शरीर यन्त्र है, तुम नहीं || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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शरीर यन्त्र है, तुम नहीं || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

श्रोता: सर, मुक्ति तो आत्मा से होती है, शरीर तो बन्धनों से जुडा ही रहेगा। जिसके पास कुछ नहीं है उसकी हर चीज़ पाने की कोशिश रहेगी और जिसके पास हर चीज़ है वो उसको बचाने की कोशिश करेगा। कुछ तो है जो चलता ही रहेगा, मुक्ति तो सिर्फ आत्मा की होती है।

वक्ता: निकिता, तो शरीर को रहने दो न बन्धन में, तुम क्यों हो बन्धन में ?

श्रोता: सर, मेरा शरीर तो आत्मा से भी जुड़ा हुआ है।

वक्ता: तुम क्यों हो बन्धन में? आत्मा हमने नहीं देखी, शरीर तुम्हारा दिख रहा है हमें। आत्मा तो कल्पना है। न तुमने देखी ना किसी और ने। है कोई यहाँ जो आत्मा वगैरह देखता हो? सुनी-सुनाई बातों पर हमें नहीं चलना है। किसी ने उछाल दिया- मोह और माया और मद और मत्सर और बन्धन। कोई उछाल रहा है- आत्मा, परमात्मा और ब्रह्म। मैं समझ रहा हूँ- इलाहाबाद है!

(श्रोता हँसते हैं)

पर बात ज़रा प्रामाणिक करना। ठीक है ? बात ज़रा प्रामाणिक करेंगे। अभी चल रहा था कुम्भ मेला, सब गए हैं कमाने। क्या? पता नहीं। पुण्य। कहाँ है? कोई लगाओ पुन्योमीटर। वो नापेगा कितना कमा लिया। कल्पनाओं का कोई अंत नहीं है आदमी की। आदमी के दिमाग की कल्पनाओं का कोई अंत नहीं है। हम तो आत्मा हैं! अगर तुम आत्मा हो तो कुर्सी पर कौन बैठा है? तुम अगर आत्मा हो गाल पर तुम्हारे? *(गाल पर हाथ से मारने का इशारा करते हुए)*। तुम तो आत्मा हो, शरीर से तुम्हें मतलब?

एक दूसरे अर्थ में, बात तुम्हारी बिल्कुल ठीक है। इसी को कबीर ने कहा है – देह धरे का दंड । कबीर कहते हैं कि कुछ भी कर लो, देह है तो ये इस बात का दंड है कि ये अपनी कुछ प्रक्रियाओं में लगी ही रहेगी। जो यान्त्रिक हैं, जो रासायनिक हैं, ये उनमें लगी ही रहेगी।

पर देह को लगे रहने दो ना। तुम क्या देह से हट कर के कुछ नहीं हो सकतीं? अभी प्रयोग करो अभी हो जाओगी। क्या तुम्हारे साथ ऐसा नहीं होता है कि पेट कह रहा है कि भूख लगी है पर तुम कह रहे हो कि नहीं। अभी कुछ और आवश्यक है। नहीं खाना है खाना। क्या ये काम कोई और जानवर कर सकता है? जानवर पूर्णतया अपने पेट के साथ संयुक्त है। कोई जानवर तीन दिन तक भूखा रह कर के कोई और उद्यम नहीं करेगा। क्या तुम्हारे साथ ऐसा नहीं होता कि सिर दर्द हो रहा है पर तुम कहो कि सिर को दर्द होने दो, हम नहीं रुकेंगे? शरीर को मशीन की भाँति लगे रहने दो। तुम मशीन मत बन जाना।

शरीर से ज़रा एक दूरी बनाओ।

जब शरीर थक रहा है तो बोलो कि शरीर थका है पर हम नहीं रुकेंगे। और ऐसा नहीं है कि आप लोग इसे जानते नहीं हैं। जो लोग कोई खेल खेलते हों, वो जानते होंगे। उनका शरीर कह रहा होता है कि रुक, थम। कोई है यहाँ पर, जो लम्बी दौड़ दौड़ता हो? शरीर बोलता है न? अभी थम। और तुम क्या बोलते हो? नहीं थमना है चल। फिर जब रुकते हो और देखते हो कि छाले पड़ गए हैं। कई बार खून-वून भी आ गया है? फिर जब लेटते हो तो पता चलता है कि अब उठा नहीं जा रहा। सारे जोड़ जाम हो गये ।

इसको इच्छा-शाक्ति मत समझ लेना। बात इच्छा-शाक्ति से आगे की है।

शरीर निश्चित रूप से अपनी प्रक्रियाओं का गुलाम है। साँसे तुमसे पूछ कर नहीं आ जा रही। दिल तुमसे पूछ कर नहीं धड़क रहा। शरीर में बहुत कुछ और है जो हमसे पूछ के होता नहीं। पर हम शरीर के ग़ुलाम बन जाएँ, ये तो आवश्यक नहीं है। शरीर जो करना चाहता है, शरीर को करने दो। तुम्हें जो करना हो, जैसे रहना है, वैसे रहे आओ, अछूते।

शरीर से अछूते।

इतिहास भरा पड़ा है ऐसी कहानियों से। जहाँ पर लोग शरीरसे अछूते रह आये हैं। लोगों के हाथ कट गए है और कटे हुए हाथ के साथ दो-दो दिन तक लड़ते रहे हैं। ये ओलम्पिक्स जिस धावक की याद में मनाये जातें है, कहानी सुनी है उसकी? कि दौड़ता जा रहा है और दौड़ता जा रहा है और दौड़ता ही जा रहा है। ठीक बयालीस किलोमीटर दौड़ा था। इसीलिए मैराथन जो दौड़ होती है वो बयालीस ही किलोमीटर की होती है। उसे सन्देश देना था कि आक्रमण होने जा रहा है। और जैसे ही उसने सन्देश दे दिया *(मरने का इशारा करते हुए)*। उसने शरीर को कह रखा था कि तू अभी प्राण भी नहीं त्यागेगा, रुक। सन्देश दे दूँ तब मरना। उसने शरीर को मरने तक नहीं दिया। अभी रुक, अभी थम।

शरीर रहेगा बन्धन में, इसमें कोई शक नहीं। सबसे बड़ा बन्धन जो स्पष्टतया है वो तो गुरुत्वाकर्षण का ही है। शरीर का अर्थ है वज़न और जब तक वज़न है तब तक धरती से बँधे हुए हो। शरीर का अर्थ मृत्यु भी है क्योंकि शरीर है तो मृत्यु भी होगी। उसका बन्धन है।

पर तुम शरीर से थोड़ी दूरी बना सकती हो, बनाओ। निश्चित सम्भव है। हम करते ही हैं रोज़ाना। जितना करोगे उतना पाओगे कि मुक्त होते जा रहे हो।

-‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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