने में और किसी ने मुखौटों के पार तुम्हारी असली शक्ल देख ली, तो तुम बे-इंतिहा घबरा जाते हो। तुम्हें लगता है ‘बाप रे बाप! राज़फ़ाश हो गया, पोल खुल गयी, अब क्या होगा, अब क्या होगा।’

लेकिन उसने तुमको अगर साफ़-साफ़ देख लिया है बिलकुल एक्सरे की तरह तुमको भीतर से पढ़ लिया है, तो अब वो तुम्हारा शोषण नहीं करना चाहता। तुमको लगता है अब मेरा पर्दाफाश हो गया तो मेरा शोषण होगा। नहीं उसने तुम्हारी बीमारी देख ली है, अब वो उसका उपचार करना चाहता है।

“यू आर अफ्रैड ऑफ़ द ग्रेट मैन, ऑफ़ हिज़ क्लोजनेस टू लाइफ़ एंड हिज़ लव फ़ॉर लाइफ़।”

क्योंकि न तुम्हारे पास क्लोजनेस टू लाइफ़ है , न तुम्हारे पास लव फ़ॉर लाइफ़ है। सच पूछो तो तुम्हारे पास लाइफ़ ही नहीं है, जो ग्रेट मैन के पास है। तो तुम उससे डर जाते हो, तुम कहते हो, ‘बाप रे बाप! गड़बड़ है कुछ।’

“द ग्रेट मैन डज़ नॉट वॉन्ट टू सी यू सफ़र एज़ यू हैव सफ़र्ड फ़ॉर थाउजेंड्स ऑफ़ ईयर्स”

ग्रेट मैन चाहता है जैसे तुम हमेशा दुख में रहे हो, बन्धन में रहे हो, छटपटाते रहे हो, बेचैन रहे हो तुम्हारी वो बेचैनी मिटे।

‘ही डज़ नॉट वॉन्ट टू हीयर यू बैबल एज़ यू हैव बैबल्ड फ़ॉर थाउजेंड्स ऑफ़ ईयर्स।”

ये जो तुम बकवास करते आये हो बक-बक-बक-बक-बक-बक बिना अर्थ की बातचीत, बिना उद्देश्य के सारे कर्म तुम्हारे। वो कहता है, ‘ये नहीं हो, तुम हमेशा यही करते आये हो और ज़िन्दगी तुमने अपनी बर्बाद करी है पीढ़ी दर पीढ़ी।’

‘ही डज़ नॉट वॉन्ट टू सी यू एज़ अ बीस्ट ऑफ़ बर्डन बिकॉज़ ही लव्स लाइफ़ एंड वुड लाइक टू सी इट फ़्री फ्रॉम सफरिंग एंड इग्नोमिटी।”

उसे जीवन से प्रेम है और तुम भी जीवित हो, तो इसलिए वो नहीं चाहता कि तुम कष्ट में जियो। पर तुम्हें ये बात समझ में नहीं आती। नहीं समझ में आती और क्या जवाब देते हो तुम, ये जवाब सुन लो। झुन्नूलाल को जब ये सब बोला गया तो झुन्नूलाल ने बिलकुल चीख मार दी और चीख मारकर के बोला,

“ग्रैब हिम! एग्जामिन हिम! थ्रो हिम आउट ऑफ़ द कन्ट्री!”

ये जो ये सब बड़ी-बड़ी बातें बोल रहा है और बहुत महान आदमी बन रहा है, इसको पकड़ो, इसको एग्ज़ामिन करो, इसकी जाँच-पड़ताल करो, तहक़ीक़ात करो, कहीं ये दुश्मन का एजेंट तो नहीं है, कहीं ये कोई राष्ट्रविरोधी तत्व तो नहीं है।

“ग्रैब हिम! एग्जामिन हिम! थ्रो हिम आउट ऑफ़ द कन्ट्री!”

