सौ बार दिल तुड़वा के भी

Acharya Prashant

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सौ बार दिल तुड़वा के भी

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, अभी प्रेम प्रसंग की आप बात कर रहे थे तो मेरे कुछ मित्र हैं, मेरे एक मित्र हैं पर्टिकुलर , तो हर टाइम क्या रहता है कि कोई रिलेशनशिप में जब एंटर करतें है, तो काफ़ी उम्मीद के साथ एंटर करते हैं रिलेशनशिप में कि काफ़ी कुछ मिल जाएगा। इससे कुछ हासिल हो जाएगा और फिर पिट-पिटा करके लास्ट में ये होता है कि मेरा कट गया। ये बार-बार एक साइकिल सा चलता है। कभी उसी पर्सन के साथ, कभी मल्टीपल , अलग-अलग इंडीविजुअल के साथ में। तो ये उम्मीद क्या है? जो है मतलब मेरी समझ में नही आता कैसे कि टूटती ही नहीं, मतलब कहीं न कहीं, जब कि कितना ही क्लिष्ट एक्सपीरियंस हो जाये आदमी का?

आचार्य प्रशांत: कितनी बार ऐसा हुआ है?

प्र: एक आदमी के साथ ही हज़ार बार और फिर अलग-अलग लोगों के साथ।

आचार्य: काफ़ी समय है इनके पास फ़ालतू। कुछ करने को नहीं है जिंदगी में। देखो हर आदमी प्यासा है लेकिन मिट्टी का तेल पीने से थोड़े ही बुझेगी? मैं इनसे सहानुभूति रखता हूँ। कल्पना कर रहा हूँ, तो ही — बेचारे। कोई प्यासा आदमी जैसे द्वार-द्वार खटखटा रहा हो कि पानी पिला दो, पानी पिला दो और कोई उसको कुछ दे रहा है, कोई कुछ दे रहा है। कोई बहुत उदार मिला, उसने घी पिला दिया कि पिओ। तो प्यास बुझ तो क्या रही है उनकी और बढ़ती जा रही है। तो और दर-दर ठोकरें खा रहें हैं। चाहिए तो वो है ही सबको।

आपका जो मन है न, वो पैदा ही होता हैं आशिक, उसे कुछ चाहिए। लेकिन वो बड़ा अनाड़ी आशिक हैं, अज्ञानी आशिक। आशिकी भी है और साथ में अज्ञान भी है। तो ये तो पक्का है कि उसे कुछ चाहिए पर ये नहीं पता कि क्या चाहिए। और प्यास इतनी प्रबल है कि इंतज़ार नहीं कर सकता। तो जो चीज मिलती है वही पीना शुरु कर देता है क्योंकि प्यास बहुत लगी है न।

जैसे आपको जब भूख बहुत लगी होती है तो कुछ भी खा लेते हो न? कभी देखा है कि जब भूख बहुत लगी हो, मान लो रात का समय है, बाहर कुछ मिलेगा नहीं, तो फ्रिज में जाते हो, कुछ उल्टा-पुल्टा पुराना पड़ा हो। जो मिला, ठूँस लिया।

ज़्यादातर आशिक ऐसे ही हैं। प्यास इतनी लगी होती है कि जो ही मिलता है, उसी को पकड़ लेते हैं। पकड़ने की घटना तो बहुत बाद की है, प्यास बहुत पुरानी है। वो एकदम तैयार बैठें है कि कुछ मिल जाये, कहीं कुछ मिल जाये, उसे चाट लें। दो बूँद भी मिल जाये, चाट ले।

सूखा हुआ है गला एकदम, सूखा हुआ है दिल एकदम। इतनी बार ठोकरें खाकर भी अगर इन्हें समझ में आ जाये कि जिन माध्यमों से ये अपनी प्यास बुझाना चाहते हैं, उनसे बुझेगी नहीं — तो गनीमत है।

एक तरीके से ये जो दिलजले होते हैं, जिनके सीरियल ब्रेकअप्स हुए होते हैं, जिसको तुम ‘कटाना’ कह रहे हो (सामूहिक हँसी), जिनके साथ ऐसा असंख्य बार ऐसा हुआ होता है, ये वास्तव में थोड़े भाग्यशाली होते हैं क्योंकि संयोग इनके लिए अनुकूल अवसर बना रहा है कि उनको सच्चाई दिख जाये कि बेटा ये तो छोड़ दो कि किसी एक जगह मिलेगा, तुम दस जगह तलाश रहे हो, तुम्हें दस में से एक जगह भी नहीं मिलेगा। और जहाँ मिलना है, वहाँ जाना तुमको बोरिंग लगता है। क्यों?

