स्त्री शरीर का आकर्षण हावी क्यों? || (2018)

Acharya Prashant

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स्त्री शरीर का आकर्षण हावी क्यों? || (2018)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मुझे स्त्री के शरीर का इतना आकर्षण क्यों रहता है?

आचार्य प्रशांत: तुम्हारी मूल समस्या ये नहीं है कि तुम उत्तेजित इत्यादि हो जाते हो। तुम्हारी मूल समस्या ये नहीं है कि तुम बहक जाते हो। तुम्हारी मूल समस्या है कि तुम खाली हो।

खाली रहोगे, तो ऐसा होगा ही होगा।

पत्ता डाल से टूट गया, तो उसके बाद किधर को तो हवा ले ही जाएगी उसको – पूरब नहीं तो पश्चिम। प्रश्न ये नहीं है कि – “मैं पश्चिम क्यों बह गया?” पश्चिम को नहीं बहे होते तो, पूरब को बहते। पूरब को नहीं बहे होते, तो किसी और दिशा।

पर एक बार डाल से टूट गए, उसके बाद ये पक्का है कि किधर को तो बहकोगे ही, किसी-न-किसी दिशा की ग़ुलामी तो करनी पड़ेगी, क्योंकि अब वृक्ष से टूट गए, मूल से वियुक्त हो गए।

अभी ये उम्र है तुम्हारी, जवान हो, शरीर सक्रिय है, तो कह देते हो कि – “कामोत्तेजना बहा ले जाती है।” थोड़े बुड्ढे हो जाओगे, तो कह दोगे कि – “पैसा बहा ले जाता है।” थोड़ी और उम्र बढ़ जाएगी, तो कह दोगे, “चिंताएँ उठा ले जाती हैं।”

पूरब को नहीं बहोगे, तो पश्चिम को बहोगे, दक्षिण को बहोगे।

अनंत दिशाएँ हैं।

किसी एक दिशा की शिकायत मत करो कि – “मैं वासना की दिशा क्यों बह जाता हूँ?” उस दिशा नहीं बहोगे, तो किसी और दिशा बहोगे। मूल समस्या क्या है? खालीपन – पत्ता पेड़ से टूटा हुआ।

तुम यही समझ लो कि तुम्हें अगर बहकने के लिए, उत्तेजित होने के लिए कामवासना नहीं मिली, मान लो किसी रासायनिक उपाय से तुम्हें नपुंसक कर दिया जाए कुछ दिनों के लिए, दो -चार इंजेक्शन लगा दिए जाएँ, कोई विधि लगा दी जाए तुम्हारे मस्तिष्क में कि जो तुम्हारा काम-केन्द्र है वो बिलकुल शिथिल पड़ जाए, तो तुम्हें क्या लगता है, उतने दिनों तक तुम समाधि में रहोगे? क्या होगा? तुम दूसरा कुछ खोज लोगे।

तुम कहोगे, “जलेबियाँ बहुत आकर्षित करती हैं।”

मिठाई की खुशबू नाक में पड़ी नहीं, बड़ी-बड़ी मिठाईयाँ, जैसे अभी कह रहे थे न, “स्त्रियों का बड़ा शरीर देखकर मैं तत्काल बहक ही जाता हूँ,” फिर कहोगे, “क्या बड़ी-बड़ी, गोल-गोल जलेबियाँ थीं, मैं तो बहक ही गया। और फिर तो जलेबियों का ही विचार चलता रहा, चलता रहा।"

और जैसे ही तुम ऐसा कहोगे, मैं कहूँगा, “तुम स्त्री के पीछे भागो, या जलेबी के पीछे भागो, सवाल एक ही है – खाली क्यों बैठे हो? समय कहाँ से मिला?” चलो जलेबी से भी तुम्हारा मोह भंग करा दिया, कुछ चाल चली गयी। अब तुम जलेबियों के पीछे भी नहीं भागते, तो अब तुम्हें गाड़ियाँ आकर्षित करने लगेंगी। कहोगे, “क्या गोल-गोल चिकनी-चिकनी गाड़ियाँ हैं।”

वासना को तो विषय चाहिए।

गोल-गोल, चिकना-चिकना स्त्री का शरीर भी हो सकता है, गोल-गोल चिकनी-चिकनी जलेबी भी हो सकती है, और गाड़ी भी हो सकती है। कुछ-न-कुछ तुम्हें मिल ही जाएगा।

और वासना को जब विषय चाहिए ही, तो क्यों न उसे ऐसा विषय दे दें जो वासना को ही शांत कर दे।

तुम्हें कुछ तो चाहिए ही पकड़ने के लिए, तो क्यों न तुम्हें कुछ ऐसा दे दें कि जिसको तुमने पकड़ा नहीं, कि वो तुम्हें पकड़ ले।

जो इतना बड़ा हो, कि तुम्हारी पकड़ से बाहर का हो, जिसको पकड़ने के लिए तुम्हें उसमें घुल जाना पड़े।

इसीलिए देने वालों ने तुमको ‘राम’ का नाम दिया, ‘राम’ का काम दिया।

वो नाम भी बहुत बड़ा है, वो काम भी बहुत बड़ा है।

वो काम पकड़ लो, उसके बाद किसी और काम के लिए…?

श्रोतागण: फ़ुरसत ही नहीं बचेगी।

आचार्य: फ़ुरसत ही नहीं मिलेगी।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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