उसको देश से बाहर भगाओ, ये ख़तरनाक है। तो झुन्नू है तो बहुत छोटी चीज़ और हम उसको लेते भी मज़ाक में रहते हैं लेकिन ये जो छोटी चीज़ है ये कुछ बड़ा होने नहीं देती है ज़िन्दगी में। ठीक वैसे जैसे धूल का एक छोटा सा कण, बहुत छोटा सा कण अगर आँख में पड़ जाए तो तुम्हारी आँखों से सूरज भी विदा हो जाता है। है बहुत छोटी सी चीज़, लेकिन जो सबसे बड़ी चीज़ हो सकती है उसको भी तुम से दूर कर देती है ये छोटी सी चीज़।

सोचो क्या है, इतना सा बालू का कण चला गया है आँख में और पूरा संसार अब तुम्हारे लिए विलुप्त हो गया। एक ज़रा सी चीज़ ने जो सबसे बड़ा हो सकता था उसको भी तुम्हारे लिए अदृश्य कर दिया, तुम से दूर कर दिया। तो झुन्नूलाल इसीलिए सफल है, झुन्नूलाल इसीलिए बहुत ताक़तवर है क्योंकि वो यहाँ (सीने की ओर इशारा करते हुए) बैठा हुआ है।

धूल का कण कोई ताक़त नहीं रखता अगर दूर होता, पर जब वो आँख के अन्दर घुस जाता है तो वो बिलकुल शक्तिशाली हो जाता है न। वैसे ही झुन्नूलाल हमारे यहाँ (पुनः सीने की ओर इशारा करते हुए) घुसा हुआ है। हम सब झुन्नूलाल हैं, इसीलिए झुन्नूलाल में बहुत ताक़त है।

प्र: सर अभी जैसे ही इस पेसेज में बात की गयी थी कि किस तरह से जो महान आदमी है वो झुन्नूलाल को बहुत एलियन दिखता है। तो मुझे एक स्टेटमेंट याद आयी एल्बर्ट आइंस्टीन की तो मैंने उसको जल्दी से खोजा जो उन्होंने एक व्यक्ति के लिए कही थी। उन्होंने कहा था कि, “जनरेशंस टू कम बिल स्कार्स बिलीव दैट सच अ वन एज़ दिस एवर इन फ्लेश एंड ब्लड वॉक्ड अपॉन दिस अर्थ।” अब समझ में आया।

आचार्य: हाँ, आने वाली पीढ़ियों को यक़ीन नहीं होगा कि ऐसा कोई व्यक्ति सचमुच एक मानव शरीर में इस पृथ्वी पर कभी चलता था और आइंस्टीन की भविष्यवाणी बिलकुल सच साबित हुई है न।

आज हमसे कहाँ माना जा रहा है कि गाँधी सचमुच थे, हमें लगता है कोई बहुरूपिया था। हमें लगता है कि कोई ठग था, कोई शातिर नेता था, जो आकर के लोगों को बेवकूफ़ बना रहा था और अपनी नेतागिरी चमका रहा था।

तो आइंस्टीन ने जो बात कही थी और आइंस्टीन दुनिया के सबसे बुद्धिमान लोगों में से थे। तो दुनिया के सबसे बुद्धिमान आदमी ने गाँधी जी को लेकर के जो भविष्यवाणी करी थी वो बिलकुल सच हो गयी न कि वो इतने बड़े थे।

इतने बड़े थे कि ये दुनियाभर के झुन्नूलालों को भारत ही नहीं विश्वभर के झुन्नूलालों को एकआध-दो पीढ़ी बीतते-बीतते, ये यक़ीन होना भी बन्द हो जाएगा कि इतना महान कोई आदमी इस धरती पर कभी चला करता था।

आइंस्टीन ने बोला है भाई, किसी हल्के आदमी ने नहीं बोला है, किसी वज़ह से बोला होगा, कुछ सोचकर बोला होगा। उस व्यक्ति ने बोला है जिसकी दी हुई थ्योरीज़ के आगे हम आज भी नहीं निकल पा रहे सौ साल होने को आ रहे हैं अब।

