Acharya Prashant is dedicated to building a brighter future for you
Articles

सांसारिक लक्ष्यों के लिए अध्यात्म का उपयोग || (2019)

Author Acharya Prashant

Acharya Prashant

6 min
87 reads
सांसारिक लक्ष्यों के लिए अध्यात्म का उपयोग || (2019)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगता है। कक्षा में जब पढ़ाई-लिखाई होती है, तो ध्यान पढ़ाई से भटकता रहता है। कक्षा छोड़कर, बाहर मैदान में खेलता ही रहता हूँ। इस कारण मेरे अंक भी कम आते हैं। ध्यान भटकता रहता है, और बहुत आलस भी रहता है। आपके वीडियोज़ लम्बे समय से देखता हूँ, जिनसे थोड़ा परिवर्तन आया है। लेकिन पढ़ाई में मन अभी भी नहीं लगता है। आपके सामने बैठता हूँ तो अच्छा लगता है, मन को शांति मिलती है।

यहाँ आश्रम आने के लिए जो संसाधन लगते हैं, वो परिवार वालों से माँगने पर सहयोग नहीं मिल रहा है। ऐसी परिस्थिति में क्या करूँ?

आचार्य प्रशांत: इनकी गाड़ी की क्लच-प्लेट ख़राब है, इसमें अध्यात्म क्या करेगा? तुम्हारा पढ़ाई में अगर मन नहीं लगता है, तो इसमें अध्यात्म क्या करेगा? नहीं लगता, तो नहीं लगता। अध्यात्म क्या करेगा इसमें? (सामने बैठे श्रोता की ओर इंगित करते हुए) इन्हें मैगी-नूडल्स नहीं अच्छा लगता, इसमें अध्यात्म क्या करेगा? अब वो कहें, “आचार्य जी, मैगी-नूडल्स नहीं अच्छा लगता”, तो? तत्वबोध पढ़कर मैगी नूडल्स थोड़े ही अच्छा लगने लगेगा।

अध्यात्म का पढ़ाई-लिखाई से क्या सम्बन्ध है? तुमसे किसने कह दिया कि दुनिया जिन कामों को श्रेष्ठ समझती है, उन कामों की पूर्ति के लिए अध्यात्म सहायक हो जाएगा? आधे से ज़्यादा आध्यात्मिक लोग बे-पढ़े-लिखे थे, और तुम कह रहे हो कि, "सत्संग करके मेरा पढ़ाई में मन लगने लगेगा।" ऐसे ही जो यू.पी.एस.सी. की तैयारी कर रहे होते हैं, वो आते हैं, “आचार्य जी, आशीर्वाद दीजिए!”

(सभी श्रोतागण हँसते हैं)

इसमें आचार्य जी क्या कर सकते हैं? पता नहीं क्या भ्रम चल रहा है कि उपनिषद पढ़कर आई.ए.एस. बन जाएँगे।

“मैं गीता का रोज़ पाठ करता हूँ।”

“क्यों?”

“उससे नौकरी लग जाएगी।”

इस बात में, और इस बात में क्या अंतर है कि – “मैं वशीकरण मंत्र लेकर आया हूँ, लड़की पट जाएगी”? दोनों ही बेतुकी बातें हैं न? लालच की ख़ातिर, या अपने अंधे लक्ष्यों की ख़ातिर अध्यात्म का प्रयोग करना चाहते हो। तुमने यूँ ही कहीं दाखिला ले लिया है किसी कोर्स में। तुमने इसीलिए दाखिला लिया कि तुम्हें सत्य की प्राप्ति हो? जो तुमने कोर्स लिया है, उसका क्या नाम है? बैचलर इन ट्रुथ , या मास्टर्स इन विज़डम ? तो उस कोर्स को पास करने में ट्रुथ (सत्य) कैसे सहायक हो जाएगा?

जो कोर्स ट्रुथ की सेवा में ही नहीं लिया गया, जो कोर्स सत्य से सम्बन्धित ही नहीं है, उस कोर्स को पास करने में सत्य कैसे सहायक हो जाएगा? पर हमारी तो आदत बनी हुई है। मंदिर जाकर खड़े हो जाते हैं, “इस बार बेटा देना।” तुम्हें बेटा आए या बेटी आए, इससे भोले-बाबा का क्या प्रयोजन? उनका यही काम है कि – “इस बार बेटा देना”? वो यही पूरा करते रहें! देवियाँ खड़ी हैं शिवलिंग के सामने, “बेटा चाहिए।” क्या मूर्खता है? अश्लील दृश्य है।

शिव से शांति माँगो, सत्य माँगो, बोध माँगो – ये समझ में आता है। क्योंकि शिव शांति स्वरूप हैं, सत्य स्वरूप हैं, बोध स्वरूप हैं। जिन कामों का सत्य से कोई सम्बन्ध नहीं, उन कामों को अध्यात्म से क्यों जोड़ते हो?

