सम्मान और ज़िम्मेदारी माने क्या? || आचार्य प्रशांत (2013)

Acharya Prashant

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सम्मान और ज़िम्मेदारी माने क्या? || आचार्य प्रशांत (2013)

वक्ता: सम्मान वो नहीं है, जो हम समझते हैं। वो डर बस है। सम्मान के नाम पर हम डरे रहते हैं कि अगर किसी का सम्मान करते हो, तो उसके सामने मुँह न खोलो। वो डर बस है। सम्मान शब्द का अर्थ भी बस इतना ही होता है: ठीक से देखना।

श्रोता: सर, बार-बार एनालाईज़ करना; किसी चीज़ को बार-बार एनालाईज़ करो।

वक्ता: हाँ, हाँ। बार-बार समझना, ध्यान से देखते रहना। सम्मान का भी वही अर्थ होता है: सम्यक रूप से मानना। पहले जानना, फिर मानना। सम्मान का वो थोड़ी अर्थ है कि कोई कुछ बोल रहा है, चुप-चाप मान लिया। यह किसने पट्टी पढ़ा दी? और यह पट्टी पाँच साल के बच्चे को पढ़ाई जा सकती है। पैंतिस साल का आदमी भी अभी क्यों माने बैठा है? सम्मान जैसा ये, सम्मान जो है यह बड़ा नकली शब्द है। बड़ा अस्वाभाविक शब्द है; प्रेम स्वाभाविक है।

सम्मान में कुछ भी स्वाभाविक नहीं है। सम्मान मानव रचित चीज़ है। सम्मान पूरी तरीके से आदमी के दिमाग की उपज है। ठीक वैसे ही, जैसे फियर आदमी के दिमाग में बैठता है; वैसे ही सम्मान भी वहाँ बैठती है। प्रेम दिमाग से बाहर की है। प्रेम आपके दिमाग की उपज नहीं होती। प्रेम आपकी अपनी शांत, साफ़ अवस्था है। सम्मान बाहर से ओढ़ी हुई चीज़ है पर होता यही है न? बचपन से ही यह थोड़ी कहा जाता है कि आप किसी को लिख रहे हो, तो उसमें लिखो, ‘*योर्स लविंग्ली‘* ‘*योर्स रेस्पेक्टफुल्ली ‘* और यह सब चलते रहता है। वो कुछ नहीं है। वो सिर्फ़ व्यवस्था बनाये रखने की बाते हैं। वो व्यवस्था बनाए रखने की बाते हैं कि, ‘’मैं तुम्हारे सामने झुक रहा हूँ। मैं तुम्हारे सामने झुक रहा हूँ और आप जिसको *‘योर्स रेस्पेक्टफुल्ली ‘* लिखते हैं, उसका अहंकार एकदम और घना होगा। हाँ! मुझे रेस्पेक्ट मिल रही है! आप किसी को प्रेम करें, उसमें उसका अहंकार बहुत नहीं बढ़ पाएगा। खासतौर पर, अगर वो कोई बहुत ऊँचें किस्म का आदमी है उसको आप लिख दें, ‘योर्स लविंग्ली‘ तो-तो गुस्सा और आ जाएगा, ‘तू होता कौन है मुझसे लव करने वाला?’

श्रोता: यह तो दाने डाल के बैठ जाता है।

वक्ता: हाँ! सम्मान में डर है। डर! अगर आप किसी का सम्मान करते हैं, तो आपका उसका संबंध डर का है। एकदम घनघोर डर का है।

श्रोता: वो दिखेगा नाईस और कोज़ी।

वक्ता: पर वो दिखेगा नाईस और कोज़ी..

श्रोता २: उसमें ज़रा सा भी कांफ्लिक्ट; वो नहीं होगा, बहस नहीं होगी। हमें यही लगता है जहाँ भी बड़ा नाईस और कोज़ी है, वहाँ सम्मान है और जहाँ थोड़ी सी कंफ्लिक्ट आया, वहाँ मतलब सम्मान नहीं है। वो उल्टा है शायद।

श्रोता: सर, एक मेरा प्रश्न है, काल का अर्थ टाइम। गुरु भी काल ही है। गुरु का अर्थ है सम्मान करना। विवेक और समय एक साथ चलते हैं। अब एक परिवार में पिता के पास ज़्यादा साफ़ दृष्टि है, ज़्यादा विवेक है..

वक्ता: बच्चे को कैसे पता चलेगा कि पिता के पास विवेक है या नहीं?