जिस व्यक्ति ने फिज़िक्स को बिलकुल एक नये ऑर्बिट में डाल दिया। जो व्यक्ति दुनिया के सभी मसलों को जिस गहराई और सूक्ष्मता से समझता था, उसकी मिसाल मिलनी मुश्किल है, उस व्यक्ति ने बोला है।

वो ये समझ गये थे कि ये छोटे आदमी में कितनी ताक़त होती है, उन्होंने हिटलर को देखा था न। आइंस्टीन ख़ुद भी जर्मन थे और यहूदी थे। उन्होंने देखा था कि एक छोटा आदमी कैसे पूरे एक राष्ट्र पर छा सकता है। पूरे एक राष्ट्र को मतिभ्रष्ट कर सकता है। पूरे एक राष्ट्र को तैयार कर सकता है कि हम ही सबसे महान हैं और हमें पूरी दुनिया से जूझ जाना है। और राष्ट्र के अन्दर जितने यहूदी हैं, दुश्मन हैं इनको मार ही डालो और मरवा भी दिया।

तो छोटे आदमी की ताक़त को आइंस्टीन ने बहुत निकट से देखा था। इसी कारण वो ये भविष्यवाणी कर पाये कि गाँधी को ये सब झुन्नूलाल मिलकर के आने वाले समय में अवैध ही घोषित कर देंगे, काल्पनिक घोषित कर देंगे। कहेंगे, ‘गाँधी के बारे में जो कुछ बोला गया वो सब झूठ है। गाँधी के बारे में इतिहास जो कुछ बता रहा है वो अवैध है।’ और वो तो हुआ भी है, हम देखते भी हैं कि हुआ है, कि नहीं हुआ है?

प्र: जी।

आचार्य: अभी तक आप जितने लोगों का ज़िक्र करते आये हो, उन सबकी हत्या भी हुई। आपने पहले बात करी सुकरात की, फिर बात करी लिंकन की, फिर बात करी गाँधी की, तीनों को देखो कैसे जो स्मॉल मैन है उसने ऐसे मौत के घाट उतार दिया।

कोई मुश्किल नहीं आती है, मार दो। उसके विचारों को नहीं अगर काट सकते, तो उसकी गर्दन काट दो। उसकी महानता को नहीं मार सकते, तो उसके शरीर को मार दो। उसके कर्मों, उसके योगदान को झुठला नहीं सकते, तो उसके चरित्र पर कीचड़ उछाल दो। सबसे आसान होता है।

उसके जितनी मेहनत नहीं कर सकते, उसके जितना बलिदान नहीं कर सकते, तो कोई बात नहीं है एक गोली तो चला ही सकते हो या चाकू लेकर गर्दन तो काट ही सकते हो या सुकरात की तरह ज़हर का प्याला तो पिला ही सकते हो, ये सब तो कर ही सकते हो।

बात किसी लिंकन की या गाँधी की या सुकरात की या और भी आप बहुत आप उदाहरण उठा सकते हो विश्व इतिहास से, बात इनकी नहीं है। बात कुछ नामों की नहीं है, बात दो सिद्धान्तों की है।

एक सिद्धान्त है झुन्नूलाल का ‘द कॉमन मैन’ और एक सिद्धान्त है ‘ग्रेट मैन’ का। ये दोनों जब भी रहेंगे आपस में टकराएँगे क्योंकि जो छोटा है न, वो अपना छुटपन आसानी से छोडना नहीं चाहता। उसके लिए छुटपन को छोड़ना मौत जैसा होता है।

अगर मैं कह दूँ, ‘मैं छोटा हूँ’ और अब ‘मैं छोटा नहीं रहा’, कोई आकर के मुझे मज़बूर कर रहा है मेरी क्षुद्रता को, पिटिनेस को छोड़ने को, तो मैं मैं मैं क्या था अभी तक? ‘आइ एम पिटी’ और उसने कह दिया ‘यू विल नॉट रिमेन पिटी’ तो मेरी तो मौत हो गयी न।

