शिक्षा के दो आयाम || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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शिक्षा के दो आयाम || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

वक्ता- निशा का सवाल है कि जीवन में शिक्षा की आवश्यकता है ही क्यों? है किसलिए शिक्षा? ज़िन्दगी चमकाने के लिए, पैसे कमाने के लिए, किसी प्रोफेशन में जाने के लिए? क्या है शिक्षा?

निशा, शिक्षा दो प्रकार की होती है- पहली शिक्षा होती है दुनिया को जानने की। ये एक निचली शिक्षा है, ये निम्नतर शिक्षा है जिसमें आप जानते हो कि जग कैसा है, जिसमें आप जग में जो भाषाएँ बोली जाती हैं उनका ज्ञान लेते हो, हिंदी का, अंग्रेजी का, जिसमें आप देखते हो कि आज तक इस जगत में क्या होता रहा है तो आप इतिहास पढ़ते हो। आप जानना चाहते हो कि पृथ्वी पर किस-किस तरीके के आकार हैं, तो आप भूगोल पढ़ते हो- नदियाँ, पहाड़, रेगिस्तान। ये सब जगत के बारे में जानकारी है जो आपको मिल रही है।

आप जानते हो कि कौन-कौन-सी तकनीकें हैं, विज्ञान कहाँ तक पहुँच गया, प्रौद्योगिकी कहाँ तक पहुँच गई तो आपको पता चलता है कि ये विद्युत् मोटर कैसे काम करती है, वो कैथोड रे ट्यूब कैसे काम करती है, इसके भीतर जो चिप्स लगीं हैं वो कैसे काम करती हैं, ये सब जानकारी आपको बाहरी दुनिया के बारे में मिल रही है और ये शिक्षा आवश्यक है।

लेकिन अलग है एक दूसरे प्रकार की शिक्षा, जो केंद्रीय है, जो परम आवश्यक है। हमारी शिक्षा व्यवस्था वो देती नहीं। वो कौन सी है जिसको मैं कह रहा हूँ उच्चतर शिक्षा? वो शिक्षा है स्वयं को जानने की।

निम्नतर शिक्षा है जगत को जानने की और उच्चतर शिक्षा है स्वयं को जानने की।

याद रखना ये सब कुछ जो तुमने बाहर जाना, चाहे वो भाषाएँ हों, चाहे गणित हो, चाहे प्रोद्योगिकी हो, इतिहास हो, कुछ भी। ये सब कुछ तो तुमने जाना ये बाहरी है इसके बारे में तुमने जान लिया पर अब तुम्हें रहना तो अपने साथ है, इस मन के साथ, अपने साथ ही जीवन है सारा। इस मन को नहीं जाना तो कुछ नहीं जाना, बिलकुल अनपढ़ ही रह गए। असली शिक्षा ये नहीं है कि उस बाहरी-बाहरी को जान लिया और कोई रोज़गार मिल गया। असली शिक्षा है खुद को जानना और जब आदमी स्वयं को नहीं जानता और बाहरी शिक्षा से भरा हुआ होता है, उस निम्नतर शिक्षा से, तो फ़िर दुनिया वैसी हो जाती है जैसी हमारे चारों तरफ है- smart phones and stupid people, guided missiles and unguided men.

बाहर बड़ी चकाचौंध रहेगी क्योंकि हमने बड़ी महारथ हासिल कर ली होगी कि और कुशलता कैसे ले आयें, तुमने इंजन बहुत अच्छे बना लिए होंगे, तुम्हारे कम्प्यूटर्स की क्षमता दिन-दूनी रात चौगुनी बढ़ रही होगी, आदमी अंतरिक्ष में पता नहीं कहाँ-कहाँ पर पहुँच रहा होगा, नए-नए ग्रह, तारे, ये सब चल रहा होगा। बाहर बड़ी प्रगति दिखेगी, लेकिन भीतर? भीतर कोलाहल मचा रहेगा, अशांति रहेगी, बेचैनी रहेगी, असुरक्षा की भावना रहेगी और जीवन नर्क रहेगा क्योंकि जो उच्चतर शिक्षा है वो नहीं मिली। ख़ुद को नहीं जाना। किताबें बहुत पढ़ीं, कभी अपने-आप को नहीं पढ़ा और दुर्भाग्य की बात ये है कि हम सबकी आजतक शिक्षा सिर्फ़ वो निम्नतर शिक्षा ही रही है। जो असली शिक्षा है वो हमारी कभी हुई ही नहीं, ना घर में, ना स्कूल या कॉलेज में, वो हमें कभी मिली ही नहीं और जब आपका अपना मन शांत नहीं है तो आपने बहुत टेक्नोलॉजी विकसित भी कर ली तो उसका उपयोग क्या करोगे? सिर्फ विध्वंस के लिए। आप रह रहे होंगे बड़े आलीशान घर में, हो सकता है आपने सड़कें बहुत अच्छी बना ली हों, आपकी अभियांत्रिकी बहुत अच्छी हो गई हो, पर सड़क रहेगी साफ़ और मन रहेगा गन्दा।

चाहिए ऐसा जीवन?

शिक्षा को रोज़गार का साधन मत मान लेना। तुम इसलिए नहीं पढ़ रहे हो कि तुम्हें एक डिग्री मिल जाये और एक नौकरी मिल जाए। वास्तविक शिक्षा है जानना अपने आप को। हाँ, ठीक है उस सब की भी आवश्यकता है कि भाषाएँ सीख ली, गणित सीख ली, विज्ञान सीख लिया, उस सब की भी आवश्यकता है लेकिन वो हमेशा गौण है, निम्नतर है। जगत के बारे में शिक्षा भी महत्वपूर्ण है। ठीक है, जानो उसको, जानने में कोई बुराई नहीं है पर वो जानना काफ़ी नहीं। निम्नतर शिक्षा आवश्यक है पर काफ़ी नहीं।

शिक्षा को समझो। जो तुम्हें तुम्हारे करीब ले आए वही असली शिक्षा है।

संवाद पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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