श्रोता: विवेक से।

वक्ता: किसका विवेक? बच्चे का न? तो ठीक है, यह काफ़ी है न कि बच्चा खुद विवेकी हो। अब बच्चा खुद विवेकी नहीं है, तो किसी और का विवेक क्या समझेगा? मैं किसी और को समझूं, उसके लिए मेरा अपना विवेकी होना तो ज़रूरी है न? पिता अक्सर ही शिकायत करेंगे कि मेरा बच्चे मुझे एप्रिशियेट नहीं करता। अब प्रश्न यह है कि उस बच्चे के वैसा बन जाने में कि जहाँ पर वह कुछ भी एप्रिशियेट नहीं कर पाता। फादर को ही नहीं, वो दुनिया में कुछ भी स्पष्टतया नहीं देख पाता, किस-किस का हाथ है?

श्रोता: पहले पिता का।

वक्ता: कई कारण का होगा, असमें पिता का भी है। तो यह स्थिति आए कि पिता को बच्चा समझ न पाए; इस स्थिति के लिए उत्तरदायी भी कौन है, यह देखना होगा न? बच्चे से यह अपेक्षा करना कि, ‘’मैं समझदार हूँ और मेरी समझ के रहते, तू मेरी इज्ज़त कर,’’ यह बड़ी गड़बड़ बात है। अगर बच्चे को भी आप वाइज़ बना पाए हैं और बना पाना भी ठीक शब्द नहीं है, ऐसा लगता है कि कहीं बाहर से देनी पड़ती है विज़डम! पर बात समझिएगा जो कहना चाह रहा हूँ। अगर बच्चे में भी आप विज़डम जगा पाए हैं, तो आपको यह शिकायत करनी ही नहीं पड़ेगी कि, ‘’वो मुझे नहीं समझता।’’ है न? वो किसी को भी समझे, उसके लिए उसकी अपनी आँखें इस्तेमाल होंगी न। अपनी आँखें खुली होंगी।

हम फिर उसी बात पर आते हैं यह सवाल सुन-सुन कर के; और हर जगह से आता है कि हमको तो समझ में आता है, पर हमारे आस-पास जो लोग हैं, वो हमें करने नहीं देते। यह स्थिति, देखिये, सिर्फ़ तभी आ सकती है — फिरसे कहूँगा — जब कहीं न कहीं आपके लालच के तार जुड़े हुए हों। नहीं तो आपको कहीं भी मन को मारने की, झुकने की ज़रूरत पड़ेगी ही नहीं। व्यवस्था के आगे आपको झुकना पड़ता है क्योंकि व्यवस्था से कुछ सहुलियतें मिलती हैं।

श्रोता: सर, सहुलियतों के साथ ज़िम्मेदारी भी तो मिलती है। जब माता-पिता और बच्चे का रिश्ता बच्चे के लिए है, तो उसको सहूलियतें मिल रहीं हैं। लेकिन अगर पेरेंट के दृष्टिकोण से देखा जाये, तो ज़िम्मेदारी है।

वक्ता: क्या ज़िम्मेदारी है माँ-बाप की?

श्रोता: वो बच्चे को सहुलियतें दें।

वक्ता: क्या सहुलियतें दें?

श्रोता: एक अच्छी लाइवलीहुड।

वक्ता: अरे! लाइवलीहुड आपको अभी से देनी है बच्चे को?

श्रोता: उसको खाना, पीना, मैनर्स।

वक्ता: यही तो दुनिया का हर पेरेंट करना चाह रहा है कि पहले ही लाइवलीहुड तैयार कर देता है। मेरा बच्चा इंजीनियर बनेगा! एक बच्चे के प्रति; चलिए ज़िम्मेदारी शब्द ही ले लीजिये। एक बच्चे के प्रति एक बड़े की क्या ज़िम्मेदारी है?

श्रोता: उसको जो ज़रुरत है, समय पर प्रोवाइड करना।

वक्ता: पहले पता तो हो न कि ज़रुरत क्या है और ज़रुरत क्या नहीं है?

श्रोता: वेल्यु सिस्टम है।

वक्ता: अब एक्स-बॉक्स , उसकी ज़रुरत है क्या?

श्रोता: नहीं।

वक्ता: तो बहुत ध्यान से बोला करिये। जो ज़रुरत है। जो ज़रुरत है, माने क्या ज़रुरत है?

श्रोता: वेल्यु-सिस्टम इन्स्टॉल करना।

वक्ता: कौन सा वर्ज़न? सेवन पॉइंट फॉर!