भाई आप कहो, ‘आइ एम राहुल’ और अब कहो ‘राहुल नहीं रहा’ इसका मतलब मौत हो गयी। तो आप कहो, ‘आइ एम पिटी’ और पिटी अब आप नहीं रहे, तो मौत हो गयी न। तो इसलिए ये जो छोटा आदमी होता है ये महान आदमी से बे-इंतिहा नफ़रत करता है हमने कहा। ये कुछ भी बर्दाश्त कर सकता है, महानता को बर्दाश्त नहीं कर सकता। इसे जहाँ महानता मिलेगी, उसके पीछे हाथ धोकर के पड़ जाएगा।

पहले तो ये साबित करने की कोशिश करेगा कि जो महान दिख रहा है वो महान है नहीं। वो कैसे करेगा? कहेगा, ‘झूठ-मूठ के पाँच-दस और महान खड़े कर दो और बोल दो वो हैं असली महान लोग, वो हैं असली महान लोग और जब वो सब चालें विफल हो जाएँ तो जाकर के फाँसी पर लटका दो या ज़हर पिला दो या गोली मार दो। ये रहता है।

प्र: जी। अभी बातचीत में आपने एक मिट्टी के कण की बात करी थी रेत का कण जो अगर आँख में पहुँच जाए तो सूरज को छुपा देता है। तो मैं अभी देख रहा था कि हाल ही में एक रिपोर्ट आयी थी कि भारत में सबसे ज़्यादा फ़ेक न्यूज़ (झूठी ख़बर) फैल रही है पूरे विश्व में यदि हम देखें तो।

तो मैं देख रहा हूँ कि आज के समय में जो रेत का कण है वो शायद वो फेक न्यूज है, जो गाँधी जैसे एक सूरज को भी हमारी आँखों से छिपा देता है।

आचार्य: हाँ, बिलकुल-बिलकुल। ऐसी-ऐसी ज़बर्दस्त कहानियाँ हैं इस समय गाँधी के नाम पर कि आप हैरान हो जाएँगे कि ये कौन से इतिहास से निकलकर के आ रही हैं और बहुत सारे लोग घूम रहे हैं जिन्होंने इतिहास के क्षेत्र में भी गाँधी पर ही विशेषज्ञता हासिल कर रखी है।

इनमें से ज़्यादातर वो हैं जो दसवीं में भी इतिहास में फेल हुए थे, लेकिन ये घूम-घूमकर के ढिंढोरा पीट रहे हैं कि हम तो इतिहासविज्ञ हैं, इतिहासकार हैं और हम ये बताएँगे और वो बताएँगे और जलवे झुन्नूलाल के, कुछ भी कर सकता है झुन्नू। हमेशा से यही करा है, आगे भी यही करा है।

जब भी कभी इस पृथ्वी पर किसी भी क्षेत्र में, किसी भी देश में, किसी भी तरह से, किसी भी रुप में महानता प्रकट होगी, उसको सब छोटे लोगों की घृणा का ही उपहार मिलेगा। अगर हमको महानता को देखकर प्रेम ही उमड़ता तो हम भी महान हो गये होते न।

हम छोटे हैं ही इसीलिए क्योंकि जब कोई टुच्चा हमारे सामने आता है, तो वो हमारा सितारा, हमारा हीरो , हमारा आदर्श बन जाता है और जब कोई महान हमारे सामने आता है, तो हम उससे नज़रें चुराते हैं, कतराते हैं, उसका मज़ाक उड़ाते हैं और अगर वो बहुत जिद्दी हो वो हमारी ज़िन्दगी से टरने से इनकार कर दे, तो फिर हम उसे लात मारते हैं, उसका अपमान करते हैं और वो तब भी न माने तो फिर लात मारते-मारते एक दिन हम उसको…?

प्र: गोली मार देते हैं।

आचार्य: गोली मार देते हैं। ये सुकरात के समय भी हो रहा था, ये आज भी हो रहा है और ये आगे भी होता रहेगा। ये तब तक होता रहेगा जब तक झुन्नू स्वयं से ख़ुद ही ऊब नहीं जाता।

जब तक झुन्नू को झुन्नू बने रहने में कुछ हित दिख रहा है, तब तक वो महानता को बर्दाश्त करने से रहा।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
Comments
Categories