तुम कह रहे हो कि, " कॉलेज में मन नहीं लगता है, यहाँ मन लगता है।" मैं निश्चित रूप से कुछ नहीं कहना चाहता, पर अगर यहाँ भी परीक्षा लेनी शुरु हो जाए, और यहाँ भी मामला तीन दिन का न हो, सेमेस्टर भर का हो, तो तुम्हारा यहाँ भी मन नहीं लगेगा।

अभी तो यहाँ पर सब एक बराबर हैं। यहाँ एम.बी.बी.एस. , एम.डी. भी बैठे हैं, यहाँ पी.एच.डी. भी बैठे हैं, और यहाँ तुम भी बैठे हो कि – “पाँच बैक-लॉग हैं मेरी।” और सब एक बराबर हैं, सब एक तल पर हैं। सब ‘शिष्य’ ही कहला रहे हैं। तो बड़ा अच्छा लगता कि यहाँ कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है, यहाँ कोई हमारी क़ाबिलीयत नहीं जाँच रहा। यहाँ सब एक बराबर हैं, गधा-घोड़ा एक हुआ। यहाँ भी तुमसे अगर श्रम करने के लिए कहा जाए , तो मुझे मालूम नहीं तुम्हारा उत्तर क्या होगा।

आश्रम में जब भीड़ बहुत बढ़ जाए, तो जानते हो न भीड़ छाँटने का नुस्खा क्या है? “आ जाओ भई, सेवा शुरु हो रही है। कौन करा रहा है सेवा?” धीरे-धीरे भीड़ अपने आप छँटने लग जाती है – “ओह! कोई काम याद आ गया था।” तमाशाई बहुत खड़े हो जाते हैं, जहाँ सेवा की बात आती है, भीड़ छँट जाती है।

इनसे सेवा करवाओ थोड़ी।

अध्यात्म पनाहगाह थोड़े ही है उनकी जो हर जगह से असफल हों! या है? तुम कैसे छात्र हो कि तुम पढ़ नहीं पा रहे? और तुम जो पढ़ रहे हो, उसमें अगर तुम्हारी रुचि नहीं है, तो पिताजी का पैसा क्यों खराब कर रहे हो? उस कोर्स से बाहर आओ। (स्वयं की ओर इंगित करते हुए) तुम जिनको सुन रहे हो, उन्होंने पढ़ाई की थी?

प्र: हाँ।

आचार्य: तो कैसे शिष्य हो तुम?

जो कर रहे हो, उसे ढंग से करो। वरना मत करो।

मुझे नौकरी नहीं करनी थी, तो मैं इस्तीफ़ा रखकर आ गया था कि, "अब नहीं करनी!" पर जब तक कर रहा था, बहुत अच्छा कर्मचारी था। ये थोड़े ही है कि वहाँ लगे हुए हो, एक सेमेस्टर , फिर दूसरा सेमेस्टर , और उसमें घिसट रहे हो। क्यों पैसा और समय ख़राब कर रहे हो?

किसी एक क्षेत्र में जाओ, जहाँ प्रेम से पढ़ सको, काम कर सको, और फिर वहाँ पूरी सामर्थ्य से जुटो। अध्यात्म इसीलिए नहीं होता कि तुम्हारे ग़लत निर्णय के भी सही परिणाम लेआ दे।

लोगों की अकसर यही उम्मीद होती है कि, “काम तो हम सारे ही ग़लत कर रहे हैं, राम तू इसका अंजाम दे दे।” ऐसा नहीं हो सकता। ग़लत काम का सही अंजाम राम भी नहीं देगा तुमको। अध्यात्म इसीलिए होता है, ताकि तुम अपने ग़लत छोड़ दो।

अध्यात्म इसीलिए नहीं है कि ग़लत निर्णय का सही परिणाम हो जाए। अध्यात्म इसीलिए है ताकि तुम सही निर्णय कर सको।

अंतर समझो।

कितने सेमेस्टर की पढ़ाई कर ली है?

प्र: आचार्य जी, छः *सेमेस्टर*।

आचार्य: या तो अब दम लगाकर परीक्षा दो, और पार कर दो। या फिर सीधे ड्राप-आउट हो जाओ, और कहो कि, “ये नहीं, अब ये पढ़ना है, और अब जो होगा उसको दिल से पढ़ूँगा।” या ये कह दो, “पढ़ना ही नहीं है।” वो भी अनिवार्यता थोड़े ही है कि स्नातक होना ज़रूरी है, मत पढ़ो।

सब रास्ते खुले हैं। पर जो करो, ज़रा होश और ईमानदारी से करो।

YouTube Link: https://youtu.be/KzxcYnnD88g

GET UPDATES
Receive handpicked articles, quotes and videos of Acharya Prashant regularly.
OR
Subscribe
View All Articles