शान्ति और सुविधा में अंतर || (2018)

Acharya Prashant

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शान्ति और सुविधा में अंतर || (2018)

आचार्य प्रशांत: कुछ अनजाना-अनजाना सा, कुछ नया-नया सा लग रहा है?

शान्ति और सुविधा में ये अंतर होता है।

शान्ति के साथ जैसे चुनौती जुड़ी होती है। सुविधा के साथ सब कुछ ज्ञात होता है। शान्ति नयी होती है बहुत, जैसे ये शाम नयी है। शामें बहुत आती हैं, जैसी शाम आज की है वैसी कभी-कभी आती है न? पहली बार आयी है; ये शान्ति है। और सुविधा में तुम ऊपरी तौर पर, सतही तौर पर शांत हो और शांत इसीलिए हो क्योंकि जो कुछ हो रहा है वो तुम्हारे सुरक्षा के दायरे के भीतर का है, ज्ञात है, तुम्हें पहले ही पता है कि क्या हो रहा है, पूर्वनिर्धारित है। क्योंकि पूर्वनिर्धारित है इसीलिए वो तुम्हारे डर को ज़रा छुपाए रखता है, ज़रा सुलाए रखता है; डर मौजूद है लेकिन सोया हुआ है।

शान्ति में वो सारे कारण मौजूद हो जाते हैं, जिनसे डर लगता है। डर के कारण उपस्थित हो जाते हैं। डर का क्या कारण होता है? नयापन। जो भी नया है, वो हमें डराता है। शान्ति में डर का कारण मौजूद होता है लेकिन डर नहीं लगता। और, सुविधा में, आराम में डर इसीलिए नहीं लगता क्योंकि तुम डर के कारण का ही दमन कर देते हो। तुम डर के कारण से ही छुपकर भाग जाते हो। डर का क्या कारण है, अभी हमने क्या कहा?

नयापन।

तो, सुविधा में तुम हमेशा नयेपन को दूर रखते हो। पुराने की शरण में रहते हो, पुराने से छिपे और घिरे हुए रहते हो। क्योंकि नया जब भी आएगा, हमें डराएगा। तो शान्ति, मैंने इसलिए कहा, चुनौती जैसी चीज़ है। क्यों चुनौती है शान्ति में? क्योंकि डर के कारण को तुम कहते हो, “तू आ, तू आ, लेकिन हम फिर भी डरेंगे नहीं, हम शांत रहेंगे।” शान्ति में एक वीरता है, एक साहस है, एक श्रद्धा है।

और, सुविधा में? आराम में? कम्फर्ट में? भीरुता है, शंका है, संकोच है, संकीर्णता है। अंतर समझ पा रहे हो? ये जो अभी शाम है, ये शाम भर नहीं है। ये जैसे तुम्हारे भीतर बैठे सत्य का विद्रोह है हर प्रकार के झूठ के प्रति, हर प्रकार के ढर्रे के प्रति, सुरक्षा के अनावश्यक यत्नों के प्रति। ऐसे भी जिया जा सकता है, तुम कह रह हो, ”देखो, आम आदमी को इस माहौल में ला दो तो वो चिंहुक उठेगा, वो काँप जाएगा।” वो कहेगा, “ये क्या है? साँझ का समय तो ट्रैफिक का समय होता है, साँझ का समय तो बाज़ार का समय होता है, साँझ का समय तो सारे संसारी काम का समय होता है। और साँझ के समय यहाँ जंगल में, यहाँ गंगा तट पर, यहाँ पहाड़ों के बीच, जहाँ ना आदमी है ना आदमी की जात, ना सभ्यता, ना संस्कृति, ना बिजली, ना पानी।” तो देख रहे हो तुमने क्या किया है? तुमने ज़ोर से चुनौती दी है तुम्हारे जीवन के सब तरीकों को, क़ायदों को, ढर्रों को। तुम कह रहे हो, "शाम ऐसी भी हो सकती है।"

तो, शान्ति सस्ती चीज़ नहीं है, शान्ति मामूली चीज़ नहीं है, शान्ति उन्हीं के लिए है जिनमें दम हो। शान्ति उन्हीं के लिए है जिनमें विद्रोह की क्षमता हो, ताक़त हो। जिन्हें सर्वप्रथम विद्रोह से प्रेम हो। प्रेम है तो क्षमता आ जाती है। जो पाएँ कि जीवन में अक्षम हैं, वो अक्षम मात्र इसीलिए हैं क्योंकि उनमें क्षमता के प्रति, शक्ति के प्रति, ताक़त के प्रति, प्रेम ही नहीं है। शान्ति लिसलिसी, लुजलुजी चीज़ नहीं है। शान्ति तलवार की धार होती है, शान्ति प्रबल हुंकार होती है। शान्ति मुर्दों की और शमशान की नहीं होती। शान्ति ऐसी होती है जैसे कि तुम दस मील भागे हो और उसके बाद बैठ गए हो। तब जो क्षय उतरती है तुम्हारे मन पर उसको कहते हैं शान्ति। जो भागा ही नहीं और यूँ ही बैठा हुआ है, वो कृपया अपनी दशा को शान्ति ना कहे। जिसने चुनौती स्वीकार ही नहीं की, जो भँवर में ही नहीं उतरा, जिसने नदी पार ही नहीं की, वो शान्ति की क्या बात कर रहा है!

शान्ति, फिर कह रहा हूँ, सस्ती चीज़ नहीं होती। शान्ति निष्क्रियता का, अक्रियता का नाम नहीं है। शान्ति, घोर कर्म, उचित कर्म का रस है, प्रसाद है। डर कर दुबक जाने का नाम शान्ति नहीं है। भीड़ में मेहफ़ूज़ अनुभव करने का नाम शान्ति नहीं है। देखो यहाँ पर तुम मुट्ठी भर लोग हो; अकेलेपन का नाम है शान्ति, जिसमें अकेलेपन का साहस नहीं, वो शान्ति की अभीप्सा छोड़ दे।

प्र: आचार्य जी, अकेलापन किसको कहते हैं?