(सभी श्रोता ज़ोर से हँसते हैं)

यह आप सुन भी रहे हैं! आप देंगे *वेल्यु सिस्टम?* आप क्या देंगे उसको *वेल्यु सिस्टम ?*

श्रोता: अपने आचरण से, आचार और विचार से।

वक्ता: अरे यार! वो इसलिए पैदा हुआ है? भगवान बचाए बच्चों को हमसे! हमारी जो नीयतें हैं, बड़ी ज़बरदस्त हैं। बिलकुल मार देने का इरादा है बच्चों को! बच्चा इसलिए पैदा होता है कि वो आपका आचरण कॉपी करे? कोई वेल्यु सिस्टम देने की कोशिश मत करियेगा, यह बहुत बड़ा अपराध है और जिस दिन दुनिया थोड़ी भी समझदार हो जाएगी न, उस दिन सबसे पहले ऐसे लोगों की पिटाई लगेगी, जो बच्चों में ये सब डालने की कोशिश करते हैं।

श्रोता: ऐसा करो! वैसा करो! इस तरीके से करना चाहिए!

वक्ता: सबसे बड़े अपराधी यह कहलायेंगे। यह कोशिश भी मत कर लीजियेगा। और मैं कल सुन रहा था उधर ज़ोर से आवाज़ आई थी कि अभिषेक सर, मैं आपको बताना चाहता हूँ कि बच्चों का और माँ-बाप का रिश्ता फियर का नहीं होता है। पता नहीं किसकी आवाज़ थी।

वक्ता: और कुछ वैसी ही आवाज़ आज कह रही है कि मुझे बच्चों में वेल्यु-सिस्टम इन्स्टिल करना है! आपको बच्चे को क्या देना है? मुझे बताइए न!

श्रोता: जैसे इन्होनें कहा, बच्चे में वेल्यु-सिस्टम देना है। एक बार को एक सिचुएशन मान लेते हैं कि हाँ, यह भी सही है कि हमें अपना आचरण नहीं देना है उस बच्चे को। लेकिन बच्चा जो, जिसे हम कहते हैं कि चाइल्ड है, हम अगर उसे नहीं दे रहे वेल्यु-सिस्टम, फिर भी वो यह चीज़ कैसे रियलाइज़ कर लेता है कि हमने उसे नहीं देने की कोशिश की। लेकिन उसने अपने सराउंडिंग में, अपने साथ के बच्चों के साथ, उसका ह्यूमन नेचर जो था। उसने देखा कि बाकी बच्चों को उनके पेरेंट्स एक *वेल्यु-सिस्टम*, आचरण दे रहे हैं; जो मेरे पेरेंट्स..

वक्ता: साथ के बच्चों से क्या मतलब है?

श्रोता: उसके अपने साथ, फ्रेंड्स हो सकते हैं।

वक्ता: वो फ्रेंड्स उसके वही बनें, यह कौन डीटरमाइन कर रहा है?

श्रोता: जो एक ट्रेंड रहा है सोसाइटी में, नेबर्स हैं, स्कूल जा रहा है।

वक्ता: उसका स्कूल कौन डिसाइड कर रहा है?

श्रोता: हाँ। पेरेंट्स ही डिसाइड कर रहे हैं।

वक्ता: तो यह सारा कुछ करने के बाद आप कहते हैं, ‘अरे! दुनिया बड़ी गन्दी है। मुझे इसे साफ़ करके वेल्यु-सिस्टम भी देना है।‘

श्रोता: अगर नहीं देते हैं। मैं कह रही हूँ अगर हम..

वक्ता: नहीं, अगर नहीं दिया नहीं। आप पहले ही दे रहे हो न। उसका स्कूल आप तय कर देते हो। आप कहाँ रहते हो, उससे बाहर वो नहीं जा सकता; यह आप तय कर देते हो। उसके बाद कहते हो कि आस-पास के बच्चे न इसे बड़ा करप्ट कर रहे हैं। तो अब मुझे इसकी सफाई करनी पड़ेगी। उसके आस-पास के बच्चे किस लोकेलिटी से आ रहे हैं?

श्रोता: सेम लोकेलिटी।

वक्ता: आप रहते हो पटपड़गंज में और वो जाएगा वसंत कुंज के बच्चों के साथ खेलने?

श्रोता: सेम लोकेलिटी।

वक्ता: बताओ तो मुझे! उसके आस-पास के बच्चे किस लोकेलिटी से आ रहे हैं? जिस लोकेलिटी में आप रहते हो? जिस लोकेलिटी में आप रहते हो, वो लोकेलिटी किसने चुनी है?

श्रोता: आपने।

वक्ता: तो अगर आस-पास के बच्चे भ्रष्ट हैं, तो उस भ्रष्ट लोकेलिटी को चुना किसने है?

श्रोता: आपने उसके लिए।

वक्ता: आपने चुना है। वो दिन-रात जिन लोगों से मिल रहा है, क्या वो आपके दुश्मनों से मिल रहा है? बताइए तो? आपके घर में जो लोग आ रहे हैं, उनसे मिल रहा है। आपके घर में कौन आ रहे हैं?

