आचार्य प्रशांत: खास बात समझो तो उनमें क्या है? देखो, किसी की सीधे-सीधे निन्दा कर देना बहुत आसान होता है। और किसी को देवता बनाकर के उसकी पूजा करने लगना, ये भी आसान ही होता है। पर इंसान को इंसान की तरह देखना और उसका सही मूल्यांकन करना वो ज़रूरी है। अब उनमें मुझे जो बहुत खास बात दिखती है वो ये है कि वास्तव में उन्होंने अन्दर वाले दुश्मन से लोहा लिया था। उनके पास ऐसा कुछ भी नहीं था जो बचपन से या जवानी से ही बहुत दिव्य रहा हो। बहुत साधारण कद-काठी के थे, कोई आकर्षक व्यक्तित्व उनका नहीं था बहुत। लेकिन उसके बाद भी वो एक बड़े जननेता के रूप में उभरे।
लोगों के सामने बोलने से उन्हें डर लगता था, ब्रिटेन में शिक्षा ली उसके बाद भी कोर्ट में जिरह करने से डरने लगे तो उन्होंने अर्ज़ियाँ लिखने का काम शुरू कर दिया कि हाँ, भरे कोर्ट में बोलेगा कौन। अब ऐसा आदमी जो कोर्ट में नहीं बोल पा रहा हो, उसके बाद वो हज़ारों लोगों की हज़ारों जनसभाएँ सम्बोधित करता रहा जीवन भर। ये बात बहुत अच्छी है। इस व्यक्ति ने अपनी कमज़ोरियों को जीता था।
कामवासना उनकी कभी किसी भी आम आदमी की तरह इतनी प्रबल थी कि पिता की आखिरी घड़ी में भी पिता के साथ नहीं हो पाये, पत्नी की ओर खींचे चले गये थे। फिर उस व्यक्ति ने अड़तीस की उम्र में हीं समझा कि ब्रह्मचर्य का वास्तविक अर्थ क्या है। पूरा, परम्परागत अर्थ नहीं। पूरा अर्थ क्या है? और ब्रह्मचर्य में प्रवेश किया।
जो आदमी अंग्रेजों का इतना कायल था कि जब ये गये पढ़ाई करने के लिए ब्रिटेन तो इन्होंने अपने बहुत सारे पैसे सिर्फ़ अंग्रेज़ी तौर-तरीके सीखने, अंग्रेज़ी कपड़े वगैरह हासिल करने में लगा दिये। वो फिर आदमी अंग्रेजों पर बिलकुल चढ़ बैठा और अंग्रेज उससे थर्राते थे। तो इन्होंने अपनी कमज़ोरियों को खूब जीता है।
एक समय पर ये धर्म के प्रति इतने, सनातन धर्म के प्रति इतने शंकालु हो गये थे कि ये सोच रहे थे कि मै धर्म परिवर्तन ही कर लूँ, ईसाई बन जाना चाहते थे। और फिर वो जगह आयी जहाँ पर ये महात्मा कहलाये, गीता को माँ बोला। बहुत लोगों को धर्म की राह पर लगाया। आखिरी शब्द भी इनके ‘हे राम!’ थे।
तो कोई ऐसा ऐब नहीं जो साधारण आदमी में होता हो और इनमें न हो। इनकी बचपन में, इनकी जवानी में सारे जो सामान्य दोष होते हैं किसी बच्चे में या जवान आदमी में इनमे थे। पर इन्होंने उन सब दोषों पर विजय हासिल करी।
घर से पैसे चुराकर एक समय पर इन्होंने माँस भी खा लिया, वेश्याओं के पास भी चले गये, झूठ भी बोला। और फिर ये सारी बातें स्वीकारी भी और अपने इन सब दोषों पर इन्होंने विजय भी पायी। ये बात मुझे इनमें बहुत प्रभावित करती है कि एक आदमी जो बहुत साधारण था, बहुत साधारण बिलकुल मिट्टी का आदमी। वो कैसे अपनी कमज़ोरियाँ जीतता चला गया, जीतता चला गया और आगे बढ़ता चला गया। और यही बात हमें उनसे सीखनी होगी।
बाकी राजनैतिक विचारधारा वगैरह के चलते किसी की निन्दा करना, अपशब्द बोलना, गाली-गलोच करना ये सब बहुत सस्ता काम है ये नहीं करना चाहिए। इंसान को इंसान की तरह देखना चाहिए। हर इंसान में कुछ कमज़ोरियाँ होती हैं और बहुत कुछ ऐसा भी हो सकता है जो उससे सीखा जा सकता है। जो सीखा जा सकता है वो सीखा जाना चाहिए।
उनकी दृढ़ता देखिए, उनकी ज़िद देखिए। एक व्यक्ति जो कमज़ोर मन का था शुरुआत में, वो इतने दृढ़ मन का हो गया कि जब वो उपवास करने बैठते थे तो भारत ही नहीं पूरी दुनिया काँप जाती थी। चर्चिल के पसीने छूट जाते थे। बोलता था नंगा फ़कीर बड़ा जिद्दी है, चर्चिल के शब्द हैं कि ये नंगा फ़कीर बड़ा जिद्दी है।
वो बैठ गये हैं अब उपवास पर तो बैठ गये हैं, लोगों को उनकी बात सुननी पड़ती थी और आसान नहीं है एक वृद्ध और कमज़ोर आदमी के लिए कहना कि नहीं खाऊँगा खाना तो नहीं खाऊँगा मेरी बात सुनो। और वो इस स्थिति पर आये, किस स्थिति से उठ करके? कि बहुत ही लचर से और औसत से मन के आदमी थे वो, बहुत ही औसत मन के आदमी। उस औसत स्तर से उठकर के इतना मज़बूत बन जाना। मेरे खयाल से सबको उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।