क्योंकि फिल्मों ने तुम पर तगड़ा प्रभाव डाला है। हम एक बार पैदा होते हैं, हम एक बार टेटनस का इंजेक्शन लगवाते हैं, और हमें एक बार इश्क होता है। तो तुम भी ऐसे घूम रहे हो कि सेनोरिटा कहीं कुछ होगा।

वो जो पूरी दिशा है, वो तुम्हारे ये ज़हन में भी नहीं आने देती कि तुम्हारी प्यास वास्तव में आध्यात्मिक है। तुमको लड़की या लड़का चाहिए ही नहीं है। मिल भी गया तो बहुत जल्दी बोझ बन जाएगा। फिर उसको ढोओगे या ब्रेकअप करोगे। एकदम ही अभागे होंगे तो शादी हो जाएगी। जैसे किसी को पानी चाहिए हो और उसने केरोसीन के कुएँ की लाइफ-लांग मेंबरशिप ले ली और वहाँ अडवांस पेमेंट कर दिया है कि रोज़ बीस लीटर सप्लाई होगा और रोज़ पीना भी पड़ेगा — प्रीपेड। कुछ कर भी नहीं सकते अब — नो रिफंड।

पहली बात तो जो चाहिए वो मिल नहीं रहा। दूसरी बात, जीवन भर का प्रीपेड। और कुआँ कम-से-कम बुरा नहीं मानता अगर तेल न पीओ। यहाँ तो जहाँ बँधे हो, उसके द्वारा प्रस्तुत सामग्री अगर ग्रहण ना करो तो बुरा और माना जाएगा।

आपकी आध्यात्मिक नासमझी आपको कितने कष्ट में और संकट में डाल देती है, आप समझ ही नहीं पाते हो। मिट्टी के तेल के ब्रांड बदलते रह जाते हो — घोड़ा छाप मिट्टी का तेल, जूता छाप मिट्टी का तेल।

कह रहे हो — अब ये हम कुछ नया करने जा रहे हैं ज़िदगी में, प्यास बुझाने के लिए। एक नये ब्रांड का मिट्टी का तेल लेकर आये हैं। इंपोर्टेड मिट्टी का तेल, एन आर आई मिट्टी का तेल। आई एम मूविंग आन। एक्स्ट्रा फोरटिफाइड, एंड डबली रिफाईंड मिट्टी का तेल। ये वो मिट्टी का तेल है जिसमें विटामिन बी१२ डाल दिया साथ में, विटामिन डी डाल दिया, आयरन, मैग्नीशियम जिंक, सब डाल दिया है। इस बार तो ज़रूर चलेगा। हाँ, इस बार धोखा नहीं खाऊँगा। एरोमैटिक (सुगंधित) मिट्टी का तेल जो पता ही नहीं चलता कि मिट्टी का तेल है। उसमें से चमेली की खुशबू आती है। इस बार तो पूरी तरह अलग है, खुशबू ही अलग है। विटामिन ए, बी, सी, डी, एक्स, वाई, ज़ैड, सब डला हुआ है इसमें। इस बार तो प्यास बुझ ही जाएगी।

‘कस्तूरी का मृग ज्यों’ — भटकते-भटकते मरोगे। और जिसको पकड़ रखा है साथ में, उसको भी भटकाओगे।

एक ऐसा सम्बन्ध, जो आधार से ही शारिरिक है, उससे तुम्हें आध्यात्मिक लाभ कैसे हो जाएगा भाई? प्यास है तुम्हारी आध्यात्मिक, खोज रहे हो तुम उसे विपरीत लिंगी के शरीर में, ये होगा कैसे? हाँ, तुम गाते रहो भले ही कि तू मेरी रूह का सुकून है और ये सब। उससे हो थोड़े ही जाता हैं? केरोसिन को गंगाजल बोलने से क्या होगा? कुछ नहीं। ब्रांड का नाम ही यही रख दो ‘रूह का सुकून’, तो? है तो वह मिट्टी का तेल ही।

जितने जवान लोग बैठे हैं, सब ऐसे हो रहे हैं कि कान से खून आ गया एकदम। जब यहाँ एंट्री करवाया करो तो साथ में सबको एक-एक नैपकिन दे कर भेजा करो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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