सिद्धांतों को छोड़ो, जीवन को देखो || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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सिद्धांतों को छोड़ो, जीवन को देखो || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

श्रोता : सर, प्रेम को परिभाषित करें?

वक्ता : मैं परिभाषित कर दूँगा पर वो मेरी परिभाषा होगी, मैं कर सकता हूँ, कर ही दूँगा तुम्हारे लिए। अच्छा मैं तुम्हें बोले देता हूँ क्या है प्रेम, उस से आ जाएगा तुम्हारे जीवन में प्रेम?

श्रोता : जब याद करेंगे तो आ जाएगा।

वक्ता : याद करने से आएगा? मुझे अभी वाकई बड़ी प्यास लग रही है ज़रा ज़ोर-ज़ोर से बोलो, H2O-H2O , और उसकी पूरी परिभाषा कर दो कि क्या एटॉमिक नम्बर होता है, कितने कोवैलैंट बौंड हैं, कितने एलेक्ट्रोवैलैंट बौंड हैं, सब कुछ बता दो, पूरा, सब कुछ बता दो H2O के बारे में, उस से मेरी प्यास बुझ जायेगी?

श्रोता : नहीं सर।

वक्ता: कैसी बातें कर रहे हो? प्रेम के बारे में कुछ बोल दूँगा तो उससे तुम्हें प्रेम उपलब्ध हो जायेगा और प्रेम को तुम तब तक जान नहीं सकते जब तक तुम प्रेम…

सभी श्रोता : प्रेम करोगे नहीं।

वक्ता : करे नहीं, हुए नहीं। तुम्हें बोले देता हूँ पर तुमको कुछ मिलेगा नहीं। हाँ , बेचैन और हो जाओगे कि ये कैसी अद्भुत सी बात है। क्या बता दिया?

श्रोता : सर, हम जानते ही नहीं

वक्ता : प्रेम तुम्हारे मन की एक स्थिति होती है जिसमें तुम पूर्ण होते हो और तुम्हें आवश्यकता ही नहीं होती किसी और की, प्रेम तुम्हारे अपने मन का आनन्द है जिसमें तुम किसी और की तरफ इसलिए नहीं आकर्षित होते कि वो तुम्हें कुछ दे देगा।

श्रोता : सत्य?

वक्ता : सत्य? तुम! उसके अलावा कोई सत्य नहीं है, बाकी सब झूठ है।

श्रोता : सर, अगर हम कहें कि हम नहीं हैं, हमारी आत्मा है?

वक्ता : जानते हो उसको?

श्रोता : सर, जानते तो नहीं हैं

वक्ता : तो फिर कैसे कह दिया कि है? कैसे पता कि है भी? आ-त-मा, क्या? कहाँ?

श्रोता : जो हमारी चेतना में स्थित है।

वक्ता : चेतना कहाँ है?

श्रोता : जो हमारी ऊर्जा का स्रोत है।

वक्ता : तुम्हारी ऊर्जा का स्रोत तुम्हारा खाना है, और सारी ऊर्जा, ब्रह्माण्ड की जो है, उसका स्रोत वो सूरज है।

श्रोता : हमारी ऊर्जा का स्रोत परमात्मा है।

वक्ता : आज पहला ही सवाल आया था कि हम जानते कुछ नहीं है, हमने मान बहुत कुछ लिया है।

श्रोता : सुनी, सुनाई बातें।

वक्ता : पता हमें कुछ है नहीं और शब्दों को हम फ़ुटबाल की तरह उछाल रहे हैं। कितने सारे तो आ गए? देखो, जैसे वो एक होता नहीं है सर्कस में, कितनी सारी गेंदें एक के बाद एक उछाल रहा होता है; सत्य, त्याग, प्रेम, राष्ट्र, आत्मा, परमात्मा…!

श्रोता : नैतिकता।

वक्ता : तुम्हें इसका कुछ पता है? कितना सुना-सुनाया जीवन है ये? कुछ पता है?

श्रोता : क्या इसे जानने की आवश्यकता भी है?

वक्ता : ये भी हो सकता है, ठीक कहता है, हो सकता है कोई आवश्यकता ही न हो, ठीक कहता है। आवश्यकता है , ये भी तुम्हें कहाँ पता है? अपने जीवन को देखो, उतना काफी है। शब्दों में उलझ के फायदा नहीं है, मैं यहाँ पर बैठ के तुमसे औपनिषदिक चर्चा कर सकता हूँ, और तुमसे ये बोलूँ कि ब्रह्म का ये अर्थ है, आत्मा का ये अर्थ है, जगत ये होता है, माया ये होती है, उससे बहुत कुछ मिलेगा नहीं, उस सबसे ज्यादा बेहतर है कि जो तुम सुबह से शाम तक जो करते हो, ये प्लेसमेंट की भाग-दौड़, ये मार्क्स की जद्दो-जहद, ये लड़के-लड़कियों के पीछे भागना, क्लासरूम में बोर हो कर बैठे रहना, ये जो शोर हो रहा है, तुम बस इसी पर ध्यान दे लो सुबह से शाम तक जो करते हो। इतने में सब समझ में आ जाएगा। बाकी इधर-उधर जाकर आत्मा-परमात्मा करने की कोई जरूरत नहीं है।

श्रोता : पर इसकी जरूरत क्या है?

वक्ता : इसकी है जरूरत, क्योंकि थोड़ी देर में यही शोर तुम कर रहे होंगे, तुम्हारे लिए आवश्यक है कि होश में रहो और जानो कि मैं ऐसा क्यों हो जाता हूँ क्योंकि जीवन तुम्हारा है, आवश्यकता है, तुम्हें ही जीना है इसलिए आवश्यकता है।

श्रोता : जीवन-यापन करने के लिए तो जरूरी नहीं कि ये सब जाने?

वक्ता : जीवन-यापन नहीं, जीवन प्रतिपल है। यापन का मतलब हुआ कि कुछ कमा के खाना है।

श्रोता : अगर आवश्यकता की बात है तो आवश्यकता तो इस बात की भी नहीं है कि हम इंजीनिअर बने?

वक्ता : बिल्कुल भी नहीं है, ये जानो लेकिन, तुम यहाँ बैठे हो, इसका अर्थ क्या है? कि आवश्यकता नहीं है, फिर भी करे जा रहे हो, यही बेवकूफी जीवन ये है, आत्मा-परमात्मा नहीं है, ये, स्पष्ट, सामने, डायरेक्ट, अभी, इसी पल, क्या चल रहा है? यही है जीवन, थोड़ी देर में अभी बाहर हो जाओगे फिर देखना कि कैसे हो जाओगे? जब घर जाओगे तो सड़क पर कैसे रहोगे? देखना, वो है जीवन।

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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