आचार्य: अकेलेपन को समझना है तो पहले ये देखो कि हम दुकेले, तिकेले, चौकेले क्यों होते हैं? क्यों होते हैं? अपने चारों ओर संसार को देखो, लोगों के झुण्ड को देखो, लोगों के जोड़ों को देखो, कुनबों को देखो, दलों को देखो, रिश्तों को देखो, और फिर मुझे बताओ कि लोग संबंधित क्यों होते हैं एक दूसरे से?

श्रोतागण: अपने-आप को खुश रखने के लिए।

कुछ चाहिए होता है।

आचार्य: है न! अब समझो कि अकेलापन फिर किसे कहते हैं। अगर लोग संबंधित होते ही इसलिए हैं क्योंकि भीतर हीनता और बाहर शोषण है, तो फिर अकेलापन क्या हुआ? भीतर पूर्णता, और बाहर प्रेम। उसका नाम है अकेलापन। हमें ऐसा लगता है अकेलापन माने कटना; नहीं! अकेलेपन का अर्थ होता है, वास्तविक रूप से जुड़ने के क़ाबिल हो जाना। जो अकेला है सो पूर्ण है। और जो पूर्ण है और अब जो वास्तव में जुड़ सकता है, उसका जुड़ना पूर्ण होगा। जो पूर्ण नहीं है, वो जुड़ेगा भी तो कैसे? वो ऐसे जुड़ेगा कि उसकी अपूर्णता बची रहे। तो उसका जुड़ना बड़ा सतही होता है, जैसे सतह-सतह पर दो चीज़ों को चिपका दिया गया हो।

जुड़ना तो बस पूर्ण ही जानता है पूर्ण से। पूर्ण से पूर्ण मिला दो, क्या मिला? पूर्ण। और पूर्ण से पूर्ण हटा दो, क्या बचा? पूर्ण। वो होता है अकेलापन, अब बनते हैं असली रिश्ते। अकेलापन, फिर कह रहा हूँ, पृथकता की बात नहीं है, अलगाव की बात नहीं है। अकेलापन ही जानता है कि कैसे दूसरे को पोषण दिया जा सकता है जुड़ कर। जो अकेला नहीं रह सकता, वो दूसरे से सिर्फ एक खातिर जुड़ेगा। किस खातिर? उससे कुछ लेने की खातिर। उसके माध्यम से कुछ हासिल करने की खातिर। ये बात क्या स्पष्ट ही नहीं है? अगर मैं अकेले में संतुष्ट नहीं हूँ, तो दूसरे से मैं इसलिए थोड़े ही जुड़ रहा हूँ कि दूसरे को आनंद या मुक्ति मिले। मैं दूसरे से क्यों जुड़ रहा हूँ? ताकि मेरे स्वार्थ की पूर्ति हो सके, मेरा डर दूर हो सके। दूसरा अब मेरे लिए क्या है? एक ज़रिया, एक माध्यम। और माध्यम की क्या औक़ात? कोई माध्यम से प्रेम करता है? प्रेम तो अंत से किया जाता है। और अगर अंत आपका, आपका लक्ष्य, अपने स्वार्थ की पूर्ति है, तो आप प्रेम क्या करोगे? आप फिर अपने स्वार्थ से प्रेम करते रह जाओगे।

तो अकेलापन डरावनी बात नहीं है, अकेलापन सबसे मधुर, सबसे प्यारी, सबसे प्राणदायी बात है। अकेलापन ज़िंदगी देता है। अकेलेपन की कोई विरूपित छवि मत बना लेना। कि अकेलापन मतलब कोई चला गया है कहीं, सुनसान में, निर्जन में, जनता से कट कर रह रहा है। नहीं नहीं! हम उस सतही अकेलेपन की बात नहीं कर रहे। हम उस पूर्णता की बात कर रहे हैं जिसमें आदमी दूसरे का हाथ पकड़ता है, इसलिए नहीं कि उसको सहारा चाहिए; इसीलिए कि उसके पास बहुत है, बाँटने में उसे आनंद है।

देखो अस्तित्व ने भी सही माहौल तैयार किया था सही जवाब के लिए। जवाब खत्म हुआ, जैसे ही पकौड़ों की बात हुई रौशनी आ गई। उतनी ही देर को रौशनी गयी थी जितनी देर का जवाब था। ठीक उतनी देर को गयी। और फिर हम कहते हैं कि जादू होता है कि नहीं होता है। और अब क्या जादू चिल्ला-चिल्ला कर बोलेगा कि, "मैं जादू हूँ"? और कैसा होता है जादू? और, ना जाती अगर बत्ती तो मुझे कैसे इतना अच्छा उदाहरण मिलता देने के लिए? जैसे किसी ने उदाहरण तैयार करने के लिए ही बत्ती गुल कर दी। फिर जब काम पूरा हो गया, तो उसने कहा चलो भाई एम.सी.बी. गिराओ। पावरहाउस है वो।

प्र: जैसे जहाँ पर शब्दों से वार्तालाप संभव नहीं है, सिर्फ इशारों से वार्तालाप संभव है।

आचार्य: तुम्हें अगर और किसी तरह की विवशता ना हो, मेरी सलाह है कि लौट कर आना, अगले माह फिर लौट कर आना। (प्रश्नकर्ता को बताते हुए) चीज़ शुरू हुई है, उसमें से छोटे-छोटे पत्ते निकल रहे हैं, उसको अभी गंगा के पानी की ज़रूरत है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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