श्रोता: दोस्त-रिश्तेदार।

वक्ता: और अगर वो भ्रष्ट हैं। आपके दोस्त भ्रष्ट हैं, आपके रिश्तेदार भ्रष्ट हैं, तो आप कैसे होंगे?

श्रोता: वैसे ही।

वक्ता: और यही भ्रष्ट आदमी कह रहा है कि मुझे बच्चे की सफ़ाई करनी है! मेरे घर में बच्चे से मिलने, बच्चे के चाचा, मामा और यह सब आ रहे हैं और यह महाभ्रष्ट लोग हैं। अगर मैं साफ़ होता, तो यह चच्चा -मामा आ सकते थे मेरे घर में?

श्रोता: नहीं।

वक्ता: फिर मैं कहूँ कि चाचे और मामे आकर बच्चे की गड़बड़ कर जाते हैं और मैं साफ़ करूँगा! चाचे और मामे के आने का कारण ही यही है कि तुम्हारे पास खूटियाँ हैं, जिन पर वो टंगने चले आते हैं! नहीं तो एक साफ़ आदमी के घर में भ्रष्ट लोगों के आने का कारण क्या हो सकता है? आयेंगे ही नहीं! फिर आप कहो कि मुझे अब बच्चे की सफ़ाई करनी है। बच्चे की सफ़ाई करने के लिए आप इतनी ही दया कर दो कि अपनी सफ़ाई कर लो और उसकी कोई ज़रूरतें नहीं हैं। ज़रूरतों के नाम पर आप उसको जो कुछ दे रहे हो, वो उसके साथ अन्याय ही है। वो उसके साथ अन्याय ही है। ज़िम्मेदारी से तात्पर्य क्या है आपका? ज़िम्मेदारी पूरी करनी है! बच्चे को जान तक तो आपसे पूछ के दी नहीं जाती है! जैसे वो आया है, वैसे ही बड़ा भी हो लेगा। आप ज़रा दूर रह लीजिये, उससे इतनी ही दया करिये। सब कुछ तो उसका आप निर्धारित कर देते हो, फिर आप कहते हो कि इसकी सफाई करनी है। खुद ही उसे काला करते हो, गन्दा करते हो फिर कहते हो सफाई करनी है।

दुनिया में हर आदमी इसी बात से व्यथित है कि दूसरे मुझ पर हावी हैं। कोई यह नहीं देखता है कि आप खुद कितनी बातें चाहते हो, इस कारण दूसरे आप पर हावी हैं। औरत कहेगी, ‘‘पति मुझपर हावी है।’’ अब तुम उसके घर पर रहोगी। औरत बाद में हो, पहले तो इंसान हो न? एक तीस साल, चालिस साल, पचास साल के इंसान को शोभा देता है किसी के घर में बैठे रहना; एक पैसा न कमाना! और ऊपर से जो कमा के ला रहा है, उसके पैसों पर राज करना! यह शोभा देता है? तुम पहले तो यह हरकत कर रही हो; गहराई से तुम्हारे मन में लालच है। उसके बाद तुम कहती हो यह मुझे डोमिनेट करता है। मेरे शरीर को डोमिनेट करता है। करेगा ही करेगा। तुम उसके घर में रह रही हो। तुम उसके सामान का उपयोग कर रही हो। उसके बिस्तर पर सोती हो। उसका टीवी देखती हो। उसके दिए कपड़े पहनती हो। वो तुम पर अब मालिक नहीं बने तो क्या बने? ज़रा सी आँख खोल के देखोगे, तो तुमको साफ़-साफ़ दिखाई देगा कि तुम उसकी नौकरानी ही तो हो। फिर तुम कहती हो कि मेरा बड़ा शोषण होता है घर में। होगा ही!

लगातार तो तुम्हारे मन में लालच है। ऐसे ही पति बोलते हैं पत्नियां बड़ा डोमिनेट कर लेती हैं। कोई पत्नी तुम्हें डोमिनेट कर सकती है, तुम्हारे मन में अगर उसकी बॉडी का लालच न हो तो? तुम उसकी बॉडी के पीछे भागते हो, उसी के कारण वो तुमको नाच नचा देती है! और कोई हथियार नहीं है उसके पास। बस यही हथियार है कि तुम्हारे मन में लालच है कि किसी तरह इसका शरीर मिल जाये। और वो इतना नचाएगी तुमको, इतना नचाएगी कि मर जाओगे! उसको तुम्हारे पैसे का लालच है, तुम्हें उसके शरीर का लालच है। दोनों एक दूसरे को नचा रहे हो, फिर दोनों रोते हो! घर-घर की यही तो कहानी है, और क्या चल रहा है? मरी से मरी औरत समर्थ से समर्थ आदमी पर राज करती है!

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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